अहाँक राखल विचार मुताबिक, हमर संछिप्त आत्मकथाः
जन्मः ५ सितम्बर, १९७२ एक प्रतिष्ठित मुदा निर्धन परिवार मे – पिता एक कर्मठ समाजसेवी, डा. लोहिया, जेपी आ सूरज नारायण सिंह केर अनन्य अनुयायी, आन्दोलनी आ अभियानी – गाम कुर्सों (जिला दरभंगा) – पत्रालयः कुर्सों-नदियामी, माता एक धर्मानुरागिनी अति साधारण रहन-सहन परन्तु अत्यन्त उच्च विचारवान मैथिल महिला – गृहस्थक बेटी गृहस्थी केर धर्म मात्र सर्वोपरि माननिहारि, अपन भूख केँ मारियोकय अपन तीन बच्चा केँ सदैव हृष्ट-पुष्ट रखनिहाइर…. सिद्धान्तवादी पिता जे मात्र अपन ईमान व मेहनतिक कमाइ सँ धियापुता आ परिवार केर पोषण हो, छोट-मोट होमियोपैथिक दबाई केर प्रैक्टिसनर ‘डाक्टर साहेब’ केर उपनाम सँ बेसी लोकप्रिय – न्यायप्रेमी आ निडर रघुवर नारायण चौधरी – अपन श्रेष्ठ कामरेड्स केर प्रिय रघू – कर्पुरी ठाकुर – बिहारक पूर्व मुख्यमंत्री केर अभिन्न मित्र आ अपन सेवा भाव सँ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय मे छात्र रहितो कतेको निर्धन मैथिल छात्र केँ अपना संग राखि पढाइ-लिखाइ मे सहयोग कएनिहार अत्यन्त सरल परन्तु उच्च विचारक धनी सच्चा समाजवादी अभियन्ता।
शिक्षा-दीक्षा गामहि केर मध्य विद्यालय आ उच्च विद्यालय सँ, किछु दिनक वास्ते हजारीबाग जिलाक चतरा अनुंडल मे जेठ पितियौत भाइ संग रहिकय पढबाक प्रयास… परन्तु फेर गामहि लौटिकय अपन शिक्षा पूरा करब, अपनहि चाचा रत्नेश्वर नारायण चौधरी, उच्च विद्यालय कुर्सों केर शिक्षक, हुनक सान्निध्य व निर्देशन मे रहिकय अनुशासित शिक्षा ग्रहण कैल। अर्थाभाव मे दरिभंगाक सी एम कालेज मे वाणिज्य संकाय मे एडमिशन करेलाक बादो शहर मे नहि रहि गामहि पर सँ अपन पढाई स्वाध्याय मार्फत करब, आइ-काम केर परीक्षा पास केलाक बाद विराटनगर (नेपाल) आबि ग्रेजुएशन पूरा करबाक लेल अध्ययन आरम्भ… परन्तु दुर्भाग्यवश लालू रिजाइम केर एक घोर जातिवादी प्राचार्यक कोपभाजन सँ परीक्षा सँ निष्कासन भेला उपरान्त आ फेर दोसर वर्ष बाबरी मस्जिद ढहि गेलाक कारण बी. काम. पार्ट दुइ केर दुइ विषयक परीक्षा छूटि जेबाक कारणे पिताक प्रेरणा जे सर्टिफिकेट लेल पढाई करब जरुरी नहि… ताहि दिन सँ परीक्षा दैत डिग्री आर्जन लेल पढाई छोड़ि देबाक कठोर निर्णय…. आ फेर स्वाध्याय केर बल सँ अपन अध्ययन विभिन्न विषय व संकाय मे निरंतर जारी रखैत आबि रहल छी।
एहि बीच अपन जीविकाक संग वृद्ध पिता व माता केर सहारा बनबाक एकटा आत्मनिर्णय मुताबिक ट्युशन पढबैत विराटनगरक एक प्रतिष्ठित विद्यालय मे शिक्षण कार्यारम्भ – गणित केर शिक्षक रूप मे १९८९ सँ निरन्तर १९९७ धरि अध्यापन कार्य मे अनुभव समेटल। १९९५ मे पिताक असामयिक निधन सँ परिवारक नेतृत्वक भार ग्रहण करैत छोट भाइ एवं माय केर परिचर्चा सम्हारबाक दायित्व केँ निर्वाह अपन मुख्य कर्तब्य मानल। एहि बीच शिक्षण पेशा सँ इतर सेहो किछु कार्य कैल जाय ताहि प्रेरणा सँ विराटनगर केर प्रतिष्ठित उद्योग घराना दुगड़ ग्रुप केर मैनेजर लक्ष्मीकांत नेवटिया जी केर सान्निध्य आ मार्गदर्शन पाबि बिजनेस कोरेसपोन्डेन्स सँ अपन नव कैरियर आरम्भ कैल।
बिजनेस कोरेसपोन्डेन्स मे ब्यापारिक विषय आ तेकर व्यवस्थापनक नीक अनुभव प्राप्त करैत दुगड़ ग्रुपक संग-संग विराटनगर मे आरो प्रतिष्ठान सब मे बिजनेस कोरेसपोन्डेन्ट केर रूप मे पेशाकर्मी रूप मे एकटा शिक्षक सँ आगू प्रतिष्ठा अर्जित केला सँ कैरियर मे स्थिरता भेटल।
१९९८ मे विवाह, पूर्ण दहेज मुक्त आ सैद्धान्तिक तौर पर पूर्व निर्णयक मुताबिक मात्र एक निर्धन परिवारक बेटी केँ अपन अर्धांगिनी बनेबाक सोच मुताबिक जनकपुर (देवडीहा) निवासी अत्यन्त सरल जीवन मुदा उच्च विचारक प्राथमिकता देनिहार परिवार पं. जीवनन्दन झा केर जेठ सुपुत्री वंदना संग विवाह कैल। विवाहोपरान्त पारिवारिक जिम्मेवारी मे वृद्धि भेला उपरान्त एकटा स्थिर नौकरी (रोजी) करबाक आत्मबोध सँ एक निश्चित कंपनी मे कार्यारम्भ कैल, परन्तु अपन शिक्षक आ बिजनेस कोरेसपोन्डेन्ट केर पहिचानक लाभ सँ खुदरा-खुदरी कार्य अलगो सँ भेटैत रहल जे स्थिर नौकरीक अतिरिक्त एकटा मजबूत सहारा बनल। आइ एक निजी औद्योगिक प्रतिष्ठानक महत्वपूर्ण पद पर सेवारत होयबाक संग-संग अपन स्वतंत्र व्यवसाय सेहो कय रहल छी। आत्मनिर्भरताक प्राप्ति जीवनक मुख्य उद्देश्य रहबाक आत्मज्ञान सँ लबालब अपन जीवन केँ सफल मानि परिवार मे तीन पुत्री, एक पुत्र, पत्नी, माय, भाइ आ ओकर परिवार सहित अपन गाम-समाज, कर्मक्षेत्र विराटनगर आ धर्मक्षेत्र बाबाधाम एवं मैथिली-मिथिलाक सेवा केँ भरपूर निर्वाह करैत आगाँ बढि रहल छी। आत्मसंतोष अछि। भगवती सब दिन अहिना पूरबैत रहैथ। माय-बाप केर तपस्याक फल हमरा मार्फत स्पष्ट अछि।
हरेक व्यक्ति केँ समाज व देश प्रति जिम्मेवार होयब जरुरी अछि। हर मनुष्य केँ नैतिकताक आधार पर चलब जरुरी अछि। अवैधानिकताक प्रतिकार आ सत्य-ईमान केर मार्ग पर चलब जरुरी अछि। एहि सब तरहक आत्मज्ञानक संग ईश्वर प्रति पूर्ण आस्था राखि अपन योगदान दैत आबि रहल छी।
मैथिली हमर मातृभाषा थीक। मिथिला हमर संस्कार, संस्कृति, सभ्यता थीक। एकर भूगोल कोना-न-कोना आइ अस्पष्ट अछि। से स्पष्ट हो – ई हमर मांग अछि। नेपाल आ भारत दुनू मे ‘हमर’ मिथिला अछि। देशक सीमा भले एकरा खंडित कएने हो, परन्तु हमर मिथिला सब दिन एक छल आ रहत। एकरा एक बनेबाक लेल कठोर मेहनति केर आवश्यकता आत्मसात करैत दु-बगली हम अपन भाषा आ संस्कृति लेल भिन्न-भिन्न अभियान सब संचालित करैत छी। सोशल मिडिया केर नीक सहयोग भेटैत अछि। आइ ई विश्वास अछि जे सौंसे दुनियाक मैथिल केँ जोड़िकय पुनः मिथिला केँ जीबित करबाक कार्य करबा मे हम एकटा कड़ी केर भूमिका निर्वाह कय रहल छी। ई अभियान सतैत चलैत रहत। हम रहब, नहि रहब, मुदा मिथिला रहबे करत आ आइ जाहि विपन्न अवस्था मे ई अछि एकरा हम अपन जिबैत दूर कय लेब एतेक भरोसा अछि। अपन सेवा – स्वयंसेवा सँ स्वसंरक्षण केर प्राकृतिक सिद्धान्त सदैव सर्वोपरि अछि। मिथिला ताहि सँ सनातन जीवित अछि। एहि मे हमरो किछु अंशदान होएत रहय। हमर जीवन केर सब अभीष्ट एहि मे निहित अछि। अर्थ, धर्म, काम आ मोक्ष…. सबटा मैथिली-मिथिलाक सेवा मे निहित अछि। जय मातृभूमि! समस्त संसारक मानव व समस्त सृष्टि केर कल्याण एहि स्वत्व केर रक्षा सँ होयत।
हरिः हरः!!