विशेष सम्पादकीयः सन्दर्भ गोरखा पायाक विरोध आ वर्तमान राजनीतिक अवस्था
मैथिली साहित्य केर दिग्गज स्रष्टा डा. रामदेव झा केर आर्काइव सँ साभार हुनक सुपुत्र विजय देव झा मार्फत ई ऐतिहासिक परचा फेसबुक पर मैथिल जनमानस बीच काफी वायरल भेल।
डा. लक्ष्मण झा – अध्यक्ष, मिथिला सोसलिस्ट पार्टी द्वारा कैल गेल आह्वान केर उतार निम्न अछिः
गोरखा पायाक विरोध
आइ सँ एक सय अठतीस वर्ष पूर्व १८१६ इस्वीक ४ मार्च केँ अंगरेजी इस्ट इण्डिया कम्पनी ओ नेपालक गोरखा राजा मिथिलाक भूमि केँ लूटिक माल बनाय अपनामे बांटलक । पांच हीस कय दच्छिन स चारि हीस ( २० हजार वर्गमील ) लेलक अंगरेज ओ एक हीस उत्तर स सिरोभाग ( ५ हजार वर्गमील ) लेलक गोरखा । सीमा लेल दुनू मिलि मिथिलाक पच्छिम स पूब तक ईंटक पाया गाड़लक । से पाया जा उखड़त नहि ता मिथिला उन्नतिक कोन योजना – नदी, नहर, बांध, सड़क, उद्योग या व्यापारक – चलि सकत?
आउ, सब मिलि छाती परक ई कील उखड़य से उपाय सोची, करी । आलस ओ गोलैसी छोड़य पड़त । साहस, धैर्य ओ त्याग सय बढब ताहीखन उद्धार अछि ।
– लक्षमण झा, अध्यक्ष, मिथिला सोसलिस्ट पार्टी
(सुधाकर प्रेस, दरभंगा) सँ १९५४ मे छपल
वर्तमान राजनीतिक परिवेश
भारतक मिथिला राज्य आन्दोलन आ नेपालक मधेसक आन्दोलन बीच ओना तऽ कोनो तादात्म्य नहि बैसैत अछि, मुदा १९५४ ई. यानि आइ सँ ६२ वर्ष पूर्व नेपालक विक्रम संवत २०१० छल। २००८ विक्रम संवत वर्ष मे वेदानन्द झा केर नेतृत्व मे नेपाल तराई काँग्रेस केर स्थापना आ हिन्दी भाषा केर मान्यता लेल आवाज उठायब आ फेर २०१५ विसं वर्ष मे रघुनाथ ठाकुर द्वारा मधेस जनक्रान्ति दल केर स्थापना आर ओहि दल द्वारा सेहो हिन्दी भाषाक पक्ष मे आवाज बुलन्द करैत भारतीय संसदक समक्ष कैल गेल धरना – अनशन जे नेपालक एहि भाग केँ भारत मे मिलायल जाय आदि ऐतिहासिक सन्दर्भ सब नेपालक इतिहासकार सब चर्चा करैत छथि।
किछु नेपाली इतिहासकार केर मत मुताबिक जंगी खंभाक ऐतिहासिक सन्दर्भ दैत हिमालय सँ गंगा धरिक क्षेत्र केँ वृहत् नेपाल मानैत छथि। एहि ठामक एकटा राजनीतिक पक्ष एहनो अछि जे सुगौली संधि पर भारत सँ चर्चा चाहैत अछि। ओहि पक्षक मानल जाय तऽ वृहत् नेपाल पर नेपाल सरकार केर अधिकार पुनर्बहाल कैल जेबाक चाही।
मिथिलाक समग्रताक फेर अपन अलगे इतिहास अछि। मिथिलादेश सेहो अपन स्वतंत्र अस्मिताक इतिहास रखैत अछि। विष्णुपुराण आदि मे उल्लेखित मिथिलाक चौहद्दी मे स्पष्टतः हिमालय उत्तर आ गंगा दक्षिण, कोसी पूरब आ गंडक पच्छिम केर सीमानाक उल्लेख भेटैत अछि।
भारत आ नेपाल केर बीच सीमा खूल्ला रहैत ओना मिथिलाक समग्रता कतहु सँ प्रभावित नहि होएत अछि, परञ्च डा. लक्ष्मण झा समान महान् मिथिलावादी नेतृत्वकर्ताक दृष्टिकोण मे ‘सीना पर कील’ गाड़ल जेबाक सन्दर्भ दैत गोरखा पायाक विरोध कैल जेबाक साक्ष्य ई संकेत जरुर करैत अछि जे ऐतिहासिक बंटवारा ‘सुगौली संधि’ कतहु न कतहु दुइ राष्ट्र भारत ओ नेपाल बीच एकटा एहेन विवाद ठाढ कय गेल अछि जेकर टीस रहि-रहिकय दुनू तरफ सँ उठैत रहत।
वर्चस्वक लड़ाई मे जीत-हार भले भविष्य तय करय, मुदा ई एहने विवाद अंग्रेजी हुकुमत द्वारा भारतीय उपमहाद्वीप केँ देल गेल अछि जाहि सँ दक्षिण एशिया मुलुक आपस मे मित्रता आ भाइचाराक नाटक कतबो कय लेत, मुदा मन मे जहर घुलले रहतैक। भारत केर पश्चिम मे पंजाब ओ पंजाबी हो, पूरब मे बंगाल आ बंगाली हो आ उत्तर मे मिथिला आ मैथिल हो, तहिना दक्षिण मे तमिलनाडु आ तमिल हो – समस्या चारू तरफ सँ भारत आ पड़ोसी मुलुक बीच स्पष्ट अछि। पूर्वोत्तर भारतक किछु भाग मे सेहो चीन आ भारत बीच अरुणाचल प्रदेशक किछु भाग लेल एहने आन्तरिक विवाद सीमा पर देखाएत अछि। नागा, मिजो, मणिपुरी आदिक मन मे सेहो भारतदेशक प्रति अलगाववादक नीति कमोवेश मुंह बाबिकय ठाढ अछिये।
ओना नेपालदेश मे सेहो आब संघीयता स्थापित भेल अछि। एतय सेहो पहिचानक आधार पर संघीय संरचना लेल विभिन्न संघर्ष जारी रहैत वर्तमान संविधान द्वारा कुल ७ प्रदेश केर निर्माण केर बात गछल गेल अछि। सीमांकन मे विवाद रहितो प्रदेश २ वर्तमान गंडकी आर कोसीक बीचक प्रदेश केँ मानल गेल अछि जे मिथिलाक वैह भाग थीक जेकर चर्चा डा. लक्ष्मण झा केर ‘गोरखा पायाक विरोध’ परचा मे देखल जा सकैछ। ई सुनिश्चित अछि जे नेपालक भाग मे मिथिला कोनो न कोनो रूप मे प्रदेशक स्वरूप मे मान्यता पुनः पाबि रहल अछि।
भारतक भाग केर मिथिला केँ एखनहु बिहार प्रदेश मे गछारिकय राखल गेल अछि। ओतय भाषा नीति एहेन अछि जे मैथिली व एकर विभिन्न बोलीरूपी भाषिका आदिक विकास कहियो नहि हो, एक हिन्दीभाषी क्षेत्रक रूप मे ओतुका मातृभाषा केँ समाप्त करबाक नीति लगभग काजो कय देलक, कारण आब लोक केँ अपन मातृभाषाक प्रयोग करबा मे अपने लाजक अनुभूति होएत छैक, मातृभाषा मे कोनो तरहक रोजी-रोजगार तक राज्य द्वारा नहि देल जा रहलैक अछि। परन्तु सुसंयोगवश केन्द्र सरकार द्वारा २००३ ई. मे मैथिली भाषा केँ संविधानक आठम अनुसूची मे स्थान देलाक बाद स्थिति मे फेर किछु सुधार होमय लगलैक अछि। परन्तु प्रादेशिक संरचनाक रूप मे मिथिला अपन पूर्वक प्राकृतिक स्वरूप मे कहिया आओत एकर कोनो समय सुनिश्चित नहि छैक।