दोष ककर ??
– विन्देश्वर ठाकुर, जनकपुर, नेपाल
राम्फल कक्का ! गोर लगै छियो । कहिया ऐला ?? उत्साहित होइत हम पुछलियै ।
कनिक देर चुप्पी साधि बाजल – कि कहियो बौवा ई जिनगिओ पैघ संघर्षक मैदान छै । डेग डेग पर परीक्षा लैत रहैछै । एलिओ परसुए । धीर गमभीर रह बला कक्का स्वर आइ पीडाएल छलै । सायद कोनो बढका बिपतिमे छलथि ओ । अथवा कोनो पैघ सदमा पहुँचल छलै । हम पुन: पुछलियै -“कि भेलो दाइ के तबेत खराब छलै । ओ नै त ….???” नै बौवा । माए त एखन ठीक छै । हाँ ओहिना झुरझुराइछै । बुझो जे दबाइए बले जीवित छै जाधरि …. “तहन फेर ? हम जिज्ञासु होइत पुछलैयै ?”
कक्काक आँखि नोरागेलै । उज्जर रंगके शर्टपर आँखिके मोतिसन छिटकल दाना टप सँ टपकि गेलै । ओ बाजबाक प्रयास करए मुदा मुंह सँ जेना बाके नै बहराइक …
हम स्वयं अस्मंजसमे । आखिर भेलै कि ??
तखने रमेशर बाबा पोखरि सँ डोलडाल क’ अबैत रहैक । नजरि पडलै राम्फल कक्का पर । सामने अबिते बबा पुछलकै -” राम्फल ! उसराही बालीके किछु पता चललो कि नै ? कक्का अपन आँखिक नोरके समटैत बजलाह -” हाँ कक्का ! पल्टुवा बजै छलै जे देखलिओह भौजीके काठमांडौएमे एकटा थोपल-थापल नकफेचरा जरे । हो ने हो ऊ हमरे कम्पनीमे काज कर बला विनेश तामांग हेतै । छुट्टीमे सामानसब ओकरे दिया पठबैत छलियैअ । ओ कतेबेर घरे सेहो आएल रहै । बादमे फेसबूकपर नीक कन्टैक्ट भऽ गेलैक । हमरा सँ बेसी ओकरे संगे चैटिंग, कलिंग आ बतकाहा होब लगलै । लाख समझौलियै । बाते नै मानै । तहन सोचली जे घर जा’ क स्वयं समझएबाक कोसिस करबै । मुदा ताहि सँ पहिने …..”।
ओह ! छोड छुतहरीके । कह त एहन चाहिँ ? अपने त पतीत भेलै, भेलै । मुदा ई डेढ बर्षक बच्चाके कोना छोडिकय चलि गेलै से कह त ?? नरकोमे बास नै होतै छुतहरीके ।
अच्छा ! तब राम्फल कक्का अतेक उदास छलैए । ओह ! कोना भेलै कहूं त ? उसराहीए बालीक लेल त राम्फल कक्का अपन बूढ आ बिमार मताइरके छोडिक मलेशिया अगोरने रहै । बिचरा बापोके जितामे मुंह नै देख सकलकै । बुढबाके प्राण छुटि गेलै आ डाहिदेलकै तकराबाद छौरझपीके दिन मात्रे आएल रहै । ओहो अहिठाम सँ इमर्जेन्सी पेपर पठौलाक बाद कते कहला पर कम्पनी छुट्टी देने रहैक । अपन सबटा सुख, पढाइ, जवानी, बाप-माए तियागिकय ओहि परिवार आ बाल-बच्चा लेल कमाइ गेल राम्फल कक्काके ई हाल देखि हमरो आँखि सँ श्रवण नोर बह लागल । ओम्हर राम्फल कक्काक मोनक अथाह दर्दके मेटएबाक चेष्टा करैत अपन काख तरके फूल सन बेटी ल’ पूरुब दिस टहैल देलकै ।