के थीक मैथिलः मिथिला मे जन्म लेनिहार सब मैथिल

विचार

– प्रवीण नारायण चौधरी

sita janmaओना तऽ विभिन्न कालखंड मे ‘मैथिल’ केर पहिचान मे फेर-बदल होएत देखल गेल अछि, परन्तु शास्त्रमत मुताबिक सिद्ध भूमि मिथिला केर मथल भूमि (माटि-पानि) मे जन्म लेनिहार सब कियो मैथिल कहाएत अछि।

मिथिलाक अर्थ बड व्यापक अछि। एकर व्यापकता याज्ञवल्क्य स्मृति मे उद्धृत एक पाँति सँ अनुमान लगायल जा सकैत छैक। – पंडित जीवनन्दन झा, व्याकरणाचार्य (प्राचार्य, श्यामा महाविद्यालय, काशी)

धर्मस्य निर्णयो ज्ञेयो मिथिला व्यवहारतः – याज्ञवल्क्य स्मृति

धर्मक निर्णय केर ज्ञान मिथिलाक लोक व्यवहार सँ होएत अछि।

मिथिलाक अर्थ बुझबैत पं. झा कहैत छथि, मथ्यन्ते रिपवो यत्र असौ मिथिलाः। अर्थात् जाहि ठाम शत्रु केँ मथल जाय, ओ भूमि मिथिला थीक। आर “मिथिलाम् भवः मैथिलः” – व्याकरणक दृष्टि सँ मैथिल केर व्युत्पति भेल। यानि, जे कियो एहि भूलोक मे जन्म लेत ओ मैथिल भेल।

पंडित झा अपन विचार रखैत निर्णय सुनबैत छथि जे रिपु केर अर्थ भेल काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, मात्सर्य – ई छः शत्रु केर दमन कएनिहार मैथिल कहाएत छथि। अपन जीवनक मूल्य आ अर्थ केँ मनन करब प्रत्येक मानवक धर्म थीक। पहिचानक भान केर मतलब जीवनक कारण आ महत्व केँ आत्मसात करब होएछ। मिथिला समान पावन ओ योगसिद्ध भूमि पर जन्म भेटब अपना आप मे एकटा अनुपम बात भेल। मुदा एकरा आत्मसात करबाक सामर्थ्य कतेक लोक अपना मे विकसित करैत अछि, ई महत्वपूर्ण प्रश्न अछि। अभियानी मैथिल लेल ई गृहकार्य भेल जे ओ जन-गण-मन मे मैथिल होयबाक तात्पर्य केँ स्पष्ट करैथ।

पौराणिक आधार पर मैथिल एहि ठामक भूपाल – जनकवंश केँ मानल गेल अछि। विष्णुपुराण मे वर्णित –

कृतौ सन्तिष्ठतेऽयं जनकवंश:॥३२॥
इत्येते मैथिला:॥३३॥
प्रायेणैते आत्मविद्याश्रयिणो भूपाला भवन्ति॥३४॥

कृति नामक राजा मे जनकवंश केर समाप्तिक घोषणा कैल गेल अछि। इक्ष्वाकुपुत्र निमि सँ प्रारंभ मिथिलाक मैथिल भूपालगण केर पूर्ण चर्चा मे निमि द्वारा एक सहस्रवर्षमे समाप्त होवयवला यज्ञ केर आरम्भ सँ अन्त धरिक समस्त वर्णन कैल गेल अछि।

वसिष्ठ द्वारा निमि केँ शाप सँ निमिक शरीर सँ प्राण बहराएब, ताहि समय निमि द्वारा सेहो वसिष्ठकेँ शाप दैत मृत्यु केँ प्राप्त करेबाक रोचक कथाक वर्णन भेटैत अछि। बाद मे ऋत्विगण केर प्रार्थना पर दुनू केँ वरदान देबाक लेल देवगण द्वारा स्वीकृति देल जाएछ, तथापि राजा निमि द्वारा शरीर छोडबाक कष्टकेँ सब सऽ दु:सह दु:ख मानि पुन: शरीर ग्रहण करबा सँ मना कय देबाक प्रसंग केर सुन्दर वर्णन भेटैत अछि। परन्तु यज्ञ केँ पूरा करबाक लेल आर सृष्टि केँ ईशक नियमानुसार संचालन हेतु हुनकहि इच्छानुरूप पुनर्जीवन निमेष मे वास करबाक आर हुनकहि शरीरकेँ शमीदण्ड (अरणि) सँ मथलाक बाद जाहि बालक केर जन्म भेल तेकर नाम मिथि राखल गेल कहल गेल अछि।

विदेह सँ वैदेहक उत्पत्ति रूप मे नामकरण, मन्थन सँ उत्पत्ति हेतु अन्य नाम ‘मिथि’ आ हुनका द्वारा शासित भूमण्डल केर नाम ‘मिथिला’ मानल गेल अछि। एहि विधान वर्णन अनुसार मिथिलाक पवित्र भूमि पर जन्म लेनिहार सब हुनकहि सन्तान ‘मैथिल’ कहाएत अछि। एकर पुष्टि याज्ञवल्क्य संहिता मे सेहो कैल गेल कहैत छथि संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय अन्तर्गत श्यामा महाविद्यालयक प्राचार्य व्याकरणाचार्य पं. जीवनन्दन झा।

मूल मनन योग्य पाँति अछि – इत्येते मैथिला:। प्रायणैते आत्मविद्याश्रयिणो भूपाला भवन्ति।

अर्थात् ई समस्त मैथिल भूपालगण छथि। प्राय: ई समस्त राजा लोकनि ‘आत्मविद्या’ केँ आश्रय देबयवला छथि।

बाद मे सेहो किछु राजा व हुनक विद्वान् मंत्री-विचारक आदि एहि सिद्धान्त केँ आधार मानि केवल राजावर्ग – विद्यासंपन्न समुदाय केँ ‘मैथिल’ कहलनि। एहि दुविधा मे १९१० ई. आधुनिक भारत मे सेहो ‘मैथिल महासभा’ केर निर्माण कय ओहि मे मात्र श्रोत्रिय ब्राह्मण केँ सदस्यता देबाक दृष्टान्त भेटैत अछि। एकर चर्चा करैत प्रसिद्ध मैथिली साहित्यकार डा. तारानन्द महतो ‘वियोगी’ सेहो स्पष्ट करैत छथि जे मिथिलाक मान्यता केँ कोनो एक वर्ग केर एकाधिकार मे निहित करबाक कमजोरी एहि ठामक विद्वत् समाज द्वारा देखाओल गेल। एकर विरोध मिथिलाक अन्य-अन्य समुदाय द्वारा ताहि समय सँ कैल गेल, परन्तु विभिन्न कूव्याख्या सँ आखिरकार मैथिल ब्राह्मण एवं मैथिल कायस्थ केँ मात्र महासभा द्वारा मैथिल कहेबाक अधिकार देल गेल। आइ धरि समाज मे एकटा भ्रान्ति अछिये जे आखिर मैथिल केकरा मानल जाय।

शास्त्रीय निर्देशनानुसार एहि भूमि मे जन्म लेल सब मैथिल भेल, परञ्च कालान्तर मे विद्या एवं वेद पर अधिकारप्राप्त वर्ग केँ मात्र मैथिल कहल जाय एहि सन्देह मे सब वर्ग लेल सामान्य पहिचान बनय सँ ‘मैथिल’ केर प्रयोग बाधित रहल। एकर दुष्परिणाम कहि सकैत छी जे मिथिला आइ भूगोलविहीन अछि, मुदा एतुका बहुसंख्यक जाति-समुदाय मे एहि वास्ते कतहु सँ कोनो चिन्ता वा चिन्तन नहि अछि। आइ जँ ई पहिचान सबहक एकसमान रहैत तऽ अपन पहिचान केर रक्षा लेल ‘मिथिला’ लेल संघर्ष सबहक एकसमान रहैत।

आब, जेना-जेना विद्या अध्ययनक अधिकार सामान्य वर्ग धरि पहुँचय लागल अछि, जेना-जेना मैथिली भाषा ओ साहित्यक संस्कार सँ सब जाति आ वर्ग परिचित होमय लागल अछि, तेना-तेना ‘मैथिल’ पहिचान सब समुदाय द्वारा आत्मसात कैल जाय लागल अछि। वास्तव मे मिथिलाक मथल भूमि (माटि-पानि) सँ जेना सीताक जन्म भेल आर ओ ‘मैथिली’ उपनाम सँ सेहो जानल जा रहल छथि, तहिना एहि माटि-पानि-संस्कार मे जन्म लेनिहार हरेक जाति-वर्ग-समुदायक लोक मैथिल थीक, एहि मे कोनो दुविधा नहि हेबाक चाही। आब ओहि भ्रान्तिक कोनो स्थान कतहु नहि अछि जे कहियो विद्या-वेद पर सीमित अधिकार प्राप्त वर्ग केर रहल। आइयो ई समस्या दूरक जिला किशनगंज, अररिया, पुर्णिया, कटिहार, भागलपुर, मुंगेर, चंपारण, सीतामढी, मुजफ्फरपुर, बेगुसराय, खगड़िया आदि मे देखल जाएत अछि जे मैथिल कहेला सँ एकमात्र ब्राह्मण जातिक लोक भेल। ई रूढिवादिता केँ हँटेबाक लेल आर अपन पहिचान आ भूमिक मान-सम्मान सँ आत्मसात बनेबाक लेल कोनो विशेष अभियानक संचालन अति आवश्यक अछि। एकर अभाव मे क्रमशः जनक-जानकीक भूमि मिथिलाक अस्तित्व समाप्तप्राय होएत देखाय लागल अछि। नव पीढी मे तऽ मिथिलाक परिभाषा तक पता नहि अछि। एहि दिशा मे सामाजिक सरोकार रखनिहार सबहक ध्यानाकर्षण हो यैह उद्देश्य अछि एहि लेख केर, अस्तु!

हरिः हरः!!