– रवि झा, दहेज मुक्त मिथिला सदस्य
(सितम्बर १२, २०१४ केँ प्रेषित)
लोक – वेद बैसार रहै छल,
रंग – रीति आचार रहै छल,
के छोट-ज्येष्ठ आ के समतुल्य,
सभसं समुचित व्यवहार रहै छल,
आब विचारक नाम नै रहलै , गाम अपन आब गाम नै रहलै .
भोरे उठि के गुल्ली- डंटा,
दौगी मंदिर सुनि घड़ी-घंटा.
नहा-सोना के इस्कुल भागी,
बजलै घंटी – भागि के आबी.
आम कलम में लागल चौकी,
आम खसल नै – दौगा – दौगी.
जामुक निच्चा जुटै छल संगी,
जामु बीछि जीह रंगा – रंगी.
आब ओ जामु आ आम नै रहलै, गाम अपन आब गाम नै रहलै .
ओ टोल-गामके सखी-बहिनपा,
संग खेली कित-कित कथी के चिंता.
सभ क्यो मिल खेली साम-चकेबा,
ओ माटिक घर आ ईंट गिलेबा.
ओ सभ दिन होली – सभ राति दिवाली,
ओ जूड़ि-शितल आ ओ भर- दुतिया.
आब संबंधक नाम नै रहलै , गाम अपन आब गाम नै रहलै.
ओ बाबा हम्मर श्लोक सुनाबथि,
वेद – मंत्र उच्चार सिखाबथि.
ओ टकुरी काटथि हम्मर बाबी,
ओ खिस्सा-पिहानी कतय स पाबी.
ओ माँ के चरण में स्वर्ग देखाई छल,
जं पिता के देखी – विष्णु देखाई छल.
ओ समय छलै स्वर्गो स जक्खन,
जन्म – भूमि त लत कहाई छल.
आब ओ पावन धाम नै रहलै, गाम अपन आब गाम नै रहलै.