विचार आलेख
– ओम प्रकाश महतो ‘वैद्य’, दरभंगा
कोयलीक क्रूरता
मधुमास बसंतक उषा काल मे वन-उपवन मे घूमबाक मजे किछ आर छैक, ताहु मे जँ कोयलीक कू-कू कान मे सुनाय दियऽ तखन तऽ सहजहि मन मयूर नाचय लागैत अछि । बालपनक ओ सुर मे सुर मिला कू-कू करब, पतझड़क बाद नव पल्लवित गाछ-वृक्षक डाढि-पात मे कोयली केँ तकबाक लेल स्वतः नजरि दौड़य लागैत अछि ।
जँ बसंत सब मौसमक राजा कहबैत अछि तऽ कोयलीक स्वर ओकर श्रृंगार थिकैक । एक तऽ बसंत प्रस्थानक बाद पुनः अगिला बरख बसंतक आगमने पर कू-कू सूनाइत अछि, सेहो कखनो-कखनो शायदे-संयोग । मोन कहैत अछि जे भगवान् एहेन कर्णप्रिय स्वर तऽ सदिखन गुंजायमान कियैक नञि राखने छथिन्ह ? कियैक ने ओकर वंशवृद्धि एतेक छैक जे सदिखन अनघोल करैत रहैय ई ?
मुदा वंशवृद्धि केर ध्यान अबितहि सँ कोयलीक वंशवृद्धि प्रक्रियाक कल्पना होमय लागल, आर, सहानुभूति घृणा मे परिवर्तित होमय लागल। कल्पना मे ओकर अण्डा देबाक क्षणक दृश्य आँखिक मार्ग सँ मोन मे उतरय लागल । सोचय लगलौंह, “आह ! मिसरी सन बोलीवाली केहेन स्वार्थी अछि ! एक त’ अपना खोंता बनबैक लूरि नञि छैक जे कौआक खोंता में अण्डा दैत अछि, ताहू पर ओकर क्रूरता केहेन तऽ कौआक अण्डा केँ चाङ्गूर सँ नीचां गीराकय फोरि दैत अछि । अपना वंशक वृद्धिक धून कतेक निष्ठूर बना देने छैक सर्वजन प्रिय चिक्कन-चूनमून कोयली केँ । अनजान कौआ ओकर देल अण्डा केँ अपनहि अण्डा बुझि जतन सँ सेबैत अछि, जखन ओहि सँ बच्चा बहराइत छैक, तेकरा ओ अपन बुझि दूर-दूर सँ अपन पेट काटि घोघ मे दाना लाबि ओहि बच्चा केँ पोसैत अछि। पैघ भेला पर रुप-रंग आ बोली भाषा सँ जखन ज्ञात होइत छैक जे ओ हमर बच्चा नञि अछि तहन कौआ माथ-कपार पीटय लागैत अछि आ झांटि-मारिकय ओहि कोयलीक बच्चा सबकेँ अपन खोंता सँ दूर बैलबैत अछि ।”
जो रे मक्कार कोयली ! तोहर माधुरी वाणीक प्रशंसा मे जतय कतेको कविक कलम धन्य-धन्य भेल अछि, ओतय तोहर वंशवृद्धिक प्रक्रियाक विभत्सता केँ की कहियौक से नञि फूराइत अछि ! ई प्रसंग आइ विश्व मातृभाषा दिवस पर खास तौर पर अपनहि किछु भाषाभाषी केर कोयली समान वंशवृद्धि करबाक प्रकृति पर मोन पड़ि गेल अछि । वाणी आ चाइल एतेक मधुर जे केकरो पता नहि चलि सकैत अछि जे संस्थारूपी वंशवृद्धि मे कतहु न कतहु कूचाइल पैसल अछि, आर ओहिना जेना कोयली अपन खोंता तक नहि बना पबैछ, कौआक खोंता मे जाकय अंडा छोड़ि ओकरे सँ पोसबबैत अछि आर… जेना ऊपर कहने छी । तखन कोयलीक मधुर वाणी समान संस्थाक बनब नहि जानि कतेक दूरगामी भऽ सकत ।