अप्रील फूल
भोरे भोरे नोत भेटल त, मोंछ पर देलौं हाथ।
बता रौ भुटवा, बिनु एकादशी की छीयै एहेन बात॥
सुनु यौ बाबा कौबला छलै, माँ केलथि उपवास।
तीन साल सँ लटकल भैया, एहि बेर केलक पास॥
कॉलेज जेतै डीग्री लेतै, नोकरी कें भेल आस।
बहुत दिन सँ घर पर बैसल, छिलैत रहलै घास॥
बाबु कहलक नोत दियौन गै, बाबा छथिन खास।
जमैन फाँकि भरि दिन बितेलौं, सँझुका जागल आस॥
भुखल पेटे दरद उखड़ि गेल, कंठ सुखाबै त्रास।
कहलक वैद्य जी बुड़बक बनलौं, अप्रील के अछि मास॥
ध्यान मगन भेल बुड़हा कहला, आए निकैलतै साँस।
जो रौ भुटवा श्राप दइ छियौ, भऽ जेतौ सत्यानाश॥