डा. चन्द्रमणि झा, २७ फरबरी, २०१६. मैथिली नवकबेर रचनाकार सब सँः
मैथिल नवकबेर रचनाकारलोकनि सँ !
नव पीढ़ीक मैथिली कवि-लेखक लोकनि आह्लादित करैत छथि। जौं ई लोकनि अपन शिक्षाक प्रति एहिना साकांक्ष होथि तs नीक बात। नहि तs हमर बात पर कान देथि। नवसिखुओ सन लिखनिहार नीक पदधारक छथि तs हुनका व्यापक रचनाकार मानल जाइछ। कोनो बेरोजगार निस्सन लिखनिहार केँ निठल्ला / उदर भरणार्थ रचनाकार मानल जाइछ। मैथिली साहित्य मे गोलैसी और आत्मप्रवंचनाक वर्चस्व अछि। अपनहि मे एक-दोसराक वाह-वाह कय तृप्त होनिहार रचनाकार आत्मप्रवंचीक कमी नहि बरु जनताक माथा मे हुनक रचना घुसनि की नहि। हम मैथिलीक नवकबेर रचनाकारलोकनि सँ कहबनि जे अपना कैरियर के प्रति साकांक्ष रहथि। अपन भविष्य सेहो देखथि।
डा. चन्द्रमणि झा द्वारा आइ मैथिल समाजसेवी ग्रुप परः
बहिन आ’ भायलोकनि !
हम कतोक बेर मुखपोथीक बंधु-बांधवीलोकनिकेँ साकंक्ष करबाक प्रयास कैलहुँ अछि। दिल्ली-मुंबइ मे बहुतो युवक मैथिली गीत लिखैत छथि। एकरा बेचिकs अपन आजीविका चलबैत छथि। ई नीक बात अछि। जे भाषा रोजी-रोटी देत ओ कहियो नहि मरत मुदा, एहि पीढ़ी सँ आग्रह करबनि जे ओ मैथिली साहित्यिक गतिविधिक जानकारी राखथि। मात्र तुकबंदी सं अहाँक काज तs चलत मुदा, मैथिलीक लाभ कम हैत।
परसू आ’ काल्हि क्रमशः पत्रकार राहुल राय आ’ कौशलजी फोन कय पुछलनि श्रीमान् “लाले-लाले अरहुल के माला बनेलौंं गरदनि लगा लिअs मा” आ’ “मंगलमय दिन आजु हे पाहुन छथि आयल” ई अपनेक रचना छी कि फल्लाँ के। माथा झन्ना गेल। हम जैह लिखैत होइ, हमर रचना मौलिक होइछ।हमरा आइधरि टेबुल पर बैसिकs किछु लिखबाक सौभाग्य नहि भेल अछि।
तमुरियाक मंच पर हरिनाथझा कहलनि, हम ग्रीन रूम मे बैसिकs “हे गे बुधनी माय एगो बीड़ी दीहें गे” गीत लिख देलियनि। गायक विजय सिंह के ओहिठाम रिकॉर्डिग भs रहल छल हम “चलहीं बुच्ची गाम पर चढ़लेँ कियै लताम” पर लिखिकs कमी पूरा कs देलियनि। कोशीक कछेर मे एगो दरबज्जा पर सुनील पवन गीत मंगलनि। हम “छोड़ू ने पहुना भोर भेलै” ओतहि लिखि देलियनि। एकटा कार्यक्रम मे कृष्णानंदजी गज़ल लिखबाक लेल कहलनि हम “केओ घात करय खंजर चलाकs ओ घात करथि नैना घुमाकs” लिखिकs दs देलियनि।
आदरनीय विभूति आनंदजीक गामक दरबज्जा पर बैसिकs हिनका सोझें मे एकटा गीत “सोनक कटोरा मे घोरल सेनुर सन उगलै सुरुज भोरे भोर” लिखिकs गौने रही जे हिनका बहुत नीक लागल रहनि। अशोक बाबूक अभिभावकत्व मे चलैत मिथिला विकास परिषद्, कोलकाताक मंच पर एहि गीतक समूह गान बीस बरख सं भए रहल अछि। ओ गीत थिक “भोरे-भोरे मचि गेलै फगुआ क्षितिज पर रतुका तिमिर उड़ियेलै जी, हायेजी, उठ उठ भइया हो सुरुज पुरुब मे ललका किरिन नेने अयलैजी” जे एहि मंचक ग्रीनरूम मे लिखने रही ।
हँसी मजाक मे लिखल हमर गीत “खो रे मंगला पड़ल रह / बरहम बाबा हमरो करा दै वियाह/ दाइ गे बड़ अजगुत खाइत देखलौं पुलवाड़ी मे” आ’ “आब कहू मोन केहन करैये” 80क दशक मे धमाल मचौने छल। कतेक लोक पैरोडी लिखलनि। हँ, स्वीकार करब जे “पिया डाँरहि पर घैला भसकि गेलै ना” हम दरभंगा समाहर्त्ता महोदय के कन्फरेंस रूम मे बैसिकs टेबुल पर लिखने रही। मुहर्रमक अवकाश छल आ’ हम कंट्रोल रूम मे ड्यूटी पर रही अन्यथा, कतहु कुर्सी जमाकs गीत लिखबाक सौभाग्य नहि भेल हमरा ।
समय गीरिकs ई स्पष्टीकरण एहि लेल देलौं जे हमरा गीतक तुलना रवींद्रजी, सियाराम झा सरसजी, जगदीशचंद्र ठाकुर अनिलजी सँ करब तs हम अपन सौभाग्य बूझब मुदा, तुकबंदी कैनिहार, दोसराक गीत सभक पाँखि नोंचि अपन गीतक पाँखि बनौनिहार गीतकार सबसँ तुलना कय हमरा जीबिते नहि मारू। बहुत दुःख होइये। हम बहुत नीक छात्र रही। माय मैथिली के तकै मे जुआनी खपि गेल। घंट मे प्राण बचल अछि से छोड़ि दी प्लीज।