गीताः सृष्टिक आदि सँ परंपरा सँ आबि रहल अछि ई गूढतम् ज्ञान

गीताक तेसर बेरुक स्वाध्याय

gita krishna(निरंतरता मे…. कर्मयोग केर समस्त सिद्धान्त बतबैत भगवान् द्वारा मनुष्यक मूल शत्रु काम आर क्रोध कहल गेल, निश्चयपूर्वक एहि दुइ केँ मारबाक संपूर्ण प्रक्रिया बतबैत मारबाक लेल कहल गेल…. आर आगू चारिम अध्याय मे संन्यास योग पर विवेचना आरम्भ…)

भगवान् कहलनि,

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्॥४-१॥
एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः।
स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप॥४-२॥
स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।
भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येदुत्तमम्॥४-३॥

एहि अव्ययम् योगं – अविनाशी योग केर बारे सबसँ पहिने विवस्वत यानि सूर्य केँ हम देने रहियैन, विवस्वत एकरा मनु केँ कहलाह, आर मनु द्वारा इक्ष्वाकु केँ… आर एहि तरहें अपन-अपन उत्तराधिकारी केँ कहल गेल, आर समस्त राजर्षि लोकनि एकरा जनैत छलाह। ई योग, लंबा समयक अन्तराल सँ एहि संसार मे नष्टप्राय भऽ गेल अछि। आइ हम अहाँ केँ वैह प्राचीन योग केर विषय मे बतेलहुँ, कियैक तऽ अहाँ हमर भक्त छी, आर, हमर मित्र छी आर ई रहस्य निश्चयपूर्वक सर्वोत्तम अछि।

एतय – विवस्वत, मनु आर इक्ष्वाकु केर परिचय आवश्यक अछि। कहल जाएछ जे सृष्टि भेलाक बाद पृथ्वीलोक केर राजा सूर्यदेव केँ बनाओल गेल छल। सूर्यदेव सँ एहि गूढतम् सिद्धान्त केँ भगवान् द्वारा कहल गेल छल। तहिना सूर्यदेव एहि पृथ्वीलोक पर मानवलोक हेतु मनु – जिनका प्रथम संविधान निर्माता मानल जाएछ तिनका कहल गेल छल। फेर मनु द्वारा सूर्यवंशी क्षत्रीय राजा सबहक प्रसिद्ध पूर्वज इक्ष्वाकु केँ कहल गेल छल। आर फेर परंपरानुसार हरेक राजा केँ एहि सर्वोत्तम-गूढतम् ज्ञान केर शिक्षा देबाक परंपरा रहल।

भगवान् अर्जुन केँ सर्वप्रिय भक्त ओ बन्धु कहैत आइ ई गूढतम् – सर्वोत्तम रहस्य बतेबाक बात कहल गेल अछि। निश्चित रूप सँ हम समस्त पाठक व गीता साधना सँ जीवन केर अर्थ मनन कएनिहार लेल सेहो ई ओतबे सर्वोत्तम उपलब्धि भऽ रहल अछि।

अर्जुन उवाच।
अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः।
कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति॥४-४॥

अर्जुन कहलनि,
अहाँक जन्म तँ बाद मे भेल, विवस्वत केर जन्म पहिनहि भेलनि; तखन हम केना बुझी जे अहाँ ई बात आरम्भहि मे हुनका कहलियैन?

स्वाभाविके छैक! साधारण नरबुद्धि मे भगवान् केर सर्वव्यापी होयबाक बात अर्जुनो लेल कठिने छलन्हि, तखन हम-अहाँ अति साधारण मनुष्य मे सेहो एहि तरहक प्रश्न उपजब कोन पैघ बात होयत। अत्यन्त सहज भाव सँ भगवानक ओहि बात केँ – यानि ओ जे कहने छलाह कि सबसँ पहिने ‘हम’ ई योग विवस्वत केँ देने रहियैन… ताहि सँ सम्बन्धित जिज्ञासा रखैत अर्जुन हुनका सँ जन्म केर विन्दु पर विवस्वत पहिने आ कि कृष्ण पहिने से खुलासा करबाक लेल कहैत छथि। आब आगू देखू!

श्रीभगवानुवाच।
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप॥४-५॥
अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।
प्रकृतिं स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया॥४-६॥
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥४-७॥
परित्रानाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे॥४-८॥
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः।
त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन॥४-९॥
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः॥४-१०॥

भगवान् कहलखिन,

कतेको रास जन्म हम आ अहाँ बिता चुकल छी अर्जुन। हमरा ओ सब जन्मक बारे मे पता अछि, मुदा अहाँकेँ ओ सब नहि पता अछि हे परन्तप (शत्रु केर दमन कएनिहार अर्जुन)।

जखन कि हम अजः (अजन्मा) छी – अव्ययात्मा (कहियो नहि परिवर्तन होमयवाला प्रकृति) भूतानाम ईश्वरः (समस्त चराचर जीवक स्वामी – ईश्वर) – तैयो हम अपन प्रकृति केँ अपनहि अधीन कय आत्ममाया (अपनहि माया) सँ एहि लोक मे अबैत छी।

जखन-जखन धर्मक ह्रास आर अधर्मक उत्थान (विकास) होएत अछि तखन-तखन हम अपना केँ शरीररूप मे अवतरित करैत छी।

साधुनां (नीक) केर परित्राण (रक्षा) करबाक लेल – दुष्कृताम् (दुष्ट) केँ विनाश (नाश) करबाक लेल; तथा धर्मसंस्थापनार्थाय – धर्म केर स्थापना करबाक लेल – युगे युगे संभवामि – समय-समय पर हम अबैत छी।

ओ जे हमर दिव्य जन्म आर कर्म केँ तत्त्वरूप (सत्य प्रकाशित रूप) मे जनैत अछि, ओ अपन शरीर छोड़लाक बाद हमरहि लोक केँ प्राप्त करैत अछि आर फेर पुनर्जन्म नहि होइछ ओकर।

वीतरागभयक्रोधा – आसक्ति, भय आर क्रोध सँ स्वतंत्र जे व्यक्ति सदिखन हमरे मे मगन रहैत, हमरहि शरण मे रहैत अछि आर जेकरा ज्ञानक अग्नि सँ शुद्धताक प्राप्ति भऽ गेल छैक, एहेन कतेको लोक हमर लोक केँ प्राप्त कय चुकल अछि।

आइ – मात्र मूल बात सब राखि रहल छी, कियैक तऽ एम्हर अध्ययन आ ओम्हर एकटा व्यवहारिक ज्ञान सेहो किछु एहि सब पाँतिक अनुसार भेट रहल अछि। हमर परम-प्रिय मित्र हमरहि बात सँ अचम्भित छथि। शुरु कतय सँ आ कतय अन्त सब किछु जनितो हम सब एक-दोसर सँ विस्मित भऽ रहल छी। बड नीक तादात्म्य जीवनक व्यवहार आ गीताक गूढतम् ज्ञान मे आइ नजरि आबि रहल अछि। सब कृष्णक कृपा!!

हरिः हरः!!