चुगला (गीत नाटिका)

मिथिला संस्कृतिक झाँकी मे सामा-चकेवाक चंगेरा संग मिथिलानी सखी-बहिन

चुगला चुगलखोरी करनिहारके कहल जाइत छैक। मिथिलामें मैथिल सभक एक महत्त्वपूर्ण पावैन सामा-चकेवा में चुगला-दहन के गाथा छैक। चलू यैह बहाना हम किछु संस्मरण करी पावैन सामा-चकेवा जे मिथिलामें लोक-पर्व रूप मनयबाक अति प्राचिन परंपरा अछि। 

पात्र परिचय:
सामा – याने द्वारकाधीश श्री कृ्ष्णकेर बेटी के नाम! प्रकृति-प्रेमसँ आविर्भूत! सदिखन चिड़ै-चुनमुनी, जंगल-पहाड़, नदी-झरना-पोखैर-वन-उपवनमें रमनिहैर ! 
(तर्ज बारहमासा – साओन हे सखी…)
बेटी थिकहुँ हम द्वारकाधीशके, सामा हमर थीक नाम यौ
चिड़ै-चुनमुनी वन-उपवनमें बसय छै मोरा मन प्राण यौ!

चकइ (चकेवा) – सामाके प्रेमी! सतीशापसँ कोनो देवता पंछीरूपमें परिवर्तित! 
देव योनिसँ चिड़िया बनल हम शाप सती सिर मान यौ
मन मनुतन पाबय लऽ आकुल सामा चढल निज ध्यान यौ!

सतभैंयाँ – कृष्णपुत्र
कृष्ण पिता आ सामा मोरा बहिनी खेललहुँ-रखलहुँ शान यौ
एको पलक बिछुड़न नहि संभव माँगलहुँ विधसँ जान यौ!

अन्य पात्र – सामूहिक गान
सामा सिनेही चकवा सिनेही, जीव चराचर सिनेहि यौ
ईशक सुग्गा मेना आ पंछी मानव संग सहेलि यौ!

चुगला:
नाम चुगला तऽ मोरा लोक कहे
काम दोगला तऽ मोरा लोक कहे
नीक सोचिये के हमहुँ करी सभटा
लेकिन तैयो नाम मोरा चुगले पड़े!

प्रथम दृश्य: चंगेरामें सामा-चकेवा बनाय बहिन सभ पोखरीक महारपर पहुँचैत छथि आ गीतक पार्श्वध्वनिमें नृत्य व सामा-चकेवाक खेल देखायल जाइत अछि। एहि बीच आधुनिकताक रंगमें रांगल एक भाइ अपन बहिन सँ पूछैत छथि:

बोल बहिनियाँ ई कि गबै छें के थीक सामा चकेबा गै?
भरिके चंगेरा के सभ सजै छें के थीक सामा चकेबा गै?

बहिन सभ मिलिके भाइके बुझबैत छैक:

सुन मोरा भैया सुनु हे सहेलिया, सामा-चकेवा के खेल यौ
भाइ-बहिनक प्रेमक गाथा, मिलि-जुलि गबियौ मेल यौ!
मानव बनि सभ जीव लऽ बनलहुँ बुझियौ अपन कर्तब्य यौ!
सभक सुख लऽ तप-जोग करियौ कर्म सदा संसर्ग यौ!
जखनहि कृष्णा सामा के दुषलाह भाइ भेला बड़ त्रस्त यौ!
चरण पिताके पकड़िके अनलाह बहिन बहनोईके गाम यौ!
हम सभ भाई-बहिन मिलि के मनाबी सामा चकेवा आ ईश यौ!
आउ सभ मिलिके पबनी मनाबी सुनी कथा जगदीश यौ!

दोसर दृश्य: मंचपर वन-उपवनके बीच चिड़ै-चुनमुनीके पार्श्व-ध्वनिमें सामा अपन सहेली सभ संग विचरण करैत प्रकृतिके गान करैत छथि!
हे विध विधना! अनुपम यौवना! विचरय छै वन ओ पहाड़ हे!
पिया मोरा औता, एहि बीच कखनहु, अन्तर्मनक पुकार हे!

सखि सभ सामाक बात सुनि प्रश्न भरल जिज्ञासा रखैत छथिन:
हे सखि सामा! सुनु हे सहेलिया! जंगल बीच कोन जान हे!
पिया तोर राजा औथुन राजमें पिताके सहयोगे शान हे!

सामा फेर कहैत छथिन –
मन मोरा उपवन, चहकय सदिखन, बाजय मोरा अन्तर्ज्ञान हे!
पिया परदेशिया भेटतय एहि खन मन मोरा जंगल प्राण हे!

चिड़ै-चुनमुनी ओ जंगलके अन्य जीव संग चकइ के प्रवेश सामूहिक गान करिते:
चलू घूमय ओतय जतय रानी यौ!
चलू झूमय ओतय जतय सामा यौ!
मन नाचय ओतय जतय रानी यौ!
मन गाबय ओतय जतय सामा यौ!
चलू घूमय ओतय….

सामा चकुआ कऽ चकइ के गीत गबैत आ अपन नाम लैत देखैत छथि – विस्मित होइत कहैत छथि:
संग तोहर कोना मोर मानव हे!
कह चकवा तोंहूँ के थिकें रे?
सामा-सामा तों एना किऐ भूकें रे?
संग तोहर ई सभटा के थिकौ रे?
संग तोहर कोना मोर….

चकेवा नचैत-गबैत कहैत छन्हि,
चिन्हू हे चिन्हू मोरा सजनी!
गत जीवनमें हमहीं तोहर संगी!
बिछुड़ल छल शाप सती के जनी!
आब मिलबय हमहुँ सामा सजनी!
चिन्हू हे चिन्हू…..

एहि प्रेमालाप के देखि चुगला मन चमकाबैत अछि, मोंने-मोंन विचारैत अछि:
सामा तों केना चकवा के हेमें?
मन लागल हमर महवाके हेमें!
कतऽ तों छें मानव चकवा छौ चिडै!
फेर कृष्णा गोसैंयाँके बेटी तोंही!
कह कोना एना चकवा के हेमें?

लेकिन सखी-सहेली सभ गाबि-नाचि सामाके एहि प्रेमके मान्यता दैत छथि:
मिलि गेलौ तोरा सजना हे सामा
चकवा तोरे लऽ बनलौ सुन गे सामा!
मिलि गेलौ तोरा….

कथा – सामा भोरे सुति-उठि अपन प्रकृति-प्रेमके कारण उपवन घुमय लेल जाइथ आ यैह क्रममें चकइ संग प्रेमक बँधन में बन्हाइत छथि। धीरे-धीरे हुनकर चकइ संग प्रेम बढैत जाइत अछि जाहिमें अनेको तरहक प्रेमालाप-प्रसंगक जनोक्ति-लोकगीत आदि हम सभ सुनैत मिथिलाक पुरान परंपरा सँ सुनैत आयल छी। सामा-चकेवाकेर प्रेम-गाथा चर्चाक विषय बनैछ। कतेक लोक हिनकर प्रेमके अबोध बाल्यप्रेमरूप देखैत प्रशंसा करैत भाव-विभोर भऽ जाइथ, तऽ एक ‘चुगला’ छल जेकरा सामाक एहि तरहें मानव रहैत चिड़िया संगक प्रेम अनसोहांत लगैत छलैक। भऽ सकैत छैक जे एहेन चुगला आरो बहुतो हो, लेकिन कथा आ पावैन में प्रतीकात्मक प्रस्तुति लेल एके गो चुगला काफी अछि। 😉 

सामाकेर प्रेम-प्रसंग ओ नून-तेल-मसाला लगाय सामाक पिता संग कहैत छन्हि आ सामाके सेहो पिता शाप दैत छथि जे मानव-धर्मके विरुद्ध अपन स्वभाव बनेलीह जे कोनो पंछी संग प्रेम केलीह, अतः आब ओ पंछीरूपमें परिणत होइथ आ अपन प्रिय चकइ संग वास करैथ। एहिसँ सामाके प्रसन्नता तऽ जरुर भेलन्हि जे अपन प्राकृतिक प्रेमरूप चकइ संग ओ बसती, लेकिन संगहि वेदना सेहो भेलन्हि जे आखिर मनुष्यरूप पिता आ भाइ-बहिन सभसँ बिछुड़न होयत, सक्षम पिता हमरा वरदान सेहो दऽ सकैत छलाह आ चकइ के मनुष्यरूप प्रदान कय सकैत छलाह, तदोपरान्त सेहो हम सभ संग वास कय सकैत छलहुँ। वेदनाक ई स्वरूप कविक भावना बुझि सकैत छी, संभावना ईहो भऽ सकैत छैक जे हुनक अबोध प्रेमके गलत व्याख्या चुगला हुनक पिता संग कयलाह आ परिणामवश मनुष्यरूपसँ हुनको पशुरूप पंछी में परिवर्तित होयबाक शाप देल गेल।

जहिना सामाके कचोट भेलन्हि तहिना हुनक भाइ (सतभैंयाँ) के सेहो कष्ट भेलन्हि जे आब बहिन सामा सँ कोना भेट होयत आ भाइ-बहिनिक आपसी खेल-सिनेह सभ कोना कय सकब; से भाइ लोकैन सामासंग पुनर्मिलन हेतु आ चकेवा संग साक्षात्कार करबाक हेतु, चुगलाके सजाय दियेबाक हेतु, अन्यायके न्याय दियेबाक हेतु प्रण करैत छथि। कठोर संकल्पशक्तिसँ भाइ सभ तपस्यारत होइत छथि आ पिताकेँ प्रसन्न करैत छथि। प्रसन्न पिता चकेवाक पूर्वजन्मक शापके ध्यान रखैत आ सामा (श्यामा) संग मिलनके मूल्य सेहो कायम रखैत एतेक वरदान दैत छथिन जे शरदकालमें अपन पंछी समाजसंग सामा आ चकेवा मनुष्यरूपमें आबि अपन भाइ सभ संग वास करती आ पुनः कार्तिक पुर्णिमा दिन भाइ सभ हिनका लोकनिकेँ सहर्ष विदाई करताह। भाइ सभ बहुत प्रसन्न भेलैथ आ सामा-चकेवा केँ सेहो प्रसन्नताक सीमा नहि रहि गेल। न्याय सँ सभ सहमत भेलाह। संगहि चुगला लेल दंड तय कैल गेल जे एहेन प्रकृतिलेल एकहि इलाज छैक जे भाइ-बहिन-सखी-बहिनपा मिलिके एहेन चुगलखोर लोककेँ सामूहिक सजाय दैथ। विदाई सँ पूर्व वृंदावन (उपवन)में चुगलाकेँ मुँहमें आगि लगाय जरा देल जाय जे पुनः दोसर केओ अपन मुँहके दुरुपयोग नहि करैथ आ एहि सजाय सँ सबक लैथ। 🙂

यैह कथा अनुरूप मिथिलामें सामा-चकेवा लोकपर्वक रूप लेने अछि। मुदा चुगलाकेँ जरौनिहार आइ कम एहि लेल अछि जे कलियुगमें द्वापरयुग समान अवस्था नहि रहि गेल छैक। आब तऽ सैकड़ा में नब्बे बेईमान – तैयो हमर भारत महान्‌!, ई लोकोक्ति चरितार्थ भऽ रहल अछि। 

चुगलाके संसारमें चुगले के आब दिन चले!
चुगलखोरीके धर्म सँ न्यायीपर हथियार चले!
चुगलाके संसारमें….

के सामा या के चकेवा निर्णय आब पहाड् बने!
सतभैंयाँ घरेमें बान्हल बहिन ओझा कपार धुने!
चुगलाके संसारमें….

कोखिमें सामा सेटिंग होवे बेटा कोखि उधार लिये!
दहेजक मारिसँ बेटी भगबे व्यवहारक अंबार लगे!
चुगलाके संसारमें….

पावैन मतलब दारू ताड़ी जुआ हारि कपार धुने!
नाम लेल चमकै छै सभटा मर्म न कोनो सार बुझे!
चुगलाके संसारमें….

वृंदावन नित जरे लव-यूमें नितीशराज बिहार जरे!
मिथिलाराज कानय प्रवीण भूकनीके औजार बने!
चुगलाके संसारमें….

सामा-चकेवा गाथा अपन संस्मरणसँ प्रस्तुत करे, 
विधके विधानक मतलब बुझू मानवता में सब जिबे!