विशिष्ट व्यक्तित्वः मिथिला-मैथिली केँ विश्व पटल पर पहुँचेनिहार डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन
आइ मधुबनी विवेकपुरम मे दिनक २ बजे सँ संध्याक ६ बजे धरि डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन केर जन्म जयन्ति समारोह मनायल जा रहल अछि। मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार तथा समारोह संयोजक अजित आजाद कहलनि अछि जे लगभग ५० टा नामी-गिरामी साहित्यकार एहि समारोह मे सहभागिता देबाक लेल आबि रहला अछि।
धन्य ग्रियर्सन लाटसाहेब जे अपन विद्वत् योगदान सँ मिथिलाक गुमनाम भाषा आ विद्याशक्ति केँ विश्व-पटल पर प्रवेश दियौलनि। ओना तऽ आरो अनेक विद्वान् तथा शोधकर्ता एहि पुण्य धराक प्राकृतिक शान केँ विश्व पटल पर पहुँचेला, लेकिन एक गैर मैथिल आ पश्चिमी सभ्यताक परिपोषक भाषाविद् डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा मैथिली भाषा केँ स्थापित करबाक एकटा शिलालेख गाड़बाक क्रेडिट अपना नाम कएलनि कहि सकैत छी।
जहिना आइयो कतेक रास मैथिल विद्वान् मैथिली भाषा मे चुपचाप कार्य कए रहला अछि, मुदा हुनका सबकेँ विश्वपटल धरि पहुँचेबाक लेल कोनो मजबूत कड़ी नहि अछि, किछु तहिना आइ सँ लगभग डेढ सौ वर्ष पूर्व मे सेहो छल। बरु अहु सँ बेसी बदतर अवस्था छल कारण तहिया संचारक माध्यम विरले रहैक, आइ तऽ हर ग्लोबल समाचार लोकक हाथे-हाथ मोबाइलक स्क्रीन पर उपलब्ध छैक। आइ तऽ सामाजिक संजाल छैक जे मैथिली मे एकटा नया जान फूकलक अछि, तहिया कतेक कठिन हेतैक से सोचि सकैत छी। मुदा डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन मधुबनीक एसडीओ रूप मे नियुक्त होइते अपन प्रकृति ओ गुण मुताबिक विद्वत् कार्य केँ निरंतरता देलनि। मिथिलाक अगाध विद्वान् व्यक्ति सब सँ सम्पर्क बढौलनि। स्रोत व्यक्ति केर रूप मे ओ एतुके विद्वान् सबकेँ कार्य करबाक जिम्मा लगौलनि। आर एक सँ बढिकय एक महत्वपूर्ण सामाजिक चित्रण करैत अन्त मे समूचा भारतक भाषिक सर्वेक्षण समान महत्वपूर्ण जिम्मेवारी सेहो निर्वाह कएलनि।
आइ हमरा व्यक्तिगत तौर पर गोटेक लोक मे डा. ग्रियर्सनक छाप छूटल देखाएत अछि। आब कियो बहरिया विद्वान् तऽ ताहि तरहें कार्य करैत नहि अभरैत छथि, मुदा अपनहि मिथिलाक किछेक समर्पित अभियानी पुत्र मे ओ महत्वपूर्ण कार्य करबाक जोश आ उत्साह देखाएत अछि। हम नाम लैत कहि सकैत छी – स्वयं कार्यक्रम संयोजक अजित आजाद जे आइ किछुए समय सँ मधुबनी मे रहय लागल छथि आर एतुका मैथिली आन्दोलन कतेक जोर पकड़ि लेलक अछि जे एहेन कोनो समय वा दिन नहि जहिया मैथिली जिन्दाबादक नारा एतय सँ नहि लागि रहल हो। जखन कि एहि सँ पूर्व सेहो एतय एक सँ बढिकय एक समर्पित अभियानी लोकनि कार्य निरंतर कय रहल छलाह, मुदा जाहि स्तर पर हुनका लोकनिक चर्चा विश्व पटल पर होएबाक चाही ताहि सँ ओ सब वंचित रहि जाएत छलाह। हम नाम लेबाक क्रम केँ मधुबनी लेल श्री अजित आजादक बाद नहि आगाँ नहि बढायब, कियैक तऽ हाल वैह छथि जिनका मे डा. ग्रियर्सनक आत्मा प्रवेश पाबि गेल छनि ई हम मानैत छी।
हँ, वर्तमान युग मे ग्रियर्सनक आत्मा आरो कतेको रास पुत्र मे प्रवेश पाबि चुकल अछि आर हुनका लोकनिक योगदान सँ मैथिली नहि केवल विश्व पटल पर बल्कि आरो लोक धरि सुरक्षित रूप मे पहुँचि चुकल अछि ई हम दाबीक संग कहि सकैत छी। ई इन्टरनेटक युग थीक। पदार्थीय प्रस्तुति सँ डिजिटल फार्म मे तथ्य केँ परिणति देबाक युग थीक। आब कोनो जानकारी लोक पोथी मे पन्ना उनटबैत नहि तकैत अछि, बस सर्च अप्शन छैक। कीवर्ड टाइप करू आ सर्च बटन पर क्लीक करू। उपलब्ध समस्त जानकारी अहाँ केँ हजारों-लाखों-करोड़ोंक संख्या मे देखाय लागत। आइ, इन्टरनेटक युग मे मिथिलाक नाम चमकेनिहार कतेको रास डा. ग्रियर्सन हमरा देखा रहला अछि। मैथिली आ मिथिला लेल समर्पण मानू मोक्षमार्गी कर्म समान हमरा अपने प्रतीत होएत अछि आर एहेन कोनो सेकंड नहि जाहि मे हम अपन मातृभाषा ओ मातृसंस्कृति प्रति चिन्तनशील नहि बनैत छी। एकरा हम अपन परम-सौभाग्य मानैत छी। एहि सँ सब तरहक भोग आ योग मे अपना केँ आत्मसंतुष्ट पबैत छी। मगन छी मैथिली-मिथिलाक सेवा करैत आर एना लगैत अछि मानू जेना स्वयं महादेव कहलनि जे ‘पुत्र! मैथिली आ मिथिला लेल काज करू! हम प्रसन्न होयब।’ सहिये छैक, ओ कियैक नहि प्रसन्न हेता। जखन मैथिली यानि जानकीक सेवा मे लागब, हुनक मूल भूमिक सेवा मे लागब आर ओतुक्का भाषाक सेवा मे लागब यानि जन-गण-मनकेर सेवा मे लागब तऽ स्वयं जानकी प्रसन्न हेती, पाहुन राम प्रसन्न हेता आ तहिना एहि मिथिलाक उत्तरबड़िया सीमा पर अवस्थित राजा हिमालय केर सुपुत्री स्वयं पार्वती सेहो प्रसन्न हेती आ तहिना हमरा सबहक दोसरो पाहुन यानि स्वयं भोला बाबा सेहो प्रसन्न हेब्बे टा करता। मैथिली-मिथिलाक सेवा मे डा. ग्रियर्सन समान विद्वत् कार्य करबाक आइ बड पैघ आवश्यकता अछि, आर एहि मे नित्य आरो लोक जुड़ैथ से आशा करैत छी।
एतय डा. ग्रियर्सन पर प्रकाशित पूर्व लेखक किछु अंश केँ फेर सँ रखैत छीः
“निश्चित रूप सँ जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन केँ मैथिलीभाषी एकटा अमर विभूतिक रूप मे गनैत छन्हि। कारण हुनकर वृहत् कार्य सँ मैथिली नहि मात्र भारत मे स्वतंत्र अस्मिताक रूप मे स्थापित भेल, बल्कि विश्व भाषा परिवार मे सेहो उल्लेखणीय स्थान ग्रहण करबाक योग्य बनल। मैथिल विद्वान् ओना तऽ बहुते भेलाह, छलाह… लेकिन महामहोपाध्याय बनबाक लेल मैथिली भाषाक योगदान ताहि समय धरि प्रमाणिक तौर पर कि छल ताहि मे विद्यापतिक बाद गोटेके नाम लेबा योग्य भेटैत अछि। ओ चाहे चन्दा झा होइथ, लाल दास होइथ या फेर दृश्य-अदृश्य अन्य कोनो मैथिल विद्वान् स्वयं अपन मातृभाषा केँ स्थापित करबाक लेल कतेक केलनि वा नहि केलनि से ज्ञात नहि अछि, धरि डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन द्वारा स्थापित कार्य मे बिहारी भाषाक रूप मे मैथिलीक वर्णन नीक जेकाँ भेटैत अछि। मैथिलीक व्याकरण सेहो ओ अपन ७ भाषाक व्याकरण मे समेटला ताहि सँ सेहो मैथिली केँ स्थापित करबाक सामर्थ्य भेटल प्रतीत होइछ। संगहि, डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन १८७५ ई. मे मधुबनीक एसडीओ सेहो छलाह आर विद्वत् कार्य मे काफी रुचि रखबाक कारणे मिथिलाक विद्वान् सब संग सामीप्यता रहला सँ ओ काफी लोकप्रिय अंग्रेजिया साहेब छलाह। किछु ताहि लोकप्रियता सँ मधुबनी मे हुनका नाम पर आइ धरि ‘गिलेशन बाजार’ कायम अछि। आर, एहि बेर मधुबनीक पवित्र भूमि पर हुनक जन्म जयन्ति दिवस मनेबाक ई निर्णय स्वागत योग्य अछि।
आउ, डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन केर अगाध – अविस्मरणीय योगदान आ व्यक्तित्वक विशिष्टता सँ परिचित होयबाक प्रयास करैत छी।
डा. जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन एक आयरीश विद्वान – आइसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) आर भारतक बंगाल सरकार मे १९७३ ई. सँ कार्यरत भेलाह जिनका ताहि समयक बंगाल प्रान्त अन्तर्गत मिथिलाक्षेत्र मे पदभार ग्रहण कराओल गेल छल।
हिनक जन्म ७ जनबरी १८५१ (आयरलैन्ड) मृत्यु मार्च ९, १९४१ (युके) में भेलनि। कुशाग्र छात्र शुरुए सँ गणित आ भारतीय भाषा संस्कृत एवं हिन्दी आदि मे रुचि रखैत छलाह, कहल जाएछ।
अक्टुबर १८७३ ई. मे बंगाल आबि ईस्ट इंडिया कंपनी नियोक्ता लेल भारतीय सिविल सेवा मे योगदान शुरु केलनि। १८९८ ई. धरि विभिन्न कार्यभार व पद सम्हारलैन। मधुबनी मे १८७५ ई. मे एसडीओ पद पर कार्यरत छलाह। लोकप्रियता मिलनसारिता सँ, विद्वान् व्यक्तिक संगत करब हिनकर खास गुण छल। आइयो हिनकहि नाम पर मधुबनी मे ‘गिलेशन बाजार’ अछि।
हिनका द्वारा मिथिलाक्षेत्रक विभिन्न जानकारी सबहक प्रस्तुतिकरण पत्र जे १८७७ मे प्रकाशित कैल गेल ओहि सँ प्रसिद्धि प्रसार होयब शुरु भेल। १८८३-८७ केर समयावधि मे बिहारी भाषा व बोलीक ७ टा व्याकरणक संयुक्त प्रकाशन, पुनः १८८५ मे बिहार पीजैन्ट लाईफ मे गृहस्थक जीवन पर शोध-विचार केर प्रकाशन सँ भारतक भारतीयता केँ जैड़ सहित विस्तृत रूप मे प्रस्तुत करब काफी लोकप्रियता हासिल करेलकनि। तदोपरान्त हिन्दी भाषाक शोध करैत काश्मीरी भाषा सहित पर कार्य करब हिनक विशेषता मे शामिल अछि।
१८९८ ई. सँ लगातार ३० वर्ष धरि ८००० पृष्ठक कुल १९ वोल्युम (भाग) ‘लिंग्विस्टिक सर्वे अफ इंडिया’ मे भारतीय भाषा पर शोध व प्रकाशन कार्य करैत विश्वविख्यात बनि गेलाह। १८९८ ई. सँ भारतीय भाषा केर सर्वक्षण कार्यारम्भ करैत १९०३ ई. सँ १९२८ ई. धरि लिंग्विस्टिक सर्वे अफ इंडिया केर अनेकानेक भाग (वोल्युम) केर प्रकाशन – कुल ३६४ भाषा आर बोली पर शोध आलेख रखलनि।
१९०३ ई. सँ अपन गृहनगर कैम्बरली सँ कार्य करैत रहला। १९१६-३२ केर बीच काश्मीरी भाषाक शब्दकोश पर कार्य करैत प्रकाशन पूरा केलैन। १९१२ मे नाइट पद सँ सम्मानित भेलाह।
महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह कल्याणी फाउन्डेशन द्वारा प्रकाशित मिथिलेश कुमार झा द्वारा संग्रहित-संपादित पोथी – ग्लिम्प्सेज अफ मिथिला एण्ड मैथिलीः द कोरेस्पोन्डेन्सेज अफ जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन’ मे मैथिली भाषा आर मिथिला संस्कृतिक संग डा. ग्रियर्सनक व्यक्तिगत अनुभव सहितक व्याख्या-वर्णन भेटैत अछि। मैथिली-मिथिला लेल खास रूप सँ स्मृति मे राखल जाएछ।
हालहि प्रधानमंत्री मोदी केर आयरलैन्ड केर यात्रा पर हिनकर हस्तलिखित पाण्डुलिपि उपहारक तौर पर दैत हुनक विज्ञ योगदानक कद्र भारत मे आइयो उच्च स्थान पर रहबाक बात स्थापित करब। थामस ओल्धाम तथा जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन समान दुइ प्रसिद्ध आयरीश विद्वान् द्वारा भारत प्रति कैल गेल उत्कृष्ट महत्वपूर्ण कार्य केँ भारत आइयो ओतबे कद्र करैत अछि, यैह भावना प्रधानमंत्री मोदी द्वारा व्यक्त कैल गेल। थामस ओल्धम (१८१६ – १८७८) जिनका १८५० मे बंगाल सरकार अन्तर्गत भूगर्भीय सर्वेक्षण लेल नियुक्त कैल गेल छल। जखन कि ग्रियर्सन केँ १८७३ मे बंगाल सरकार अन्तर्गत प्रशासकीय कार्य लेल नियुक्ति भेल छल, परन्तु हुनक रुचिक विषय देखैत भारतीय भाषा सर्वेक्षण लेल १८९८ मे जिम्मेवारी सौंपल गेल छल। थामस द्वारा भारतीय खनिज संपदाक मानचित्र आदि बनायल गेल छल। एहि तरहें प्रधानमंत्री मोदी यैह दुइ महान् व्यक्तित्व केँ अपन संछिप्त आयरलैन्ड यात्रा पर चर्चा केलनि आर ऐतिहासिक योगदान सँ वर्तमान समयक आपसी द्विपक्षीय संबंधक वृहत् आयाम पर सेहो बात आगाँ बढौलनि।
१९८९ सँ डा. ग्रियर्सन अवार्ड हिन्दी भाषाक विदेश मे उत्थान केनिहार स्रष्टा केँ देल जेबाक निर्णय केन्द्रिय हिन्दी संस्थान द्वारा – पहिल अवार्ड १९९४ मे डा. लोथर लुत्स केँ। ई सम्मान राष्ट्रपतिक हाथ सँ दियेबाक स्थापित परंपरा।
अनेक रास कृति – द पिसाका लैंग्वेज अफ नार्थ वेस्टर्न इंडिया, ए डिक्सनरी अफ काश्मीरी लैंग्वेज, बिहार पीजैन्ट लाईफ, सेवेन ग्रामर्स अफ द डायालेक्ट्स एण्ड सब-डायालेक्ट्स अफ बिहार, एसियाटिक सोसाइटी अफ बंगाल, इत्यादिक संग भारतक निर्माण मे हिनकर योगदान अविस्मरणीय अछि।
हिनकर जन्म-जयन्ति दिवस यानि ७ जनबरी मिथिलावासीक स्मृति मे अनबाक लेल आदरणीय अजित भाइ सहित समस्त आयोजनकर्ताकेँ हमर नमन!!
हरिः हरः!!”