मातृभूमि केर कर्जा उतारबाक लेल मातृभाषा मे अपन लोक लेल लिखू

pnc at madheshजँ मिथिलाक प्रति प्रेम अछि तऽ एकर विभिन्न पहलू पर लिखू!

मिथिलाक समाज सुसुप्त नहि अछि बल्कि एकर साहित्य सुसुप्तावस्था मे प्रवेश कय गेल अछि। वर्तमान युग अनुसार लेखनी साहित्य मे मैथिली अत्यन्त कमजोर पड़ि गेल अछि। एकर कारण बहुते भऽ सकैत छैक। हमरा बुझने एक्के टा कारण सब सँ बेसी हावी देखाएत छैक, ओ छैक, राज्य द्वारा एहि भाषाक दमन। लेकिन आइ कतेको वर्ष सँ यदि ई भाषा जिबैत रहलैक अछि तऽ ओ बस गोटेक स्वयंसेवी रचनाकार केर बल सँ। प्रकाशनक अभाव सेहो छैक। मुदा एकर जैड़ मे छैक जे प्रकाशित पोथी केर किननिहार आ पढनिहार छहिये नहि। कीनबाक मोनो नहि होएत छैक। पढबाक जरुरते नहि बुझल जाएत छैक। हिन्दी-अंग्रेजीक भरमार साहित्य सँ काज चलैत छैक, मैथिली पढला सँ कि हेतैक, एहि तरहक भ्रमक वातावरण छैक। तखनहु मैथिली जिबैत अछि ई बड पैघ बात भेल। एखन मैथिली आरो किछु वर्ष अहिना संघर्ष करैत जियत जेना हम मानैत छी। लेकिन मैथिल केँ ई अनुभूति होमय लागल छन्हि जे बिना भाषा संस्कार अपन पचिचानक विशिष्टता नहि बाँचत। ताहि सँ ओ सब गाम सँ दूर प्रवास क्षेत्र मे एहि लेल काफी आतूरता सँ मैथिली साहित्य ताकि रहला अछि। इन्टरनेट पर मैथिलीक भरमार लागि रहल अछि। संयोजन पुरान आ नव साहित्य बीच सेहो होमय लागल अछि। विभिन्न अकादमी ओ संस्थान आदि द्वारा एहि दिशा मे समुचित चिन्तन-मननक संग कार्यक्रमक क्रियान्वयन सेहो होमय लागल अछि। ई सब अपन-अपन गति सँ होएत चलत, बढैत जाएत, किछु वर्षक बाद मैथिली पुनः अपन उत्कर्ष प्राप्त कय लेत से आत्मविश्वास अछि।

एहि बीच वर्तमान प्रासंगिकता अनुरूप मैथिली मे लेखन जरुरी अछि। अहाँ चाहे जाहि कोनो क्षेत्रक विज्ञ छी, लेकिन तेकर फायदा अपन मातृभाषाभाषी केँ देल जाउ। जतबे लिखी, लेकिन मैथिली मे लिखू! नहि लिखऽ आबय तऽ हिन्दी मे व्हाट्सअप पर बाढि आयल चुटकुलाक अनुवादे करू। आइ-काल्हि देखैत हेबैक जे एकटा बच्चा हेराइत छैक तेकर समाचार कतेको साल धरि शेयर होएत-होएत चलैत रहैत छैक। यथार्थ मे कि कतय भेलैक, ई पता लगेबाक फुर्सत केकरा छैक! बस, भावना मे आबि गेल, ओ बात शेयर कय लेलहुँ। मैथिली लेल एहेन दिन छैक जे भावना मे आबि गेलाक बाद अपन भावकेँ मैथिली मे अभिव्यक्त करैत चारूकात पसारू। अपन समाजक पिछड़ापण केँ दूर भगेबाक लेल एकटा चिन्तन नित्य करू आ तेकरा मैथिली मे लिखिकय अपनहि लोक केँ बुझाउ। हिन्दी मे लिखैत रहबैक आ चिन्ता मैथिलीक करबैक तऽ अहाँक भाषाक डिजिटल भंडारण नहि गनायत। जरुरत एतबे छैक जे नित्य बेसी सँ बेसी शब्द अपन मैथिली भाषाक जमा होइत चलय। अहाँक भीतर रहल लेखनी प्रतिभा निखरैत रहय।

जखनहि लिखबैक, तखनहि यथार्थताक गहन अध्ययन करबाक सामर्थ्य मे उल्लेख्य वृद्धि होयत। अहाँक वृद्धि अहाँक समाजक लेल सेहो वृद्धि थीक। अध्ययन मे वृद्धि माने काजो करबाक कूबत आयब शुरु भेनाय बुझू। आइ सोचलियैक तखनहि काल्हि करबैक। आब सोचबे नहि करबैक तऽ भला करबैक कहिया? अतः वर्तमान पीढी जे क्रमशः हिन्दी-अंग्रेजीक बाढि मे भसिया गेल अछि तेकरा सब केँ धीरे-धीरे छानि-छानिकय अपन डीह पर ठाढ करू। पुनर्वास करेबाक कूबत जिनका मे होयत वैह स्वयंसेवा सँ ओहि भसियायल-दहायल लोक सबकेँ पुनः बसेबाक चेष्टा करब। आब, खिखियैत अहें बाजब जे ‘हें-हें-हें! मैथिली लिखहे नहि आबइ यऽ’, ई अक्षम्य अपराध भेल। हमरा बुझने मायक कर्जा सर्वथा सबसँ पैघ कर्जा थीक। तहिना साहित्य संस्कार पेबाक वास्ते मातृभाषा बिल्कुल माय समान होएत हमरा सब पर कर्जा देने अछि। एकरा बिना चुकौने जँ मरैत छी तऽ मुक्ति नहि भेटत। एकरा संग जे विरोध करैत छी ओ मातृविद्रोहक पापाचार कय रहल छी। ई सब अक्षम्य अपराध होयत। एकरा वास्ते परमात्मा पर्यन्त क्षमा नहि कय सकता। अतः अपन हिस्साक साहित्य मैथिली केँ जरुर दियौन।

विशेष, मैथिली जिन्दाबाद हो या मैथिली भाषाक संचारक्षेत्र मे कोनो भी डेग – सब केँ ई प्रयास करबाक चाही जे बेसी सँ बेसी लोक सँ मैथिली मे विचार ग्रहण करय। जँ ओ मैथिली लिखब नहियो जनैत होइथ, तऽ हुनकर विचार केँ मैथिली मे अनुवाद करैत मिथिलाक लोकमानस हेतु आ खासकय भविष्यक पीढी जेकरा गूगल गुरु सँ भेट होयवाला छैक, तेकरा वास्ते मैथिली मे छोड़ैत चलू। विश्वास करू, आइयो मिथिला एतेक संपन्न अछि जेकर परावार नहि। बस तिल-तिल मे बिखड़ल अछि, जेकरा कर्मठताक गुड़ केर पाक सँ बान्हिकय ‘तिलवा’ बनेबाक कार्य हम-अहाँ कय सकैत छी। एहि दिशा मे वर्तमान कार्य ईसमाद, विदेह पत्रिका, मिथिमिडिया, मिथिला प्राइम, मिथिला मिरर, मैथिली जिन्दाबाद आदि नीक कार्य कय रहल अछि। आरो बेसी वर्गीकृत आर विस्तृत समाचार संप्रेषणक आवश्यकता केँ हम सब मनन करी। एकरा मे व्यवसायिकताक वातावरण केँ सेहो विकास करी। अन्यथा कुपोषणक शिकार बच्चा कतेक दिन जियत! एक बेर फेर, अपन मातृभूमि मिथिला प्रति अपन समर्पण केँ कोनो न कोनो रूप मे सर्वोपरि राखी। अस्तु! शुभे हो शुभे!!

हरिः हरः!!