Search

सर्टिफिकेट

सर्टिफिकेट……..!

– संतोष कुमार संतोषी, धरान, नेपाल।

santosh kr santoshi certificateलाखक लगानी – परिवार, समाज आ स्वयं के आशा, सपना, भरोसा……. सर्टिफिकेट!

ताहि सर्टिफिकेट के पुरान सन एकटा झोरी में राईख, काँख में लटकेने, दिन भैरि सहरक कार्यालय सब में दौरैत- दौरैत अफसियाँत भेल ओ….
मात्र शरिरहि टा सँ नहिं, मोन सँ सेहो थकित-चकित भेल रहय.

समाजक संस्कार आ प्रवृति देखि के हतोत्साहित भेल रहय…

घर अबिते,

दूबर पातर खिपटी सन भेल शरीर के, सर्टिफिकेटक भारी बोझ सँ मुक्त करैत, स्वयं के टुटलाहा खाटक अधिन करबा में कनिको देरी नहिं लगौलक ओ…

आँखि के मुननहिं, सर्टक सबटा बुटम खोलि, छाती के शीतलता देबाक कोशिस करैत ओ धिक्कारय लागल…

अपन नालायकीपन, कलुषित कार्यालय सबहक चाकरी आ भ्रष्ट आचार विचारक ऐहि समाजिक संस्कार के!

जाहि सर्टिफिकेटक लेल ओ राईत दिन एक क देने रहय…
जाहि सर्टिफिकेटक लेल मायक गहना सब एखनहु गिरवी लागल अई…

ताहि सर्टिफिकेटक मोल..
कागजक रद्दी आ ट्वालेट पेपरो के बराबर नहिं देखि,
कथित शिक्षा आ शैक्षिक योग्यताक प्रमाणपत्र प्रति घोर आक्रोशक भावना जागि रहलै ओकरा मोन में….

मुदा….

बेअर्थक……. बेमतलबक…

कारण,
काईल्ह पुन: ओ पत्रिका में भेकेन्सी बला कालम देखि, विभिन्न प्राईवेट आफिस सब में दौरय लागत….

अपन प्रमाणपत्र के बोझ उठेने!

होईत रहत अपमानित,
स्वयं के अप्रमानित करैत प्रमाणपत्रक संग..

और कोनहु विकल्पो त नहिं छै ओकरा संग..

चित्त केँ स्थिर करैत, अझुका दिनुक लेखा जोखा करय लागल ओ….

न्यू रोड में अवस्थित एकटा आफिस में कर्मचारी के आवस्यकता छै, से समाचार पत्रिका में पैढि, फोन पर लोकेशन मांगि.. आफिस धैरि पहुँचल..

जानकारी भेलै जे फारम जम्मा करबाक संगहि तीन सय टका सेहो जम्मा करय परतै ओकरा!

साौरी सर…
एक्चुअली पर्स घर पर हि छोर आया हूँ..

बहाना बना के बाहर निकलल ओ..

डेढ किलोमीटर पैदल रस्ता पार केलाक बाद साँई जेनरल स्टोर पहुँचल, जेकर मालिक ओकर कका के लरका छलैह!

सबटा जानकारी दैत, तीन सय टका के मांग केलक ओ अपना पितिऔत भाई सँ…

मुदा,
कहाँ पतियेलकै ऐकरा बात के ओ..

कोना पतियैतै…

एक हजार टका एक साल पहिने नेने रहै से त द नै सकलै एखन तक..

भैया, अखन त बोहनीयो बट्टा नै भेलैये दोकान में…
बहाना बना के साफे मुकैर गेलै ओकर छोट भाई…

दोकान सँ बहराईते, बस भारा लेल राखने छुट्टा पैसा सँ एकटा सिगरेट किनके, फुँकय लागल ओ…

पुन: किछु सोचिके सहीद गेट तरफ विदाह भ गेल..

हँ, सहीद गेट में ओकरा मामा के किताबक बरका दोकान छै,

हथपैंची के रूप में कतेको बेर सहयोगो भेटल छै ओकरा मामा सँ…

ओ बात अलग छै जे मामा सँ लेल रूपैया में एकहु टा आपस नै क सकल ओ एखन धैरि…

तहन..
एकटा आशा.. एकटा विस्वाश..

ओकर डेग अनवरत बढल जा रहलै मामाक दोकान दिश…

जेठक दुपहरिया में हँफुआईत, अफसियाँत भेल, अपन सहोदर भागिनक दुर्दसा देखि जेना पसिज गेलै मामाक हृदय….

ऐना में, जिनगी कोना चलतौह बौआ..

छोट -पैघ, नीक -बेजाय कोनो भी, केहनो भी एकटा नोकरी त करहै परतौ..

गाम में ओझहा के सेहो कोनो आम्दनी के स्रोत त छैन्ह नहिं।
बड्ड बेसी दुख छैन ओझहा के।
खास तोरा ल के सब चिंतित अई.

पढले लिखले सँ त नै भ जाई छै… आखिर कतेक दिन ऐना चलतौह ।
सब दिन तु ऐतबी कहैत रहलें जे पैढि लिखि के किछु खास करब..

की खास क रहल छेँ तू…

तोहरा संगहि एस एल सी देनिहार तोहर संगी सब लाखो में खेलाईत अई..

आ तू..

नोकरी के फारम भरबाक लेल तीन सय टका मंगने घुरैत छें…

तीन सय नहिं.. पाँच सय देबौ तोरा.

मुदा बाऊ,

नोकरी करहै परतौह….

मामाक देल सल्लाह सुझाबक भारी बोझक संगहि पाँच सय टका नेने….

न्यू रोड बला आफिस में जा क सबटा कागज पत्तर आ तीन सय टका जम्मा कराौलक.

अकलबेराक रौद में दौरैत दौरैत हारल थाकल ओ एक छन आराम करबा खातिर

शांति पार्क में आबि,

सर्टिफिकेट के सिरहाना में राईख एकटा गाछक छाहैरि में पैरि रहल….

मामाक कहल बात… बेर बेर प्रहार क रहलै ओकरा मोन मस्तिष्क में…

बातो त सत्ते रहैक…

ओकर संगतुरिया सब दिल्ली सन बरका बरका सहर सब में अप्पन घर दुआरि तक बना नेने अई ।

मनमाना पैसा कमा रहल सब के सब ।
ऐहेन त कियो अईहे नै जेकरा अप्पन मोटर साईकिल नहिं होई….

मुदा ओ….

पैसा के मात्र प्रगति बुझै बला ऐहि समाज में सब तरहेँ तिरस्कृत भेल अई.

ओकर पढाई लिखाई, बौद्धिकता ओकर छमता के कहाँ कियो देखि रहल….

ई समाज… पैसा के मात्र पुजनिहार.

केहेन बिडम्बना….

जेकरा सब के ओ कहियो ट्वीशन पढौने रहय,

से सब आई ओकरा सँ बोलचाल तक सँ परहेज क रहल अई.

फोन पर तक सीधा मुँह बात करय नहिं चाहैछ.

हँ, एतेक जरूर कहैछ सबगोटे…

पैसा कमाऊ भैया… पैसा.

संगी साथी, नाता रिस्ता, सर समाज, अप्पन आन सबठाम घृणा के पात्र बनल अई ओ…
से मात्र पैसा नहिं रहलाक कारणें.

सोचक वेग..
भुखक ज्वाला..

शांति पार्क में शांति सँ कहाँ रहय देलकै ओकरा…

बाहर आबि, फुटपाथ पर ठारहि ठार एक प्लेट छोला भठूरा दनकौलक……

पत्रिका में देखलाहा भेकेन्सी सब में ..एक दू ठाम औरो जाके कागज सब जम्मा करौलक…

आ हारल थाकल आबि गेल अपन डेरा में..

सोचक बादल छैंटि गेल रहैअ…

ओह..
जुत्ता पहिरने सुईत रहल छलय ओ…

दीर्घ नि:स्वाशक संग उठि के जुत्ता खोलय लागल..

गन्हाईत फटलाहा मौजा सँ तीन टा आंगुर बाहर देखा पैरि रहलै…

ठेहुन लग रफ्फू करावल जिन्स पेन्ट आ आयरन बिना घोंकचल पालिस्टर के सर्ट संगहि चेथरी भेल गंजी खोलैत काल यथार्थक दर्शन भ रहलै ओकरा…

सर्टिफिकेट के कपरा सिला के नहिं पहिरल जा सकैछ
सेहो बुझना में आबि रहलै ओकरा…

कुल मिला क सत्तैरि टा टका जम्मा पुँजि बचल छै ओकरा लग…

बहुत काल धैरि गुमसुम भेल बैसल..
कदाचित्.. ओ सत्तैरि टा टका आ सर्टिफिकेट में तुलना क रहल..

कोनो सटीक निर्नय लैत.. झटपट पेंट पहिर के सर्टक बूटम लगैबिते डेरा सँ बाहर निकैल परल ओ….

देसी सराब की दुकान…

बरका बोर्ड दुरहि स देखा पैरि गेलै ओकरा.

पचास टका के देसी सराब में भरपूर आनन्द आबि जाईत छै,

से बात कतेको बेर सुनने रहय ओ पियक्कर सबहक मुँहें ।

अभ्यस्त लोक सबके कतेको बेर पिबी के सनकैत देखने रहय ओ..

दारू.. सराब त एकटा भ्रम मात्र छी.

ओ सेहो बुझि रहल अई.

त कि हेतै…
भ्रमे सही.

सुख दुख, अपन आन, सबटा त भ्रमे छी..

एहि सब तरहक बात त ओ अपने बड बुझैत रहय…

ओ ईहो बुईझ रहल अई..
मामाक नसीहत, आबै बला कौल्हुका अभाव, सत्तैरि टा टका आ सर्टिफिकेट चैन सँ कहाँ रहय देतै ओकरा…

एकहि छन लेल सही..
ओ सबटा बिसैरि के नशा में मातय चाहि रहल…

आनन्द लेबय चाहि रहल…

ओह…
विवशता में बान्हल आनन्द..
अभाव में जकरल आनन्द..

अप्रमानित करैत, प्रमाणपत्र के सर्वस्व स्वाहा करबाक आनन्द…

चट्ट सँ देसी सराब सँ भरल गिलास उठा क तेना पीबय लागल जेना पूर्ण अभ्यस्त हुअय ओ….

सर्टिफिकेट, पैसा आ अपन अपनत्वक त्रिपछिय द्वंद में दारू खतम क के डेरा तरफ विदाह भ गेल ओ…..

आई पहिल बेर ओ स्वयं के गुलामी के जंजीर सँ मुक्त भेल बुझि रहल…

आजाद परिंदा सन लहराईत एम्हर लहराईत ओम्हर अपन आशियाना धैरि पहुँचि गेल केहुना….

घर में प्रवेश कैरिते ओकर नजैरि, सर्टिफिकेट पर पैरि गेलै…

किछु छन एकाग्रचित भेल देखैत रहल सर्टिफिकेट के…
.
मानु जेना ओकर कोनो दीर्घ कालीन शत्रुता होई सर्टिफिकेट के संग….

ओकरा आँखि में आश्चर्यजनक भाव आ, मुँह पर पृथक मुस्कान देखा पैरि रहलै…

ओ सर्टिफिकेट पर आ सर्टिफिकेट ओकरा पर अपन अपन छमता अनुशारे व्यंग करय लागल….

शीतयुद्ध चरम उत्कर्ष पर पहुँच गेलै..

आक्रोषक ज्वाला धधकय लगलै ओकरा हृदय में..

अन्तत:

स्टोभ पर राखल सलाई उठा क अग्नि प्रज्वलित करबा में बेसी देरी नै लगौलक ओ…

धह धह जरैत सर्टिफिकेटक ज्वाला में ओकरा अपन हृदय के ज्वाला शांत होईत बुझना गेलै…

ओकर….अथक परिश्रम, प्रयास, आशा, सपना, स्वाभिमान सबटा एकहि छन में जैरि के राख भ गेल रहय….

समुच्चा देह जेना काँपय लगलै ओकर..

आँखि जेना बन्द होमय लगलै…

एक छनक लेल
असंख्य पीऱा के अनुभव भ रहलै ओकरा…

दुनू हाथे जोर सँ छाती के दबा लेलक ओ…

आ,
चेतना हीन भ….. जैरि के राख भेल सर्टिफिकेट के बगल में धम्म सँ खैसि परल ओ….

घोर निद्रा में रैहितो,
जेना विजय मुस्कान देखा पैरि रहलै ओकरा मुँह पर…..

दुख, चिंता, विवषता, अपमान, घृणा आ उलहन उपरागे टा सँ नहिं…

ऐहि समाज सँ सेहो मुक्ति पाबि चुकल छल ओ………
सर्टिफिकेट.

Related Articles