विशेष संपादकीय
कुछ मैथिल जो खुद को अति होशियार समझते हैं, और अपनी दृष्टि से आगे की दृष्टि को परखने या समझने की क्षमता से परे हैं, ऐसे लोगों को सोशल मिडिया पर आपसी प्रतिस्पर्धा में एक-दूसरे पर प्रहार करने की मानो होड़ सी लग गयी है। आज ही एक ‘ख्याले मिश्रा’ नामक अति-होशियार मैथिल युवा ने मिथिला राज्य की मांग जो हाल तक बौद्धिक समुदायों तक ही सीमित है, उसपर कई बेतूका टिप्पणी और कठोर शब्दों का प्रयोग किया है। आश्चर्य तो तब हुआ जब मिथिला राज्य की मांग के कुछ समर्थकों ने भी ऐसे भद्दे टिप्पणियों और बेतुका बातों पर उत्साहवर्धक उपस्थिति दिखाया। ऐसे लोगों को समुचित ज्ञान-दर्शन देने के साथ-साथ कुछ बातें उन्हीं के लहजे में समझाना जरुरी समझा। इसी सन्दर्भ में उनसे की गई कुछ बातें यहाँ आज का संपादकीय मे विशेष अवस्था में हिन्दी में ही रखा गया है।
“केवल दूसरों को तमाचा मारोगे या फिर कभी आत्ममंथन भी करोगे कि तुम हो कौन? तुम भारतीय हो और तुम्हारा भारत एक संघीय गणतंत्र है जिसमें हर किसी के पहचान को संघीयता के आधार पर संवैधानिक पहचान के आधार पर सम्मानित किया जाने का वादा है। कभी तुमने सोचा भी कि यह कृत्रिम पहचान ‘बिहार’ जो यथार्थतः परिकल्पना तो साझा फूलबाड़ी का था परन्तु वास्तव में तुम्हें इन १०० वर्षों में मिला क्या? आज भी तुम्हारे यहाँ जाति आधारित उन्माद पसारकर तुम्हें घर से बेघर कर औरों की चाकरी के लिये तरासा जाता है। और तुम हो कि चन्द स्वराज्य की आवाज उठानेवालों के पीछे यूँ आवाज उठा रहे हो जैसे तुम्हारा सुख-चैन ही छीन लिया हो इन मिथिला राज्य आन्दोलनियों ने! हम तुमपर हँसें या फिर नाज करें कि तुम अपनी पीठ खुद थपथपाते हुए बेजोड़ प्रहार किये हो अपने ही भाइयों पर? बेशर्मी भी एक सीमा में सही होता है। कभी अपनी मौलिक अधिकार प्राप्ति के लिये आत्मसमीक्षा किये? कभी पहचान की विशिष्टता और संघी गणतंत्र में इसका महत्व को जानो, फिर तुम चलना राज्य की माँग को स्वीकारने या नकारने के लिये। हमें धन्यवाद देना चाहिये उन चन्द लोगों को जो १९४० से लगातार आज भी मुद्दा को जीबित रखे हैं। दुःख तो होता है कि उन्होंने आजतक राज्य का महत्व को जनभावना से नहीं जोड़ पाया है, परन्तु इसके पीछे की कमजोरी को सुधारने के बदले यदि हम उन्हें ही गालियां दें, उनपर प्रहार करें और फिर अपनी पीठ ऐसे थपथपायें जैसे हमने बहुत बड़ी वीरता की गाथा लिख डाला हो… लानत है ऐसे विचारों पर।
प्रयास यह करो कि अपने देश, इसकी संविधान और तुम्हारा अधिकार और कर्तब्य को तुम पहले समझो। राज्य होता क्या है यह जान सको, इस तरहका अध्ययन करो। जिस मिथिला (बज्जि गणतंत्र) ने विश्व को पहला संघीय गणराज्य का सूत्र दिया, आज दुर्भाग्यवश उसी का पहचान गौण है। कभी सोचे भी कि ‘बिहारी’ पहचान गाली क्यों बन रखा है? कभी खुद की पहचान को गाली से ऊपर ले जाने के लिये विचार करो। आज तुम्हारे ही राज्य में तुम्हारी खुद की भाषा को राजभाषाका अधिकार नहीं! बेशर्मों! तुम्हारे खून में ऊबाल क्यों नहीं आता है? खुद्दारी कब सिखोगे? कब तक दूसरे राज्यों में जाकर चाकरी करते रहोगे? तुम्हारी समृद्धि इन सौ वर्षों में इतने सारे योजनाओं (स्वतंत्रता उपरान्त पंचवर्षीय योजनाओं और उसके परिणामों) से तुम्हें क्या हासिल हुआ बिहारियों, कभी सोचे? तुम सोचोगे भी तो कैसे…. मैंने तो तुम्हें खुद कहते सुना है दिल्ली में कि ‘साले बिहारी लोग ऐसे ही होते हैं…’। एक बिहारी होकर तुम बिहारी को ही कैसे गाली देते हो इसका सैकड़ों उदाहरण बड़े-बड़े साहेबों को मैंने उनके दो नंबर के पैसे से अर्जित उन ऊंची इमारतों में बोलते पाया है जो सीखे तो अपनी मातृभूमि से परन्तु आज खुद को बड़ा मानकर वो और राज्य में चमक-दमक से जीवन जीने का क्षणिक दौड़ से गुजर रहे हैं। हम याद करें दूसरी कक्षा की वो सीख जिसमें कौओं को मयूर का पंख लगाकर मोर का नाच करने और फिर बूढे मयूर के द्वारा विजातीय प्रदर्शन का विरोध कर कौआ को भगाने का दृष्टान्त दिया गया था। जरा सीख लो अपने पूर्वजों से! इन सौ वर्षों में तुम्हारे घर एक भी ऐसा संतान पैदा हुआ हो जिसे हम जनक, याज्ञवल्क्य, गौतम, वाचस्पति, मंडन, विद्यापति, उदयनाचार्य, पाणिनी, कात्यायन आदि से तूलना कर सकें तो मैं अपना विचार बदल लूंगा। चोट्टों! अपनी अस्मिता को याद करो। नहीं तो बहस से तुम अपनी माँ से भी पूछ सकते कि बता मेरा बाप वही है इसका क्या सबूत है!
मिथिला के वगैर भारतीय गणतंत्र अधूरा है। हम मान सकते हैं कि स्वार्थलोलूप भी इस मुद्दा को छूकर अपवित्र किया है। परन्तु इसका मतलब हमारा मुद्दा ही कलंकित है ऐसा नहीं है। संघीय गणतंत्र में मिथिला राज्य हमारा अधिकार है। चाहे हम भारत में हैं, चाहे हम नेपाल में हैं, मिथिला राज्य का निर्माण आवश्यक है। हम साधनविहीन हैं, परन्तु इसके लिये हम हिंसक बनकर अपने ही भाइयों को लूटें और फिर तेलंगाना या उत्तराखंड या छत्तीसगढ या झारखंड के तर्ज पर खून बहायें यह जरुरी नहीं है। हमें विश्वास है कि शान्तिपूर्ण आन्दोलन से ही आज न कल हमारे विधायिका, न्यायपालिका, प्रशासिका सभी को मिथिला राज्य बनाने का कर्तब्य से आत्मबोध होगा और मिथिला राज्य का निर्माण होगा। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें अपनी स्वार्थ की पूर्ति होने का बहुत जल्दी है, जो निस्सन्देह इस मुद्दे का आधार बनाकर अपनी मनकी आकांक्षा को लपक लेना चाहते हैं, परन्तु जानकी-जनक की इस भूमि पर किसी भी अपवित्र मनसाओं को कभी भी सम्मान नहीं मिला, वे इसी जन्म में नरक भोगकर यहाँ से गये हैं। जरा दूर-दूर तक दृष्टि पसारकर देख लेना। इच्छा तो नहीं करता तुम्हारे बीच आने की, परन्तु दिवस बहुत बीत गये थे। रहा नहीं गया! बस मेरी बातों को जरा दिल लगाकर मंथन करना। ईश्वर तुम्हारी रक्षा करें!
हरिः हरः!!”