मिथिला राज्य आन्दोलनक विभाजित मनोविज्ञान

विचार आलेख

karuna jha– करुणा झा, लेखिका/उद्घोषिका/मैथिली-मिथिला अभियानी, राजविराज, नेपाल

मिथिला राज्य आन्दोलन के विभाजित मनोविज्ञान

भीख नहि अधिकार चाही, हमरा मिथिला राज्य चाही ।।

कोना कए लेवै मिथिला राज्य–हँसिकए लेबई, लडिकए लेबई ।।

लए कए रहबई, लए कए रहबई– मिथिला राज्य लए कए रहबै ।।

ई नारा कोनो आईसँ नहि भारत स्वाधीन भेलाक बादेसँ लगाउल जारहल अछि । मिथिला राज्य आन्दोलनक जन्मदाता मिथिला केसरी बाबू जानकीनन्दन सिंहके पाला सँ घनकैत आविरहल अछि । एहिके लेल एक नहि, दू नहि कैक व्यक्ति अपन जीवन के दाउपर लगाकए संघर्ष करैत करैत संसारसँ विदाह भए गेलाह । लक्ष्मण झा जेकाँ त्यागी तपस्वी एकर ज्वलन्त उदाहरण अछि । मुदा अखनधरि मिथिला राज्यक गठन नहि भ’ सकल ।

एहि बीचमे कोसी, कमला आओर बागमती मे अरबों र्क्यूसेक पानि बहि गेल । एक दर्जन सँ बेसी राज्य आकार प्रकार ग्रहण कए चूकल । आसाम कैक टुक्रा मे बटि गेल । एतवा नहि बिहारक शेर लालुप्रशाद यादव गरैज गरैज कए बजैत रहैत छलाह जे बिहरक बटबारा हमरा लास पर हेतै से ओ रोकि नहि सकलथि । बिहार विभाजित भ’ क’ रहल । झारखण्डके महान जनता अपन प्राण प्यारा नेता मोरेङ्घ सुनवा जिनका जयपाल सिंह सेहो कहल जाइत छल हुनकर प्रतिज्ञा के पूरा केलक । सैयौं के वीरगति प्राप्त केलाक बाद तेलङ्गाना भेटल । उतराञ्चल बनल । मध्यप्रदेश विभाजित भेल । छत्तीसगढ अस्तित्वमे आयल । एहि प्रकार भारत मे राज्य पर राज्य बनैत चलि गेल मुदा मिथिला राज्यके निर्माण नहि भ’ सकल ।

अहाँक बेटी, अहाँक कन्या आइ मिथिलाक नारी नेपालमे अपन अधिकारक बास्ते संघर्षरत छी । मरैक लेल तैयार छी । हमरा अपने जिला सप्तरी राजविराज मे चारि महिनाके भितरमे ६ गोटे शहीद भ’ गेलाह । मिथिला मधेश राज्यके निर्माण हेतु जनकपुरमे ख्यातिप्राप्त नाट्यकर्मी रञ्जू झा सहित पाँच गोटाक शहादति एहन रंग लौलक जे आजुक महान मधेश आन्दोलन मे चारि दर्जनसँ बेसी नेपालीय मधेशके जनता अपन जानके आहुति दए चूकल अछि । अहिसँ पहिने सन २००७ मे भेल आन्दोलनमे सेहो ओतवे गोटा शहादत प्राप्त कएने छलाह । तत्पचात् हमरा सभके अखन एकटा राज्य अवश्य भेटल अछि मुदा हम सब अखनि एतवे मे संतोष करव से नहि बुझवा मे अवैत अछि । आन्दोलन जारी अछि ।

मिथिलामधेशक महान जनताद्वारा चारि महिनासँ जारी एहन शान्तिपूर्ण आन्दोलन आइधरि विश्वमे नहि भेल छल । अवश्य एकरा गिनीजबूकमे लिखल जायत से हमरा पूर्ण विश्वास अछि । अखन जे प्रदेश भेटल अछि ओ सैयौं वर्षसँ मिथिला मैथिलीके अंग भ’क’ रहल अछि । ऐतिहासिक सीम्रौनगढसँ ल’ क’ कोशी नदीतक ई क्षेत्र मिथिला संस्कृतिकेर गढ रहल बात केकरोसँ छुपल नहि । एहिमे नेपालक अद्यौगिक शहर वीरगंज सेहो अवस्थित भेलाक कारण एकर विकास द्रुत गतिमे होयत से हमर विश्वास अछि । सम्भवतः मिथिलाक साँस्कृतिक शहर जनकपुर एकर राजधानी बनत ।

एकता मे बलः कहनी छै जे एक भ’ क’ रहब त बलगर रहब । फुइट क’ रहब त कमजोर भ’ जायब । भारतमे दूसय वर्षधरि अंग्रेज शासन केने छल । तेकर एकटा बढका कारण ई छै जे फोडू आओर राज्य करु नीति अंगे्रज अपनौने छल । अहाँ सब अपनेमे विभजित छलहुँ। भारतीय मनोविज्ञान एकाकार रुप ग्रहण नहि करिसके ताही हेतु अंग्रेज डिवाइड एण्ड रूल के तहत विभिन्न प्रकारक लोभलालच मे भारतीयसबकेँ रखने छल । एहि कारण छै जे अहाँके स्वतन्त्रता प्राप्त करबामें एकसय वर्षसँ बेसी लागि गेल ।

याद करु सन १८५७ केर ओ महान सिपाही विद्रोह जहिमे झाँसीके रानी लक्ष्मीबाई जकाँ एकटा महिला विद्रोहके रुपमे जागल छलीह मुदा सरोजनी नायडू, वेगम हजरत महल, विजयालक्ष्मी पंडित, सुचेता कृपलानी, अरुणा असरफ अलीके जन्मावएमे भारतके सय वर्ष लागि गेलै । जखन सम्पूर्ण भरतीय मनोविज्ञान एकाकार रुप ग्रहन केलक एक फिरङ्घी राताराति न दू ग्यारह भ’गेल । तें एकतामे प्रचूर बल होइछै बातके हृदयंगम क’ क’ आगा बढबै त अवश्य सफलता प्राप्त हेतै ।  अन्तरराष्टीय मैथिली परिषद वा अन्तरराष्टीय मैथिली सम्मेलनके औचित्य आओर सार्थकताके पुष्टि हेतै । हमरा सम्मानके महता आओर बढि जेतै ।

हम विभाजित किएक ? मिथिला, मैथिली ओ मैथीलके हकहित, संरक्षण सम्वर्धन बास्ते हमर सभक विचार, सोच आओर दृष्टिकोणमे कोनो भिन्नता नहि अछि । सैद्धान्तिक रुपमे हमसब शान्तिपूर्ण सहअस्तित्वके तहत अपन मौलिक हकके प्रत्याभूति करबाक हेतु संघर्षरत छी । डा. धनाकर ठाकुरके संयाजनमे सन १९९३ जुन २० मे गठित अन्तरराष्ट्रीय मैथिीली परिषद हो वा डा. बैद्यनाथ चौधरी बैजूके अध्यक्षतामे गठित अन्तरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन दुनूक सोचमे कोनो भिन्नता नहि अछि । दुनू संस्थाक पहिल माँग मिथिला राज्यकेर गठनमे केन्द्रीत अछि । दोसर माँग मैथिलीके भारतीय संविधानके अष्टम् अनुसूचिमे समावेश कएल जाय से पूरा भ’गेल । एहिके लेल दुनू संस्था जे जतए संघर्ष केलक ई बात सबके मालूम अछि । अहाँ सब अहिके लेल मिथिलाञ्चलमे प्रशंसाक पात्र बनल छी ।

मिथिलाञ्चलमे बहुत बड़का मनोविज्ञान अहाँ सभक साथ अछि । नेपालमें गठित मिथिला मधेश प्रदेश त स्वयं एकटा एतेक पैघ मनोवैज्ञानिक प्रभाव पाड़त जे बाध्य भ’ क’ भारत सरकारकेँ मिथिला प्रदेशके माँग मानए पडतै । जेना भारतमे पाइन परै छै त नेपालके सरकार छाता ओढै छै तेनाही आब अहाँ भारतीय मिथिलाञ्चलवासीके नेपालीय मिथिलाञ्चलके देख छाता ओढए पडतै । एहिके लेल एकतामे बल होइछै बातके गम्भीर ढंगस आत्मसात करए पड़त । प्रारम्भ हो – एकताके प्रयास अन्तरराष्ट्रीय मैथिली परिषद्, अन्तरराष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन, मिथिला राज्य संघर्ष समिति लगायत कैक एहन संस्था अछि जे निरन्तर मिथिला राज्यक स्थापना हेतु संघर्षरत अछि । ओ सम्पूर्ण संस्था सबकेँ गोलबन्द करबाक हेतु एहि सम्मेलनमें एकटा प्रस्ताव पास कएल जाय । प्रस्तावमें एकीकरण पर बल देल जाय । जौं एकीकरण तत्काल सम्भव नहि होइ त संयुक्त मोर्चाक अवधारणा लाऊल जाय । प्रायः बहुत संस्थाक विचार, सोच, दृष्टिकोण आर सिद्धान्त समान भेलाक कारण एकीकरणमे सेहो कोनो कठिनाइ नहि होवाक चाही । ओहीमे कोनो संस्थाके विमति होइ त एकटा एहि सम्मेलनसँ किछु सदस्यीय समिति निर्माण कएल जाय । एहन सझिया सोच आओर विचारवाला व्यक्ति जे बार्ताके फलदायी बना सके ।

निस्कर्षः

मूलतः दूटा मैथिली संस्था अन्तरराष्ट्रीय रुपमे काज क’ रहल अछि । तेँ एकर प्रभाव दुनू देश भारत आओर नेपाल पर पड़ैत अछि । खासकए नेपाल जहिठाम मैथीलीके दोसर भाषाके रुपमे दर्जा प्रप्त छै ओहीठाम पहाडी समुदाय लोकनिके जोड रहै छै जे हिन्दीके अपेक्षा मैथिली अपन स्थायित्व बनाबे । तेनाही मधेशके अपेक्षा मिथिलञचलप्रति शासक वर्ग नरम देखल जायत अछि । भारतमे विगत कैक वर्षसँ मिथिलाञचलके आन्दोलन एकटा परिधिभितरमे लटपटायल अछि । जनस्तरपर व्यापकता नहि ल’ सकल बात हमरा बुझवामे अबैत अछि । जातीय रुपमे कोनो खास जातिके वर्चश्व भेलाक कारण अन्य जाति हडकैत जँका लागिरहल अछि । तें एकरा निचलास्तर पर ल’ जेवाक आवश्यक छै । बिहारमे समस्या निचला स्तर पर अछि त नेपालमे उपर स्तर पर । नेपालमे जनता मेधेशके माग क’रहल छै मुदा सरकार देबाक पक्षमे नहि अछि । मिथिलाञ्चल त भेंट चूकल अछि । भारतमे सरकार देवएके पक्षमे अछि मुदा सशक्त आन्दोलन नहि अछि । याद रहे भारत हो या नेपाल जे जतेक राज्य भेटलै ओ सब खुनसँ लथपथायल छै ।