विद्यापतिक स्मृति भगवान् समान हर क्षण – हर पल

आजुक समय मे विद्यापतिक प्रासंगिकता

– प्रवीण नारायण चौधरी

vidyapatiविद्यापति – ऐतिहासिक महापुरुष – महाकवि – कविकोकिल – जनकवि – संस्कृत सँ अवहट्ट (मैथिलीक प्राकृतिक रूप) मे रचना करैत आम जनमानसक आवाज बनि गेलाह। विद्यापतिक रचना बाट चलनिहार द्वारा सेहो गायल जाय लागल, पुरुष नचारी तऽ महिलावर्ग बटगवनी बनिकय विद्यापतिक रचना सबकेँ अमर बनौलनि। श्रृंगार रस आ भक्ति रसक संग मिथिला राजा शिव सिंह तथा हुनकर परिवारक अनेको गणमान्य सदस्य, रानी लखिमा देवी केर वीरकथा सबकेँ समेटैत विद्यापति द्वारा अन्य लौकिक-व्यवहारिक पक्ष पर सेहो भिन्न-भिन्न रचना कैल गेल। विद्यापतिक पदावली सँ प्रभावित संपूर्ण भारतवर्ष मे अन्य-अन्य भाषाक रचनाकार लोकनि सेहो हिनकहि अनुकरण करैत अपन कतेको रचना केलनि आ प्रसिद्धि पौलनि। रविन्द्रनाथ टैगोर सेहो भानुकविक नामसँ ब्रजबुलि मे विद्यापतिक अनुकरण करैत रचना आदि प्रस्तुत केलनि। विद्यापतिक रचनाशैलीक समग्रता केर प्रासंगिकता आइयो मैथिली भाषाक विभिन्न भाषिका बीच तादात्म्य केँ स्थापित करैत अछि। ओ चाहे मुंगेर मे बाजल जायवला मैथिली हो या भागलपुर या मधुबनी-दरभंगा, विद्यापतिक भिन्न-भिन्न रचना मे सब तरहक प्रयोग भेटैत अछि। वर्तमान युग मे भाषाविद् मैथिलीक अनेको बोली होयबाक बात कहैत छथि, मुदा विद्यापतिक रचना ओहि सब तरहक बोलीकेँ समेटैत देखेला सँ मैथिलीक गंभीर ऐतिहासिकता आ विशालताक परिचय दैत अछि। एतबा नहि, बंगाली व नेपाली सँ सामीप्यता एतेक पैघ अछि जाहि कारण सँ दुनू भाषा मैथिली परिवारक सदस्य प्रतीत होइत अछि। विरोधाभास सेहो प्रकट होइछ जे विद्यापति बंगाली आ नेपाली कवि सेहो छलाह। हिन्दी भाषा साहित्यक विकास मे सेहो विद्यापतिक योगदान केँ महत्त्वपूर्ण मानल जाइत छन्हि। यैह सब कारण सँ विद्यापति एकमात्र सर्वमान्य आ बहुचर्चित व्यक्तित्व सबहक लेल पूज्य छथि, अनुकरणीय छथि।

विद्यापतिक दोसर पक्ष, मिथिला राजा शिवसिंह प्रति समर्पित भावना सँ राज्यक सेवा हिनक वीरतापूर्ण पुरुषार्थ हमरा लोकनिक सोझाँ रखैत अछि। वर्तमान युग मे विद्यावान लोक अपन निजी स्वार्थ केर पुर्ति आ धन-मान-संग्रह सँ बेसी लैत देखाइत छथि, एहेन समय मे विद्यापतिक जीवनचर्या सँ प्रेरणा लैत अपन मातृभूमि प्रति सेवाभावना ग्रहण करबाक दोसर बड पैघ प्रासंगिकता स्पष्ट अछि। आजुक विडंबना मे ‘बारीक पटुआ तीत’ प्रतीत होइत अछि। विद्यापति द्वारा अपन राज्य मिथिला तथा राजा शिवसिंह लेल दिल्ली दरबार सँ बौद्धिकताक प्रयोग करैत क्षमादान लेब एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करैत अछि। आइ यैह मिथिलाक नहि जानि कतेको विद्यापति दिल्ली दरबार मे उच्च पद पर आसीन छथि, नेपालक राजधानी काठमांडु मे उच्च पद पर आसीन छथि, बुद्धि, बल, विवेक, ऐश्वर्य, सामर्थ्य कोनो दृष्टिकोण सँ किनको कम नहि छन्हि – कमी बुझाइछ जे राजाक इशारा करिते विद्यापति जेना रानी सहित राज्यक अन्य महत्त्वपूर्ण दस्तावेज, कोषादि केर रक्षार्थ १२ वर्ष धरि छुपल पहिचानक संग उत्तरी मिथिलाक विभिन्न भाग मे गुप्तवास करैत सब किछु जोगौलनि ताहि बात सँ वर्तमान पीढी प्रेरणा लैत अपन पहिचानक विशिष्टता केँ भारत तथा नेपाल दुनु भाग संविधान द्वारा सम्मानित कराबैथ। एहि लेल समुचित संघर्ष आ लोकमानस मे जागृतिक प्रसार करैथ।

विद्यापतिक भक्ति – शाक्त, शैव तथा वैष्णव तिनू संप्रदाय लेल होयबाक तेसर विलक्षण पक्ष आजुक जनमानस लेल अनुकरण योग्य रखैत अछि। के नहि जनैत अछि जे हिनक रचना व भावपूर्ण प्रस्तुतिसँ समस्त लोकमानस प्रभावित होइत छल, तैँ महादेव सेहो छद्मरूप ‘उगना’ बनि भक्त विद्यापतिक चाकरी तक स्वीकार कय लेलनि। भगवान् भावक भूखल छथि, एहि कहबी केँ उगना भाँग घोंटैत विद्यापति केर टहलू बनि साक्षात् महादेव प्रमाणित केलैन अछि। हमर व्यक्तिगत अनुभव सेहो किछु एहने रहल अछि जे विद्यापतिक गान सँ महादेव केर गान होयबाक महायज्ञ पूर्ण होइत अछि। जँ हमरा लोकनि आइ ठाम-ठाम पर विद्यापतिक स्मृति दिवस समारोहरूप मे मनबैत छी तऽ नहि केवल देवाधिदेव प्रसन्न होइत छथि बल्कि लोकमानस मे सेहो नव उर्जाक संचार होइत अछि आ भाषिक-सांस्कृतिक एकजुटताक विकास होइत अछि। हम एहि विरोध मे नहि पडय चाहब जे कियो विद्यापतिक नाम पर कुरूप समारोह करैत छथि आ एहि सँ समाज मे नकारात्मक असर पडैत छैक, लेकिन चेतावनी जरुर देब जे महापुरुषक गान मे कथमपि अभद्रता कोनो रूप मे स्वीकार नहि कैल जाय। मिथिला सब दिन सँ आत्मविद्या केर आश्रयदाता मैथिल केर वास-स्थल रहल अछि, एतय कोनो हाल मे अक्षयधन विद्या छोडि अन्य भौतिकता-आधुनिकताक वयार सँ नग्नता केँ नहि स्वीकारल जाय। जेना लोक अपना योग्य लगायल जा रहल सिधा मे सँ एक मुठी निकाइल कय सामाजिक-सामुदायिक हित लेल – परोपकारक कार्य लेल अलगे छुटाकय रखैत अछि, जेकरा मुठिया कहल जाइछ, तहिना वर्तमान समय मे विद्यापति व समस्त महापुरुषक स्मृतिगान आ समाज केँ नव उर्जा प्रदान लेल तत्परता सँ कार्य करय। एहि प्रासंगिकता केँ कथमपि अकर्मल आ ढोंगी कोढिया तत्त्व द्वारा तोडय नहि देल जाय।

साहित्य हो – संसार हो, जल, थल, नभ, इहलोक, परलोक – सब बात लेल विद्यापति अकाट्य छथि। हर गाम, हर जगह हिनकर कीर्तिक यशगान आइयो कोनो न कोनो रूप मे विद्यमान छैक। सब केँ जोडैत छथि विद्यापति – सैकडों वर्ष बीतलो पर मिथिला समाज हेतु प्राणतत्त्वक कार्य कय रहल छथि। जेना जनक ओ जानकी, तहिना विद्यापति मिथिलारूपी सनातन सूर्य बनि हम समस्त मिथिलावासी लेल प्राणाधार बनल छथि।

हरि: हर:!!