विराटनगर, अप्रैल ६, २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
काल्हि ५ अप्रैल, २०१६ रवि दिन विराटनगर केर स्वागतम् होटलक सभागार मे जागृत नेपाल केर आयोजन मे एकटा महत्वपूर्ण विचार गोष्ठी ‘मधेश आन्दोलन आ समाजिक सद्भाव’ विषय पर संपन्न भेल अछि।
जागृत नेपाल केर सहयोगी नेपाल भारत मैत्री समाज द्वारा आयोजित उपरोक्त विचार गोष्ठी मे विराटनगर केर बुद्धिजीवी समाजक संग-संग राजनीतिक कार्यकर्ता लोकनि सेहो भाग लेने छलाह।
संचालन जागृत नेपाल केर प्रतिनिधि द्वय पूर्व राजदूत तथा प्राध्यापक विजयकान्त कर्ण एवं विद्वान् प्राध्यापक कृष्ण हाछेथू द्वारा भेल एहि कार्यक्रम मे नेपाली काँग्रेसक केदार कार्की, नेकपा एमाले केर महेश रेग्मी, समाजवादी फोरम नेपाल केर राजकुमार यादव, फोरम गणतांत्रिक केर रामलाल सुतिहार सहित माओवादी क्रान्तिकारी व अन्य दल सबहक प्रतिनिधि लोकनि सेहो भाग लेलनि आर अपन मत विषय पर रखलैन। तहिना बुद्धिजीवी समाज मे सँ डा. पी. के. झा, जफर अहमद जमाली, श्याम सुतिहार, दिनेश श्रेष्ठ, सूर्यनाथ सिंह, राज नारायण यादव, भगवान् झा, प्रवीण नारायण चौधरी सहित विभिन्न वक्ता लोकनि भाग लैत अपन-अपन विचार राखल गेल विषय पर देलनि। राजनीतिक – सामाजिक कार्यकर्ता मे मृत्युंजय झा, सबीना खातुन, जेपी थेबे, श्रीराम कामत आदि अपन विचार रखलैन। एकर संयोजन मे पत्रकार जितेन्द्र ठाकुर महत्वपूर्ण योगदान देलनि।
मधेश आन्दोलनक औचित्य पर कतहु सँ कोनो प्रश्न नहि अछि। स्वरूप पर देश हित केर चिन्तन जरुरी छल। राज्य द्वारा सेहो आन्दोलन केँ प्रतिकार करबाक लेल अपनाओल गेल नीति मे दमन साफ झलकल जे द्वंद्वक आगि मे घी ढारबाक कार्य कएलक। राजनीतिक परिवर्तन प्राकृतिक न्यायक एक अभिन्न अंग होएत छैक। परन्तु राज्य केर दमन सँ उत्पन्न सामाजिक सौहार्द्र पर पड़ल गंभीर असर चिन्ताजनक अछि। ताहि कारण जागृत नेपाल समाजक महत्वपूर्ण अंग राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक संस्था सब संग सहकार्य कय संवादक प्रक्रिया बढा रहल अछि। यैह मूल बात पर काल्हिक विचार गोष्ठी केन्द्रित रहल।
शुरुआत विजयकान्त कर्ण द्वारा बीज भाषण मार्फत विषय प्रवेश सँ भेल। आन्दोलनकारीक मांग आ ताहि पर राज्य केर दमनात्मक कार्रबाई – ताहि बीच अधूरा संविधान जारी करबाक बात आ फेर देशक आम जनमानस प्रति संवेदनशीलता मे कमी सँ उत्पन्न सामाजिक सौहार्द्र-सद्भाव पर पड़ल असर के खुब सुन्दर तरीका सँ ओ प्रस्तुत कएलनि। तहिना फोरम ओपन करबा सँ पूर्वहि विद्वान् राजनीतिक समीक्षक – शोधकर्ता डा. कृष्णा हाछेथू द्वारा संविधान निर्माणक प्रक्रिया आ ताहू सँ पहिने नेपाल मे राजनीतिक परिवर्तनक संपूर्ण इतिहास आदि पर प्रकाश देल गेल छल। ओ स्पष्ट रूप सँ नेपालक वर्तमान संविधान मे तीन टा पैघ कमजोरी रहबाक बात कहलैन।
सार-संक्षेप मे दुनू विद्वान् प्रस्तोता केर बात केँ समेटबाक क्रम मे स्पष्ट भेल जेः
१. नेपाल मे राजनीतिक परिवर्तन भेलाक बादो समस्त जनताक पहिचान केँ मान्यता देबाक मनसाय सँ सत्ता संचालक कार्य नहि कय रहल अछि।
२. असंतोष व्याप्त रहबाक कारण विभिन्न चरण मे आन्दोलन होएत अछि।
३. मधेशी सहित विभिन्न असंतुष्ट पक्ष द्वारा सत्ता-संचालकक एहि जबरदस्तीक न्याय विरुद्ध आन्दोलित होयब स्वाभाविक अछि।
४. संविधान निर्माण प्रक्रिया ईमानदारी सँ संघियता स्थापित करबाक पक्ष मे नहि अछि। ताहि सँ आन्दोलनक विकल्प नहि बाँचल।
५. विभेदक अन्त कय समानताक अधिकार पेबाक लेल ई संघर्ष नेपाल मे निरन्त होएत रहल अछि, आर जाबत धरि सत्ता-संचालक एहि लेल ईमानदारी सँ तैयार नहि होयत, ई आन्दोलन आर अशान्ति चलैत रहत।
६. मधेशक मांग जायज अछि।
७. सीमांकन मे मधेश सहित विभिन्न प्रदेश केँ एकटा निर्धारित मापदंड पर उचित ढंग सँ निर्धारित कैल जेबाक चाही, नहि तऽ असंतोष अहिना व्याप्त रहत आर देश मे शान्ति आयब कठिन होयत।
८. हरेक नेपाली जनता केर स्वाभिमान मे वृद्धि हो आ सब कियो गर्व सँ माथ उठबैत अपना केँ एहि देशक नागरिक होयबा पर गर्व करय, ताहि सब लेल संघीय नेपाल केर परिकल्पना कैल गेल अछि। परञ्च एकर विरोधी विचारधारा अपन मालिकत्वक रक्षा लेल उल्टा प्रचार करैत देश मे भ्रम पसारैत संघीयता एहि देश लेल उचित नहि रहबाक बात पसारि रहल अछि।
९. मालिक आर रैयत संस्कृति जमीन्दारी प्रथा यानि सामंती व्यवस्था मे होएत छल, जेकरा आइयो कोनो न कोनो रूप मे कायम रखबाक एकटा छुपल एजेन्डा काज कय रहल अछि।
१०. देशक अखन्डताक सवाल संग समान अधिकारक बात केँ नकारब उचित नहि अछि।
११. संविधान निर्माण कार्य मे एकपक्षीय बात कैल गेल अछि, जाहि सँ अवस्था बिगड़ल अछि।
१२. राज्य द्वारा आन्दोलनी संग निपटबाक अत्यन्त क्षुद्र नीति अपनेबाक कारणे सामाजिक सद्भावना पर खराब असर पड़ल अछि। मनोविज्ञान मुताबिक जनता स्पष्टतः विभाजित अवस्था मे पहुँचि गेल अछि।
१३. सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक – एहि तिनू तह मे सामाजिक सद्भाव केर विषय महत्वपूर्ण मानि निरन्तर चर्चा हेबाक चाही।
१४. नेपालक नव संविधान मे स्पष्टतः तीन ठाम गंभीर चूक अछिः १. मधेशी तथा जनजाति केँ वर्तमान संविधान नकारबाक कार्य केने अछि। २. समानुपातिक समावेशी सहभागिताक महत्वपूर्ण अधिकार मे अस्पष्टता आ बयमानी देखाएत अछि, एकरा वास्ते बनाओल गेल सिद्धान्त आर व्यवहार मे स्पष्टतः फरक अछि। ई विवादास्पद आ पेंच सँ भरल वर्तमान रूप मे कुटिल नीति समान अछि। ३. संघीय संरचना – प्रदेशक सीमांकन केर कोनो आधार आ न्यायोचित कारक तत्त्व नहि रहबाक कारण अस्वीकार्य अछि।
१५. एक भाषा – एक भेष – एक देश केर संस्कृति सँ निकलबाक लेल संघीय नेपाल केर स्थापना केवल हावा मे बात करब देशक जनमानस लेल स्वीकार्य नहि अछि। आइयो संविधान द्वारा बाकायदा स्पष्ट परिभाषाक संग ‘खस-आर्य’ केर वर्चस्व केँ स्थापित करबाक प्रयास सँ आर दोसर समुदाय (पहिचान) मे असंतोष व्याप्त अछि। राज्य सबहक साझा संपत्ति थीक, संघीयता मे ताहि कारण दादागिरी केर नीति सँ समाधान असंभव अछि।
एहि सभा मे सहभागी विभिन्न वक्ता एवं विचारक लोकनि मोट मे एहि सब विन्दु पर सहमति जतौलनि। परन्तु सत्ता पक्ष आ विपक्ष केर एक्कहि मंच पर बुद्धिजीवी विद्वान् वर्ग संग बहस करबाक कारण कने-मने आरोप-प्रत्यारोप सेहो देखल गेल, परन्तु ‘अति राजनीति सँ अराजकता’ केर सभा मे जनादेश सँ राजनीतिक कार्यकर्ता अपना केँ बचावक मुद्रा मे रखलाह ई स्पष्ट छल।
विराटनगर मे ओना सब दिन सामाजिक सद्भाव बरकरार रहल अछि। एहि ठामक साहित्यिक संस्कार जनमानस केँ एकठाम जोड़िकय रखैत आयल अछि। तथापि किछु अतिवादी सोचक कारण यदा-कदा दुर्घटना होएत रहल अछि, ताहि प्रति साकांछ रहब जरुरी अछि। एहेन सभा व संवाद आदान-प्रदान सँ आरो दूरी घटैत अछि, ईहो बात एहि गोष्ठी सँ स्पष्ट भेल।