आलेख
– प्रवीण नारायण चौधरी
प्राचीन वस्तु केर अध्ययन आर ओहि सँ जुड़ल जानकारी पुरातत्त्व अर्थात् आर्कियोलाजी कहाएत अछि। सभ्यताक विकास संग पुरान वस्तु केर अध्ययन ओतबा जरुरी अछि जतेक कि इतिहास केर बोध होयब। कालान्तर मे मनुष्य अपन बीतल बात केँ समेटबाक विभिन्न तरीका अपनौलक। एहि तरीका मे साहित्य सँ इतिहास लेखन संभव भेल, तहिना पुरातात्त्विक महत्वक वस्तु केर संग्रह करैत ओहि पर सेहो लिखित साक्ष्य निर्माण करब पुरातन विज्ञान अन्तर्गत संभव भऽ सकल अछि।
आजुक विकसित समाज मे राज्य अन्तर्गत पुरातत्त्व विभाग स्वतंत्र रूप मे अध्ययन-शोध लेल सुसंगठित संरचना सहित काज करैत अछि। भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण सेहो एहने एकटा निकाय भारत मे अछि। नेपाल पुरातत्त्व विभाग नेपाल मे कार्यरत अछि। भारत ओ नेपाल मे संयुक्त रूप सँ मिथिला सँ जुड़ल अनेकानेक महत्वपूर्ण शोधकार्य होएत आयल अछि। अभिलेखागार सँ प्राप्त अभिलेख सब सेहो एहि कार्य मे अत्यन्त मूल्यवान् भूमिका निर्वाह कय रहल अछि।
मैथिली साहित्य संस्थान पटना द्वारा करीब चारि दशक सँ विभिन्न शोधग्रन्थ आदिक प्रकाशनक संग अन्यान्य बौद्धिक कार्य सब कैल जा रहल अछि। हालहि एहि संस्थाक प्रतिनिधिद्वय शिव कुमार मिश्र एवं भैरव लाल दास संग भेल एक संछिप्त भेंटघांट सँ एहि सन्दर्भ आरो बहुत रास जानकारी समेटबाक संग ‘मिथिला भारती’ केर नवांक एवं पुरान अंक सब सेहो कीनबाक-पढबाक अवसर भेटल छल। एक सँ बढिकय एक महत्वपूर्ण जानकारी सब सेहो समेटल एहि पुस्तक सबहक गहिंर अध्ययन सँ मिथिला केर संबंध मे जिज्ञासा आरो बढैत अछि।
पटना मे हालहि एकटा याचिका दायर करैत प्रश्न उठाओल गेल जे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा बलिराजगढ मे खुदाइ केर कार्य कियैक रोकल गेल। एकरा निरंतरता देल जाय आ आरो खोज-अनुसंधान केँ गहिंर बनाओल जाय। पटना उच्च न्यायालय एहि याचिका केँ स्वीकार करैत विभाग एवं केन्द्र सरकार सँ जबाब-तलब केलक अछि।
संगहि काल्हिये प्रकाशित समाचार सँ जनतब देल जा चुकल अछि जे मैथिली-मिथिला अभियानी एवं पत्रकार संजीब सिन्हा एहि मादे केन्द्रीय राज्य मंत्री महेश शर्मा केँ सेहो एकटा ज्ञापन सौंपलाह आर मंत्री सँ सकारात्मक भरोस पेलनि जे एहि कार्य केँ शीघ्र निरंतरता देल जायत।
कि अछि बलिराजगढ मे?
नामहि सँ स्पष्ट एहि स्थान केँ पुराण मे वर्णित राजा बलि केर गढ सँ जोड़िकय देखल जाएत अछि। राजा बलि केर महिमा पुराण गबैत अछि। हुनक दानशीलता आ महानता सेहो बहुचर्चित अछि। मिथिलाक्षेत्र मे एहेन पौराणिक कतेको रास बात होयब एहि स्थलक ऐतिहासिक महत्व केँ वर्णन स्वस्फूर्त ढंग सँ करैत अछि, भले ताहि लेल राज्य संचालन कएनिहार ध्यान दैथ अथवा नहि, परन्तु एहि ठामक मूल संस्कार स्वयंसेवा आ स्वसंरक्षण सँ ई क्षेत्र सदा हरित-भरित रहल अछि, आर आगुओ रहत एकरा केओ नहि काटि सकैत अछि। एहि ठाम जनमानसक पोषण लेल सनातनकाल सँ स्वसंरक्षणक सिद्धान्त सदैव सर्वोपरि रहल। वर्तमान विपन्न देखाएछ, कारण राज्य सत्ता द्वारा जनमानस मे भेद उत्पन्न कय खरात लूटबैत कौआ-चील जेकाँ जनता केँ लड़ाओल जाएत अछि, जे दुर्भाग्य थीक।
भारतीय पुरातत्व विभाग केर पूर्व महानिर्देशक ए. घोष द्वारा संपादित इंडियन आर्कियोलाजी १९६२-६३ः ए रिव्यू मे वर्णित भारतक विभिन्न पुरातात्त्विक महत्वक स्थल पर्यन्त मे वर्णित बिहार केर कुल ७ स्थल मे बलिराजगढ सर्वाधिक विवरण संग चर्चा मे आयल अछि। एकर मानचित्र आ कतय सँ कि भेटल ताहि पर सेहो विवरण राखल गेल अछि।
बलिराजगढ मुख्यरूप सँ एक प्राचीन किलाक जीर्णरूप थीक। एहि ठाम किला निर्माण ओ ३ बेर मरम्मत कार्य केर पहिचान भेल अछि। किलाक अवशेष तथा खोदाइ सँ प्राप्त अन्य अवशेष यथा वर्तन, सिक्का, कलाकृति, इत्यादि सँ एकर निर्माणकाल ईसा सँ २ शताब्दी पहिने भेल मानल जाएछ। संगहि एकर अस्तित्व पालकालीन भारतीय सम्राज्य धरि रहल सेहो कहल गेल अछि। खोदाइ कार्य जमीनक मूल सतह धरि नहि कैल जा सकल ताहू बातक चर्चा एहि रिव्यू मे विद्वान् महानिर्देशक ए. घोष द्वारा स्वीकार कैल गेल देखाएछ।
लाल भूरा रंगक बुर्ज अवशेष केर बहुल्यता आर बाकी अवशेषक मात्रा न्यून रहबाक एक कारण भऽ सकैछ जे आगू खोदाइ कार्य रोकल गेल हो। एकर बुर्ज देखिकय एहि स्थान पर सेहो बाढि केर असैर पड़ल मानल जा रहल अछि।
जनबरी २०१४ मे एतय कुल ६ महीना धरि खोदाइ कार्य भेल। लगभग ४०० प्रकारक एन्टिक्स सेहो भेटल। मुदा आगाँ खोदाइ कार्य लेल केन्द्रीय कार्यालय सँ निर्देशन नहि भेटल, जेकर कोनो खास कारण पर्यन्त जनतब नहि करायल गेल छल। एएसआइ पटना केर अधिकारी एच. ए. नाइक केर कहबा अनुसार आगाँ सेहो खोदाइ कार्य केँ निरंतरता देबाक लेल आग्रह कैल गेल, परञ्च ताहि पर एखन धरि कोनो प्रतिक्रिया सेहो नहि देल गेल अछि।
दोसर अधिकार एम. एस. चौहान केर मानल जाय तँ बलिराजगढ केर भूगर्भ मे बहुत रास रहस्य छूपल रहबाक बात केँ नकारि नहि सकैत छी। ओ कहैत छथि जे ई सब सँ बेसी महत्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थल सिद्ध होयत। लगभग १७६ एकड़ मे अवस्थित बलिराजगढ केँ पौराणिक कथा अनुरूप ‘राजा बलि केर गढ’ कहल जाएत अछि।
बीच-बीच मे समाचार भेटैत रहल अछि जे एहि स्थल केँ भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित क्षेत्र घोषणा कएला उपरान्तो एहि ठाम स्थानीय वासिन्दा द्वारा अवशेष आदि चोरी कैल जा रहल अछि। सरकार द्वारा कोनो तरहक सुरक्षा केर इन्तजाम नहि कैल गेल अछि। संभवतः स्थानीय भूमाफिया सबहक दृष्टि एहि अनेरुआ सरकारी जमीन पर सेहो पड़ि गेल अछि।
तहिना विभागक कर्मचारी तंत्र तथा शोधक नाम पर अनावश्यक खर्च भार आदिक अपुष्ट खबैर सेहो भेटैत अछि। भारत सरकार केर अधीन कोनो महत्वपूर्ण विभाग द्वारा विषयक गंभीरता बाद मे होयब आ पहिने अपन पेट आ पाकेट फूल होयबाक प्रवृत्ति सँ वर्तमान हरान-परेशान अछि ई सर्वविदिते अछि। तखन असलियत पता लगेबाक लेल सजग-जागरुक जनमानस जतेक बेसी अन्वेषण करता, ओतेक जल्दी समाधान निकलत ई कहि सकैत छी। हम सब जागी आ भाग्य सजाबी, मैथिली-मिथिला केर जिन्दाबाद करी!!
हरिः हरः!!