
मैथिल जागू-जागू !

– डा. चन्द्रमणि झा
अहाँक सुग्गा शास्त्र पढ़ैये
बटुक पढ़ैये वेद
तइयो सिर पर बैसिकs कागा
सिखबय जाति-विभेद
मैथिल जागू-जागू,
अपन मिथिला ले’ जागू।।
भुसकौलहा बुधियार भेल अछि
तेजगरहा भुसकौल
मैथिल कोना मंद भेल छथि
दुनियाँ करय मखौल
ज्ञानभूमि पर ज्ञान सिखाबय
ओहि पार के ज्ञानी
अपन दुर्दशा दिखि होइये
ठोहि पारिकs कानी
मिथिला के अस्तित्व बचाबू
आबहु निद्रा त्यागू।। मैथिल जागू-जागू, अपन….
अपनहि मे ईर्ष्या करैत छी
भs गेल लक्ष्य बेकाबू
टाँग-घिचौअलि मे लागल छी
कोनाकs बढ़बै आगू
पर निंदा मे समय गमाबी
कतरव्योंत मे लागल
अपन राज्य के सपना देखी
समय जा रहल भागल
डेग सँ डेग मिला चलियौ
नक्शा भूगोल उतारू।। मैथिल जागू-जागू, अपन….
मिथिला सन नहि धाम धरा पर
से लागल अछि भरना
एक सँ एक पुरोधा अइठाँ
राज करैये अदना
ब्रह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र
सबहक छी अप्पन मिथिला
कुकुर-कटौंझक कारण भेलै
दिन-दिन मिथिला शिथिला
शंखनाद सँ एक ‘चंद्रमणि’
मिथिला-राज बनाबू।।मैथिल जागू-जागू,अपन मिथिला ले जागू।