कतेक रंगक लोकः सम-सामयिक विचार

कतेक रंगक लोक…..
– प्रवीण नारायण चौधरी
 
katek rangak lokहोली थिकैक। रंग-अबीर केर कतेको रंग देखाएत अछि। दृश्य कतेक रंग – अदृश्य सेहो बहुते रंग। अपन रंग जँ नहि जमल तऽ भांगक संग जमाओल कतेक रंग। ठीक छैक। होली पर रंगक फुहार – अबीर-गुलाल – सब ठीक छैक। मुदा जीवनक आर दिन मे रंगक पकड़ कमजोर नहि। अपनहु कतेक रंग, संगीक कतेक रंग आ जतेक लोक ततेक रंग।
 
एक दिन एकटा मित्र कहलनि जे अहाँक किछु रंग हमरा बदरंग लगैत अछि। मुस्कुराइत पूछलियैन, ‘से कि यौ?’ ओ कहला, “महाराज! आब अहाँ पैघ-पैघ धियापुताक बाप थिकहुँ। फेसबुक पर परिपक्व भाषाक प्रयोग कैल करू। किछु एहेन रंगक बात सब अहाँ करैत छी जे चर्चाक विषय बनि जाएत अछि। ई बहुत लोक केँ पसिन नहि पड़ैत छन्हि। बहुते जगह परोक्ष मे चर्चा सुनलहुँ। आर, यैह कारण सँ आइ-काल्हि अहाँक पोस्ट बहुते गोटा लाइक नहि करैत छथि।” अपेक्षित छल ई गप सुनब। ओ गलत नहि छलाह। लिखबाक समय एहेन कतेको बेर रंगक प्रयोग हमरा बुझने हमर लेखनीक किछु अलग बात अवस्से थीक। कि करू! पागल मोन, एकरा बुझाएत छैक जे होशियार लोक सब अपन भाषा छोड़ि रहल अछि आर ‘बिहारी हिन्दी’ नाम्ना नव भाषाक उत्थान करैत बिहार राज्य केँ मैथिलीक अतिरिक्त एकटा नव भाषा ‘बिहारी’ हिन्दीक एकटा बोल मुदा शैली अलग होयबाक कारणे एकर साहित्य, शब्दकोश आ व्याकरण आदिक नींब मजबूत करैत भारतक संविधान केर आठम अनुसूची मे स्थान दियेबाक लेल मोन बना चुकल अछि। एहि लेल मैथिली भाषाक एक अगाध विद्वान् केर सपुत तऽ औपचारिक तौरपर घोषणा सेहो कए देलनि अछि। ओ अपने जखन कि मैथिलीक विद्वान् छथि, मुदा पब्लिक मे हुनकर मुंह पोछि दुलार कएनिहारक संख्या उल्लेख्य नहि भेला सँ कनेक खौंझायल छथि। ओ बिन पहिचानहु केँ पहिचान परिभाषित करैत हमरो प्रमाणपत्र आदि देबय मे नहि चूक कय रहला अछि। विद्वान् छथि। किछु कय सकैत छथि। किनको योगदान केँ तैँ हमहुँ गरियाबी – ई कतहु सँ उचित नहि बुझा पड़ैत अछि।
 
दरिभंगा सँ ऊबिकय अन्त मे फेर गुआहाटीक शरण धरेत अपन जीवनक नव सीढी पर चढि रहल हमर अनुज आ मित्रवत् रौशन मैथिल एकदिन भोरे अगिया-बेताल भऽ गेला। ओ बूरिराज-सूरिराज आ कि-कहाँदैन लिखैत भागलपुर विश्वविद्यालयक कुलपति व अन्य केँ गरियाबय लगलाह। अंगिका केँ मैथिली केर उपभाषा जे सही मे ओ छीहो वा कहियो छलो कहू… तेकरा अलग भाषाक रूप मे मान्यता देनाय हुनका बुझने मैथिलीक व्यापकता केँ खंडित करब भेल। तामशे फूच्च…. ओ भयंकर भूखाएल बाभन जेकाँ ओहि कुलपति पर बरैस पड़ला। जखन कि हुनका ई पता छन्हि जे मैथिली पर पंडिजी परिवार तेनाकय सवार भेलैथ जे आब भागलपुर के कहय, दरिभंगो मे मैथिलीक अस्तित्व केँ सब मैथिल लेल भाषा नहि होयबाक कलंक लागय लागल अछि। साहित्य अकादमी आ मैथिली अकादमी द्वारा विद्वत् कार्य, लेखन-प्रकाशन कार्य आदि मे समयानुसार समावेशिकताक सिद्धान्त नहि अपनौला सँ आब गैर-बाभनवर्ग मे मैथिली हमरा सबहक भाषा नहि थीक ई आशंका उठि रहल अछि।
 
भागलपुर अंगिका विभागक एकटा कोनो सभाक समाचार रोशन पढलैन, ओहि मे मांग कैल गेल छलैक जे अंगिका केँ संविधानक आठम् अनुसूची मे स्थान दैत अंगवासी संग न्याय कैल जाय। हेडलाइन मे भागलपुर विश्वविद्यालयक कुलपति केँ सेहो एहि मांग केर समर्थन मे बजैत देखायल गेल छलैक। यैह रोशनक तामशक आधार कारक तत्त्व छल। समाचारक विवरणी मे विभागाध्यक्ष एकटा पढल-लिखल झा जी, जे संभवतः मूल मैथिल रहितो अंगिकाभाषी होयबाक कारण सँ अपन कर्तब्यपरायणताक धर्म निभाबैत छथि, हुनका तरफ सँ सभा मार्फत ई मांग आगू कएल गेल अछि ई समाचार छल। विदित हो जे किछुए वर्ष पूर्व – मैथिली केँ संविधानक आठम अनुसूची मे प्रवेश सँ ठीक पहिने किछु कुटिल प्रवृत्तिक बिहारी शासक (नीति-निर्माणक) ई निर्णय करैत भागलपुर विश्वविद्यालय मे मैथिली सँ स्वतंत्र एकटा अलग विभाग अंगिका लेल खुलबा देलनि। आब अंगिका भाषा मे विद्वत् कार्य करब, शोध करब, साहित्य लिखब, आदि लेल अंग क्षेत्र केर राजधानी नगर भागलपुर मे ई गतिविधि सरकारी अनुदान सँ चलय लागल। नहि जानि ताहू समय कियो एकर विरोध कएलनि अथवा नहि…. मैथिली विभागाध्यक्ष हमर आदरणीय पाहुन डा. केष्कर ठाकुर धरि एखनहु अपन मैथिली लेल ओतय जान-प्राण एक कएनहिये छथि। हालहि ओत्तहि सँ अनमोल भाइ सेहो पीएचडी केर डिग्री प्राप्त कएलनि। डा. पंकज कुमार झा ओत्तहि सँ आ पैछला वर्ष ओहि विश्वविद्यालयक जेआरएफ सब विराटनगर केर अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली कवि सम्मेलन मे जेरगर सहभागिता सेहो देने छलाह। मैथिली जिन्दाबाद बौद्धिक तौर पर भागलपुर, पटना, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, मधेपुरा आदिक विश्वविद्यालय मे होएते रहल अछि, मुदा ताहि सबहक जानकारी कोनो विधिपूर्वक हमरा-अहाँ धरि कियो देत ततेक सामर्थ्य आजुक पत्रकार जे १०० टाका लय केँ समाचार लिखैत छथि तिनका मे हमरा नहि देखाएत अछि। तथापि, अंगिका विभाग केर सभा, ताहि मे कुलपतिक उपस्थिति आ पत्रकार केँ सेवा भेट गेल तऽ समाचार सेहो लिखेबे करत, से पढिकय रोशन पागल बनि गेल छलाह, ई अनुभूति भेल। हुनका कहलियैन, “रोशनजी! जरू नहि। दोसरोक विकास सँ प्रसन्न होउ। जँ अंगिका मे एतेक सामर्थ्यक विकास भऽ गेलैक तऽ स्वागत करू।” चर्चा तेकर बाद आम मैथिलक बुधियारी सँ घोंघाउजपूर्ण बनि गेल। एतेक तक आरोप लागि गेल जे हम सब राजनीति करैत छी, मैथिली केँ खंडित करैत छी, आ कि-कि! कतेक लोक – कतेक रंगक बात!
 
हमरा स्मृति मे अबैत अछि ‘भागलपुर जिलाक’ फेसबुक समूह पर जखन मैथिली मे निरंतर पोस्ट प्रेषित करी तऽ ओतय कतेको रास आम लोक मे प्रतिक्रिया होएत छलैक। मिथिलाक गप टा खाली राखि दियैक आ कि खौंझा लागय। बाद मे हमरा ब्लाक कय देलक। ओकरा ई डर भेलैक जे ई मैथिलीभाषी कहीं हमर क्षेत्रक अस्मिता केँ – पहिचान केँ पुनः अपन मिथिला आ मैथिलीक गिरफ्त मे नहि लऽ लियय। किछु एहेन कन्फ्युजन मे डा. राजेन्द्र बाबुक गामक एकटा हुनकहि दियादवाद हमर पूर्व मित्र आ फिल्मकर्मी यशेन्द्र प्रसाद सेहो हमर खूब कूप्रचार करैत बिहार केँ तोड़यवाला आदि कहि एकटा विशेष अभियाने चलौने छल कहियो। रे भाइ! अपन घरक चिन्ता छोड़ि हमरा घरक चिन्ता हम जे करैत छी ताहि सँ तोरा डर कियैक होएत छौक…. खैर, बहुत पैघ संसार, बहुते तरहक लोक। जहिना हम मैथिल बिहारक उपनिवेशी नीति सँ घबरायल छी, तहिना अंगवासी सेहो चिन्ता करैत हेता। कहीं मिथिलाक उपनिवेश मे हमरा सब केँ बान्हिकय नहि राखल जाय, ताहि हेतु ओ सब मैथिलेतर पहिचान केँ मजबूती दय रहला अछि। हम मैथिल कोनाकय हुनका सब केँ मैथिल बना रहल छी, किंवा बनेबाक प्रयास कहियो केलहुँ, ताहि लेल हमहीं सब सोचब। अगबे अगियेला सऽ काज केकरो चलल जे अहाँक चलत? ओतय शंकरदेव बाबु आ विजयदेव बाबु खूम ललकारा मारलनि। डा. बैजुक एजेन्ट आदि सब रूप मे अपना केँ देखबाक मौका भेटल। हेहर, थेथर, कुकुरक नांगरि, इत्यादि कतेको तरहक विशेषण आ हमर योगदानक खतियान निकालबाक चुनौती सब सेहो भेटल।
 
हमहुँ तऽ आखिरकार खानदानी कुर्सों ड्योढिक चौधरी छी – चित्तू बाबुक रुआब आइ १५० वर्षक बादो यदा-कदा खून मे दौड़ैये लगैत अछि। निहाल सिंह चौधरी केर ओ संयोजन क्षमताक सामर्थ्य आ शक्ति २०० वर्षक बादो धरि ओहिना जीबिते अछि। दरभंगा महाराजाक १७ कहारक बराबरी करबाक लेल हुनकहि प्रिय ‘बिहाइर’ द्वारा हुनकरे ६ कहार अपन माफा उठेबाक कार्य मे लगबाकय जोधपुर राज धरिक यात्रा हम आइयो कइये सकैत छी। चुनौतीक प्रति ललकारा मारल, “आबि जाउ शास्त्रार्थ करी सौराठ सभा मे…. वा दरभंगे मे!” बुझा गेल फेर जेना सोझाँ सँ जबाब भेटल। गीदरभभकी मात्र आ फूफकार टा छोड़ब हमरा सबहक विद्वान् परिवारक सुच्चा धर्म आइयो अछि ताहि मे दुइ मत नहि। जबाब छल, “छौंड़ा-माँरड़ि केँ अपन ललकारा देबैक…”। माने सोझाँ बड़ परिपक्व जीव छथि, मुदा बोल-वचन सबटा मे महादरिद्री छन्हि आर तैयो विद्वान् छथि तैँ ७५० पन्नाक दस्तावेज बाबु-बाबा सँ बनल कहब कोना बिसरताह। औ जी! बाबु-बाबा मे एतेक अहं कहाँ तूफान मचबय जे एक-दोसराक व्यक्तित्व आ पहिचान केँ गरियाबैथ? कुकूरक नांगरि – हेहर – थेथर! अरे बाप रे!! महाराज! मानि गेलहुँ। एतबा जँ खूर पूजेबाक इच्छा अछि तऽ बान्हू प्रवीण जेकाँ फाँर आ पहुँचू एक-एक अभियान मे। देखाउ, समाज केँ अपन प्रखरता आ देख लियौक जे कोना न लोक अहाँक प्रतिभा केर आदर करैत अछि। टांग-हाथ तोड़बाकय घर मे बैसिकय अगबे गन्हायल शब्द सब बाजब? केहेन लोक – केहेन रंग? मुदा कुस्तीक मैदान फेसबुक पर हम सब मैथिल अपन सर्वाधिक प्रिय क्रीड़ा करबा मे कतहु पाछू नहि छी। मजा आबि रहल अछि। होलीक रंग मे ढूइसबाजीक संग!
 
बच्चन भैया दरिभंगा सँ समाद देलनि अछि। बौआ, जखन गाम अबिहें तऽ बतबिहें…. काल्हि सँ अष्टयाम कीर्तन शुरु भऽ रहल अछि। जेबाक त अछि, मुदा एम्हर छुट्टी बहुत बढि गेला सँ स्योर नहि छी। जँ जाएब तऽ एक पंथ बहुते काज होयत। २६ केँ झंझारपुर साहित्यांगन केर कीर्ति-कुम्भ मे बबुआजी अज्ञात केर स्मृति दिवस मे भाग लेब। साहित्यिक संस्कार सँ मिथिला निर्माण दिन-ब-दिन बनि रहल अछि। मैथिली जिन्दाबाद भऽ रहल अछि। निरपेक्ष तौर पर हम सब विभिन्न रंगक लोक भेलो पर छी एक्के। मानवता अछि सर्वोपरि आ परोपकार अछि सत्य धर्म। जँ जीवन मे छी तऽ किछु करबे करब। चलियो जाएब तऽ केलहा बात लोक मोन पारबे करता। जेना, पंडित सुरेश्वर बाबुक उदाहरण लियौक। १६ मार्च वाचस्पति प्रतिमा अनावरण सह स्मृति समारोह – ठाढी मे अध्यक्षीय संबोधन मे बजलाह…. जँ जियब तऽ आर देखब। मुदा मात्र तेकर तेसरे दिन भने इहलोक सँ परलोक चलि गेलाह। छोड़ि देलनि अपन नश्वर शरीर केँ गाम तुमौल मे धू-धू जरबाक लेल। आब, हुनका सब कियो एम्हर श्रद्धांजलि सुमन आ पंचकठिया अछिया पर दय रहल अछि, मुदा बगलहि केर गाम मे बड़का लाउडस्पीकर पर जोगीरा-सारारारा गायन भऽ रहल अछि। चारूकात लोक गमगीन अछि, मुदा घरहि मे लोक रंगीन अछि। कि करबैक! कतेक लोक – कतेक रंग!!
 
अस्तु! ई रंग केर कथा मे भैर जीवनक बात समेटल जा सकैत अछि। ओझरा जाएत अछि माथ हमर। अपन भागक कर्म आ अपन रंगक जनतब…. बस यैह अछि कर्तब्य हमर। फेर भेटब। जे जियय से खेलय फागु!
 
हरिः हरः!!