मैथिली कथाः प्लेग
– कर्ण संजय
सुगना मुसहरकेँ दश दिनसँ लागल जड़–बोखार उतरबाक नामे नहि ल’ रहल छै । आब तऽ मूँह पेट सेहो चलए लागलैए । ओकर माए–बाप गंंगिया आ पल्टनमा जतेक जानै ततेक ओझा-धामीकेँ देखौलक मुदा बेमारी एक दिशि आ पथ्य–पानि एक दिशि । आइ पल्टना बडका गहबरसँ परोपट्टाक सबसँ पैघ भगताकेँ अनलक अछि । खूब जोर सोरसँ बैठकी भेल छलै, खूब झालि मृदंग बाजल । लड्डू पान सुपारी आ चीलमक धुँवासँ गहबर भरि गेल छलै । भगता बडका देवी लगबाक बात कहलक जे सोलहे बरिसमे कुमारि मुइल रहै । ई बात सुनि गंगिया सिहरि उठल । कतेक कबूला पातीक बाद भेल रहै एकटा बेटा सेहो … सोचि करेज ओकर थरथरा गेलै ।
गंगियाक अनुरोध पर पल्टनमा मुसहर सुगनाकेँ शहरक अस्पतालमे लए जाए बास्ते तैगार भेल रहै । मुदा पाइ–कौडीक बन्दोवस्त कोना हएत ? से गंगिया अपन आध–सेरक हँसुली खोइछमे धए लेलक । खाटके बाँसमे बान्हि, तरमे एकटा गदली आ उपरसँ दुटा गदली ओढा चारि गोटेसँ विदा भेल । पाछापाछा गंगिया खोइछमे हँसुली झपने सेहो दुलकी दएत विदा भेलीह । कए बरिसधरि खेते–खरिहाने लोढा–बिछा कए हँसुली गढौने छलै से वएह कि दैवे जानैत छल । मुदा बेटा बाँचल तऽ फेर कतेक हँसुली बनि जाएत, भरोस दैत आँचरसँ नोर पोछैत अस्पताल दिश दौड रहल छल ।
एतेक कालमे ओ सब किओ शहरक सिमानमे प्रवेश कए चुकल छलै । आइ पल्टनमा केँ शहरक रुप–रंग किछु आने तरहक लागि रहल छै । पहिले ओ कतेक बेर बेमारी–हेमारी, मर–मोकदमाक गवाही बनि शहर आएल छल मुदा ओ एहन दृश्य कहियो नहि देखने रहै । सब किओ अपन नाक–मूँह झँपने टोका–टाकीमे हिचकिचाइत । ओ सोचलक जरुर किछु बिचला शहरमे मुइल छै जेकर दुर्गन्धसँ बचबाक लेल लोकसब नाक मूँह झँपने अछि । अस्पताल लग अबिते सब शंका निर्मूल भ’ गेलै । नहि कोनो दुर्गन्ध आ नहि कोनो सडल मुर्दा । उत्सुकतावस ओ पुछि बैसल “औ श्रीमान् कि भेल छै , जे सब लोक नाकमे जाबि लगेने अछि”। प्लेग फैलबाक बात कहि ओ मनुष ससरि गेल । प्लेग कि होइ छै से बिन बुझने, ओ चुपचाप तमाशा देख लागल ।
ताबत धरि सुगना लग सेहो लोक सब पहुच गेल । खटियापरसँ उतारि ईमरजेन्सी कोठली दिशि दौडल । मुदा नहि कोनो डाक्टर आ नहि कतौ नर्स, बस बेमारिए बेमारी । तीन दिन धरि सुगना बेइलाजे परल रहल । गंगियाके खुँटमे हँसुली बेचलाहा पाई बन्हले रहि गेलै । चारि दिनक बाद सुगनाके प्राण छुटि गेलै त’ अस्पतालके सूचना पटपर प्रकाशित भेलै ।
“शहरक पहिल प्लेग रोगिक मृत्यु”
०८।०२।१९९२