आब जेहेन लागए, मुदा हास्य थीक आ सेहो होली विशेष

amarnath jha mahrailफगुआ-विशेष किछु रचना

– अमर नाथ झा, महरैल, मधुबनी।

खटमधूर

मनुखक जीवन भेलइ उस्सठ, रहलइ नै किछु लास्य
हास के बूझय गारि सम , गारि लगइ जनु हास्य ।

जेकरा नहिं सामर्थ्य हो , अपनहुं पर हँसबाक
से अधिकारी कथमपि नै दोसर घर धँसबाक।

व्यंग-मुस्सरिक असरि हो एतबे,जते सहसगर बुन्न
मोन विदीर्ण करइ नहिं किछुओ,अंग-माथ नै सुन्न ।

छइ जोगीरा जोग सनक, निरमल मन सँ पूर
जनिकर हिरदय शुद्ध नै ,ओ बैसथि हटि दूर ।

हमरा मे नहिं अछि ओ बूता,आ नै गएबाक लूड़ि
रहब फराके, जन प्रबुद्ध सँ, मानिकेअपना बूड़ि।

अंगरेजीक जनु पहिली अप्रिल, एमहुरका थिक फगुआ
मूर्खराज केर ताजक खाँहिस,तें बनलहुं अछि अगुआ ।

के जनलक जे हेतइ काल्हि की,जीयत जे खेलत फागु
क्षणभंगुर तन, साँस निपत्ता,बैसलहुं अछि भऽके आगु ।

नान्हिएटा

बहुत दिन पर ममागाम गेल रही ; बुझू तऽ एक जुग पर । मामा-मामी हमरा देखि अत्यंत हर्षित भेल रहथि । हुनक आनंदक पारावार नै । सामान्य स्वागतोपचार आ कुशलादि वार्ताक बाद मामा कहलन्हि “तों तावत् मामि सँ गप्प लड़ाबह, ता हम पोखरि सँ डूब दय संध्या तर्पण कएने अबै छी । तखन संगे भोजन-भात हेतै ।”

मामा गेलाह स्नान-ध्यान मे, एमहर मामी कहलनि “बौआ एम्हरे आउ ने चुल्हिये ल’ग । भानसो करब आ अहाँ स’ भरि पोख गप्पो करब” । से कतेक दिन सँ सहेजल मोनक गप बहराए लगलनि । मुदा मुख्य फोकस मामाक स्वभावे पर । “बौआ ! अहाँ तऽ अपन माम कें जनिते छी । पंडित छथि तें स्वभावे सँ खिसियाह । नाकहि पर तामस । से दिनानुदिन खटखटाहे भेल जा रहलाहे । नवारी मे बरदास कऽ लेलियै कहुना, आब सहल नै जाइये”।

मामी भानस रान्हि, ठाओं-पिरही लगा देलथिन। दूनू माम-भागिन बैसलहुं । आगाँ थारी लागल । नैवैद्योत्सर्ग आ पंचग्रासोपरान्त भोजन आरम्भे कएने रही की मामाक भात मे केश अभरलनि । आब लिअ’ , मामा सबिक्ख । क्रोधें थरथर ।अक्कर-धक्कर बाजऽ लगलखिन । हाथ बाड़ि देलथिन । मामीक मोन अपरतिब ।
मामी कहलनि “कहलहुँ ने बौआ । आब देखियौ । नान्हिएटा केश ले कतेक आसमर्द करै छथिन्ह” ।

मामाक आनन देखबा जोग भऽ गेल रहनि । क्रोध आ हास्य दूनू संगे बजलाह “अरे ! पैघ रहैत तऽ बुझितहुँ माथक हएत, ई तऽ—–।

(आकाशवाणी दरभंगा सँ फगुआक अवसर पर हास्य-गोष्ठी मे कहियो सूनल गप्पक स्मरण भऽ आएल)