मैथिलीभाषीक जनसंख्या ७ करोड़ – सरकारी आँकड़ा मुताबिक आ विभिन्न राजनीतिक पैंतराबाजी सँ प्रभावित भेलाक बादो नेपाल आ भारत दुनु देशक जनगणना मुताबिक लगभग ४ करोड़ मैथिलीभाषी छथि। विश्व भरिक भाषिक पहिचान मे सेहो मैथिलीक अधिकार सर्वथा ऊपर आ मुख्य भाषाक रूप मे मान्य अछि। प्राचिनकालक चर्चा सँ वर्तमान समयक शोधपूर्ण व्याख्यादि मे पर्यन्त मैथिली अपन अलग आ महत्त्वपूर्ण स्थान सुरक्षित केने अछि। तथापि मैथिलीभाषीक कलियुगी दुर्गुण ‘अतिसहिष्णुता’ सँ मैथिली पर राज्यक उपेक्षा तऽ अछिये दमन सेहो चरम पर अछि ई दुर्भाग्य कहि सकैत छी। कहियो हिन्दीक बोली कहि मैथिली सनक हिन्दियो सँ प्राचीन भाषा केँ नकारब, कहियो हिन्दीक लेल अतिचिन्ता सँ मैथिलीकेँ मारब आ कहियो दुइ देश बीच बँटल भाषिक पहिचान सँ भूगोल निर्माण यानि अखण्ड मिथिलाक पुनर्गठन होयबाक कूटनैतिक आशंका सँ एकरा पछारब, कतेको कारण सँ मैथिली केँ षड्यन्त्रपूर्वक हत्या करबाक कुत्सित प्रयासक उदाहरण सीधा शोध मे सेहो झलकैत अछि। एकर सीधा एक उल्लेखणीय उदाहरण अछि भारतीय संविधानक आठम अनुसूची मे मैथिली केर स्थान देश स्वतंत्र भेलाक ५६ वर्ष बाद देनाय। उपेक्षा आ दमन स्पष्ट अछि जे एहि भाषा केँ स्वयं केर राज्य मे पर्यन्त राजभाषाक दर्जा आइ धरि नहि देल गेल अछि। आर तऽ आर, संविधान द्वारा गछल गेल मौलिक अधिकार – शिक्षाक अधिकार – प्राथमिक शिक्षा लेल मातृभाषाक माध्यम पर्यन्त लागू नहि कैल जा सकब राजकीय व्यवस्थापनक टोटल फेल्यर मानल जाय वा किछु आर ई विद्वत्वर्ग-बुद्धिजीवी समाज लेल चिन्तनक विषय अछि।
राज्य आ राजकीय दमन टा केर चर्चा करब आ आत्मनिरीक्षण एहि लेल नहि करब जे आखिर स्वयं मैथिलीभाषी अपन अधिकार लेल एना सुसुप्त अवस्था मे कियैक अछि, तऽ लेखनीक ईमानदारी शंकास्पद बनत। जाहि मिथिला मे अदौकाल सँ विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम् केर उक्ति मात्र अनुकरणक आधार हो ताहि ठाम निज भाषा प्रति विद्वेषभावना एकटा गंभीर प्रश्न ठाढ करैत छैक। कबीरदास के उनटा वानी – पहिने खानी फेर स्नानी – ई कहावत आइ बहुत हद तक मिथिलाक वर्तमान उदासीन आ नकारात्मकता केँ झलकाबैत छैक। स्वयं विद्वत्वर्ग आ बुद्धिजीवी मैथिली केँ लात मारि अपन संतान आ आगूक पीढी संग अन्य भाषाकेँ अंगीकार करब मानू परमकर्तब्य मानय लागल अछि, हिन्दुस्तान मे हिन्दी-अंग्रेजी, नेपाल मे नेपाली-अंग्रेजी-हिन्दी केँ अंगीकार करब मुदा मैथिली समान मृदु-निज-मधुर-भाषा केँ नकारब मैथिलीभाषीक बौद्धिक दरिद्रता देखबैत छैक। लेकिन उनटा वानी केहन विडंबनापूर्ण छैक से देखू – जे खूब दहेज लेत समाज ओकरे सम्मान देत, जे हिन्दी बाजत ओ बुधियार कहायत, जे अंग्रेजी सीख गेल ओ तऽ राजा-महाराज बनि गेल…. ई कि भऽ गेल विदेहक धरती मे, एहि प्रश्न पर सेहो वर्तमान सँ लैत आबयवाला पीढी तक केँ मनन करहे टा पड़त।
जीवनक आधार एकमात्र आत्मज्ञान जे मिथिला सनातनकाल सँ जीबित अछि, ई पौराणिक चर्चा सँ वर्तमान धरि पूर्णरूपेण बहुचर्चित अछि, कोनो न कोनो तरहें लटैतो-बुरैतो ई आगुओ जिबे करत। लटैतो-बुरैतो ई वास्तव मे जिबिये रहल अछि। यैह क्रम मे कतेको बेर मिडिया (संचार) केन्द्र बनैत अछि आ पाठक, विज्ञापन, आर्थिक सहयोग आ नीक दलीय-भावनाक अभाव मे आपसी अन्तर्कलह आ कमजोरीक रुग्णता सँ भंग भऽ जाइत अछि। जे मैथिल सारा राज्य व्यवस्थापन सँ लैत बहुराष्ट्रीय आ उच्चस्तरीय निजी संस्थानक उच्च ओहदेदार पदक मालिक बनि ‘नौकरी’ करैत विलक्षण प्रतिभाक उपयोग कय सकैत अछि, ओ जहाँ मालिक बनि मिडिया हाउस खोलैत अछि आ अपन मिथिला मे कोनो उपक्रमक शुरुआत करैत अछि तऽ ओकरा पचास टा रोग दिन-राइत लगैत छैक आ अन्त मे लकवा मारि दैत छैक। तखन मैथिली जिन्दाबाद केर परिकल्पना प्रवेश करैत छैक एक नव प्रयोगक लेल। मुदा कोन ठेगान? एकरो कोनो लकवा कखनहु खसा सकैत छैक। मुदा मैथिली संग गैर-मैथिली आ क्रान्तिकारी आह्वानक एक एहन शब्द ‘जिन्दाबाद’ जेकर प्रयोग हर औपनिवेशिक दास लेल नव उर्जा प्रदायक छैक, तेकर सकारात्मक प्रभाव हेतैक आ वैह मैथिलीक वर्तमान रुग्णताक औषधि सेहो हेतैक। एकर व्यवस्थापनक तर्ज आ सुर-ताल सबटा मिथिलाक पौराणिक परंपरागत कथनी ‘एक मुट्ठी चाउर दे, घुरमा लगाय दे’ पर चलतैक। सबहक सहभागिता सँ जेना पोखैर खुना गेल, महार सजि गेल, चारेक सही मुदा कुटीर तैयार अछि, सपरिवार लोक सुखपूर्वक रहय लागल, अतिथि एला तऽ हुनको दलानक घर मे बास देल गेल, अपन मिथिलाक समृद्धि तऽ संस्कारे मे छलैक, छैक… ताहि हेतु साहित्य-संस्कार-सभ्यता-भूगोल-इतिहास एहि सबहक बीच तालमेल बनेबाक लेल ई उपक्रम ‘मैथिली जिन्दाबाद’ करत।
एकर उद्घाटन जाहि समारोह सँ भऽ रहल अछि तेकर साक्षी स्वत: भारत ओ नेपालक कवि-स्रष्टाक संग महान अभियानी लोकनि बनि रहला अछि। चिन्ता-चिन्तन मात्र पेट-माथा मे रखला सऽ कहियो कोनो जिन्दाबाद नहि भऽ सकलैक। एहि सँ ऊपर जाय अपन योगदान लेल १ – १ – १ यानि एक व्यक्ति – एक सप्ताह – एक काज मिथिला-मैथिली लेल – यैह अवधारणाक संग निरन्तर आगाँ बढबाक छैक। पुरखा विदेह केर सीख केँ कदापि छोड़बाक नहि छैक। स्वयंसेवा-स्वसंरक्षणक सिद्धान्त मिथिलाक अमरतत्त्व थिकैक, एकरे अवलम्ब मानि आपसी सौहार्द्रक मेरुदण्ड घरैया लूरि आ जातीय सौहार्द्रताक पोषण सँ पुष्ट रहबाक छैक। मैथिली जिन्दाबाद, तैँ मिथिला जिन्दाबाद!!