मिथिलावादी राजनीति आ प्रगतिक समीक्षा
स्मृति मे अनैत छी १० दिसम्बर, २०१२ – जाहि दिन अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली परिषद् केर संस्थापक अध्यक्ष डा. धनाकर ठाकुर मिथिला राज्य केर माँग लेल जन्तर-मन्तर दिल्ली मे अनशन केर घोषणा कएने छलाह। एहि अनशन मे युवा मैथिल सबहक नीक जुटान हो ताहि लेल दिल्ली मे हमर परिचित आ राजनीति मे रुचि रखनिहार सागर मिश्र केँ सेहो अनुरोध करैत सहभागिता बढय ताहि दिशा मे हमहुँ प्रयास केने रही। सागर मिश्र अपन बहुत रास संगी-साथी सबहक संग ओतय पहुँचबो केला। बहुत किछु अनुभव समेटला। संध्याकाल जखन गप भेल तऽ मोन कनेक छोट भऽ गेल। दिल्ली स्थित मिथिलावादी अभियानक बागडोर मूल रूप सँ प्रो. कृपा नन्द झा केर हाथ मे हमहुँ सब बुझैत रही। दहेज मुक्त मिथिला केर सेहो संरक्षक केर तौर पर हुनक सहयोग, समर्थन आ प्रोत्साहन बहुत नीक भेटैत आबि रहल छल। परन्तु ओहि धरना कार्यक्रम मे डा. ठाकुर आ कृपानन्द सर मे आपसी तू-तू-मैं-मैं केर गाथा दुःखी कय देलक। बात भजियाबैत रहलहुँ आ ई देखलहुँ जे युवाक नेतृत्व देबाक लेल किछु आरो डेग उठेबाक आवश्यकता अछि। डा. ठाकुर केर एकोऽहंद्वितियोनाऽस्ति प्रवृत्ति सँ आब हमरा जेना वितृष्णा उत्पन्न भऽ गेल छल, कारण ओझाक लेखें गाम बताह आ गामक लेखें ओझा बताह मे ओझे अन्ततः बताह सिद्ध होएत छथि। आदरणीय आ प्रखर सर्जक रहितो अपनहि गप आ बुझ हुथारबाक दुर्गुण सँ आक्रान्त डा. ठाकुर आखिरकार हमरो सन नव स्वराज्य समर्थक लेल वितृष्णा उत्पन्न करयवला सिद्ध भेल। ई हमर खराब आदति कहू वा नीक, मुदा एक बेर चरित्र देखा गेलाक बाद दोसर बेर फेर हम समय ब्यर्थ करब उचित नहि बुझैत छियैक, भले ओ कियो रहय। आर निर्णय सदैव आत्माक सर्वोपरि मानैत छी!
यैह वर्ष २०१२ मे डा. ठाकुर द्वारा एकटा अनलाइन प्रशिक्षण कैम्पेन केर संचालन केने रही। ताहि सँ पूर्व अपन गाम कुर्सों मे एकटा अन्तर्क्रिया कार्यक्रम मे आम जनमानस बीच मिथिला राज्य केर सार्थकता आर आवश्यकता लेल एकटा विशेष सभाक आयोजन केने रही, जाहि मे डा. ठाकुर अपन बहुमूल्य समय सेहो देलनि। लोक सब हुनकर विचार सुनिकय अपन स्वराज्य प्रति आस्था जगौलनि। राजनीतिक तौर पर जिनका लेल ई मुद्दा किछु फलदायी भऽ सकैत छल, ओहो सब डा. ठाकुर संग परिचिति बढौलनि। किछु विद्वत् सज्जन डा. ठाकुर केर विचार सँ विरोधाभास सेहो प्रकट करैत फरक मत रखलैन। यैह थिकैक वर्तमान मैथिल समाज आ ओहि ठामक राजनीतिक परिदृश्य। स्वराज्यक अर्थ सबहक समझ सँ बाहर छैक। गोटेक लोक एकर सार्थकता आ आवश्यकता केँ आत्मसात करैत अछि आर बाकी लोक बस अपन रोजी-रोटी आ लोकाचार मे समय व्यतीत करैत अछि। राजनीतिक परिदृश्य मात्र चुनावक बेर मे देखाएत अछि, जाहि मे आर मुद्दा सब पाछाँ रहैत अछि, जाति-समुदाय सर्वथा आगाँ। जातीय पहिचान आ ताहि मे शक्ति केर स्थापना आ संरक्षण, कहू न वर्चस्वक लड़ाई सबहक दिमाग मे हावी रहैत अछि। विकास आ प्रगतिक कोनो टा मुद्दा कतहु सँ केकरो मन मे नहि देखाएत अछि। स्वशासन – स्वायत्तता – संघीयता इत्यादि सबटा बेकार सिद्ध होएत अछि। समाजनीति मात्र राजनीति पर हावी रहैत अछि। ई अनुभव भेटल अपन गामक एहि विशेष सभा, तेकर समीक्षा आ तदोपरान्त आन-आन गाम-समाजक स्थिति-परिस्थिति अवलोकन सँ।
सामाजिक कार्य मे बचपन सँ रुचि राखि कार्य करबाक अनुभव समेटैत अपन एकटा ठोस विचारधारा विकसित रहबे करय, ई नव राजनीतिक जागरण सँ अपन समाज केँ आरो जाग्रत बनाकय मिथिलाहित कय सकब, यैह मोट मे अपन मिथिलावादक सूत्र छल। बिहारी राजनीति सँ समाज केर विखंडन आ तदोपरान्त मिथिलाक हरेक स्तर पर उपेक्षा – बिहार गीत तक मे मिथिलाक मान-सम्मान पर कोनो चर्च नहि, ई सब खिन्न कय देने छल। तखन डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजु’, डा. धनाकर ठाकुर, प्रो. कृपानन्द झा, प्रो. अमरेन्द्र झा, डा. बुचरू पासवान, डा. सत्यनारायण महतो, प्रो. उदय शंकर मिश्र, राम रिझन यादव, करुणा झा, पंकज झा, डा. मिथिलेश पासवान, रत्नेश्वर झा, डा. रविन्द्र कुमार चौधरी, डा. अशोक अविचल आ आरो कतेको रास विज्ञ-प्रतिष्ठित मैथिल नेतृत्वकारी स्रष्टा सब केँ जे एहि अभियान मे देखलहुँ से बहुत प्रभावित केलक। हमर आध्यात्मिक गुरु सियाराम झा सरस, डा. देवेन्द्र झा आदिक बताओल पाठ सँ सब किछु गुनैत-बुझैत २०१० मे पहिनहि सोचि लेने रही जे अपन मिथिला लेल ठोस कार्य करब। ताहि अनुसारे २०११ केर दिसम्बर मे माननीय पूर्व सांसद सुखदेव पासवान, पूर्व विधायक लक्ष्मी मेहता, तत्कालीन नेपाल सरकार केर प्रधानमंत्री डा. बाबुराम भट्टराई केर प्रेस सल्लाहकार आ मिथिलावादी नेतृत्वकर्ता आदरणीय रामरिझन यादव, प्रखर समाजसेवी आ मिथिलावादी नेत्री करुणा झा, राम भरोस कापड़ि ‘भ्रमर’, डा. बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजु’, डा. धनाकर ठाकुर, सियाराम झा सरस, दयानन्द दिक्पाल यदुवंशी, काली कुमार लाल, रमाकान्त झा, धीरेन्द्र प्रेमर्षि, जयराम यादव सहित दर्जनों अन्य महत्वपूर्ण स्रष्टा सबकेँ एक मंच पर अपनहि संयोजन मे सम्मेलनक आयोजन विराटनगर मे कएने रही। बाद मे डा. धनाकर ठाकुर केर आमंत्रण पर सीतागंज (फारबिसगंज) केर एक तथाकथित अन्तर्राष्ट्रीय मुदा सच मे ओ एकटा अति साधारण परन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्मेलन छल, ताहू मे डा. भुवनेश्वर गुरमैत समान साक्षात् जिवन्त देवता आदि संग भेंटघांट भेल। डा. कमलाकान्त झा समान प्रखर विद्वान् व्यक्तित्वक प्रभावशाली विचार सब सुनलहुँ, बहुत भीतर तक छूबयवला बात सब सुनिकय आब आरो ठोस आन्दोलनी बनि गेलहुँ से आत्मसात करैत छी। मुदा दिसम्बर १०, २०१२ केर ओ आपसी तू-तू-मैं-मैं सँ आहत भेलहुँ आर अपन आदत मुताबिक डा. धनाकर ठाकुर केर आलोचना करय तक सँ कोनो चूक नहि केलहुँ। हलाँकि एकर बदला मे हुनकर कोपभाजनक शिकार सेहो बनय पड़ल, अपना मन सँ ग्रहण कैल अमैप सदस्यता सँ फेसबुक केर चैट बक्स मे निस्काषन हेबाक दृष्टान्त देखि आरो आश्चर्यचकित भेलहुँ। बुझा गेल जे आखिर संस्था कोना लोकक पाकेट मे रहैत छैक आ कोना निर्णय कैल जाएत छैक। अहाँक मनोनुकूल बात होएत रहय तऽ ओ अनुशासन भेल, जहाँ अहाँक आलोचना कैल गेल तऽ अहाँ अपन बचाव मे बेकार-ब्यर्थ तर्क देब आ आलोचना कएनिहार केँ अनुशासनहीन करार देब, ओकरा अपना मोने केकरो चमचा बना देब, ओकर राष्ट्रीयता पर सवाल ठाढ कय देब, ओकरा अन्त मे मेगालोमानियाक पेशेन्ट कहि देब आ कोनो कसैर बाकी नहि राखब अपन वर्चस्व सिद्ध करय मे… ई सब देखलहुँ। मुदा हमहुँ कोनो साधारण पिताक संतान नहि छी, एकटा सच्चा समाजवादी रघु बाबुक खून दौड़ैत अछि शरीर मे, एहेन-एहेन १०० गो विक्षिप्त केँ हम असगर कोनो समय सम्हारि सकैत छी ततेक सामर्थ्य तऽ अछिये, बस कार्ड पर सँ एहेन महाबूरि लोक केर नाम साफ कय देलहुँ। आदरक स्थान पर आदर कायम रहबाक चाही, धरि मिथिला समान पवित्र विषय केर प्राध्यापक एहेन बूरि बनय ई हमरा कोनो हाल मे मान्य नहि छल, नहि अछि आ नहिये आगाँ होयत।
२०१३ सँ शुरु भेल एकटा नव अध्याय! ई साल मैथिल युवा द्वारा समस्त आन्दोलन मे सहभागिता देखेबाक विशेष वर्षक रूप मे गानल जायत। काज शुरु बड नीक सँ भेल। मुदा चुगलखोरी आ दोसराक चरित्रचित्रण मे समय बितेबाक खास मैथिल दुर्गुण सँ ईहो बेसी दिन नहि चलि सकल। बस किछुए दिन मे पटरी सँ उतैर गेल, से मानय मे कोनो नाकर-नुकर नहि करब हम। ८ जनबरी एक कन्नारोहट कार्यक्रम, दिल्लीक एक खास स्थान कनाट प्लेस केर काली मन्दिर, महावीरजी मन्दिरक ठीक अपोजिट, शान्त आ सुन्दर स्थान, मात्र मैथिल केर बाहुल्यता, पानक दोकान तीन-तीन टा अपनहि मिथिलाक लोक, मन्दिर पर पूजारी अपनहि मिथिलाक लोक, अनुष्ठानी पंडित अपनहि मिथिलाक लोक, फूटपाथ पर चाह, नास्ता, छोला, जूस, फूल-माला आ कि-कि बेचनिहार सब अपनहि मिथिलाक लोक…. स्वयं काली मन्दिर मे संतोष बाबा महंथ सेहो अपनहि मिथिलाक लोक, दीक्षितजी समान यूपी केर उन्नावक ब्राह्मण मिथिलाक नहियो रहैत सब गुण आ व्यवहार सँ अपनहि मिथिलाक लोक….. एहि सँ नीक दोसर कोनो स्थल नहि देखाएत अछि दिल्ली मे…. एकर नाम धएल ‘मिथिला चौक’, ई आइयो एहि नाम सँ मिथिलावादीक एकत्रित होयबाक स्थल थीक आर एहि ठामक मूल महंथ छथि आदरणीय प्रो. अमरेन्द्र झा, एकटा समर्पित मिथिलावादी, अपन जीवन एहि आन्दोलन केँ समर्पित कएनिहार व्यक्तित्व… हलांकि गुण-दुर्गुण सब मे होएत छैक, हमर ओकादि नहि जे हिनका सनक व्यक्ति पर आंगूर उठाबी, मुदा प्रोफेसर साहेब केँ आरो सूझबूझक संग संगठन बनबैत कार्य करय पड़त तेकर कमी देखायल। तथापि, हिनक समर्पण सँ मिथिला चौक सदिखन आबाद रहैत अछि। यैह एकमात्र उपलब्ध व्यक्ति मिथिला लेल सदैव तत्पर भेटैत छथि सदिखन। हिनकर मार्गदर्शन सेहो ओतबे उम्दा होएत अछि। एतय मिथिलाक लोक जे दिल्ली मे नेतागिरी, ठीकेदारी, चमचागिरी, दरबारी आ भीखारी होयबाक संग-संग दलाली करैत छथि, सब प्रकृतिक लोकक जमघट होएत अछि। दिल्लीक दिलवाली भूमि पर सात घाटक पानि पिबनिहार कियो ओतबे चंठ होएत अछि जतेक हम-अहाँ कल्पना टा कय सकैत छी। ई मिथिला चौक अहिना भरल-पूरल आबाद रहय! मुदा मिथिलावादक नाम पर मात्र व्यवसाय हुअय ई हमरा सनक लोक केँ कदापि सूट नहि करैत अछि। हम कुर्सोंक चौधरी छी – हमर अपन किछु प्रकृति अछि, कीर्ति त्याग सँ करब तखनहि अमरता प्राप्त करत। ताहि प्रकृतिक कारण दिल्लीक मिथिला चौक पर बनल सब योजना अनुरूप २०१३ तैयो बड सटीक रहल। खूब काज भेल। दिल्ली सँ मिथिलाक मूल भूमि धरि अभियान पहुँचल। कय गो यात्रा भेल। डेली पेपर मे समाचार आबय लागल। मुदा फेर दिल्ली मे अपनहि कय गो दलाल प्रवृत्तिक भाइ-कामरेड सब केँ ई अखड़य लागल आ सबटा रुकि गेल। आब दिल्ली केन्द्रित संगोष्ठी भेल, कय गो नेता मंच पर चमकल, फोटु-फाटो सब गड़गड़ाय लागल। मुदा भेल वैह, नेपाली कहाबत हाथी-हाथी फूसिये!
तैयो नीक आशा लगबय मे कोन हर्ज! अभियान फेर सँ धरातल पर आओत, ई नियारैत रहलहुँ। मुदा हाथी-हाथी फूसिये जेकाँ फेर सबटा गड़बड़ नहि भऽ जाय, ताहि सँ कनेक पैटर्न चेन्ज करब जरुरी बुझायल। राजनीति सँ जुडिकय किछो करब तऽ नेता बनबाक आ फेर कय तरहक स्वार्थ हाबी हेब्बे करत, बरु साहित्य आ समाजक बीच सौहार्द्र आ सद्भावक यात्रा आरम्भ करू, समाजक विभूति सबकेँ एकठाम जोड़ू आ फेर स्वराज्यक बिगूल फूँकैत चलू। स्वजागरण सँ जनजागरण – ई एकटा सूत्र – सफल अवधारणा भेटल जे क्रान्तिक अत्यन्त सफलतम् स्वरूप थीक। आब वर्ष २०१४ मे दिल्ली हिलल, मिथिला सेहो हिलल आ भारतक नव सरकारक गठन भऽ गेल। मुदा जाहि मिथिला मे मिथिलावादी केँ प्रतिनिधित्व पेबाक सामर्थ्य बनैत से एखनहु नहि भेल। दिल्लीक स्वार्थ सिद्ध होइते पटना सँ प्रेम कतहु नहि देखायल। बात अधर मे लटैक गेल। एकटा टन्ना आ फेर ओहि मे सँ निकलल वैह विक्षिप्त दुख्खा मिथिलावादी पार्टी कियो जमानत तक नहि बचा सकल। फेर वैह भेल ‘हाथी-हाथी-फूसिये’।
साल २०१४ केर सितम्बर ओही दिल्लीक दिलवाली भूमि सँ आरम्भ ‘मैथिली महायात्रा’ केर परिकल्पना पर समाज केँ एकटा साहित्यिक-सांस्कृतिक दिशा मार्फत सजग करबाक कार्य उत्तरोत्तर गति मे अछिये। २०१५ केर पहिल पड़ाव पर विराटनगर मे सम्मेलन अत्यन्त सफल रहल। साधनक अभाव रहितो ई अत्यन्त कारगर सिद्ध भेल। बाकी २०१५ लगभग अहु सन्दर्भ मे साइलेन्ट रहल, परन्तु ‘मैथिली जिन्दाबाद’ केर डेग पूर्ण प्रखरताक संग लहकैत-दहकैत अपन लोक केँ स्वराज्य प्रति जागरण हेतु जगबैत रहल अछि। आब आबि गेल छी २०१६ मे। मूल्य आ मान्यता केँ समाज मे स्थापित करबाक लेल विषयक अवधारणा गंभीर होयब जरुरी अछि। एहि बेर सरोकार लेल गेल अछि ऐतिहासिकता केँ स्थापित करबाक लेल प्रमाण पर चर्चा करबाक – यानि पुरातत्त्व खोज पर चर्चा करैत अन्तर्राष्ट्रीय मैथिल सामाजिक अभियन्ताक सम्मेलन विराटनगर मे १४-१५ मई केँ प्रस्तावित अछि। विश्वास अछि जे सबटा नीक होयत।
एना जँ २०१० सँ २०१६ केर समीक्षा करैत छी तऽ आत्मसंतोष होएत अछि। मुदा अधीरता समाप्त नहि होएत अछि। शायद सहिये कहल गेलैक अछि, सभ्यता आ संस्कृति पर आक्रमण आ विजय प्राप्त कय लेलाक बाद पुनः ओकरा स्थापित करब बड दुरुह कार्य छैक। भारत केँ सेहो विदेशी शासनक चंगूल सँ निकलबा मे लगभग एक हजार वर्ष लागि गेलैक। मिथिला सेहो मैथिल केर स्वायत्त-शासन मे प्रदेशक रूप ग्रहण करत, ताहि लेल नहि जानि आरो कतेक वर्ष लागत।
हरिः हरः!!
पुनश्चः अप्रैल २७, २०१३ केर ई लेख जहिनाक तहिना राखि रहल छी – तहिया आ आजुक विचार मे तालमेल बैसबैक वास्ते! जागरुक पाठकक प्रतिक्रियाक स्वागत करब। जय मिथिला – जय जय मिथिला!!
भारत भ्रमण – २०१३
बहुत बरखक बाद एहि बेर मौका लागल जे देशक भ्रमण कैल जाय आ विशेषरूपसँ मैथिलक वर्तमान अवस्थापर एक विचार विकास कैल जाय। भ्रमणक क्रममें किछु भीडभाडवाला शहर, तीर्थस्थल आ नि:संदेह यात्राक साधन जेना ट्रेन-बस आदि रहल। मूल दृष्टि छल मैथिलक अर्थतन्त्रपर शोध आ आगामी समय लेल विकासक नव-नव सुझाव।
चूँकि मिथिलाक लोकमें आनुवंशिकी गुण-धर्म आइयो ओतबा प्रखर छैक जे यदा-कदा आदम-जमाना सँ आ सनातन संस्कृतिक एक अभिन्न हिस्सा सेहो रहल छैक, ताहि हेतु राजनीतिक प्रक्रिया सँ भले दूर रहि लेब लेकिन स्वयंसेवी विकास करब मैथिलक असल पूँजी रहल अछि जेकर प्रमाण सगर मिथिला आइयो हँसैत-खिलैत दैत अछि।
मिथिलामें आ मैथिलमें,
समृद्धि प्रकृतिक देन अछि!
कोनो एहेन गाम नहि,
कोनो एहेन ठाम नहि,
चमत्कार दृष्टिगोचर नहि हो!
खेत, खरिहान, पोखैर, बगिया,
मंदिर, मस्जिद, पग-पग पूजा!
अपनहि मैथिल अपन विकास,
ताकथि न मुँह न राजाक आश!
कतहु जाइथ ओ मुँहगर-कनगर,
राज घुमाय चलबैथ सरकार,
लेकिन कंबल ओढि घी पीब,
ताहि लेल मिथिला मझधार!
हमर अनुभवसँ धर्म-कर्म-तप-दान-काम-क्रोध-लोभ-मोह आ प्रकृतिक हरेक रूपमें मिथिला सर्वमान्य अछि। मैथिल कतहु समावेश होइत छथि कारण जे हुनकर प्राकृतिक गुण कोनो दोसर मानवकेँ सुख पहुँचाबैत छैक नहि कि कोनो प्रकारक प्रतिक्रिया उत्पन्न करैत छैक। कतहु गोनु झा बनि मैथिल प्रसिद्ध होइत छथि तऽ कतहु कालीदास बनि के! कतहु चुल्हाइ साहु बनि के तऽ कतहु कलाकुमारी बनि के! अपन विद्याक बल आइयो मैथिलकेँ तन्दुरुस्ती पर नीक असर रखने छन्हि।
लेकिन मैथिल जेना पछता रोटी खेने होइथ, विकासक जे सिलसिला पूर्वमें छलैक आ लोक जेना आत्मनिर्भर बनबाक लेल कठोर यत्न करैत छल, ओ भले भौतिकवादी बनिके हो चाही त्यागी-तपस्वी बनि के, लेकिन समृद्धिक विलक्षण रूप हम जेहेन मिथिलामें देखैत छी तेहेन आन ठाम कतहु नहि। तदापि मैथिल आइ बढैत दुनियामें पाछू पडि रहल छथि। ई अत्यन्त गंभीर विषय छैक जे किऐक? हमर बुझबामें एकर एकमात्र मूल कारण छैक जे स्वतंत्रता प्राप्त भारतमें बहुतो तरहें मैथिलक गूढ गढके ध्वस्त करैत मैथिलकेँ अपन सामर्थ्य अनुरूप व्यक्तिगत विकास लेल मात्र सोची, समुदायकेर हित देखबाक जमाना लदि गेल – एहि कूतथ्यके स्थापित कय देल गेल आ लोकमानसमें जातियताक संग-संग उपद्रवी पेटभारा शिक्षा कूटि-कूटि भरि देल गेल। जे शिक्षातंत्र पहिले रहल ओ मजबूत छल, हलाँकि ओ ततेक आरक्षित वर्ग लेल रहल जेकर प्रासंगिकतापर प्रश्न जरुर अछि, लेकिन कतहु-न-कतहु समाजमें हरेक कार्यके सुन्दर ढंगसँ निष्पादन लेल हर वर्गक व्यक्तिक आवश्यकता पुर्ति लेल ओहि आरक्षणक सेहो आध्यात्मिक सार्थकता बुझैत अछि।
आब जरुरत एतबी छैक जे पौराणिक शिक्षा व्यवस्था आ आधुनिक प्रणाली बीच सुन्दर समन्वय स्थापित करैत आत्मनिर्भरता प्राप्ति लेल सहकारी संस्थाक विकास कैल जाय। मिथिलाक विशिष्टताक ब्राण्डिंग कैल जाय। व्यवसायीपन के संग रोजगार संवर्धन आ धरोहरक संरक्षण लेल विकासक एक छोटो टा डेग सगर मिथिलाकेँ पर्यटन-स्थलमें परिणत कय सकैत छैक।
बिहार सरकार या भारत सरकार या नेपाल सरकार – सभकेँ ई प्रयास करबाक चाही जे मिथिलाक गरिमामयी भूमिक महत्त्व समूचा संसारक सोझाँ कोना आयत। लेकिन हमर ध्यान सरकारी काम-काज सँ हँटल स्वस्फूर्त निर्माण पर अछि जाहि लेल नवगठित संयोजन समितिक समक्ष एक प्रस्ताव राखल अछि आ मिथिलाक ब्राण्डिंग करबा लेल हम सभ सेहो सक्षम छी से विश्वास अछि।
हम होंगे कामयाब! हम होंगे कामयाब एक दिन!
पूरा है विश्वास – मन में है विश्वास –
हम होंगे कामयाब एक दिन!!
हरि: हर:!!