बरसाइतः मिथिलाक पाबैन
– सरोज झा, एडमिन – हम सब मिथिलावासी फेसबुक ग्रुप (पोहद्दी, दरभंगा)
मिथिलाक ई खास पाबैन बरसाइतक “हम सब मिथिलावासी” ग्रुप केर तरफ सँ समस्त मैथिलानी केँ हार्दिक शुभकामना!
मिथिलाक पावन पर्व बरसाइत जेकरा देश भरि में वट सावित्री केर नाम सँ जानल जाएत अछि, काल्हि शनि दिन – जुन ४, २०१६ केँ संपूर्ण मिथिलाक संग मैथिल जनमानस रहयवला सब ठाम हर्षोल्लास एवं गहिंर श्रद्धाक संग मनाओल गेल अछि।
ई पवित्र पाबैन मूल रूप सँ पतिक दीर्घायू लेल विवाहित महिला द्वारा कैल जाएत अछि। मिथिला मे नव विवाहिता लोकनि लेल आओर खास मानल जाइत अछि। नव विवाहिता अपन पतिदेव केर दीर्धायु हेबाक लेल एहि पाबैन दिन व्रत सेहो राखैत छथि।
गामक बुजुर्ग महिला लोकनिक कहब मुताबिक ई पाबैन अत्यन्त प्राचीनकाल सँ मनाओल जा रहल अछि। एहि पाबैन केर माहात्म्य मे कथा अबैत छैक जे बहुत समय पहिने एकटा राजा छलखिन, जिनकर ७ टा बेटा छलाह। हुनकर आंगन मे एकटा बिल छलैनि जाहि मे नित दिन भात बनेलाक उपरांत मांड़ ओही बिल में ढारि दैय छलखिन। एना गरमे-गरम माँड़ ढारला सँ ओहि बिलक अन्दर वास लेने नाग-नागिन (बिषहारा) द्वारा देल गेल अंडा नोकसान भय जाइत छलैक। एहि कूकृत्यक कारण बिषहारा प्रण केलनि जे जहिना हमर घर ई सब उजाइर देलक अहि, तहिना हमहुँ एकर घर नहि बसय देबैक।
जखन राजा केर बेटाक बियाह भऽ जाएत छलैक, आर ओ जहाँ कोनो बरक गाछ तर सँ गुजरैत छलय, कि ओकरा साँप काटि लैत छलैक। एहि तरहें राजाक ६ गोट पुत्रक मृत्यु भऽ गेलैक। जखन ७वाँ पुत्र विवाहके बाद कनिया संगे विदाह होमय लागल, तऽ ओ एकाएक बहुत उदास भऽ उठल। ओकर उदास मुंह केँ देखि नव-विवाहित कनियां उदासीक कारण पुछलखिन। जखन हुनका संपूर्ण वृतांतक पता चललनि तखन ओ अपन पतिक दीर्घ आयू वास्ते बिषहारा केँ मनेबाक लेल पुरैनक पात, धानक लाबा, दूध, फूल अक्षत सहित आन नाना नैवेद्य आदिक संग हुनकर पूजाक वस्तु केर जोगार कय पूजा आरंभ केलथि। हुनकर पूजा मे बिषहारा अपना लेल एहि तरहें विविध व्यंजनक भोग पाबि – ओ सबटा खा कय मस्त भऽ गेलथि तखन ओ ओहि कन्या केँ वरदान मंगबाक लेल कहलखिन। तऽ ओ नवविवाहिता अपन पतिक जिनगी सहित ६ओटा पतिक भाइ लोकनिक जीवनदान सेहो मांगलखिन जेकरा बिषहारा पूरा कय देलथिन।
एहि पूजाक विधान मे ताहि सँ आइ मैथिलानी लोकनि ‘बर लियऽ आ मड़ दियऽ’ बर सँ कहि अपन पतिक दीर्धायु हेबाक मंगलकामना करैत छथिन। बरसाइत पूजा केर दौरान बियैन सेहो होंकल जाएत छैक। एहि विषय मे पता चलैत अछि जे जखन बिषहारा दूध-लाबा भरि पेट खा लैत छथि तखन हुनका आराम सँ निन्न आबैनि ताहिकेर लेल बियैन होंकल जाएत छन्हि।
परंपरानुसार पूजा केर शुरूआत हाथी पर गौरी (गौड़) राखि नवविवाहिता लोकनि पूजा-आराधना करैत छथि। ओकरा बाद बर गाछ में जनेउ सँ बर केँ बंधन-घेरा दैत छथिन।
मिथिला मे मैथिलानी प्रधान बेसी पूजा-अर्चना सदिखन समूह मे कैल जएबाक एकटा विशेष परंपरा देखल जाएत छैक। बरसाइत सेहो सब सखि-नवविवाहिता लोकनि मिलिकय एक्केठाम पूजैत छथि। पूजा संपन्न भेलाक उपरांत नवविवहिता एक-दोसरा केँ अपन डाली पर सँ फल दय ‘भैया’ आदि मित लगबैत छथि। कहल जाएत छैक जे ओ जीवनपर्यन्त एक- दोसराक नाम नहि लय लगाओल गेल मित केर संबोधन शब्द सँ मात्र पुकारैत छथि। आजुक दिन भैर गाम-टोलाक लोक केँ हकार दय महिला सभ केँ अंकुरित बुट देबाक सेहो परंपरा अछि।