हम भारतक बेटी – बेटा एना बनि सकैत छीः लेखिका रितु झा

मिथिलाक बेटीक जीवन स्तर मे सुधार लेल लेखिका रितु झा केर सराहनीय विचार मैथिली जिन्दाबाद पर

अधिकारः बेटीवर्ग केर उन्नतिक आधार

– रितु झा, लेखिका/आकाशवाणी उद्घोषिका, जमशेदपुर

मिथिलाक बेटीक जीवन स्तर मे सुधार लेल लेखिका रितु झा केर सराहनीय विचार मैथिली जिन्दाबाद पर
मिथिलाक बेटीक जीवन स्तर मे सुधार लेल लेखिका रितु झा केर सराहनीय विचार मैथिली जिन्दाबाद पर

आनंदपूर्वक आर सुखमय जीवन जियबाक लेल प्रत्येक व्यक्ति केँ किछु स्वतन्त्रता तथा अधिकार केर आवश्यकता होइछ। अधिकार – जेकर अर्थ हम कहि सकैत छी, व्यक्ति केँ ओकर हितक हेतु देल गेल स्वाधीनता या फेर एहेन सुविधा जेकरा द्वारा ओ अपन व्यक्तित्व केर सर्वांगीण विकास करैत अपन जीवन केँ सुखी बना सकय।

अधिकार हमरा लोकनिक सामाजिक जीवन केर अनिवार्य आवश्यकता थीक, जेकर बिना व्यक्ति अपन व्यक्तित्वक विकास नहि कय सकैछ आर नहिये समाजक हितक हेतु कोनो उपयोगी सिद्ध भऽ सकैछ। ताहि लेल अधिकार केर अभाव मे मानव जीवनक अस्तित्व आर प्रगतिक कल्पना नहि कैल जा सकैछ।

कोनो देशक आत्मा, जेकर कोनो इतिहास अछि, ओकर भाव-भाषा ओतुका महिला समाज केर विकास, प्रगति, समृद्धि अपने आप परिचय दैत अछि।

राति बितला पर दिन – अन्हारक बाद प्रकाश अबैत अछि, जाहि काल मे अवनति केर स्थिति छल – ओतय आब उन्नतिक शिखर पर समय पहुँचि गेल अछि। समाज मे नव चेतना आबय लागल अछि आर नारी शिक्षा जतय नगण्य छल ओतहु आरम्भ भऽ चुकल अछि।

बेटीवर्ग माँ-बाप प्रति बेसी संवेदनशील होएत अछि। माँ-बाप सेहो बेटी प्रति स्नेह बढेलनि अछि। बेटा पढत तऽ एकटा घर केँ पढायत, बेटी पढत तऽ दुनू घर केँ खुशियाली आनत।

वर्तमान मे कोनो एहेन कार्यालय नहि अछि जतय लड़की (बेटी) अपन कार्यक्षमताक परिचय नहि दय रहल हो। ई सब होइतो भारतीय समाज मे किछु एहेन लोक अछि जे लड़कीक तूलना मे लड़का केँ प्राथमिकता दैत अछि। ओकर पालन-पोषण आर शिकषाक विशेष प्रबंध करैत अछि, लड़कीक विकासोन्मुखी प्रतिभाक उपेक्षा करैत अछि। ई एकटा अनुचित आर पक्षपातपूर्ण व्यवहार थीक, जे गलत अछि। हुनक सोचे एहेन बनि गेल अछि जे बेटा हमर बुढापाक सहारा बनत, बेटहि केर उज्ज्वल भविष्य पर हमरा लोकनिक बांकी जीवन निर्भर करैत अछि, बेटा मात्र वृद्धावस्था मे हमरा सबहक सेवा करत…. ई सब भ्रान्तिरूप रहितो दृढ विश्वासक रूप मे एहेन समाज केर मानसिकता बनल देखाएछ जतय बेटी प्रति विभेद कैल जाएछ। यैह लैंगिक विभेदक मूल कारक तत्त्व थीक जाहि पर हरेक समाज केँ सजगता सँ चिन्तन करबाक चाही।

बेटीक माता-पिताक धारणा किछु एहने बनि गेल अछि जे बेटी केँ पराया धन मानैत अछि, ओकरा चूँकि दोसराक घर जेबाक छैक, ओ हमर सेवा तखन कि करत… ओकरा तऽ अपन परिवार देखबाक छैक, अपन सासूर सम्हारबाक छैक… बेटीक भविष्य ओकर पति पर निर्भर करैत छैक… आदि! यैह चलते आइयो बहुत एहेन माय-बाप छथि जे बेटाक भविष्य पर, ओकर शिक्षा पर बेसी ध्यान दैत छथि। लेकिन यथार्थतः वर्तमान युग मे लड़का-लड़की एक समान अछि, ई प्रमाणित भऽ गेल अछि। जँ हमरा लोकनिक समाज सँ दहेज प्रथाक पूर्ण रूप सँ उन्मूलन भऽ जाय तऽ बेटीवर्गक सम्मान आर आत्मविश्वास आरो बढि जायत। अतः आजुक बदलल परिस्थिति मे लड़का-लड़की एक समान होयबाक धारणा केँ आरो बेसी दृढ बनेबाक आवश्यकता छैक।

समाज मे आत्मसम्मानक संग रहब, अपन हित-अहित केर पक्ष-विपक्ष मे बाजब, अपन इच्छानुसार कैरियर चुनब, उच्च शिक्षा प्राप्त करब, संपत्ति अर्जित करब व ओकरा खर्च करब आदि एहेन अधिकार थीक जे बेटीवर्ग केँ सेहो भेटबाक चाही। जेकर अभाव मे ओ उन्नति नहि कय सकैत अछि। ई सबटा बात अधिकार और विचार थीक जे बेटी सबहक लेल हेबाक चाही। लेकिन अफसोस जे आइयो, वर्तमान समय मे पर्यन्त, जखन हम सब अपन बराबरी पश्चिमी देश सँ करैत छी, अपन उन्नतशील होयबाक परिचय पूरा विश्व केँ दय रहल छी, ताहू समय मे भारतक बेटीक संग भेदभाव भऽ रहल अछि।

हमर प्रश्न अछि, समाजक ओहि वर्ग विशेष सँ जे आइयो बेटा आर बेटी मे अन्तर करैत अछि, कि….

  • आखिर एहेन कि विशेष होएछ बेटावर्ग मे जे बेटीवर्ग मे नहि?
  • आखिर हरेक क्षेत्र मे बेटीवर्ग सँ भेदभाव कियैक भऽ रहल अछि?
  • आखिर हरेक बलिदान बेटिये सब केँ कियैक देबय पड़ैछ?
  • आखिर बेटीक खुशी, ओकर सपना महत्व कियैक नहि रखैछ?
  • आखिर कहिय धरि ओकरा सब केँ कमजोर आंकल जायत?
  • आखिर ओ अपन माय-बाप वास्ते सहारा कियैक नहि बनत?

एहेन अनेक प्रश्न अछि जे आइयो अनुत्तरित अछि, जेकर जबाब हमरा सबकेँ तकबाक अछि।

आइ बेटी सब सेहो शिक्षित अछि, ओहो अपन माय-बापक सेवा कय सकैत अछि, हुनकर भरन-पोषण करैत देखभाल कय सकैत अछि। आर्थिक रूप सँ अपन जन्मदाताक सहायता कय सकैत अछि। बेटी सब केँ सेहो अधिकार छैक जे अपन माय-बापक बुढापाक सहारा बनिकय हुनकर सेवा करय। आर ओ कय सेहो सकैत अछि। लेकिन हमरा सबहक परंपरा ओकरा पराया बना दैछ। अगर माता-पिता अपन बेटीकेँ बेटाक समान अधिकार आर स्वतन्त्रता देत तऽ ओहो बेटाक जेकाँ अपन उत्तरदायित्वक निर्वहन कय सकैत अछि। ई एक लड़कीक परिस्थिति, परिवेश आर ओकर अपन इच्छा पर भर पड़ैछ जे ओ अपन आजादी केँ कोन रूप सँ उपयोग करैत अछि। एहि मे शिक्षाक बड पैघ भूमिका होएत छैक।

हमरा लोकनिक परिवारक बेटी अगर शिक्षित आर आत्मनिर्भर होयत तऽ ओकरा सब जाहि कोनो घर मे पुतोहु बनिकय जायत ओतहु अपन उत्तरदायित्व केँ निभेबाक सामर्थ्य राखत, आर ताहि सँ ओकर मनोबल तथा आत्मसम्मान सेहो बनल रहत। बेटी नहि केवल अपन सासु-ससुर लेल अपन दायित्व निर्वाह करत बल्कि अपन जन्मदाता परिवार (नैहर) प्रति सेहो सहायक आर अर्निंग हैन्ड बनि सकैत अछि।

कनेक सोचू – अगर हरेक परिवारक बेटी शिक्षित होयत तऽ हरेक घरक पुतोहु सेहो शिक्षित और आत्मनिर्भर होयत, कियैक तऽ पुतोहु सेहो हमरा लोकनिक बेटिये थीक जे अपन कर्तब्य पूरा ईमानदारी आर प्रेमपूर्वक निबाहत। बेटी ओनाहू बहुत संवेदनशील और भावुक होएत अछि। कोमल हृदय आ नीक सोच राखयवाली बेटी, जेकरा वास्ते सासु-ससुर आ माय-बाप मे कोनो अन्तर नहि होइछ, ओ पूरा निष्ठा तथा प्रेमपूर्वक हुनक सेवा आ सम्मान करैत अछि।

वर्तमान समाज मे आइयो बहुते घर आ परिवार एहेन अछि जतय बेटीक जन्म लैते घरक लोक कहैछ जे ई तऽ परायाधन थीक, एक दिन केकरो आरक घर चलि जायत। बच्चहि सँ प्रायः हर बेटी एतबे सुनैत पैघ होएत अछि। लड़कीक माय-बाप सेहो ओकरा अनकर धन बुझैत अछि। ताहि कारण ओ अपन बेटी केँ अपन सम्पत्तिक उत्तराधिकारी नहि मानैत अछि, आर ओकरा सम्पत्ति मे कोनो हक तक नहि दैछ। एना कियैक आखिर…? कि ओ हुनक संतान नहि? कि ओ अपन बेटी सँ प्रेम नहि करैत छथि? ई बात हमरा बड खलैत अछि, ताहि सँ पूछि रहल छी हम एहेन गोटेक अभिभावक सँ… ओ अपन बेटी केँ अपना संपत्ति मे हिस्सा कियैक नहि देलनि? कि ओ हुनक सम्पत्तिक हकवाला नहि अछि? सबटा सम्पत्ति बेटे टा लेल कियैक? कि अपन बेटी सँ हुनका कोनो स्नेह नहि?

अहाँ केँ ई जानिकय आश्चर्य लागत जे ओहेन माता-पिता बड सरलता सँ उत्तर दैत छथि, “हम अपन बेटी सँ बहुत प्रेम करैत छी, आर ओकरा ओकर हक सेहो देलहुँ अछि। ओकर विवाह मे तिलक देलहुँ अछि। ओ ओकरे वास्ते रखने रही।“ यानि बेटीक विवाह पर दहेज देलनि माय-बाप आर से ग्रहण केलनि सासु-ससुर। कनेक सोचू! ओहि बेटी केँ कि भेटल? ओकर विवाह टा भऽ गेल, बस! आर कि भेटल ओकरा? आर किछु नहि! ई दहेज प्रथा एहेन कारण थीक जेकरा वजह सँ बेटी केँ अपन माता-पिताक संपत्ति मे अधिकार या कोनो हक-हिस्सा नहि भेटैत अछि। ई गलते टा नहि बहुत पैघ गलत बात भेल। माँ-बाप केँ चाही जे ओ अपन बेटी केँ दहेजक संग नहि, ओकरा अधिकारक संग – आत्मनिर्भर बनाकय विदाइ करय। अपन सम्पत्तिक किछु हिस्सा अपन बेटियो केँ दियय जाहि सँ ओ अपना केँ कमजोर आर पराया नहि बुझय।

आइ बेटी केँ कानून द्वारा सेहो संपत्ति राखब वा खरीदब वा उत्तराधिकारीक रूप मे सम्पत्ति प्राप्त करब आदिक अधिकार दय रहल अछि। सरकार द्वारा जे कानून बनायल गेल अछि ओ किछु एहि तरहक अछि….

  • हिन्दू औरत केँ सम्पत्ति पर अधिकार ‘हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम १९५६’ मुताबित भेटत।
  • कोनो पुरुष केँ अपन पुरुष पूर्वज सँ भेटल संपत्ति खानदानी संपत्ति कहाएत अछि।
  • बेटीवर्ग केँ खानदानी संपत्ति मे सँ खर्चा भेटबाक हक होइछ।
  • कोनो हिन्दू पुरुष पुश्तैनी जायदाद पर अपन हिस्साक वसीयत लिख सकैत अछि।
  • लेकिन अगर वसीयत नहि लिखने हो तऽ ओकर पुश्तैनी जायदाय केर अपन हिस्सा मे ओकर पत्नी, माँ, बेटी, बेटा, विधवा पुतोहु तथा मृत संतानक संतान केँ बराबर-बराबर केर हक होइछ।
  • तहिना ओकर अपन कमाई कैल संपत्ति मे सेहो ओकर पत्नी, माय, बेटी, आर बेटाक बराबर-बराबर केर अधिकार होइछ।
  • महिलाक हिस्सा ओकर अपन थीक आर ओ ओकरा जे चाहय से कय सकैत अछि।
  • कोनो औरत चाहय तऽ ओकरा बेच सकैछ, चाहय तऽ केकरो दय सकैछ या वसीयम मे केकरो नामे छोड़ि सकैछ।

कानून केर एहि नियम केँ अगर पूरे ईमानदारी सँ पालन कैल जाएत अछि तऽ हमरा सबहक बेटी केँ ओकर अधिकार अपने-आप दिया देत। बेटीवर्त एतेक नीक होएत अछि जे ओकरा अपन माय-बाप, भाइ – सब सँ उचित प्रेम रहिते टा अछि, जाहि सँ ओ कहियो हिनका सब सँ किछु मंगबो नहि सकैत अछि, ओकरा तऽ बस प्रेम आर अपनत्व केर अनुभूति टा चाही, बाकी किछुओ नहि। परञ्च ई ओकरा माता-पिताक कर्तब्य थीक जे ओ सब ओकरा शिक्षित आर आत्मनिर्भर बनबैथ – संगहि संग अपन बेटी केँ ओकर अधिकार जरुर दैथ।

मैथिली जिन्दाबाद पर हरेक लेखक संग एकटा हिन्दी कविताक संग हम अपन विचार रखैत आबि रहल छी। आजुक एहि लेखक संग, हमर ई कविता पाठक लेल प्रस्तुत अछि। अपन मूल्यवान् विचार आ सुझाव जरुर पठायल करब।

बेटी का विश्वास

लक्ष्मी कहा किसी ने मुझे

किसी ने कहा अन्नपूर्णा

बेटी हूँ मैं किसी की

कोई कहता है माँ

अर्धांगिनी हूँ, बहू हूँ

और किसी की हूँ बहना

नाम अनेकों मिले मुझे

पर मेरा अस्तित्व है कहाँ

ईश्वर की अनुपम कृति हूँ

सृष्टि रचयिता हूँ कहलाती

कोमल हूँ कमजोर नहीं मैं

कर सकती हूँ मैं भी सबकुछ

ये विश्वास हूँ दिलाती

बना लूँ अगर अपनी पहचान

मिले मुझे भी प्रतिष्ठा और सन्मान्

देकर देखो मेरा अधिकार

बेटों सा करो मुझे स्वीकार

भक्ति और सेवा से अपनी

सारे दुःख हर सकती हूँ

मैं भारत की बेटी

बेटों के समान बन सकती हूँ…

रितू झा