(भाग १)
– प्रवीण नारायण चौधरी
“सुने रे मंगना, सुन रे ढोलना… सुनय जो – सुनय जो!!” नगबा हल्ला करैत – जोर-जोर सँ चिचियैत मुशहरी मे सब केँ जगबैत कहय लागल। लोक सब ओकर आवाज सुनि-सुनि एहि कनकनीवला जाड़मे सुजनी तर सँ निकैल गाँती बन्हने, कियो-कियो सुजनी-केथरी देहे पर धेने आबि गेल चौपाड़ि पर… पूछय लागल, “कि भेलौक नागे? कियैक एना भोरहरिये मे सबकेँ हाक दय रहल छेँ?”
नगबा बाजल, “तोरा आर केँ पहिने सँ कहैत आबि रहल छियौक जे एबरी होरीपर गाम के सभा मे फेन फूले बाबु अपने मोने सबटा काज करतउ, पोरके साल जेकाँ हमरा बेइज्जत करैत अपने खाली आगू-आगू रहतौ। याद छउ ने, हमर एको टा फोटुओ नहि खिचय देने रहउ से?”
मंगना, ढोलना, फेकना, दूधा, करिया आ भकोल सब नगबाक बात सुनिकय हँसय लागल। कहलक, “सार! तऽ एतबी बात लागि एतना भोरे हल्ला करे के कोन काज रहउ?”
नगबा कहलक, “हल्ला? सार! तोरा आर के हल्ला बुझाय हउ? हमरा निन्न मारल गेल अय आ तोरा हल्ला बुझाय हउ?”
भकोल कहलक, “आर जो न? बड़का लोक सब संगे हुले-ले-हुले-ले करय लेल! जखन हमे मुशहरी गाम सभा के निर्माण केली तब तोंही न टोल के बात काटिके फूले बाबु संग गेल रहें फोटु खिचाबे?”
नगबा कनेक लजाएत बाजल, “देख भकोल! हम तऽ गेले रही ओकरा आर के अपन महत्व बुझाबय? खाली मुशहरी गाम सभा मे अखबार मे समाचार छपतौ? ओकरा आर के नामे ऐसन हइ जे पेपरवला नाम छापय हइ। तही लागि गेल रही। पहिले बेर १८८ गो फोटु मे हमे १६८ गो फोटु के फेस रहली। बिसैर गेलें?”
करिया चट दिना नगबा केँ टोकलक, “सार! तब दोसर बेर जब काजक्रम भेलउ तब तोरा किया ने सटय देलकउ?”
नगबा जबाब दैत हकारलक करिया केँ, “रे करिया! सार! तोंहे झूठ बजमे? तोरे खातिर हम ओकर एकोटा मिटींग मे नञ गेली – ट्राइ करली जे बिना गेलो हमे मिथिला के जनजाति बुझइ हइ ई बड़का लोक कि नञ से देखे लागि। भूल गेलें?”
कनीकाल नगबा, भकोलबा, करिया सब केँ आपस मे घमर्थन करैत देखि बुढ-बुजुर्ग भोला सदा बाजल, “देख! हम तऽ बच्चे सऽ कविता सब सेहो लिखलहुँ आ हमर कविता बिना आइ धरि एकोटा काजक्रम अपना आर के गाम मे कभियो नहि भेलउ। तबो एक बात हम कभियो ना बिसरली जे ऊ सब बड़का हइ आ हमे छोटका। ऊपरे-ऊपर मिल के रहली, भितरे-भीतर अपन ओकादि मे रहली। लेकिन आब ई नगबा कहइ हउ तब त कुछ करहे पड़तौ। पैछला बरिस हमहुँ तोरे आर के खातिर मिटींग मा ना गेली, तब हमरे हाथ से केकरो पागो-माला पहिराबय फूले बाबु आर नञ बजेलकउ। हमें आ नगबा ओही दिन सोच लेली जे एबरी एक काजक्रम मुशहरिये पर करम। बोल कि विचार हउ?”
सब कियो भोला सदा सँ पूछलक जे तोरा तऽ बहुते अनुभव छह, तोंही बाजह जे अलग काजक्रम केला सँ कोना पार लगतह? काजक्रम मे कते खरच होतऽ। भोला सदा हिसाब जोड़िकय बाजल जे, “कि खरच? हमरे खातिर सब गामो मे काज शुरु भेलउ। हमें जब अलग करबउ तब सब हमरे पास एतउ। आ, नञ एतउ तब तोंहे आर कोन काम के छिहीन? सार के गामवला काजक्रम भी ध्वस्त करना हइ। न एम्हर – न ओम्हर!”
फरिच्छ भऽ गेल छल। बभनटोली पर सँ सेहो गृहत सब पर-पैखाना दिशि जेबा लेल लोटा लेने बेलाही पोखैर दिशि जेबा लेल मुशहरिये पर देने आयब-जायब शुरु कए देने छल। रस्ताकाते थानगाछक तर मे खुसुर-फुसुर सुनिकय चुआलाल आ गिरधरिया जे मुशहरी गाम सभाक सदस्य सेहो छल ओ दुनू सहैटकय बात बुझय लेल नगबाक नजदीक पहुँचि पूछलक। नगबा भोला सदा केँ इशारा केलक जे तोंही कहक एकरो सब के। एबरी मुशहरी गाम सभा से नञ हमे आर भी पूरे गाम के साथ काजक्रम करब। चुआलाल आ गिरधरिया फूले बाबु सबहक एन्टी पाटी केँ हमरा सब के साथ जोड़य के काज करतइ। फेन भोला सदा सब केँ योजना बतेलक आ कनीकाल मे सब एहि बात लेल राजी भऽ गेल जे एहि बेर गाम मे होरी उत्सव दुइ ठाम होयत।
गामक मूल उत्सवक समाचार पेपर मे छैप गेल छल। – ई बात मोन पारैत भोला सदा सँ नगवा पूछलक जे अपने आर के समाचार मे कि सब छपाना हइ से बोलह। भोला सदा एकरा लागि करिया केँ अधिकार दैत कहलक जे पत्रकार सबकेँ तोंही सम्हार। ततबा मे दूधा केँ नहि रहल गेल तऽ ओ बाजि उठल जे करिया केँ चिन्हते के अछि जे भोला काका तू ओकरा पत्रकार सब केँ सम्हारय के बात केलह? करिया केँ दूधाक ई बात अनसोहांत लागल। ओ फानिकय बाजल, “रे दूधा! सार जहिना तोहर नाम हउ दूधा – सार तूँ आइ धरि दूधपिबे नाहति रहि गेलें? रे! तोरा नञ पता हउ जे अभी अपना मुशहरी के लागि ‘मूस मास न्युज’ चैनल काज करय हइ? सार ओकर मालिके हमर मुट्ठी मे हइ।” दूधा तइ पर तरैंगकय बाजल, “सब दिन भगत सिंह नाहैत क्रान्ति केली हमे आ मालिक तोहर मुट्ठी मे आबि गेलउ?” करिया ओकरा एक ठुनका मारैत बाजल, “तोरा तऽ भगत सिंह हमे बनेलियउ तब ना रे? आब तोरा कोइ पुछितो हउ? आब मुशहर गाम सभा के संस्थापक हमे छी – तोरा नाम के अध्यक्ष बनेने छियउ। पाइ हमर आ कमाल तोहर रे सार?” दूधा बेचारा दूबर-पातर लोक, ठुनकाक जबाब ठुनैककय दैत करिया केँ ‘देखा देबउ! देखा देबउ!!’ कहैत ओतय सँ अपन सुजनी-तुजनी ओढनहिये अपना अंगना दिशि चैल गेल।
माहौल मे करिया आ दूधाक आपसी झंझैट सँ कनेक तनाव आबि गेल। नगबा बाजल, आब आइ जाय जाह। एखन होरी उत्सवक एक महीना छइ। आयोजन केर प्रारूप पर ऐगला हप्ता तक हम आ भोला भैया सब तैयारी कय केँ तोरा सब केँ बतेबह। एखन पेपर मे देबाक जरुरत नहि। खाली एतबी कहइ जाहक जे हम सब अलगे उत्सव मनायब। भोला भैया हमरा सबहक संग देत। हमहीं सब ओरिजिनल आ बाकी सब डुप्लीकेट। फूले बाबु फूल सनक लोक अपने डरा कय साइड भऽ जेता। चुआलाल आ गिरधरिया सेहो बाजल जे नगबा ठीक कहि रहल अछि। अन्त मे नहि हेतैक तऽ लाठी लऽ के ढूइस लड़य पहुँचि जायब ओहि सभा मे।
हरिः हरः!!