विद्यापतिः हमर सभक आदर्श आ प्रेरणाक मुख्य स्रोत

विद्यापतिक व्यक्तित्व सँ प्रेरणा

– प्रवीण नारायण चौधरी

vidyapati1मिथिला क्षेत्र तऽ जगजननी सियाजी के अवतार होइते धन्य बनि गेल – मुदा मिथिला में अनेकानेक विभुति समय-समय अवतरित होइत रहलाह जाहिमें महाकवि विद्यापतिजी के नाम समस्त मैथिल जनमानस के संग विश्व भरिक विद्वान्‌ वर्ग जनैत छथि।

हिनक जन्म १३५० ई. में भेल आ लगभग अपन १०० वर्षके जीवनकाल धरि अनेक सुप्रसिद्ध रचना सँ मैथिली साहित्यके समृद्धि प्रदान करैत रहलाह। अपन भावपूर्ण गीत आ रचना केर अम्बार सँ जन-जनके बोलीमें समा गेलाह। मिथिला के संस्कृतिमें बहुतो अवसरपर गीतनाद के परंपरा छैक – आ विद्यापतिजीके लिखल गीत एहेन हर अवसरपर सुनय लेल भेटैत अछि। हिनक गीतक माधुर्यता आ सरसता एहेन प्रभावशाली होइछ जे बटगबनी यदि गबैछ तऽ चारुकातके लोक सभ झुइम उठैछ।

कहल गेल छैक जे विद्यापतिजी ईश्वरकेर बहुत पैघ भक्त छलाह – एक उच्चकूलीन वंशमें जन्म लेल जाहिमें पूर्वहि सऽ सुन्दर संस्कारके परंपरा-धारा चलि आबि रहल छल। मैथिल ब्राह्मणक पंजी अनुसार गढबिसपी (बिस्फीके पूर्वनाम) में कर्मादित्य त्रिपाठी नामक ब्राह्मण रहैत छलाह जे एक राजमंत्री छलाह आ विद्यापतिजीके वंशके आदिपुरुष विष्णुशर्मा ठाकुर के पोता छलाह। कर्मादित्यके बाद हिनक वंशमें जतेक महापुरुष लोकनिक जन्म भेलन्हि सभ केओ तत्कालीन मिथिलाके राजदरबार में उच्चपद पर काज कयलथि – केओ राजमंत्री तऽ केओ राजपंडित – किनकहु महामहत्तक के उपाधि भेटल तऽ किनकहु सन्धि-विग्राहिकके।

हिनक वंश अपन विद्वता आ बुद्धिमत्ताके कारण ओहि समय केर मिथिलामें बेजोड़ी छल। कतेको लेखक आ कतेको कवि भऽ चुकल अछि हिनक वंशमें आ सरस्वतीके अपूर्व कृपापात्र एहि परिवारमें विद्यापतिजी अद्वितीय भेलाह। हिनक पिता गणपति ठाकुर सेहो एक राजमंत्री आ नीक कवि छलाह। हुनक गंगाभक्ति-तरंगिणी नाम के एक पु्स्तक रचना भेल अछि। कर्मादित्यके पोता वीरेश्वर ठाकुर नान्यवंशी राजा शक्रसिंह एवं हुनक पुत्र हरसिंहदेव (सिमरौनगढके अधिपति) के राजमंत्री छलाह आ हिनक रचना छन्दोग्य-दशकर्मपद्धति भेल अछि जाहि अनुरूपे आइयो दशकर्म कैल जैछ। वीरेश्वरके सहोदर भाइ धीरेश्वर जे विद्यापतिके निज प्रपितामह छलाह, ओ महावार्त्तिकनै बन्धिक नाम सँ प्रख्यात छलाह। वीरेश्वरके पुत्र चंडेश्वर के रचनामें कृत्यचिन्तामणि, विवादरत्नाकर, राजनीति रत्नाकर एवं अन्य जोड़ि कुल सप्त रत्नाकर छन्हि। फोर्ट विलियम कॅलेज – कलकत्तामें एकर पाठ्यपुस्तकमें पढाई सेहो होइत छल आ बादमें एहि कॅलेजके बंगभाषाके अध्यापक हरप्रसाद राय १८१५ ई. में एकर भावानुवाद केने छलाह।

चारिम पुस्तक कीर्त्तिपताका – एहिमें मैथिलीमें लिखल गेल प्रेमसंबंधी कविता सभ अछि। पाँचम ‘लिखनावली’ संस्कृतमें पत्रव्यवहार करयके रीति-वर्णित अछि। एहि पुस्तकके रचना राजबनौलीक अधिपति ‘पुरादित्य’ के लेल २९९ लक्ष्मणाब्दमें लिखल गेल छल। अही ठाम विद्यापति ३०९ लक्ष्मणाब्दमें ‘भागवत’ लिखब समाप्त केने छलाह। छठम पुस्तक शैवसर्वस्वसार जाहिमें भवसिंह सऽ विश्वासदेवीके समयतक जतेक राजा छलाह हुनक कीर्त्ति-कथा तथा शिवपूजाके विधि लिखल छैक। सातम पुस्तक गंगा वाक्यावली, आठम दान वाक्यावली जे राजा नरसिंहदेवके पत्नी धीरमतीके समर्पित कैल गेल छैक, नवम पुस्तक ‘दुर्गाभक्ति-तरंगिणी’ दुर्गापूजाके प्रमाण आ प्रयोगपर लिखल गेल छैक। एकर अतिरिक्त विभाग-सार (स्मृतिग्रंथ), वर्षकृत्य और गया-पत्तलक नामक संस्कृत पुस्तक सेहो हिनकहि रचना सभ थिकन्हि।

विद्यापति के प्रसिद्धि हिनका देल गेल विभिन्न महत्त्वपूर्ण उपनाम सभ सँ सेहो पता लगैछ। ‘अभिनव जयदेव’ के उपाधि सर्वप्रसिद्ध अछि। जेना संस्कृत-साहित्यमें, मधुर-श्रृंगार वर्णन में जयदेवके केओ जोड़ा नहि छथि, तहिना विद्यापतिजीके भाषा-साहित्यमें केओ जोड़ा नहि छन्हि। उक्‍त उपनाममें हिनक कविता रचना सेहो अछि:

सुकवि नवजयदेव भनिओ रे।
देवसिंह नरेन्द नन्दन। सेतु नरवइ कुल निकन्दन।
सिंह सम शिवसिंह राजा। सकल गुनक निधान गनिओ रे।

हिनकर अन्य उपाधि ‘कविशेखर’, ‘कविकंठहार’, ‘कविरंजन’, ‘दशावधान’, ‘पंचानन’, ‘चम्पति’, ‘विद्यापति चम्पई’, आदि सुप्रसिद्ध अछि।

विद्यापति शिवके परमभक्त छलाह। हिनकहि शब्दमें:
आन चान गन हरि कमलासन, सब परिहरि हम देवा।
भक्त बछल प्रभु बान महेसर, जानि कएलि तुअ सेवा॥

केओ चंद्रमाके पूजा करैत अछि, केओ विष्णुके पूजा करैत अछि, लेकिन हम सभके छोड़ि देल। हे बाण-महेसर, भक्तवत्सल जानि हम अहीं के सेवा कयलहुँ।

विद्यापतिक जन्मस्थान बिसपी सऽ उत्तर भेड़वा नामके एक गाममें बाणेश्वर महादेव केर मन्दिर छन्हि। कहल जाइछ जे विद्यापति हिनकहि उपासना करैत छलाह। एतबा नहि, हिनक बनायल अनेको शिवगीत आ नचारी सभ छैक, जे मिथिलामें हिनक पदावली सऽ बेसी प्रचलित छैक। हिनक पद बेसी स्त्रिगण गबैत छथि, पुरुषवर्गमें नचारी प्रसिद्ध छन्हि। तीर्थस्थान जाइत झुंड-के-झुंड कोकिलकंठी गीतहैर सभ हिनक मधुर पद गबैत झुमैत चलैछ, तहिना तीर्थयात्री पुरुष के झुंड बहुत प्रेमसँ हिनक नचारी गबैछ। कहल जैछ जे स्वयं महादेव हिनक भक्तिपर मुग्ध छलाह। एक अपरिचितके रूपमें हिनक सेवा करैत उगना के नामसँ महादेव अपन भक्तके मान-बढौलन्हि। इ भेद एक दिन बड़ रोचक रूपमें खुलल आ शर्तके अनुसार ओ रहस्य विद्यापति द्वारा अन्य किनकहु समक्ष प्रकट नहि करयके क्रमभंग भेल तऽ उगना महादेव अन्तर्धान भऽ गेलाह। तदोपरान्त भक्त महाकवि विद्यापतिके विलापरूपी रचना बहुत मार्मिक आ हृदयके छूबयवाला अछि:

उगना रे मोरा कतए गेलाह। कतय गेला सिव कीदहु भेलाह॥
भाँग नहि बटुआ रुसि बैसलाह। जोहि हेरि आनि देल हँसि उठलाह॥
जे मोर कहता उगना उदेस। ताहि देबओं कर कँगना बेस॥
नन्दन-वनमें भेटल महेस। गौरि मन हरखित मेटल कलेस॥
विद्यापति भन उगना सों काज। नहि हितकर मोरा त्रिभुवन राज॥

एहेन हिनक अनेको पदके रचना छन्हि जाहिमें इ उगना के छोड़ि अन्तर्धान भेला प्रति विलापपूर्ण सम्बोधन केने छथि।

विद्यापति शिव आ विष्णुके एकहि रूपके दू कला मानैत छलाह। हिनक पद्य अछि:

भल हरि भल हर भल तुअ कला। खन पितवसन खनहि बघछला॥

संगहि हिनक देवी दुर्गाके स्तुति के मनन कयलापर हिनक शैव, वैष्णवके संग शाक्त सेहो भेलाके पुष्टि होइछ। आम मैथिल के समान इ शिव, विष्णु आ चंडी – तिनू के मानैत छलाह, आ कोनो एक विशेष संप्रदाय मात्र के नहि छलाह। समस्त जीवनकाल धरि अपन आश्रयदाता राजा शिवसिंह एवं हुनक वंशके संग मिथिलाके सर्वथा कल्याण हेतु विभिन्न प्रकारके योगदान दैत महाकवि अपन उमरपर लक्ष्य करैत कहैत छथि:

बयस, कतह चल गेला।
तोहे सेवइत जनम बहल, तइओ न आपन भेला॥

वयस, तू कतय चलि गेलें? तोरे सेवैत अपन जन्म बितेलहुँ, तैयो ने अपन भेलें।

अपन मृत्युके बेर बुझि महाकवि अपन घरके लोकसँ विदा माँगैत नित्यचर्याके गंगास्नान के महत्त्व आ मिथिलाके परंपरानुसार गंगालाभ अर्थात्‌ गंगा किनार सेवैत अपन प्राण छोड़ी एहि धारणाके जिबैत अपन संतानकेँ इ कहैत जे प्रजारंजन करब, अतिथि-सत्कार में कहियो नहि चूकब, दोसरके स्त्रीके माय के समान मानब – तदोपरान्त अपन कुलदेवी विश्वेश्वरी के समीप जाय लेल अनुमति माँगैत जे माय आब गंगाजी जा रहल छी, जन्म भैर शिवजीके आराधना कयलहुँ, आब विदा करू… कहैत पालकीमें बैसैत घरसँ विदाह भेलाह। रास्तामें जखन गंगा सऽ किछु दूरी पर छलाह तऽ पालकी रखबा देलाह आ एक अभिमानी भक्त जेकाँ कहलाह – एतेक दूर सऽ माय के समीप अयलहुँ, तऽ माय हमरा लेल दू कोस आगू नहि बढि सकैत छथि? राइत बितल, दोसर दिन लोक दृश्य देखि अवाक्‌ रहि गेल! गंगा अपन धारा छोड़ि, दू कोसके दूरीपर पहुँचि गेल छलीह!! आइयो धरि ओहि स्थानपर गंगाके धार टेढ देखैछ। ओहि स्थानकेओहि स्थानके नाम मउ बाजितपुर अछि। साविकके दरभंगा जिलामें आब समस्तीपुरमें पड़ैछ आ एहि जगह विद्यापतिजीके देहावसान भेलन्हि। हुनक समाधिपर आइयो सुन्दर शिव मन्दिर अछि आ एक प्रसिद्ध तीर्थके रूपमें लाखो श्रद्धालू एहिठाम प्रतिवर्ष पहुँचैत एहि महान अवतारी पुरुषके आशीष लैत छथि। विद्यापति समान विद्वान्‌ आ कर्मठ वेत्ता लेल आइयो करोड़ों मैथिल नतमस्तक रहैत अछि आ हुनक स्मृतिगान करैत नहि केवल विद्वान्‌के सम्मानवर्धन करैछ बल्कि अपन धर्म आ कर्म हेतु हुनक आशीर्वाद सेहो पबैछ।

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव!

हरिः हरः!!

(दिसम्बर ७, २०११ – हमर पहिल लेख जे कतेको रास पत्र-पत्रिका मे स्थान पेलक)