राँची, अप्रैल ३, २०१६. मैथिली जिन्दाबाद!!
अप्रैल १, २ तथा ३, २०१६ केँ झारखंड मिथिला मंच, राँची द्वारा अत्यन्त भव्यताक संग मिथिला महोत्सव मनाओल जा रहल अछि। कार्यक्रमक पहिल दिन विधिवत् उद्घाटन मैथिली सहित विभिन्न भाषाक वरिष्ठ विद्वान् साहित्यकार लोकनि द्वारा दीप प्रज्ज्वलन करैत कैल गेल। भैरवि वन्दना ‘जय जय भैरवि’ केर गान सँ आरम्भ कार्यक्रम विभिन्न सत्रक संग दुइ दिन धरि चलल। अपार जनसहभागिताक एकटा सुन्दर सुअवसर रहल ई कार्यक्रम, मानू राँची मे संपूर्ण मिथिला उतैर आयल हो। मैथिली केर सहकार्य अन्य-अन्य भाषाक संग सेहो होयबाक एकटा अनुकरणीय दृष्टान्त सेहो एहि महोत्सवक खासियत छल। एहि अवसरपर स्मारिकाक प्रकाशन तथा विमोचन सेहो कैल गेल।
उद्घाटन उपरान्त विद्वत् सभाक सत्र मे महाकवि विद्यापतिक प्रसिद्ध पाँति ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ पर केन्द्रित परिचर्चा भेल। विद्वत संगोष्ठी मे मैथिली भाषा सहित कुल १२ टा मातृभाषाक विद्वान् लोकनि सहभागी भेल छलाह। मैथिली भाषाक विद्वान् डा. भीमनाथ झा एहि सभाक मुख्य व्याख्यान देनिहार छलाह। ओ बहुत रास महीन बात सब सँ एहि उक्तिक महत्ता पर प्रकाश देलनि। हुनक मत छन्हि जे विद्यापति अपन बाल्यावस्थाक तुरन्त बाद जे महान रचना ‘कीर्तिलता’ नाम सँ कएलनि ताहि मे एकर प्रयोग करैत ताहि समय मे सेहो भाषा विमर्श मे विभिन्न मत होयबाक संकेत करैत अछि।
ओ एहि उक्ति सँ पूर्व मे लिखल किछु पाँतिक चर्चा करैत एहि बात केँ स्थापित कएलनि जे विद्यापति अपन रचनाक भाषा आमजन केर बुझय योग्य राखबाक ओकालति केने छथि। बालचन्द बिज्जावइ भाषा – दुहु नहि लागइ दुज्जन हासा – देसिल बयना सब जन मिट्ठा – तैँ तैसओं जंपओं अवहट्टा – यैह पूर्ण उक्तिक आशय केँ वरिष्ठ साहित्यकार – कवि – विद्वान् डा. भीमनाथ झा व्याख्या करैत ‘मातृभाषा’ जे आमजनक बोली होएछ तेकर महत्व आ मिठास केँ स्थापित करैत अपन गरिमामय व्याख्यान प्रस्तुत कएलैन। हुनक प्रस्तुति सँ उपस्थित जनमानस गद्गद् मात्र नहि भेल, बल्कि मातृभाषाक महत्व केँ आत्मसात करैत नव उर्जा सँ परिपूर्ण सेहो भेल।
भीमनाथ बाबु अपन विचार सँ स्पष्ट केलैन जे विद्यापतिक समय मे पैघ लोक सब संस्कृत बुझैत एवं बजैत छलाह, अर्थात् उच्चवर्गीय लोक केर भाषा संस्कृत रहल। ओत्तहि मध्यमवर्गीय जनमानस मे प्राकृत भाषा केर प्रचलन रहल। मुदा सर्वाधिक आबादी जे सब दिन निम्नवर्गीय आम लोकक रहल अछि, हुनका सब द्वारा अवहट्ट भाषाक प्रयोग होएत छल। तैँ देसिल वयना केर तात्पर्य आमलोकक बोली जेकरा जनभाषा कहल जाएछ, जेकर बाज ओ सुनब सब केँ मधुरगर आ प्रियगर लगैत अछि, ततेक पैघ उद्घोषणा विद्यापतिक एहि उक्ति सँ स्पष्ट अछि। ओ एकटा आरो बहुत महीन बात बजैत कहलैन जे विद्यापति भाषाक बदला ‘बयना’ शब्द केर प्रयोग कएने छथि। भाषा सँ सेहो ऊपर बयना केर तात्पर्य बैन अर्थात् बानि-व्यवहार होएत छैक। मूलतः भाषाक जैड़ मे यैह बैन रहैत अछि जे ताहि समय मे अवहट्टा छल आर विद्यापति केवल १६ वर्षक उमेर मे कीर्तिलता समान उच्चकोटिक रचना अवहट्टा मे रचलनि। यैह अवहट्टा आइ परिष्कृत संस्करण मे ‘मैथिली’ भाषा केर रूप मे स्थापित भेल अछि।

एहि सत्र मे बारहो भाषा यथा बंगला, असमिया, उड़िया, हिन्दी, भोजपुरी, नगपुरिया, पंचपरगनिया, खोरठा, मैथिली, संथाली, मगही, आदिक विभिन्न वक्ता लोकनि सेहो अपन-अपन मन्तव्य मातृभाषाक महत्व केँ स्थापित करबाक लेल उपरोक्त कथन महाकवि विद्यापतिक कथन मुताबि सर्वमान्य सत्यरूप मे स्थापित होयबाक तथ्य केँ स्वीकार कएलनि। एहि अत्यन्त मूल्यवान् सत्र मे बीज भाषण व विषय प्रवेशक संग सबहक स्वागत मैथिली साहित्यकार-गीतकार-विद्वान् हस्ताक्षर सियाराम झा सरस कएलनि जखन कि संचालन विद्वान् साहित्यकार-कवि डा. कृष्ण मोहन झा कएने छलाह। मैथिली भाषाक दिग्गज व्याख्याता व कवि उदयचन्द्र झा विनोद, प्रा. गुनेश्वर झा एवं डा. धनाकर ठाकुर एहि संगोष्ठी मे अपन-अपन विचार रखैत मातृभाषाक महत्ता पर प्रकाश देलनि। भारतक संविधान सेहो मातृभाषाक माध्यम सँ प्रारम्भिक शिक्षा देबाक मौलिक अधिकार दैत अछि अहु सँ विद्यापतिक उक्ति ‘देसिल बयना सब जन मिट्ठा’ केर महत्व स्वतः स्थापित होएत अछि। बंगला भाषाक विद्वान् डा. राम रंजन सेन, उड़िया भाषाक डा. राम दास, असमियाक उत्तम सेन बलुस्थानी, सहित अन्य भाषाक विद्वान् लोकनि द्वारा ई संगोष्ठी करीब अढाइ घंटा धरि उत्कर्षक संग चलैत रहल।
अन्त मे मुख्य समीक्षा मैथिलीक वरिष्ठ आलोचक मोहन भारद्वाज द्वारा कैल गेल। ओ मुख्य व्याख्याता भीमनाथ बाबु व अन्य वक्ता लोकनिक कहल बात केँ हृदय सँ सराहना करैत एकटा बड महत्वपूर्ण बात जे छूटि गेल छल तेकरा उजागर करैत कहलैन जे विद्यापतिक जीवनकाल भाषाक क्रान्तिक बेर छल। मैथिली, बंगला, उड़िया, असमिया आदि सब भाषाक जन्मकाल सेहो एकरा मानल जा सकैत अछि। भोजपुरी सेहो ओहि समय सँ बोलीक रूप मे विकसित रहबाक बात ओ कहलैन, परञ्च जे भाषा मात्र मुंहे केर बोली धरि सीमित रहल, कागज पर नहि उतैर सकल ताहि तरहक भाषा भोजपुरी आइ धरि बोली मात्र धरि सीमित रहि गेल अछि। अपन गरिमामयी समीक्षा मे ओ विद्यापतिक उक्त उक्ति संघर्ष केर भावनात्मक रूप सँ स्थापित रहबाक बात कहलैन। विद्यापतिक एहि पाँति सँ ध्वनित होइत अछि जे ओ समय भाषाक विकास केर संक्रमणकाल छल। विद्वानक भाषा संस्कृत सँ ऊपर मातृभाषाक महत्वकेँ स्थापित कैल जेबाक क्रान्ति संभव भेल। आम लोक यानि बहुसंख्यक केर भाषा मैथिली केँ स्थापित करबाक अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य ओत्तहि सँ होयबाक भान सेहो होएत अछि।विद्यापति दरबारे मे सीमित नहि रहि, विद्वानहि धरि सीमित नहि रहि जनभाषाक सहारा लैत आम लोकक कवि बनिकय महाकवि बनि गेलाह।

कार्यक्रमक दोसर सत्र कवि सम्मेलनक छल। करीब डेढ घंटा धरि चलल कवि गोष्ठी मे सेहो मैथिली, भोजपुरी बंगला, पंचपरगनिया, उड़िया, आदि विभिन्न भाषाक कविता पाठ कैल गेल। मैथिलीक वरिष्ठ कवि उदयचन्द्र झा विनोद, गीतकार सियाराम झा सरस, डा. कृष्णमोहन झा, कुमार मनीष अरविन्द, एवं भीमनाथ झा मैथिली कविता व गीत सब एहि सत्र मे प्रस्तुत कएलनि। बालकवि कुमार अंशुमन एवं पियूष कुमार द्वारा सरसजी एवं यात्रीजीकेर बाल रचनाक पाठ कैल गेल छल।

जतय गोसाउनिक गीत सँ कार्यक्रमक शुरुआत भेल छल, ताहिठाम बीच-बीच मे सेहो विभिन्न स्थानीय कलाकार लोकनिक सेहो गीत सब प्रस्तुत कैल गेल। सरसजी द्वारा कवि गोष्ठीक सत्रहि मे प्रस्तुत कविता ‘जतय जाउ अपन माटिक सुगन्ध लेने जाउ’ केर गायन कैल गेल छल, जाहि पर श्रोता-दर्शक लोकनि ठाढ भऽ कए वरिष्ठ गीतकार केर प्रस्तुति केँ सराहना मे थोपड़ी बजबैत स्वागत सेहो केने छलाह।
अन्त मे धन्यवाद ज्ञापन विदुषी आभा झा द्वारा अत्यन्त विलक्षण ढंग सँ कैल गेल छल। ओ समस्त कार्यक्रमक प्रस्तुतिक व्योरेवार चर्चा करैत एक-एक सहभागी विद्वान् – कवि – कलाकार केर संग दर्शकक क्रिया-प्रतिक्रिया केर सेहो चर्चा करैत सब केँ सहृदयतापूर्वक धन्यवाद ज्ञापन केलनि। हुनकर समीक्षात्मक धन्यवाद ज्ञापनक खूब चर्चा आर सराहना दर्शक लोकनि कएलनि आर फेर ऐगला दिनक इन्तजार मे पहिल दिनक कार्यक्रम सँ सब कियो विदा लेने छलाह।
समारोह मे दोसर दिन सांगीतिक कार्यक्रम केर आयोजन कैल गेल जाहि मे संगीता तिवारी, मैथिली ठाकुर, डा. रंजना झा, सुरेन्द्र यादव एवं राम बाबु झा व अन्य दिग्गज कलाकार लोकनि भाग लेलनि। विदित हो जे हरेक गायक केर छवि मिथिलावासीक नजरि मे एकटा स्थापित पहिचान रखैत अछि। मैथिली ठाकुर जे इन्डियन आइडोल मे भाग लेने छलीह, आर जिनकर ‘ब्राह्मण बाबु’ वला गीत सोशल मिडिया मे वायरल अछि, हुनकर सहभागिता विद्यापति स्मृति समारोह मे सेहो होमय लागल अछि जे मैथिली गीत-संगीतक दुनियाक लेल एकटा नव आ नीक खबरि सेहो थीक।
डा. रंजना झा जे संगीत सँ पीएचडी सेहो कएने छथि, जिनकर विद्यापति गीतक गान कोनो क्षण केकरो मंत्रमुग्ध करैत अछि, हुनकर प्रस्तुतिक तऽ चर्चे कि कैल जाय, राँचीक श्रोता सब अपन भाग्य केर सराहना करैत रहलाह आ सेहो बेर-बेर! सुरेन्द्र यादव आकाशवाणी दरभंगाक सिद्धहस्त कलाकार छथि आर जिनकर विद्यापतिक रचना गान एकटा अलगे लोकप्रियता हासिल कएने अछि, तहिना राम बाबु झा आ संगीता तिवारी मैथिली गीत-संगीत दुनियाक स्थापित हस्ताक्षर लोकनिक संलग्नता मे राँचीक ई समारोह चीरकालीन समय लेल स्मृति मे रहत – श्रोता लोकनि प्रतिक्रिया दैत गदगदी बुझेलाह।
एहि कार्यक्रम केँ झारखंड राज्य सरकारक कला संस्कृति विभागक संग विभिन्न निजी संस्थान केर सेहो अपूर्व सहभागिता एवं सहयोग देखल गेल अछि। एकटा अत्यन्त विराट आयोजन एकरा कहल जाय तऽ अतिश्योक्ति नहि होयत। विद्वत् सभा, कवि गोष्ठी आ विभिन्न लोक संस्कृति केर प्रदर्शन सहित तरह-तरहकेर सांस्कृतिक कार्यक्रम सब केँ एक संग एक ठाम समेटल जेबाक महान् कार्य कैल गेल अछि।
एहि तरहक आयोजन विरले कतहु देखल जाएछ। झारखंड मिथिला मंच – राँची एहि आयोजनक संग एकटा नव इतिहास रचि रहल अछि। मिथिलाक प्रखर प्रदर्शन – पुस्तक प्रदर्शनी, खान-पान, हस्तकला, चित्रकला, प्रविधि, उद्योग आर कतेको प्रकारक स्टल सब सेहो एहि महोत्सवक अभिन्न अंग अछि। तीन दिनक एहि आयोजन मे आइ तेसर दिन सेहो भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम केर आयोजन होमयवला अछि। पमरिया नाच व विभिन्न लोककलाक प्रदर्शनी सब एहि महोत्सवकेँ अति विशिष्ट बना रहल अछि।
लोकक जनसहभागिता सँ लैत विद्वत्जनक सहभागिता सब किछु अत्यन्त विलक्षण भऽ रहल अछि। मिथिला महोत्सव एवं विद्यापतिक स्मृति पर्व समारोह केर ई विलक्षण व भव्य रूप केर विवरण पढनिहार मैथिली जिन्दाबाद केर पाठक सेहो अपन भाग्य केर सराहना अवश्य करता, एहि विश्वासक संग ई रिपोर्ट राखि रहल छी। फोटो साभार झारखंड मिथिला मंच – फेसबुक सँ लेल गेल अछि।
हरिः हरः!!