मैथिल सर्जक परिचयः बेचन महतो

विशिष्ट व्यक्तित्व परिचयः मैथिली कवि बेचन महतो

– बिन्देश्वर ठाकुर, दोहा, कतार।

bechan mahtoधनुषा जिल्लाक हथमुण्डा गामक साधारण परिवारमे जनम लेनिहार एकटा सर्व साधारण व्यक्ति कोनाक सर्जक व कवि भऽ गेलाह आ कर्मस्थल गल्फ देशक मरुभूमियोमे कोन तरहे अपन भाषा-संस्कृतिक विकास दिस अग्रसर छथि ? आबू पढी कवि बेचन महतो जीक दिलचस्प रिपोर्ट मैथिली जिन्दाबाद पर …..

बेचन महतो जी नेपालक धनुषा जिल्ला अन्तर्गत पड’ बला गाम हरिने-हथमुन्डाक निवासी छथि । बि.एस.सी अध्यन करबाक तीव्र इच्छा होइतो आर्थिक अवस्थाक आगु लाचार भऽ विदेश आब’ पर बाध्य भऽ गेलाह । वैदेशिक रोजगारीमे कतार अएलाक बाद जिनगीमे भोगि रहल अपन सुख-दुख,पीडा भावनाके निकास देबाक माध्यमके रुपमे कलम चलाएब शुरु कएनिहार बेचन जी सत्ते आइ मिथिलाक लेल एकटा गौरब भऽ गेल छथि । मरुभूमीमे रहियोक अपन भाषा-साहित्य तथा संस्कार-संस्कृतिके विकासमे सदिखन तत्पर रहै छथि । ज्ञातव्ये अछि जे विगत किछु दिनसँ मैथिली गतिविधीमे वा मधेश आन्दोलनके क्रममे सहादत प्राप्त केनिहार सहिदसबहके पीडित परिवार लेल कतारक मैथिल सर्जकसब अति सकृय देखल गेल अछि । जाँहिमे सँ बेचन महतो जी सेहो प्रमुख छथि । अत: अहि मरुभूमिक कविके मोनक भावना सहितक रचना अपनेसब लग सेहो साँझा क’ रहल छी । लिअ आ पढू ।

कविता -१
हमर माए

सुइत -उठि दर्शन माएके करैछी
भोर साझक शौच हुन्करे गोदमे करैछी
हुनकरे आचालक किनारसँ
नाना भाईत क्रीडा सेहो करैत छी ।
उच्च शीरक केश छुबैत
गाल सुन्दर होइय हमर
नन्हा सुकोमल हाथ
स्तनपान करबाक इच्छासँ
हुनकS छातीपर रखैत छी
माएक हिर्दयके कोमल भावनाक बाढि
साउन भादो जकाS लहरबैत छथि
सम्पूर्ण अँगसहित अपन आँचलमे छुपबैत छथि आ
हुनकS देहक दसो सुवा
दूधक सुन्दर धार
हमसब पुत्रके
जीवन जोगबैत अछि
ओतबे नै
जखन दु:खसँ सराबोर भS कS
कानय चाहैत छी हम त ओ
अपन बहुपास लS
सुन्दर सोना,रुपाके हिलोरामे
हिरला हिलाक S
आनन्द प्रदान करैत छथि
जँ हमरा निन्द ने आबैय त ओ
अपन गोदमे उछ स्थान दS कS
बाल लोरी सुनबैत
शीतल हाथसँ थपथपबैत
निकसँ सुतबैत अछि ।

कखनो- कखनो हम सोचैत छी
ओ कोन फूल हेतै जे हमर
माएसन सुन्दर आ सुगन्धित होएत ?
ककरासँगे हिनकS जोडा मिलाएब ?
कारण –
हरेक पुर्णिमाक राइतमे
माएक हसीसँग
गिरैत छै एक टुक्रा इजोरिया आ
रँग मिल्बैत अछि हमरा माएसँ
तहिना –
सब दिन लजाइत -लजाइत
उगैछै सुरुज
करैछै हमरा माएके प्रणाम आ
कुइद जाइछै चढिकS बढका गाछीपरसँ ।

आओर जे किछु होइ
मुदा हम ई जनैत छी जे
हमर माए दुनियाँके
सबसँ सुन्दर आ
सबसँ निक माए अछि ।

कविता -२
देश बनाउ कोना ?

कठीन अछि सम्मान पाएब
अहसान करु कोना ?
झुकाक फुनची हरियर
सुन्दर डाइर पात सुखाक
मरु कोना ?
साहन साजल निरके
धीर बनू कोना ?
तीर अछि तुनिरमे
कमानमे लगाउ कोना ?
कुर्सी ला फुटल सब छै
भाई भाईके मिलाउ कोना ?
जरल स्टेज भरकल जनता
सबके सम्झाउ कोना ?
भीड अछि लालचि मतियारके
अपन विश्वास के जीताउ कोना ?
बिष भरल कटोरा मिलल
अमृत हम बनाउ कोना ?
अपनामे नै कखनौ मिल सकलौ
दोसरके दोष देखाउ कोना ?
लडिक’ सब बिगडि रहल अछि
कहूं देश बनायब कोना ?