रामचरितमानस मे जीवनोपयोगी मोतीक भंडार

स्मृति मे तुलसीदासकृत ‘रामचरितमानस’ केर मंगलाचरण
 
– प्रवीण नारायण चौधरी
 
ramacharitmanasआध्यात्मिकता सँ जुड़ल रहब व्यक्तिक आस्तिकता केँ स्थापित रखैत छैक, मोन कतबो उद्वेलितो रहय, परञ्च कनिको टा मंत्र मे ओकरा शान्त करबाक अत्यन्त दुर्लभ क्षमता होएत छैक। आस्था सर्वथा सब सँ पैघ बात होएत अछि। बिना आस्था मंत्र केर शक्ति कदापि प्रभावी नहि भऽ सकैत अछि साधक लेल। निश्चित, ओ साधन रूप मे सिद्ध केर प्रयोग सँ अनास्थावान केँ सेहो प्रभावित कय सकैत अछि, परन्तु सिद्ध केर प्रयोग मे आस्था नामक आधार सर्वप्रथम आवश्यक व वांछित अवयव होएत छैक।
 
कहैत चली – आध्यात्मिक अध्ययन (स्वाध्याय) सँ गूढ सँ गूढतम रहस्य केर विषय मे अन्तर्ज्ञान भेटैत छैक मनुष्य केँ… एहि क्रम मे रामायण केर सर्वाधिक लोकप्रिय रचना तुलसीदासकृत् रामचरितमानस केँ मानल जाएत छैक हमरा लोकनिक मिथिला मे आर कहल गेलैक अछि जे एहि मे प्रयुक्त चौपाई यानि चारू लब्धि पेबाक सूत्र थीक, तहिना दोहा यानि दो हैं – सीता और राम, हरि और हर, आदि मात्र दुइ केर संयोग पर प्रकाश आ सोरठा – यानि सो रट – ओ याद करू आर छंद – माने वेदवाणी केर गान करयवला शब्द संयोजन सँ भरल अछि रामचरितमानस। एकर हरेक मंत्र सिद्ध अछि। साधक केँ चाही एहि पर गंभीरता सँ साधना करय। आस्थावान् मात्र ई सब कार्य कय सकैत अछि।
 
स्वयं तुलसीदास जाहि तरहें ई महाकाव्य केर रचना मे जतेक भूमिका बन्हने छथि ओतबे मनन कय लेला सँ हम-अहाँ अपन असल ओकादि सँ परिचित भऽ जाएत छी। कवि केर भाव आ प्रस्तुति बीच जेना सामंजस्य शुरुहे मे कैल गेल अछि ताहि सँ आगाँ अहाँक रुचि स्वतः निर्णय कय केँ कहि देत जे रामचरितमानस समान सिद्ध-सिद्धि महासागर सँ अहाँ कोन आ कतेक रास मोती चुनि सकब। एहि मे अनमोल खजाना भरल पड़ल अछि, मुदा किताब टा घर मे राखि लेबैक ताहि सँ नहि भेटत, बल्कि एकर तत्त्व-विमर्श हेतु साधना करहे टा पड़त।
 
आउ, एकटा छोट सन्दर्भ ली। रामचरितमानस केर आरम्भ कैल गेलैक अछि मंगलाचरण सँ, एतबे टा बात पर आइ मनन करी।
 
श्लोक :
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥
 
अक्षर, अर्थ समूह, रस, छन्द और मंगल केँ करनिहारि सरस्वतीजी और गणेशजी केर हम वंदना करैत छी॥1॥
 
भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ।
याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥
 
श्रद्धा और विश्वास केर स्वरूप श्री पार्वतीजी एवं श्री शंकरजी केर हम वंदना करैत छी, जिनकर बिना सिद्धजन अपन अन्तःकरण मे स्थित ईश्वर केँ नहि देखि सकैत छथि॥2॥
 
वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।
यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥
 
ज्ञानमय, नित्य, शंकर रूपी गुरु केर हम वन्दना करैत छी, जिनकर आश्रित रहला सँ मात्र टेढ़ो चन्द्रमा सर्वत्र वन्दित होएत अछि॥3॥
 
सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ।
वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥
 
श्री सीतारामजी केर गुणसमूह रूपी पवित्र वन मे विहार करयवाला, विशुद्ध विज्ञान सम्पन्न कवीश्वर श्री वाल्मीकिजी और कपीश्वर श्री हनुमानजी केर हम वन्दना करैत छी॥4॥
 
उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥
 
उत्पत्ति, स्थिति (पालन) और संहार करयवाली, क्लेश केँ हरयवाली तथा सम्पूर्ण कल्याण केँ करयवाली श्री रामचन्द्रजी केर प्रियतमा श्री सीताजी केँ हम नमस्कार करैत छी॥5॥
 
यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरा
यत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।
यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतां
वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥
 
जिनकर माया केर वशीभूत सम्पूर्ण विश्व, ब्रह्मादि देवता और असुर छथि, जिनकर सत्ता सँ रस्सी मे साँप केर भ्रम जेकाँ ई संपूर्ण दृश्य जगत्‌ सत्य मात्र प्रतीत होएत अछि और जिनकर केवल चरणहि मात्र भवसागर सँ तरबाक इच्छा राखनिहार लोकक वास्ते एकमात्र नौका थीक, ओहि समस्त कारणो सँ परे (सब कारणक कारण आर सबसँ श्रेष्ठ) राम कहेनिहार भगवान हरि केर हम वंदना करैत छी॥6॥
 
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्
रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय तुलसी रघुनाथगाथा
भाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥7॥
 
अनेक पुराण, वेद और (तंत्र) शास्त्र सँ सम्मत तथा जे रामायण मे वर्णित अछि और किछु अन्यत्र सँ सेहो उपलब्ध श्री रघुनाथजी केर कथा केँ तुलसीदास अपन अन्तःकरण केर सुखक लेल अत्यन्त मनोहर भाषा रचना मे विस्तृत करैत अछि॥7॥
 
सोरठा :
जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।
करउ अनुग्रह सोइ बुद्धि रासि सुभ गुन सदन॥1॥
 
(नियमानुसार – व्यवहार मे, सोरठा पढबाक समय – शब्द संयोजनक जे क्रमक प्रयोग होएत अछि तेकरा उल्टा कय केँ पढबाक-गुनबाक चाही। जेना, वर्तमान सोरठा मे – गन नायक करिबर बदन, जो सुमिरत सिधि होइ। बुद्धि रासि सुभ गुन सदन, करउ अनुग्रह सोइ॥ – एहि क्रम मे पढबाक चाही। हमेशा सोरठा केर उपयोग भेला पर अत्यन्त स्मरणीय सूत्र बुझि ओकरा निश्चित स्मरण मे राखि लेबाक चाही।)
 
जिनका स्मरण कएला सँ सब कार्य सिद्ध होएत अछि, जे गण सबहक स्वामी और सुंदर हाथी केर मुखवाला छथि, वैह बुद्धिक राशि आर शुभ गुण केर धाम (श्री गणेशजी) हमरा पर कृपा करैथ॥1॥
 
मूक होइ बाचाल पंगु चढ़इ गिरिबर गहन।
जासु कृपाँ सो दयाल द्रवउ सकल कलिमल दहन॥2॥
 
(पढबाक क्रमः पंगु चढइ गिरिबर गहन, मूक होइ बाचाल। द्रवउ सकल कलिमल दहन, जासु कृपाँ सो दयाल॥)
 
जिनकर कृपा सँ गूँग (बौक) बहुत सुंदर बाजयवाला भऽ जाएत अछि और लाँगड़-लूल्ह दुर्गम पहाड़ पर चैढ़ जाएत अछि, ओ कलियुग केर सब पाप केँ जरावयवाला दयालु (भगवान) हमरा पर द्रवित होएथ (दया करैथ)॥2॥
 
नील सरोरुह स्याम तरुन अरुन बारिज नयन।
करउ सो मम उर धाम सदा छीरसागर सयन॥3॥
 
(पढबाक क्रमः तरुन अरुन बारिज नयन, नील सरोरुह स्याम। सदा छीरसागर सयन, करउ सो मम उर धाम॥)
 
जे नीलकमल केर समान श्यामवर्ण छथि, पूर्णरूप सँ फूलायल लाल कमल केर समान जिनकर नेत्र अछि और जे सदा क्षीरसागर पर शयन करैत छथि, ओ भगवान्‌ (नारायण) हमर हृदय मे निवास करैथ॥3॥
 
कुंद इंदु सम देह उमा रमन करुना अयन।
जाहि दीन पर नेह करउ कृपा मर्दन मयन॥4॥
 
(पढबाक क्रमः उमा रमन करुना अयन, कुंद इंदु सम देह। करउ कृपा मर्दन मयन, जाहि दीन पर नेह॥)
 
जिनकर कुंद केर पुष्प और चन्द्रमा केर समान (गौर) शरीर अछि, जे पार्वतीजी केर प्रियतम और दया केर धाम छथि और जिनकर दीन-दुखिया पर सिनेह अछि, ओ कामदेव केर मर्दन करनिहार (शंकरजी) हमरा पर कृपा करैथ॥4॥
 
समूचा रामायण केँ रामचरिमानस केर रूप मे प्रस्तुत करबा सँ पहिने जाहि विनीत वचन सँ तुलसीदासजी मंगलाचरणक गान करैत छथि, एतबे बात हम समस्त भक्त मानव व्यक्ति वा समूह लेल बहुत बेसी अछि। एकर बाद जे सौभाग्यशाली धीरे-धीरे रामायणरूपी सागर मे डूबकी लगाओत, ओ ओतेक रास मोती-हीरा पाओत, ई निस्तुकी बात अछि।
 
सीताराम चरित अति पावन – मधुर सरस अरु अति मन भावन!!
 
हरिः हरः!!