विशेष संपादकीय
सामाजिक संजाल पर ई विषय बहुतो बेर बहस मे आयल जे आखिर मिथिलाक पहिचानक प्रतीक ‘पाग’ केँ कोना सर्वमान्य मानल जाय। गोटेक कूतर्की आ दंभी विद्वान् ‘पाग’ केर वृहत् अर्थ केँ अपने सँ संकुचित कय किछु जातिक धार्मिक कर्मकाण्ड मे उपयोग सँ जोड़ि पागहु पर ताहि जातिक एकाधिकार स्थापित करबाक कूकार्य करैत आबि रहला अछि। जखन कि शाब्दिक अर्थ आ वृहत् पटल पर व्यवहार सँ ‘पाग’ केर गरिमा आ महत्व बहुत ऊपर अछि, ई बात बुझेनिहार बुझबैत आबि रहला अछि।
कोनो विशेष धर्म-कर्म केर बेर पर उपयोग मे आनल जायवला पाग केँ कोनो जातिक व्यक्तिगत सम्पदा मानि लेब मिथिलाक वृहत्तर – विस्तृत स्वीकार्यता केँ ओछ बनायब समान अछि। अतः ‘पाग’ केर वृहत् अर्थ समस्त मिथिलाक वैश्विक रूप संग तूलना कैल जाएछ। आर ई प्रमाणित भेल अछि एकरा अंग्रेजीक शब्दकोश मे स्थान भेटला सँ।
जहिना संसार भरिक शिरो वेष्टन मे कतेको तरहक परिधानक चर्चा कैल जाएत अछि, बिल्कुल तहिना प्राचीन संस्कृति एवं सभ्यता मिथिला मे माथक परिधानक रूप मे पाग केँ मानल जाएत अछि। मुरेठा हो, फेटा हो वा माथ पर धारण करय योग्य कोनो परिधान हो, ओहि सब मे मिथिलाक पाग सर्वोपरि अछि।
एहि सन्दर्भ मे पूर्वहि मे लिखल गेल एकटा महत्वपूर्ण अंग्रेजीक लेख मोन पड़ैत अछि। ओ लेख जहिनाक तहिना निचां अध्ययनशील लोक वास्ते फेर सँ राखि रहल छी। तहिना पागहि केर चर्चा मे एकर महत्व केँ गनाबयवाला विभिन्न विन्दु पर लिखल गेल समीक्षा एतय समुचित सन्दर्भ वास्ते लिखि रहल छी।
एकटा आरो संदेश ग्रहण करबा योग्य अछि। जहिना अंग्रेजी शब्दकोश संसार भरिक सब समृद्ध पहिचानक शब्द केँ – प्रचलित-लोकप्रिय शब्द केँ अपनाबय मे संकोच नहि करैत अछि, तहिना यदि मैथिलीभाषाभाषी सेहो अपना मे आन भाषाक नीक बात केँ स्वीकार्यता प्रदान करैत छथि तऽ एकरा सकारात्मक रूप मे लेबाक चाही। एहि पर कुटिल समीक्षा आ अपमानजनक टीका-टिप्पणी केला सँ अहाँक कमजोरी मात्र सोझाँ अबैत अछि।
हरिः हरः!!
समीक्षाः
हमर पाग
हम मैथिल छी। अखण्ड इतिहास केर जबरदस्त मुकुट हमर पाग थीक। लाल रंग जवानीक जोश आ उजडा हमर वृद्धावस्था दिशि उन्मुख होयबाक प्रतीक बुझु। पीरा, हरियरका, पेन्टिंगवला, केसरिया आ रंगीन छीट सहित केर पाग सेहो जँ चलय आ हमर कपार पर आबय तैयो हमर कोनो विशिष्ट स्वरूप सहित किछु खास पहिचान केँ देखाओत। ओ किछु नहियो देखाबय तैयो हमर बौद्धिक आ तार्किक शक्ति एहेन अछि जे अपन बखान करबाक लेल हम कोनो मंच पर निखरल सोन केर सुहाग छी। भले आइ केओ नहि पूछैत हो एहि पाग केँ आ कि पगडी केँ, मुरेठा केँ आ कि अपन इतिहास केँ, मुदा हमर कोकिलकंठक स्वर सुनिते सब कियो सन्न पडि जाइत अछि किऐक तँ हमर भाषा मैथिली छी। हमर परिवार मे एक सँ एक धुरन्धर विद्याधर राम आ परशुराम सहित कतेको रास वशिष्ठ, विश्वामित्र आ हरिश्चन्द्र केर पैदाइश भेल अछि। बाबा बले फौदारी वला तेख हमर तऽ देखिते बनैत अछि। फनक एहेन जे उठि गेल तऽ एक बेर धरती आ आकाश बीच हवा तक नहि ठहरय! हमर खडाम सँ लैत पाग धरिक परिधानक वर्णन हम कि करू, सबटा बुझू जे साक्षात् वेदविद् आ विधान-रीत सँ पूर्ण कोचा, खूट, ढेका, आदि पूर्ण अछि। एक दिशि हम पूर्ण तऽ छी मुदा दोसर दिशि हम पूर्णरूपेण अपूर्ण छी। हमरा लोकनिक समाज मे एक पैघ वर्ग श्रमजीवी अछि जकरा पास ठीक सऽ देह पर लत्तो नहि छैक। जेहो छैक ओ मैल-कुचैल आ कतेको ठाम फाटल, चिप्पी लागल। ओहि ठाम हमर पाग या मुरेठा या कोचा आ ढेका सबटा तितंभा फेल भऽ जाइत अछि। बाबा बले फौदारी पर सेहो ओहि विशाल वर्गक चुनौती केँ हम नकारि नहि पबैत छी। उल्टा एना लगैत अछि जे धरती पर स्वर्ग आ नर्क छैक, हम किछु सूरमा वीर अपना केँ स्वर्ग मे बुझैत छी तऽ ओतहि हमरे विशाल जनसमूह नर्क मे नजर अबैत अछि। हम निश्चित रूप सऽ असमान समाजिक अवस्था मे अपन आन-मान-शान केँ कथमपि सब लेल एक रंग नहि पबैत छी। यैह असमानता सँ हमर मिथिला मे आइ-काल्हि एहेन चुहरमल सब नेतागिरी करैत अछि जे हमर नारकीय जनसमूहक माथा गानिकय वोट लैत अछि लेकिन तरक्की करबाक ओकर बोल-वचन आइ कतेको दशकों सँ सुधार नहि पाबि रहलैक अछि। चुहरमल नेता आ अपन किछु चमचा-बेलचा केँ इन्द्रलोक तक पहुँचाबैत अछि। समाज मे एहि विभेदक जैड कतय छैक ताहि लेल हम ‘पाग’ केर विन्दु पर तपस्या करबाक प्रण लेलहुँ। पूजा-पाठ आ कर्मकाण्डक पर्याप्त साधन जुटेलहुँ। पागकेँ उच्च-स्थान पर स्थापित केलहुँ आ सिद्धि पेला पर पूछलियैक जे आखिर मिथिला समाज मे हम सब एना बहुरंगी कोना? पाग बाजय लागल, लेकिन ओकर बोली हमरा बडबडी सँ बेसी किछु नहि बुझायल। हम सिद्धिक हवाला देलियैक आ कहलियैक जे तपस्या उपरान्त यदि हमर समाजक वर्गविभेद पर जँ हमरा सही निचोड नहि बतायब तऽ हम कोन तरहें लोकमानस मे फेर सँ मीमाँसा आ कर्मसिद्धान्त प्रतिपादित करब। तखन पाग कहलक जे जनकक समय सँ जाहि मिथिलाक परिकल्पना रहल ताहि मे जेना-जेना लोक संस्कृति मे वर्णसंकर संस्कृतिक प्रवेश होइत रहल, तहिना-तहिना वर्गीय विभेद गहिंर होइत रहल। पाग फेर गंभीर बनि गेल। हम पुन: पाग केँ कहलियैक जे हमरा सब लेल अहीं सब किछु छी, माथ पर धारण करय योग्य चिक्कन-चुनमुन, विद्याधर राम-परशुराम, बौद्धिक-तार्किक पहलमान – कुल मिलाकय भगवान्, दिल्ली, पटना, राँची, बम्बइ, कलकत्ता, काठमांडु, गुवाहाटी सँ लैत दरभंगा, समस्तीपुर, खगडिया, पुर्णिया, किशनगंज, सहरसा मधुबनी, सीतामढी, मुजफ्फरपुर, चंपारण सब ठामक अगुआ अभिभावक पर्यन्त अहीं छी। तखन एना अपने बडबडा रहल छी, बड स्पष्ट पूछलो पर गडबडा रहल छी, चुहरमल सबकेँ मौका-पर-मौका दय रहल छियैक… कहू जे हमर यज्ञ केर सिद्धि यैह हेतैक? पाग पुन: बडबडा लागल, ओ फल्लाँ पाग छलाह से हमरा एना पिन भोंकिकय बिच्चहि मे छेद कय देने छलाह, चिल्लाँ पाग अपना मोने पाग छलाह, अगडम-बगडम-सगडम! हम पुन: पाग केँ रोकैत कहलियैन, कनेक थम्हु, समाज जे आइ सिद्धि कय रहल छैक ताहि लेल जे कियो पाग थिकहुँ तिनके सँ अपेक्षा कैल जेतैक। यैह थीक मिथिला जतय लोक नाव पर चढल नहि चढल, साली धरि खेबैया मलाह केँ जरुर देलक। नौआक काज पडलैक वा नहि, साली जरुर देल गेलैक। हर जाति आ वर्ग बीच सौहार्द्रक व्यवहार छल तखन एना अपने पाग रहैत पागक मान राखय सँ कतरेबैक तऽ कहू जे साधक समाज कि करय? वर्णसंकर केर प्रवेश कोना नहि हुअय? मिथिला मे कोसी, अंग, बज्जि, सीमांचल आदि किऐक नहि बनय? मैथिली ठेंठी, फेंठी आ खैंठी मे परिणति किऐक नहि पाबय? अपने तँ साहित्य अकादमी सँ लैत राज्यसभा, लोकसभा आ विद्वत् सभा सब ठाम पाग बनले छलहुँ, बनले छी। किछु तऽ चिन्ता ओहि विशाल जनसमूह लेल सेहो करबाक छैक? पाग पुन: बडबडाय लागल, हमर फल्लाँ ग्रन्थ मे हम एहि बातक चर्चा केलहुँ, चिल्लाँ ग्रन्थ मे ओहि आशंकाक निवारण तकलहुँ… लोक हमर ग्रन्थ पढबे नहि करत, कहू कोना हेतैक, कि हेतैक, अगडम-बगडम-सगडम! हमरो किछु नहि फुरायल, सब सामग्री उठाय पाग केर विसर्जनक मन बनाय पाग केँ प्रणाम कय ‘यज्ञ समाप्त भेल, अहाँ जा सकैत छी हे पाग देवता’ कहि इतिश्री केलहुँ। हरि: हर:!! |
शिरस्त्राण कि थीक आर मिथिलाक शिरस्त्राण ‘पाग’ केर स्थानः
Understanding Turbans and Positioning Mithila in Respect of its Turban Called Paag
The literal meaning of Paag: Ushnis – Shiro Veshtan – Shirodhaan – Shirastraan उष्णीस, शिरो वेष्टन, शिरोधान, शिरस्राण
Lord Indra killed the demons by wearing the Shirastraan:
वस्र युग्म तथाष्ण्षिम्
कुण्डले कण्ड भूषणम्
अंगुली भूषण चेव
मणि बन्धस्य भूषणम्।
As per Linga Puraan – the literal meaning of Ushnis in Sanskrit is ‘Ushna-Dushate’ i.e. under the rules of kings, Siropaav given to honor anyone as that honored person was understood to be a prestigious personality. The same tradition still continues.
Scientific Reason of Using Turban:
This tradition is probably started by natural human behavior to protect the main part of head facing sunshine or being sensitive to heat and cold due to its containing the most delicate organ – brain in the body system. This is why we can see the similar tradition in different forms in every part of the world to cover the head using turbans.
The cerebrum or cortex is the largest part of the human brain, associated with higher brain function such as thought and action. The cerebral cortex is divided into four sections, called “lobes”: the frontal lobe, parietal lobe, occipital lobe, and temporal lobe. Here is a visual representation of the cortex: what do each of these lobes do:
- Frontal Lobe- associated with reasoning, planning, parts of speech, movement, emotions, and problem solving
- Parietal Lobe- associated with movement, orientation, recognition, perception of stimuli
- Occipital Lobe- associated with visual processing
- Temporal Lobe- associated with perception and recognition of auditory stimuli, memory, and speech
Civilizations Cause Traditions:
Isn’t it clear that every human being more civilized use more sense to be more decent and humane every time? Indeed! It is up to the human’s civilization for how they grew and what they adopted. Here you can see different cultured people using different types of turbans. As time passed, people selected some unique culture, language, behaviors, wearings and all features for life; these turbans became the part for identifications of human beings settled in different regions of earth facing different nature and natural climates.
Turbans Used in India:
Some of the photographs are shown above, more than this we can see the variations within India also. Same as language and cultures change at a certain distance here, so changes the type of turban used. It can also change in models for different castes as per their own likes and dislikes.
Paag in Mithila is also a type of turban for Maithils – it may be in different colors and models. But the purpose of wearing it is nothing other than used in any other cults.
Harih Harah!!