सोगारथ रचित दुइ कविताः फगुआक याद, दहेजक चाप

sogarath yadav“फाल्गुन महिना”

बस्न्त्क फाल्गुन, रङ्ग अबिरा ।
पुवा पुरी भाग्ङ खाँ, गैबै कबिरा ।।
कोयलीक कुहुकुहु, मधुर स्वर ।
लगन उताहुल देखबै, स्वैमवर।।
प्रेमक जोरि बाट तकै, साल सलिना।
हाइ रे ! हाइ, फाल्गुन महिना …२।।

बदाम,राहरकऽ बिज भरल, मन ललयल ।
आम, बर्हर फुललै, देख पन्छी कलायल ।।
फुर्स्द्कऽ घुर तापी, ओयर उन्क चादर ।
जङग्ल छोइर, गाछे गाछ घुमै बान्दर ।।
न ठंडे न गर्म, न छुटै पसिना ।
हाई रे ! हाई फाल्गुन महिना २ ।।

अपनेमे बेहाल रहै बदाम, ओरहक घुर ।
चिरी चिरी भङेग्रा बजै, लगन उताहुर ।।
एह छै ! सालक अन्त, होलि के महिना
हाई रे ! हाई फाल्गुन महिना २।।

सोगारथ यादव
पुरन्दाहा — धनुषा धाम

 

“रोकु दहेज के”

बहुतो बेटि जैर गेलै ,
बहुतो बेटि फाँसिके फंन्दा चैरह गेलै !!
बहुतो घर लुटागेलै,
बहुतो भाइ मैर गेलै,
मुदा ,
जुटाब नै सकलकै रुपैया,
दहेजके ।

वर वर ज्ञानी भेलै,
वर वर अगुवा भेलै,
देशके शासक बदल्लै,
आदमिमे चेतना जगलै,
मुदा,
लगाम लगाब नै सकलकै,
दहेज के ।।

बहुतो जोरि घुटना टेक,
दहेजके आगु मजबुर भजाइय।
बहुतो बाप एकरा अगाडि,
पाग के लाज गिरबैय ।।
मुदा,
तैयो रोईक नै सकलकै,
यै रितके !!

जै बेटि छैत तै हम अछी,
सब किय नै सोचलकै ।
जै बेटि छैत तै संसार अछी,
इ रित किय न बुझलकै ।।
अन्त करु खरिद बिकरी,
जिन्ददी बेटि के ।
आ तब समभाब अछी,
रिस्ता रोटिके ।।