ब्लैकमेलर मैथिल सँ सावधान

pnc with messageदीपकजी!
 
अहाँक समाद पूरा पढल। ओहि ब्लाग पेज पर अपन जबाब पहिनहि दय चुकल छी। अहाँक प्रस्ताव जे हम अहींक कहलहबा बात जे ई सब एक महान् स्रष्टाक चेला थीक आ तैँ स्रष्टा मे दोष जेकर हम पहिनहि प्रतिकार कएने रही से आइयो बरकरार मानब। गुरु कदापि दोषी नहि होएत छथिन। ओ तऽ पूज्य देवता होएत छथि। ओ अपन नीक ज्ञान सँ शिष्य केँ शिष्टाचार आ सदाचार टा सिखबैत छथि। नंगटइ आ मुंहदुस्साक कार्य अपन-अपन निजी प्रकृति ओ संस्कार होएत छैक। कहलौं न! जँ कियो एक्कहि बापक बेटा होयत तऽ अपन आरोप सिद्ध करत, नहि, त चामक मुंह जे मन हेतैक से बाजत। फेसबुक या ब्लाग पेज पर जतय कतहु परोक्ष मे रहैत किछु लिखत। ओकर अपन बौद्धिक क्षमता आ अपन निजी संस्कार सँ जाहि तरहक छवि हमरा प्रति बनतैक ओ सय्ह टा लिखत। एहि मे भ्रमित होयबाक कोनो गुंजाइश हम नहि देखैत छी।
 
आर, एखन ओतेक मजा नहि आयल जतेक किछु दिवसक बाद मे आओत। इन्तजार करू! हमर इज्जत आ शोहरत सब बातक चिन्ता हम अपनहि कय सकैत छी। आर, अनावश्यक चिन्ता जखन हम नहि करैत छी तऽ अहाँ कियैक करब। ठीक न दीपक जी!! 😉 आगू-आगू देखैत चलू!!
 
एकटा बात धरि ध्यान राखब – ब्लैकमेलर टाइप मैथिल केँ हम जूताक नोक पर सदैव रखलहुँ। ई चोर प्रवृत्ति पहिने अहाँ सँ किछु माँगत। जँ सहज रूपें दय देबैक तऽ अहाँ बड़का बाबु भेलहुँ। जँ नहि देबैक तऽ ओकरा नजरि सँ तऽ खसबे करब, ओकर वश चलत तऽ अहाँ केँ समाज मे सेहो तेनाकय नीचाँ खसायत जे फेर उठबाक लेल दम-दुस्सा चाही।
 
दिल्लीक दिलवाली भूमि केर चर्चा हम निरंतर अपन प्रोफाइल स्टेटस सँ करैत आबि रहल छी। नहियो किछु तऽ १०० सँ ऊपर बेर एहेन कतेको मनुखक विषय मे जानकारी कराओल अछि। आर, कतेको लोकक प्रशंसा सेहो कएल अछि। दूधक दूध आ पानिक पानि लिखबाक निर्भीक आदति सँ लोक जहिना प्रशंसित होइत छैक, तहिना विवादित सेहो होइत छैक। ई सार्वभौम सत्य थिकैक। तुलसीदास सेहो परम सत्ताक परिभाषा दैत लिखलनि जे ई संसार नीक आ बेजा दुनू सँ भरल अछि, निर्भर हमरा-अहाँ पर करैत अछि जे कि लेब, ई वा ओ। तऽ जेकर प्रशंसा करू ओ सब पाइवाला बनि जाएछ ओकर नजरि मे जेकर ब्लैकमेलिंग प्रवृत्ति आ दाकियानूसी-झाड़फानूसीक अहाँ विरोध केने होइ वा ओकरा नजरंदाज केने होइ। ई सहजहि बुझय योग्य छैक।
 
किछु लोक मे आइयो भ्रम बड पैघ देखैत छी। हुनका भ्रम ई छन्हि जे भाइ ई प्रवीण नारायण एतेक खर्च कतय सँ करैत अछि। कियो कहता जे चन्दा उगाही करैत अछि। कियो कहता जे सब बड़का लोक केँ गसियाकय धेने अछि। जिनका जे मोन होएत छन्हि ओ से बजैत छथि। हमरा मुस्की छूटैत अछि। भगबती सिया केँ देखैत छी – पाहुन राम संग बैसल आ ओ मुस्की एकाकार बनि जाएत अछि। दुनू प्राणी हँसैत छथि। बगलहि मे हरिक संग हर बैसल – साक्षात् अन्नपूर्णा गौरी पौती मे सेनुर आ फूल सहित – हिनकर रूपक बखान हम कि करू। ई जहिना गौरी केँ कहैत छथिन जे ‘आहे तोंहे गौरा जइबऽ पराय तऽ नाच के देखत हे!!’ – बस तहिना हमरो बुझाएत अछि। भंगिया थिका! बौरहबा सेहो लोक कहैत छन्हि। मुदा औढरदानी सेहो यैह थिकाह। स्वयं सीता ओ राम केँ हृदय मे धारण कएनिहार देवाधिदेव महादेव मैथिली लेल सदैव ढरल रहैत छथि। ओहिना ओ विद्यापतिक चाकर ‘उगना’ नहि बनि गेल छलाह। अवस्स कोनो रहस्य छैक। आ विद्यापति केँ एकर घमंड नहि भेलनि कहियो…. आइ धरि हम एको टा रचना वा विचार वा श्रुति एहेन नहि सुनलहुँ जे स्वयं विद्यापति केँ कहियो एहि बातक गलत भान मोन मे कदापि बैसलनि। ओ तऽ कहिते रहलाहः
 
“आहे ओहो थिका त्रिभुवननाथ दया केर सागर हे”
 
कविमन गौरा केँ “आहे पीसू गौरा भांग-धथूर कि भोला के मनाबहु हे” कहिकय प्रसन्न कय लैत छथि। तऽ फेर प्रवीणमन सेहो समर्पण केर भाव मे सदैव डूबल रहि अपन काज जोगर अर्थ जुटा लैत अछि।
 
हालहि काशी मे बीएचयू केर प्रो. यू. के. चौधरी बड गंभीर बनि पूछलाह… जे ई खर्च-बर्च कतय सँ पार लगैत अछि। हमरा हँसी लागि गेल, कहलियैन – “श्रीमान्! जेकरा वास्ते स्वयं भोलाक खजानाक दरबज्जा खूजल हो ओकरा लेल ई छोट-मोट खर्चक कोन प्रश्न!” ओ ‘जय भोलेनाथ – जय भोलेनाथ” कहैत आह्लादित होएत पीठे टा नहि ठोकलनि बल्कि गंगा परियोजना केर संचालक सेहो प्रो. चौधरी अपनो सहयोग करबाक वचन देलनि। मुदा अहाँ आश्वस्त रहू! हम जहिना आइ धरि किनको सँ एक पाइ नहि याचना कएल, तहिना आगुओ नहि करब। ई हमर कठोर संकल्प आ प्रण अछि। तखन अपने जिनका किनको विवेक होएत छन्हि ओ एहि पवित्र यज्ञ मे स्वयं अपन अंशदान करैत पुण्यक भागी बनैत छथि। एहि मे कतहु दुइ मत नहि। यैह तऽ बाबा केर खजाना थीक। ताहि पर प्रवीण केँ पूर्ण अधिकार अछि। बाबाक एहि दुलार केँ हम के होएत छी काटनिहार? बाबाक माया आ स्नेह सदैव बनल रहय। मैथिली प्रति सेवाक भाव सेहो बनल रहय।
 
हरिः हरः!!