मिथिलांचल: मिथिला में मैथिलीक दुर्दशा जेना कारी अक्षर भैस बराबर
– राम बाबु सिंह, मधेपुर (कलुआही) – हालः दिल्ली सँ
धन्य छथि मैथिल धन्य छथि मिथिलांचल में रहनिहार वा रहनिहारि आ हिनकर सभक आत्म दर्शन आत्म चिंतन आत्म मन्थन ? स्वपोषित आ स्वघोषित कार्यक्रम के संग अपन टाँग उपर राखय आ चमकाबक लेल अविरल काज में लागल रहैत छथि। सोसल साईट पे एखन अतेक रास मैथिल अभियानी अपन अपन जन जागरण अभियान पसारने छथि कि हमरा सब जेकाँ सर्व साधारण लोक के पैघ द्विब्धा भ जायत छैक ? हम सब त “घसल अठन्नी” में एकटा लाइन छै ने कि “आब घसल अठन्नी बाजि उठल, हम कतय जाऊ अविलम्ब पाऊ”। एकटा आम मैथिल में सेहो हम अपने जेकाँ द्विवधा के कल्पना कय सकय छी ?
मिथिलांचल अतेक पैघ नहि छैक कि एक अभियानी दोसर के नै चिन्हैत हैथिन्ह। कोनो ने कोनो तरहे एक दोसर सँ परिचित रहै छथि। हमर अनुमान अछि, किएक त सबकियो एक विशेष वर्गक आ अगल बगल के रहय बाल छथि आ सेहो गिनल गुँथल ? मुदा जेना एकदम अनचिन्हार आ अज्ञान हुए एक दोसर सँ तहिना बुझना जायत अछि। यएह हमर चिंताक विषय आ आजुक लेखन के मतलब अछि कि संग में चिन्हार रहितो अनचिन्हार आ अज्ञान किये छी ? किएक नै एक दोसऱ के निक जागरूकता अभियान के लेल प्रोत्साहन आ समर्थन दैत छी ? अपने सब में अतेक फार किएक, किएक अपन अपन क्षेत्र आ सीमा में बांटि गेल छी ?
आई काल्हि मैथिल धरोहर पाग के बचेबाक अभियान चलि रहल अछि आ ततेक जोर शोर सँ “पाग बचाऊ अभियान”के प्रचार प्रसार सोसल साईट पर अछि जेना एकरा बचा लेब तखन मिथिला के बचा लेलहुँ। सबटा समस्या जेना अहि के इर्द गिर्द घुमि रहल अछि आ यएह एकटा पैघ मिथिलाक समस्या छैक। मैथिल होम पर हमरा गर्व होयत अछि तें मिथिलाक धरोहर जेना परिधान, खान पान, लोक संस्कृति, लोक कला एहन बहुते रास मिथिलाक धरोहर स्मृति में अछि जेकर बचेबाक जरुरी अछि। ओना निकट भविष्य के पाग के संग दोपट्टा कुर्ता धोती सब किछ बचेबाक अभियान चलाब पड़त किएक त ई सब सेहो किछ काल पश्चात इतिहास बनि सकैए। ताहू सँ पहिने परिधान के सुशोभित करय बाला मैथिलजन के संस्कार के बचेबाक अभियान चलाब पड़त। तें हेतु एखने सँ कियो अहि सब पर सुदृष्टि दय निक जेकाँ बूझि सूझि कय अभियान शुरू कय देब तखन भविष्य के लेल निक रहत।
परिधान के बचेबाक लेल हम सब बेहाल छी से निक बात मुदा अपन मातृभाषा जे अपने घर द्वार समाज सँ निपत्ता भ रहल अछि आ कहिं भविष्य में तिरहुत लिपि जेका मैथिली भाषाक दुर्दशा नहि हुए ताहि पर अपने शुद्ध आ प्रबुद्ध वर्ग के आत्म मन्थन करबाक चाहि ? मिथिला में अपन मातृभाषाक दुर्गती देखि आत्मा दुखी अछि। हम अपने गामक उदाहरण दैत छी, गामक जनसंख्या लगभग 2000 अछि मुदा निक जेका मैथिली के लिख आ बुझ बाला दहाई अंक में नै भेटत। हम लिखै छी मुदा कियो बुझ बाला नै ? वो सब मैथिली भाषा में लिखब आ बाज नै चाहैत छथि। अपने भाषा में बाज में लाज होय छन्हि।
मातृभाषाक एहन दुर्दशा आजुक वर्ग में बेसी देखल जा रहल अछि। हिंदी में बाजब अपन शान बुझयत छथि आ मैथिली में लाज आ छोट बुझयत छथि। कमोबेस सब ठामक मिथिला में मैथिली के प्रति एहने स्थिति अछि। मिथिलांचल में मैथिलीक स्थिति “कारी अक्षर भैंस बराबर” कहि सकय छी। हमरा लेखन सँ जँ किनको भावनाक आहत भेल हुए तखन हम अपने सब प्रबुद्ध वर्ग सँ क्षमा चाहब। आशा अछि अपन आशीर्वाद बनल रहत। जय मैथिल जय मिथिला जय जय मैथिली।