अपन अपराधक सजायः बाल कथा

अपन अपराधक सजाय

(बाल-अपराध बोधक एक प्रसंग… – प्रवीण नारायण चौधरी)

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अपन बाल्यकाल केर कथा मोन पड़ैत अछि….. सच देखल जाय तऽ आजुक समय ओहि उम्र केँ बाल्यावस्था मे नहि मानल जाएछ। परञ्च हमरा खूब मोन पड़ैत अछि जे मैट्रीक पास केलाक बाद दरिभंगाक चन्द्रधारी मिथिला महाविद्यालय मे नामांकन उपरान्तो अपन मोन बच्चहि केर छल आ नामो गामक ‘किशोर’ हेबाक कारण किछु बेसिये दिन किशोरहि बनिकय रहबाक सदिच्छा सेहो। बच्चा मे जतेक स्नेह आ आशीष संग पिता व हुनक मित्रादि सँ मिठाई-मेवा सेहो खेबाक लेल आ खूब बढियाँ-बढियाँ दुलार भरल शब्द सब आत्मगौरव बढेबाक लेल भेटैत छल शायद वैह कारण रहैक जे उमेर सँ भले किशोर रही, मुदा हृदय मे बच्चहि टा बसैत छल। ताहि हेतु ई कथा जे हमर महाविद्यालय मे नामांकन केर उम्र १४म वर्ष मे रहितो बच्चा समान रही तहियाक एकटा अत्यन्त शिक्षाप्रद कथा मोन पारि रहल छी। एहि कथाक उपयोगिता हरेक बच्चा, किशोर व हर अभिभावक केँ अपन धिया-पुताक लेल खास रूप सँ होयत ताहि उम्मीद-अपेक्षाक संग ई कथा अपने लोकनिक बीच राखि रहल छी।

गामक संस्कार मे मेला देखबाक उत्साह बच्चा-बच्चा मे होएत छैक। मेला लगबाक सही अर्थ आब बुझलियैक, तहिया केवल मेला टा बुझियैक आर मेला मे भिन्न-भिन्न तरहक खेलौना भेटबाक संग खेबाक लेल मिठाई आ घर अनबाक लेल तरह-तरह केर फल आ अन्यान्य सनेशक संग देखबाक – मनोरंजन करबाक साधन सर्कस, जादू, थियेटर, नाच आदि रहबाक विशेषता मुख्य रूप सँ आकर्षित करैत छल। आइयो मेला मे ई सब भरमार भेटिते अछि, मुदा मेलाक जैड़ मे रहैत छैक मूल आयोजन, ओ चाहे कोनो पूजा-यज्ञ हो, कोनो अन्य धार्मिक अनुष्ठान हो या फेर सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक आयोजनादि कियैक नहि हो, मेला कोनो अवसरहि टा पर लगैत छैक से आब बुझलियैक।

१९८७-८८ मे घोघरडीहा मे बड़का यज्ञ केर आयोजन पर खूब पैघ मेला लागल छलैक। ई मेला देखबाक लेल हमरो गामक बहुते लोक भिन्न-भिन्न साधन सँ जाएत छल। मेला घूमबाक लेल मोन मे उत्सुकता सबकेँ अपना-अपना तरहें होएत छैक। धियापुता अपना अभिभावक संग गेल तऽ आर-आर लोक सब अपन संङोरिया सबहक समूह बनाकय मेला जाएत छल। ओहि घोघरडीहा केर यज्ञ देखबाक लेल हमहुँ किछु ‘किशोर’ सब योजना बनेलहुँ आर विचारलहुँ जे गाम सँ साइकिल लय झंझारपुर आ ओतय कतहु साइकिल केँ व्यवस्थित रूप सँ राखि देलाक बाद रेल सँ घोघरडीहा जाएब। कनेकाल मेला घूमब-फिरब आ फेर ट्रेनहि सँ आपस आबि साइकिल लैत गाम वापसी करब। तहिना भेल। ४-५ गोटे ३ टा साइकिल लय निकैल पड़लहुँ। झंझारपुर धरि संगे पहुँचलहुँ। साइकिल रखबाक लेल अपन-अपन परिचित केर ओतय जाय केँ अनुरोध करैत साइकिल राखि देलहुँ। फेर सब कियो वापस झंझारपुर आरएस (जंक्शन) पर आबि गेल रही। टिकट कटाउ आ कि नहि कटाउ…. दुविधा मे रही। कियो कहय जे कटा ले, कियो कहय जे एखन के चेक करतैक, से ओहिना चले। होएत-होएत बेटिकटे सब कियो ट्रेन मे चढबाक लेल नियारिकय अलग-अलग डिब्बाक गेट पर भितरे-भीतर डर मुदा ताहि डर केँ सामना करबाक हिम्मत संग चैढ गेलहुँ।

एखन ट्रेन खुजबा मे देरी छलैक, ताहि सँ हम अपन डिब्बा मे सँ उतैर सोचलहुँ जे एकटा ‘बर्फ’ (आइसक्रीम केँ ताहि समय हमरा लोकनि बर्फहि केर नाम दी) कीन ली। एकटा गुरकौआ डिब्बा मे बर्फ राखि बेचि रहल छल, ओकरा सँ बर्फ कीनलहुँ। ओकर दाम १ टाका छलैक, से पँच-टकही (५ रु) ओकरा देलियैक। मुदा ओ बर्फवला भीड़ मे कि बुझि हमरा ४९ टाका फिर्ता केलक। क्षण भरि लेल हम अकबका गेलहुँ, मुदा बाल मन बदमाशी सँ बेसी पाइ देखिते लोभा गेल आर बर्फक संग ओहि अतिरिक्त पाइ केँ हथियाबैत फूर्र सऽ भागि पुनः ट्रेन मे चढि गेलहुँ। आब बेटिकटी होयबाक पहिल दोषक संग हमरा मे दोसरो दोष प्रवेश पाबि चुकल छल। ओहि बर्फवलाक ४५ टाका फाजिल हमरा पास आबि गेल रहय। हमहुँ खूब चपचपायल रही जे चल आब तऽ मेला घूमय लेल खूब अहगर पाइ भेट गेल। लेकिन ‘दोष’ भाव मनुष्य केँ बहुत परेशान करैत छैक से हमरो ई दुनू दोष एक संग मोन केँ नंगचंग कय देने छल। तथापि ओहि दुनू दोष केँ पचेबाक हिम्मत सँ हम अपराध-पर-अपराध केने जा रहल छलहुँ।

अपराधक दुष्परिणाम लगले हाथ हमरा कि भेटल जे गामक मित्र (संङोरिया) सब सँ संग टूटि गेल। के कतय ट्रेन मे पैसल से हमरो नहि पता रहय। बस अपना केँ सुरक्षित करबा मे बुद्धि-पर-बुद्धि लगा रहल रही। कखनहु गेट पर आबी तऽ कखनहु ट्रेनक ट्वाइलेट मे पैसि जाय… पता नहि, कोन अन्जान भय हमरा एना नचा रहल छल। लेकिन आइ हम विश्वासक संग कहि सकैत छी जे ओ हमर अपनहि दोख छल जे एना पाप करबाक कारणे खराब फलक रूप मे हमरा भोगा रहल छल। कोहुना ट्रेन खुजि गेल आ झंझारपुर सँ करीब २-४ किलोमीटर बाहर निकैल गेल। ओ बर्फवला तऽ आब नहि पकड़त, मारि नहि खायब…. मुदा ट्रेन मे टिकट चेक करयवला कखनहु आबि सकैत छल ताहि डर सँ एखनहु बेहाल रही। मुदा ओ सब डर केँ तखन जीत गेलहुँ जखन जेना-तेना छटपट-छटपट करैत घोघरडीहा स्टेशन पर पहुँचि गेलहुँ। चकुवाइत चारूकात ओत्तहु बर्फवला आ टीटी सँ नजैर चोरबैत मानू कोहुना स्टेशन सँ भीड़क आर लैत निकैल गेलहुँ।

यज्ञ मे पहुँचलाक बाद मंडप केर त्रिपेक्षण करबाक जे बुद्धि छल ताहि दिन मे – ओहि कार्य केँ झटपट पूरा कएलाक बाद मेला मे घूमय लेल गेलहुँ। मुदा मनक भीतर ओ बर्फवला आ ओकर ४५ टाका फाजिल हड़ैप लेबाक दोषभाव हमरा एखनहुँ गला रहल छल। कि करू नहि करू…. भगवान् कि कहता… ई कतेक पैघ अधर्म भेल हमरा सऽ…. यज्ञ मे अयबाक सुकार्य एना कूकर्म मे परिणति तऽ नहि पाबि गेल…. आदि अनेक प्रश्न हमर बालमन केँ हिला रहल छल। किछु किनैत रही, फेर वापस कय दैत रही। मोन छटपटा रहल छल। कतहु मन स्थिर नहि भऽ सकल। केवल बर्फवला आ ओकर ४५ टाका फाजिल हमरा द्वारा जबरदस्ती पचेबाक अपराधबोध हमर मन केँ विचलित कय देने छल। मुदा ईहो निर्णय करबा सँ असमर्थ रही जे आखिर कोन तरहें ओहि फाजिल पाइ केँ ओहि बर्फवला केँ वापस कय दी… या फेर आन कोन बाट अपनायब जे ई दोषभाव दूर होयत। परेशान-परेशान – कहू जे पसीना सँ तर-बतर आ बेहाल रही। कतहु मोन नहि लागल… सीधे घूरि एलहुँ स्टेशन आ वापसी ट्रेनक इन्तजार करय लगलहुँ। कनिकबा काल मे निर्मली सँ ट्रेन चलि देबाक घोषणा भेल।

एहि बेर हम बिना टिकट यात्रा नहि करब… निर्णय लैते पहिले टिकट कीनल। कनेकाल मे ट्रेन सेहो आबि गेल। संयोगवश ट्रेन लेट सेहो भऽ गेल आ अन्हार सेहो भऽ गेल। आब जँ बर्फवला देखबो करत तऽ चिन्हत नहि…. ई भाव मोन मे आयल आर आस जागल जे आब फाजिल पाइ पचा लेबाक अपराध केर सजाय मे ‘मारि नहि खाएब’। कनेक हिम्मत बढल, तैयो छटपटी नहि गेल छल। टिकट छल ताहि सँ सीटे पर बैसिकय चलि रहल छलहुँ। झंझारपुर पहुँचैत ट्रेन ८ बजा देलक आर जतय साइकिल रखने रही ओतय गेलाक बाद ओ बन्द भेटल। लोक सब सँ पूछलियैक तऽ कहलक जे ओकर घर झंझारपुर सँ बाहर कोनो नजदीकक गाम मे छैक, ओ आब काल्हिये भेटत। फेर सँ आपसी स्टेशनहि पर कएलहुँ। मुदा राति बितेबाक छल। ताहि सँ स्थान ताकय लगलहुँ। एकटा डिब्बा कनी दूर एकदम किनार मे काटिकय राखल छल। कूली सब सँ पूछलियैक जे ओ डिब्बा ट्रेन मे जोडिकय जेतैक आ कि अहिना राखल रहतैक…. ओ कहलक जे राखल डिब्बा खराब छैक, ओ कतहु नहि जेतैक, ओहिना किनार मे राखल छैक।

हमरा सब सँ नीक वैह डिब्बा बुझायल रातिक विश्राम लेल। आब भूख सेहो लागि गेल छल। झंझारपुर स्टेशनक बगले मे मिथिला होटल मे ताहि समय ४ टाका मे माछ-भात खूब नीक जेकाँ खुअबैत छल। पहिने जा कय माछ-भात सेहो ग्रहण करैत छुधा केँ शान्त केलहुँ। बर्फवलाक डर आब मोन मे नहि छल। अपनहि भीतर खाली जे दोषभाव छल ओ कम नहि खा रहल छल भीतरे-भीतर मुदा। कोनाहू राति बिता लेब आ भोरे गाम जायब तऽ काका (पिता केँ काका कहि संबोधन करैत रही) केँ सब बात कहबैन, कारण निदान वैह टा ताकि सकैत छलाह। भोर-दुपहर-साँझ सदिखन माला जप करैत मात्र देवी-देवताक नाम सुमिरन करैथ आर जखन कोनो डर हुअय तऽ काका केँ कहियैन आर ओ माथा पर हाथ फेरि दैथ तऽ सब ठीक भऽ जाएत छल। से आब बालमन निर्णय कहि देने छल जे जल्दी सँ जल्दी पिताक सोझाँ जाय आर हुनका सँ माथा हाथ दियाबी। कल्याण तखनहि होयत। ओहि डिब्बा मे यैह सब सोचैत नितान्त असगर सुति रहलहुँ।

अचानक आधा राति मे सपना मे देखलहुँ जे बहुते रास उज्जर-उज्जर वस्त्र पहिरने बच्चा सब हमरा समीप आबिकय उठा रहल अछि, अपना संगे खेलाय वास्ते बजा रहल अछि। मुदा ओ बच्चा सब कोनो गाछी सँ बहरा रहल अछि, सारा तर सँ निकैल रहल अछि, बसबाइर सँ निकैल-निकैल लगातार आबि रहल अछि। ओ सबटा भूतहि-भूत छी। हमरा पर आक्रमण कय रहल अछि। ई सब अनुभूति सपना मे भऽ रहल छल आर हम डरे एकदम सिकुड़िकय आरो जोर सँ आँखि मुनिकय सुति रहल छी। नीन्द टूटल – बुझलियैक जे सपना रहल छलहुँ। मुदा यथार्थ सेहो भयावह छलैक। हम आखिर सूतल रही असगरे झंझारपुर जंक्शन केर कात-करोट ओहि काटल डिब्बा मे… कहीं सच्चे मे ओतय भूत-प्रेत आबियो तऽ नहि गेल अछि। आँखि मुननहिये पहिने हाथ सँ हल्का-हल्का हथोरिया मारि चेक कएलहुँ जे कियो अछि वा नहि। आँखि मुननहिये उठिकय बैसलहुँ आ अनठेकानिये ट्रेनक डिब्बा मे सँ बहरेबाक जुगत लगबैत सीधे गेट सँ बाहर आबि निछोहे भागय लगलहुँ। खसैत-पड़ैत भगैत-भगैत हम एक्के बेर जंक्शन पर आबिकय रुकलहुँ। ओतय बहुत लोक सब छल से कनेक डर भागल तैयो डरे ओहि डब्बा दिस नहि तकलहुँ। कारण कथा सब मे सुनने रही जे पाछू घूमिकय तकला सँ भूत-प्रेत जीह घीच लैत छैक।

आब कनीकाल प्लेटफार्म पर बैसलाक बाद जाड़ सेहो लागय लागल छल। बर्फवलाक डर तऽ आब एकदम्मे नहि बाँचल छल। आब जाड़ सँ कंपकंपी होमय लागल। कि करू, नहि करू…. सोचैत-सोचैत एक व्यक्ति खूब गतगर ओढना ओडिकय फोंफ काटि सुतल छल। पहिने ओकरे ओढना मे पैर घोसियेलहुँ… ओकर नींद नहि टूटलैक। सहटैत-सहटैत पूरे ओढना ओढिकय हमहुँ ओत्तहि सुति रहलहुँ। नींद बढियां भेल। भोरे ओ आदमी उठिकय हमरा ठेलैत कहि रहल छल जे देखू तऽ एहि छौंड़ाक सपरतीब… रे! के थिकेँ तूँ? सबटा ओढना हमर देह पर सँ खींचिकय सूति रहल ई दिदगर छौंड़ा!… हम ओकर बात सुनितो नीन टूटियो गेला पर बस ओंघराइत निनाले ओकर ओछाइन पर सँ साइड भऽ गेलहुँ। कनीकाल मे जखन ओ सब समेटिकय चलि गेल तखन हमहुँ उठलहुँ आर आब फरीच्छ से भऽ गेल रहैक तैँ ओतय सँ हमहुँ अपन साइकिल रखलहबा स्थान पर जाय प्रतीक्षा करय लगलहुँ।

पुनः साइकिल लय अपन गाम आबि नित्यकर्म कय ‘काका’ सँ सब बात जहिनाक तहिना सुनेलहुँ। काका हँसैत-हँसैत माथ पर हाथ दैत कहलनि, “भूत-प्रेत नहि छलौक। ई अपनहि पापक भाव लोक केर दुश्मन बनिकय ओकरा पाछू पड़ि जाएत छैक। आब सीख ले! आइ सँ कहियो केकरो एको पाइ नहि छूबिहें। ओहि बर्फवलाक अन्जानिये मे भेल गलती केँ तूँ सही कय धर्म सेहो कमा सकैत छलें। मुदा तूँ अपने पापक बाट केँ पसिन केलें। तोरा एकरे सजाय भेटलहु। आब आइ सँ दोबारा एहेन पाप नहि करिहें।” काका केर ई शिक्षा आइ धरि ओहिना स्मृति मे बनल अछि। आर पुनः कोनो दोषभाव मनक भीतर प्रवेश पबिते जखन छटपटाहट होमय लगैत अछि तऽ तुरन्त पिता केँ सुमिरन करैत हुनकहि देल मंत्र केर अवलम्बन करैत निजात पबैत छी।

हरिः हरः!!