भामति-वाचस्पति पर ओशोक एक प्रेरक प्रवचन

वाचस्‍पति और भामति
 
– ओशो केर प्रवचन पर आधारित ताओ उपनिषद् सँ
(अनुवादः प्रवीण नारायण चौधरी)
 
एक बहुत अद्भुत घटना हम अहाँ सँ कहैत छी।
 
bhamati vachaspatiवाचस्‍पति मिश्र केर विवाह भेलनि। पिता आग्रह केलखिन, वाचस्‍पति केँ किछुओ बुझबा मे नहीं एलनि। तैँ ओ हां कहि देला। सोचला, पिता कहैत छथि, ठीके कहि रहल हेता। वाचस्‍पति लागल छलाह परमात्‍मा केर खोज मे। हुनका किछुओ आर बुझय मे नहि आबि रहल छलन्हि। किओ किछु बाजय, ओ केवल परमात्मा मात्र केर बात बुझैत छलाह। पिता वाचस्पति सँ पूछलखिन, बियाह करबह? तऽ ओ हाँ कहि देलनि।
 
ओ शायद किछु आरे बात सुनि लेलनि, जे परमात्‍मा सँ भेट होयत। जेना कि हमरो सबहक संग होएत अछि। जे धन केर खोज मे लागल रहैछ ओकरा सँ पूछब जे धर्म खोजब? ओ बुझत जे, शायद पूछि रहला अछि जे धन खोजब, ओ कहि देत, हाँ। हमरा लोकनिक भीतर जे खोज रहैत अछि, वैह टा हम सुनि पबैत छी। वाचस्‍पति सेहो संभवतः तहिना सुनला आ हाँ कहि देला।
 
फेर जखन घोड़ा पर बैसि कय लऽ जाय लगलाह, तखन ओ पूछलखिन जे कतय लऽ जा रहल छी? हुनक पिता कहलखिन, पागल तूँ हाँ कहलें तखनहि तोहर बियाह ठीक केलियौक। आब वैह विवाह लेल चलि रहल छी अपने सब। तखन फेर ओ नहि कहब उचित नहि मानलनि; कियैक तँ जखन हाँ कहि देने छलाह आर सेहो बिना किछु बुझनहिये हाँ कहि देने छलाह, तऽ जरुर ओ परमात्‍मा केर मर्जी होयत।
 
ओ विवाह कय केँ घुरलाह। जखन कि कनियाँ सेहो घर मे आबि गेलीह, लेकिन वाचस्पति केँ एहि बातक सोह नहि रहलनि। रहबो कोना करितनि। नहिये ओ विवाह केने छलाह, नहिये हाँ कहने छलाह। ओ अपन कार्य मे लागल रहला। ओ ब्रह्म सूत्र पर एक टीका लिखैत रहला। बारह वर्ष मे टीका पूरा भेल। बारह वर्ष धरि हुनक कनियाँ नित्य सांझ दियाबाती जराकय चलि जाएत छलीह। नित्य भोरे हुनकर पैर लंग फूल राखि दैत रहलीह। नित्य दुपहरिया भोजनक थारी हुनकर आगाँ घुसका दैत रहलीह, जखन ओ भोजन कय लैथ तऽ फेर चुपेचाप ओ थारी हँटा आंइठ पोछैत रहलीह। बारह वर्ष केर लम्‍बा समय धरि अपन कनियाँ केर ओहि ठाम हेबाक बात वाचस्पति केँ पता नहि चललनि। हुनक पत्नी सेहो कोनो उपाय नहि केलनि जे हुनका पता चलैन जे ओ ओतहि छथि, उल्टे ओ सबटा उपाय केली जे एहेन कोनो गड़बड़ नहि भऽ जाए जे हुनका ई आभास होएन जे ओ ओतय छथि कारण जे तेना भेलापर हुनकर काज मे बाधा पड़ि जेतनि।
 
बारह वर्ष पर जाहि पूर्णिमाक राति वाचस्‍पतिक काज करीब आधा राति केँ पूरा भेलनि आर वाचस्पति उठय लगलाह, तखन हुनकर कनियां ओ दियाबाती उठेलनि जे हुनका कतहु जेबाक छन्हि से रास्ता देखा देती…ताहि वास्ते हुनकर ओछाइन धरि ओ पहिल बेर बारह वर्ष पर एलीह ई कथा मे कहल गेल अछि। वाचस्‍पति ताहि दिन अपन पत्‍नीक हाथ देखलनि। चूँकि बारह वर्ष मे पहिल बेर काज समाप्‍त भेल छल, आब मन बान्हल नहि छल कोनो कार्य मे। हाथ देखलनि, चूड़ी देखलनि, चूड़ीक आवाज सुनलनि, घूरिकय पाछू देखलनि आर कहलनि, स्त्री? ई आधा राति असगर हमर कुटिया मे? अहाँ के थिकहुँ? एतय कोना एलहुँ? घरक केबाड़ी तँ बन्न अछि! अहाँ कोना भीतर आबि गेलहुँ? एतेक राति कोनो पर-पुरुष केर घर मे? चलू! अहाँ जतय सँ एलहुँ ओत्तहि हम अहाँ केँ पहुँचा दी।
 
हुनक पत्नी (भामति) बहुत नम्र स्वर मे जबाब देलखिन: बुझाइ यऽ अहाँ बिसरि गेल होयब। बहुते रास कार्य मे लागल रहबाक कारण ई संभव अछि जे अहाँ हमरा मोन नहि पारि सकल होयब। बारह वर्ष सँ अहाँ एहि कार्य मे लागल रहलहुँ अछि। अपने समान महान् तपस्वी एतेक पैघ कार्य मे तेना डूबि गेलहुँ जे अहाँक आस-पड़ोस मे कि सब घटल, के आयल वा गेल.. एहि सब बातक कोनो खबैर अहाँ केँ नहि अछि। बारह बरिस पहिलुका गप मोन पारू, कहीं याद आबि जाय। अहाँ हमरा अपन धर्मपत्नीक समान घर मे बियैह केँ अनलहुँ। तहिया सँ हम एत्तहि छी।
 
वाचस्‍पति कानय लगलाह। ओ बजलाह, ओह! ई तऽ बड देरी भऽ गेल। हम तऽ प्रतिज्ञा कय लेने छी जे जाहि दिन ई ग्रंथ पूरा भऽ जायत, ओहि दिन घर केर त्याग कय देब। तखन, ई समय तऽ हमर जेबाक समय थीक। भोर होमयवला अछि, तखन हम तऽ जा रहल छी। पागल! अहाँ पहिने कियैक नहि कहलहुँ? कनिकबो इशारा कय सकैत छलहुँ! लेकिन आब बहुत देरी भऽ गेल अछि।
 
वाचस्‍पति केर आंखि मे एना नोर देखिकय भामति अपन माथ हुनकर चरण मे राखि देलनि। और कहय लगलीहः जे किछु हमरा भेटि सकैत छल, ओ सबटा एहि नोर मे भेटि गेल। एहि सँ नीक आर कि भऽ सकैत अछि! यैह अहाँक पूर्णता एक दिन हमरहु पूर्ण कय देत। एहि सँ बेसी मूल्यवान् आर एहि दुनिया मे किछु आर भैये नहि सकैत अछि। आब हमरा किछुओ नहि चाही। अहाँ निश्‍चिंत भऽ कय जाउ। आर हम कि पाबि सकैत छलहुँ? हम धन्‍य भेलहुँ, हमरा बहुत किछु भेट गेल। अहाँ अपन मोन केँ भारी जुनि बनाउ, हमरा लेल चिन्ता धारण करबाक कोनो जरुरी नहि छैक। एकदम हल्लूक भऽ केँ जाउ।
 
वाचस्‍पति अन्त मे ब्रह्म सूत्र केर टीकाक नाम “भामति” रखलनि। भामति केर कोनो संबंध टीका सँ नहि अछि। ब्रह्म सूत्र सँ हुनकर कोनो लेना वा देना नहि अछि। ई मात्र हुनकर ओहि पत्नीक नाम छलन्हि जिनकर योगदानक एकटा छोट चर्चा ऊपर मे कैल गेल अछि। ई कहैत जे हम किछुओ आर अहाँक वास्ते नहि कय सकलहुँ, लेकिन भने लोक हमरा कियैक नहि बिसरि जाय, मुदा हमर एहि अनमोल कृति जे लोककल्याणक हेतु हम रचना कएलहुँ अछि एकर नाम अहींक नाम ‘भामति’ राखि रहल छी, जाहि सँ कियो अहाँ केँ नहि बिसरय।
 
वाचस्‍पति केँ बहुते लोक बिसैर गेला अछि; भामति केँ बिसरब कठिन अछि। भामति लोक पढ़ैत अछि। अद्भुत टीका थीक। ब्रह्म सूत्र केर एहेन कोनो दोसर टीका अछिये नहि। एकर नाम भामति अछि।
 
फेमिनिन मिस्‍ट्रि एहि स्‍त्रीक पास होयत। और हम मानैत छी जे ओहि क्षण मे ओ वाचस्‍पति केँ जतेक पाबि लेने हेती, ओतेक हजारो वर्ष धरि चेष्‍टा कएला सँ कोनो स्‍त्री कदापि कोनो पुरूष केँ नहि पाबि सकैत अछि। ओहि क्षण मे, ओहि क्षण‍ मे वाचस्‍पति जाहि रूप मे एक भऽ गेल हेता एहि स्त्रीक ह्रदय सँ, ओतेक कोनो पुरूष केँ कोनो स्‍त्री कहियो नहि पाबि सकैत अछि। कियैक तँ फेमिनिन मिस्ट्रि केर जे ई रहस्‍य अछि ओ अनुपस्‍थित केर अछि।
 
छूबो केलकनि वाचस्पति केर प्राण केँ एहि बारह वर्ष मे ओ स्त्री कहियो? पतो धरि नहि चलय देलकनि जे हम एतय छी। आर ओ रोज दियाबाती उठबैत रहलीह। जरैत रहलीह। कपड़ा धोएत रहलीह। हुनकर स्नान वास्ते पानि भरैत रहलीह। भोजन परसैत रहलीह। मुदा अपन होयबाक बात वाचस्‍पति केँ अनुभूतियो तक नहि होमय देलीह। बाहरे टा नहि ओ अंदरो मे अहं केँ सेहो देखैत रहलीह, कि हम छी। वाचस्‍पति धरि कहलखिन जे आइ धरि अहाँक हाथहु हमरा कियैक नहि देखायल, कि हम एतेक आन्हर भऽ गेल रही?
 
भामति कहलखिन जे जँ हमर हाथो अहाँ केँ देखाय पड़ैत तऽ फेर हमर प्रेम कहियो साबित नहि भऽ सकैत छल। हम प्रतीक्षा कय सकैत छलहुँ जे हमर एबाक अहाँकेँ पतो नहि चलय, हम एतेक विलय होएत अहाँक कोठरी मे अबैत छलहुँ जे हमर उर्जा तक अहाँ केँ छूबि नहि सकैत छल।
 
तैँ, जरूरी नहि जे कोनो स्‍त्री स्‍त्रैण रहस्‍य केँ उपलब्‍धे हो। ई तऽ लाओत्‍से द्वारा नाम देल गेल, कियैक तऽ ई नाम सूचक थीक और बुझा सकैत अछि। पुरूष सेहो भऽ सकैत अछि। असल मे आस्‍तित्‍व केर संग तादात्म्य ओकरहि होएत छैक जे एहि भांति प्रार्थना पूर्ण केँ उपलब्‍ध होएत अछि।
 
एहि स्‍त्रैण रहस्‍यमयी केर द्वार स्‍वर्ग और पृथ्‍वी मे जन्‍मय वा चाहे स्वर्ग मे, एहि आस्‍तित्‍व केर गहराई मे जे रहस्‍य छिपल अछि ओहि सँ सबहक जन्‍म होएत अछि। ताहि लेल हम कहलहुँ, जे परमात्‍मा केँ मदर, मां केर समान देखलक, दुर्गा या अंबा केर समान देखलक, ओकर समझ परमात्‍मा केँ पिताक समान देखबा सँ बेसी गहिंर अछि। अगर परमात्‍मा कत्तहु छथियो तऽ ओ स्‍त्रैण हेता कियैक तँ एतेक पैघ जगत केँ जन्‍म देबाक क्षमता पुरूष मे नहि भऽ सकैत अछि। एतेक विराट चांद-तारा जाहि सँ सृजित होएत अछि, ओकरा पास गर्भ चाही। बिना गर्भ केर ई संभव नहि अछि।
 
(ताओ उपनिषद—१, प्रवचन -१८)