होली माहात्म्यः आध्यात्म आ व्यवहार
– प्रवीण नारायण चौधरी
हिन्दू शास्त्रमतानुसार हिरण्याकशिपु नामक एक अतिमहात्त्वाकांक्षी राजा छलाह जिनक इच्छा सभ सँ महान लोक बनबाक छलन्हि। एहि इच्छाक पुर्तिलेल ओ घोर तपस्या कयलन्हि आ ब्रह्माजी सँ वर प्राप्त कयलन्हि। ब्रह्माजी हुनक भक्तिपूर्ण कठोर तपस्यासँ प्रसन्न भेलापर हुनका एहेन इच्छा पुर्ति करैक वर देलन्हि जाहि अनुसारे हिरण्याकशिपु के नहि कोनो मानव नहि कोनो जानवर मारि सकैत छल, नहि घरमे नहिये बाहरमे मारि सकैत छल, नहि दिनमे नहिये राइत मे मारि सकैत छल, नहि तऽ अस्त्र सऽ नहि शस्त्र सऽ मारि सकैत छल, नहि भूतल – नहिये पातालमे आ नहिये आकाशमे मारि सकैत छल। हुनक ई वर प्राप्त भेला उपरान्त, हिरण्याकशिपु केँ कोनो विधिसँ मरब असंभव भऽ गेलैक आ एहि कारणे ओ अति अभिमानी बनि गेलाह। आब ओ अपन प्रजासँ हुनकहि भगवान् समान पूजा करय लेल आदेश जारी कय देलन्हि। सभकेओ हुनकर एहि आदेशकेँ पालन करय लागल सिवाये हुनक अपन पुत्र जिनक नाम प्रह्लाद छल – ओ विष्णु भगवान् केर परम भक्त छलाह।
हिरण्यकशिपु एहि बातसँ बहुत क्रोधित भेलाह – अनेको प्रकार सँ अपन पुत्र केँ बुझेला – लोभ-लालच देलाह लेकिन प्रह्लाद हुनक एहि बात सभ सँ टस्स सऽ मस्स नहि होइत अपन अखण्ड भक्ति भगवान् विष्णुमे बनेने रहलाह आ उलटा अपन पिताकेँ अनेको प्रकार सँ झूठ अभिमान केर त्याग करैत समस्त ब्रह्माण्डकेँ एकमात्र स्वामी परमेश्वरक शरणकेर महत्त्व बुझबैत हुनकहि भक्ति करबाक लेल कारुण्य भावसँ बेर-बेर अनुरोध कयलाह। लेकिन हिरण्यकशिपु अपन तेज वरकेर अभिमानमे चूर सत्यकेँ स्वीकार करब तऽ दूर, ओ अपनहि भक्तिमान् पुत्र प्रह्लाद केँ मारय लेल फरमान सेहो दऽ देलाह। एहि लेल हिरण्यकशिपु अपन बहिन होलिका जिनका लग एक विशिष्ट वर भेटल छलन्हि जे केहनो आगिके असर हुनका पर नहि पड़त ताहि वरकेर उपयोग करैत प्रह्लादकेँ अपन कोरामे राखैत अग्निकुँडमे प्रवेश करय लेल कहलखिन – लेकिन प्रह्लाद सहज भाव संग अपन ईष्ट भगवान् विष्णुकेर नाम-सुमिरन करैत रहलाह आ ईश्वरक लीला जे होलिका स्वयं जैर के खकस्याह भऽ गेलीह आ प्रह्लाद ताहि कुँड सँ हँसैत बाहर निकैल अयलाह।
होलिका दहन केर इतिहास
हिन्दू धर्मप्रथा मे होली मनेनाय होलिका केर मृत्यु उपरान्त करबाक परंपरा रहल छैक। होलीक दिन सँ पूर्व-सन्ध्यापर काठक ढेरीमे आगि लगाकय होलिका दहन करबाक परंपरा रहल छैक। जे दोसर लेल खधाइर खूनैत अछि ओ स्वयं ओहीमे खसैत अछि – एहि भावना केँ संग होलिका दहन केर पवित्र संवाद यैह छैक जे कथमपि दोसर लेल अहित नहि सोची, किऐक तऽ दोसरकेँ अहित हेतै नहि हेतै अहाँक अहित जरुर भऽ जायत। तहिना भक्त-जनकेँ अपन ईष्टमे विश्वास प्रह्लाद समान अटूट रखबाक विशेष प्रेरणाक संग होलिका दहन केर परंपरा रहल छैक।
कहबी छैक:
*विष्णु स्वयं ओहि अग्निकुंडमे आबि प्रह्लादकेर रक्षा कयलन्हि।
*ब्रह्मा होलिका केँ अपन रक्षाक लेल अवश्य अग्नि सँ कोनो हानि नहि होयबाक वरदान देने छलाह, कदापि एहि लेल नहि जे ओ एहि वरदान सँ दोसर केकरहु हानि पहुँचाबैथ – अतः वरदान विशेष परिस्थितिमे निष्प्रभावी बनि गेल आ प्रह्लाद सुरक्षित रहि गेलाह जखन कि गलत भावना आ वरदानकेर दुरुपयोग केनिहैर होलिका जैर के खाक भऽ गेलीह।
*यदा-कदा (भारतवर्ष केर किछु भागमे) इहो मान्यता छैक जे होलिका केँ अपन भाइ केर अभिमान नीक नहि लगलन्हि आ हुनक परिधान जे विशिष्ट आशीर्वादित छल ताहि परिधान केँ ओ दयावश प्रह्लादकेँ पहिरा देलीह आ अपन जान दैत ओ प्रह्लाद समान सच्चा भक्तकेर रक्षा करैत ईश्वर मे समा गेलीह। हुनक ओढनीजे विशिष्ट छलैन ताहिकेर उपयोगिता ओ भक्त प्रह्लाद लेल समर्पित करैत ईश्वरमे समा गेलीह।
होली के इतिहास
होलिका केर भस्म भेला उपरान्त आरो विभिन्न विधिसँ पहिले हारल-थाकल हिरण्यकशिपु आब स्वयं द्वारा अपन भक्त-पुत्र आ अपन फरमानक अवहेलना कयनिहार प्रह्लादकेँ दण्ड देबाक लेल फाँड़्ह बान्हि प्रह्लादकेँ खम्भामें बान्हि देलक आ तेकर बाद भरल सभामे अट्टहास करैत अभिमानकेर चरम-प्रदर्शन करैत चुनौती देबय लागल जे देखी जे आब प्रह्लाद केँ कोन भगवान् बचबैत छथिन आ हमर वरदान केर चलते के हमर कि बिगाड़ैत अछि – एहि तरहें ओ प्रह्लादकेँ कहैत रहलाह आ प्रह्लाद मुस्कुराइत हुनका सँ सद्बुद्धि प्राप्त करय लेल निवेदन करैत रहलाह – अपन प्रिय भगवान् केँ नाम भजन करैत रहलाह –
श्रीमन्नारायण-नारायण हरि-हरि!
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृ्ष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
हिरण्यकशिपु केर क्रोधक सीमा आरो बढैत गेलैक आ अन्ततः ओ पूछैत छथि जे बता तोहर भगवान् कहाँ छथुन आ कोना बचेथुन – प्रह्लादक ऊपर खड्ग तानि संहार लेल गेलाह हिरण्यकशिपु आ तखनहि प्रह्लाद केँ एतेक कहिते जे भगवान् सर्वत्र छथि – अहाँमें, हमरामें, एहि खंभामें… तुरन्त भगवान् ताहि घड़ी ओही खंभाकेँ फाड़िकय प्रगट होइत, नहिये नर नहिये जानवर बल्कि आधा-नर आ आधा जानवर – नरसिंह केर रूपमें अयलाह आ भयंकर गर्जना करैत हिरण्यकशिपु केँ पकड़ि हाथ सँ तरुवारि छीनि फेंकि नहि कोनो अस्त्र नहि कोनो शस्त्र (नंङ्गसँ) – नहिये दिन आ नहिये राइत (संध्याकाल) – नहिये घरमे नहिये बाहरमे (चौखटपर) – नहि जल, नभ, नहि थल (जाँघपर) आ समस्त वरदानकेँ सम्मान करैत अपन भक्तकेर रक्षा लेल अभिमानी हिरण्यकशिपुकेँ चीड़-फाइड़ मारि देलन्हि आ हुनक खूनसँ अपने इच्छे होली खेलाइत अपन सनातन सिद्धान्त “जे धर्मके रक्षार्थ हम एहि पृथ्वीपर प्रकट होइत रहब” से वचन पूरा कयलन्हि। एहि तरहें अभिमान केँ चूर करैत भक्तक रक्षा करनिहार भगवान्केँ जयकारा सँ चारूकात अनघोल भऽ गेल। त्रसित जनता घोर अभिमानी राजा सँ मुक्ति पयलन्हि आ भक्तिमान राजा प्रह्लाद गद्दीपर आरोहण कयलाह।
एहि तरहें परंपरागतरूपमें भारतीय उपमहाद्वीपमें हिन्दूक एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पावैन केर रूपमे होली मनाओल जाइछ। हरेक होलीमे लोक यैह सीख आ प्रेरणा पबैछ जे अभिमानक विरुद्ध – असत्य आ मिथ्याचारकेर विरुद्ध एक नव संकल्प लेल जीवनमे नव शक्तिकेँ संचरण हेतु होली मनाबैत छथि।
हरिः हरः!