प्रकृति
– प्रवीण नारायण चौधरी
हरियर पत्ता सब तैर छायल
फरतय फेरो फर नव नव
बसन्त ई नवका सनेश लायल।
गोल गोल ओ चक्कर काटय
जन्म मृत्यु केर बीच सदा ई
जीवन सदिखन दिवस बिताबय।
कते बदनियत नेत ई नेक
नहि भरोस निस्तुकी केकरो
चाइल प्रकृति नीति कनेक।
ई लोक गोल ओ लोक गोल
झँझटि फसाद मतभेद गोल
मूल्य समर्थन सब संग गोल।
फर आ आँठी चुसिते रहु
जतेक फुराए फुरिते रहु
प्रकृति प्रेम मे उड़िते रहु।
ओहि लोक सँ ओहि वेद सँ
प्रवीण कर्म निरपेक्ष सँ
मैथिली आ मिथिला प्रत्येक सँ।
हरिः हरः!!