साक्षात्कार
प्राध्यापक सविता झा खान, दिल्ली विश्वविद्यालय तथा मैथिली जिन्दाबाद केर संपादक प्रवीण नारायण चौधरी केर बीच भेल वार्ता अनुरूपः
प्रवीणः मैडम! नमस्ते!! हम प्रवीण… मैथिली जिन्दाबाद पर अपनेक एकटा साक्षात्कार प्रकाशित करबाक सदिच्छा सँ किछु जिज्ञासा राखि रहल छी। कृपया अपन विचार जेना सहज हो से मिथिलाक लोक – अप्पन लोक वास्ते उपलब्ध करबैत कृतार्थ करी। अग्रिम धन्यवाद!!
प्रवीणः अपनेक लेखनी सँ हम सब बहुत प्रभावित होइत छी, मुदा विषयक विशालता आ यदा-कदा अपन रुचिक विषय नहि भेलाक कारण संपूर्ण भाव बुझय सँ चूकि जाएत छी। लेकिन अपनेक लेखनीक मूल भाव समृद्ध भारतवर्षीय इतिहास – एहि ठामक संपन्न दर्शन – सुसभ्य लोकपरंपरा आदि अछि जेना अनुभव करैत छी। अपने हमरा सनक पाठक केँ कोना बुझायब आर एकर महत्व आम जनमानस धरि कोना पहुँचेबाक लेल चाहब?
मैडमः धन्यवाद जे हमर लेखनी रुचिकर लागल। हम्मर मूल भाव वाँ कोनो भी समाजशास्त्रि के मूल भाव समाजक अवनति वा उन्नति सं संचालित होइत अछि। ज़ेहन काल तेहन भाव। आइ ई बुझबा में कोनो दिक़्क़त नहि जे सामाजिक संकट अपन सघन चरम पर अछि। एकर सभसं पैघ सूचक छोट-छोट बच्चा केँ अवसाद, आत्महत्या आ हिंसा में देखल जा सकैत अछि। एकर मतलब जे हम अहां जे जीब लेलहूं से त जीब लेलहूं मुदा आब संसार ओहन नहि छोडलियैक जे आगूक पीढ़ी नीक सं सभ्यता सं रहि सकै, एकरे कहैत छैक सभ्यता के नाश, जहन जीवन जीव’ जोकर बाल निर्दोष मन तक केँ नहि बूझि पड़य।
आखिर एकरा समेटल कोना जाय? एहि चिंताक क्रम में हमरा एहन ताग सभक खोज रहैत अछि जेकरा सूत्र बनाक’ हम मूल समस्या तक पहूंचि पाबी। ओ सूत्र हमरा भारतीय प्राचीन दर्शन आ लोक परंपरा दुनु में देखि पडैये। खास कक’ पुरान सांस्कृतिक केंद्र सभ में जे एहि विचार सभ कें जीवीक’ देखौलकै, मिथिला ओहि सभ में सबसं महत्वपूर्ण । भ’ सकैत अछि जे हम्मर मैथिल पुर्वाग्रह सेहो बाजैत हुअय, मुदा आइयो धरि एहन सरल संस्कृति कतहु आर नहि देखि पडैये, पहाड़ के छोडिक’। ओना दक्षिण भारत’क संस्कृति में सेहो गंभीरता आ ठोस माटि छैक। ई तथ्य आइ गिनल चुनल लोक केंँ छोडिक’ बेसी लोक या त नहि बुझि रहल छथिन्ह या पूंजीवादक अन्हरिया चोन्हरा देलकनि अछि।
प्रवीणः हालहि संपन्न उग्रतारा महोत्सव मे अपने एकटा विदुषीक रूप मे विभिन्न चरणक सेमिनार मे स्रोत वक्ता रहलहुँ। केहन अनुभव भेल? अपन समाजक बीच, ताहू मे मिथिलाक नारी समाजक उपस्थिति व अन्तर्क्रिया आदि मे अहाँक अनुभूति केहेन रहल? सेमिनार मे अपन प्रस्तुति पर किछु पाँति पाठक केँ बताउ।
मैडमः ओ हमर अरजल शक्ति रहै जे शक्तिधाम पहुंचि गेलहूं। अनुभव बहुमुखी रहल, भाव सं ओत-प्रोत रहल आ सुखद ई लागल जे हमर धाम सुतल नहि, जागृत अछि, साकांक्ष अछि आ आइयो ज्ञानेक खोज ओकर लक्ष्य थिक, जे कायकर्ता लोकनि रहैथ, हम त’ अमित केँ चिनहैत छलियैन्ह, ओ बड्ड समर्पित आ स्नेहिल छलाह आ प्रशासन बड़ नीक आ गंभीर मुद्रा में छल जे ओहि धामक चिंतन आ ज्ञानक परंपरा केँ आगु बढैल जाय। सभकेँ शुभकामना आ धन्यवाद ।
आम स्त्रीगण केर उपस्थिति बड़ उल्लासक क्षण रहल सेमिनारक, मुदा प्रश्न नहि कय सकलीह ओ सब। लगैया, संवाद आगु बढतैक। हम ओत’ मैथिल मानस में स्त्री केँ कोना शक्तिक रुप में गोसाउनि स लक’ सीता तक देखल गेलैक ओकर इर्द गिर्द बजलहुँ। आर, केना मानस वा आचरण केर दुरी केँ मिटाओल जाय, संभावना त बुझि पडैये। देखियौ कत’ तक मास चेतना आ एलीट चेतना के चिंतन धरातल एक भ पबैत छैक।
प्रवीणः आइये मैथिली फकरा आर ताहि मे सब जातिक एकरूप व्यवहारक बात देखलहुँ अपने केँ सामाजिक संजाल फेसबुक पर – समग्र मे कि भाव सँ एहि मुहिम केँ प्रचारित-प्रकाशित कय रहल छी?
मैडमः चिंता वैह एक्केटा जे कतहु जे किछू मूल माटि आ जड़ि केर बचि गेल छैक हमरा सभ तक ओ रसातल में जाइ सँ बचि जाइ। खिस्सा-पिहानी, फकरा, कनसार, घुर, पोखरि, अरिपनि, पाबनि आ गीतनादक दुनियां लोकमानस मे वापस आनल जाय, मर’ सं बड़ अपुरनीय क्षति भ रहल छैक।
प्रवीणः मिथिलाक भूमि केँ तंत्ररूप मे मानल जाएछ। हिमालय उत्तर, गंगा दक्षिण, गण्डक पच्छिम आ कौसिकी पूरब – एहि बीच मे सुनैत छी जे पहिने बहुशाखीय हिमालय सँ बहैत नदी खाली दलदल भूमि बना देने छल, जेकरा माधव विदेह अपन तप सँ सिद्ध भूमि मानव हेतु बसोवास लायक बनौलनि। कि छैक गाथा? वर्तमान समय मे मिथिलाक लोकसंस्कार मे एहि तंत्रभूमिक केहेन प्रभाव देखैत छी?
मैडमः मिथिला वा कतहुँ तंत्र त लोके परंपरा में बचल रहल, आब नहि बुझि पडैये जे जेहो किछ योग्य तंत्र केँ बुझैवला छथि से एकरा बचा पेता। तंत्र केँ अभियांत्रिकि केर भाव सं देखल गेल मुदा गुप्त विद्या होयबाक कारण औपनिवेशिक शासन एकर डाढि-पात नहि बुझि पओलाह आ एकर समूल नाश कर’ लगलाह आ जे किछु तैयो बचि गेल ओ हम्मर सभक समाजक अज्ञानता आ बादके मुढ शासन तंत्र ख़त्म क’ देलथिनह।
प्रवीणः मैडम, अपने वर्तमान मे दिल्ली विश्वविद्यालय मे छी आ कि अन्य राष्ट्रीय शैक्षणिक संस्थान मे आर कोन विषय केर प्राध्यापक… अपन व्यक्तिगत परिचय मैथिली जिन्दाबाद केर पाठक लेल देल जाउ।
मैडमः हम जनेवि (जेएनयू) सं डाक्टरेट केलहूँ आधुनिक भारतीय इतिहास में विशेषज्ञताक संग 2007 में आ ओकर उपरांत पिछला नौ वर्ष सँ लगातार दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास पढा रहल छी। किछु लेखन सेहो करैत रहैत छी, सीताक नव रूपक उद्घाटन में पेपर लिख चुकल छी आ यदाकदा हिंदी में सेहो लिखैत छी।
प्रवीणः किछु सार्थक डेग मैथिलानी (महिला) विदुषी द्वारा युवातुर व आगामी पीढीक महिलावर्ग केँ सक्रिय करबाक लेल आवश्यक छैक। मुदा तेहेन कोनो महिला केँ अभियानीक रूप मे कार्यरत नहि देखि रहल छी। अपने एक सक्षम ओ सामर्थ्यवान् नेत्री समान देखेलहुँ। किछु आशा व अपेक्षा राखि सकैत अछि मिथिलाक लोक एहि सन्दर्भ अपने सँ?
मैडमः निश्चित, अपेक्षाक कोन प्रश्न, हम त छीहे मिथिलांचलक बेटी! देखि स्त्री नहियो देखाइत सदा अप्पन काज में लागल छथि, एहि विजीबिलीटी केर पॉलिटिक्स सँ महिलाक भागीदारी, सक्षमता आ सक्रियता जुनि नापु, भारी भूल होयत, ओ जत’ कतहुँ छथि समाजकें आगुए बढेती, बढा रहल छथि।
प्रवीणः दिल्ली मे सेहो विभिन्न मैथिली-मिथिला सम्बन्धी डेग बढि रहल अछि। अपनेक सहभागिता कोन रूप मे भेटतनि हुनका लोकनि केँ?
मैडमः रेखांकित कर’ पड़त, हमरा परिवार, बच्चा आ नौकरी तीनु देख’ पडैये आ ओ सब हम्मर प्राइमरी ज़िम्मेदारी थिक, तैं जत्ते हमरा सं भ सकत से करब।
प्रवीणः अपन किछु सारगर्वित सन्देश आरो महत्वपूर्ण कार्य लेल देल जाउ।
मैडमः गाँव, संस्कृत आ मातृबोली के प्राथमिकता हर चरण में देब’ पडतैक। समाजक विन्यास में, आचरण में विस्तृत सोच राखनाइ जरुरी आ समरसतावादी संसार के तरफ़ बढल छोट-छोट डेग भावी पीढ़ी केँ कानफ्लिक्ट सं मुक्त समाज देतै, प्रयास ओहि दिशा में सबके संग लक’ हेबाक चाही, कामन बिन्दु सबकेँ जीवित राखनाइ श्रेयस्कर।
प्रवीणः मैथिली मे मिडियाक सर्वथा अभाव अछि। तैयो, अपने नित्य कोनो मैथिली आलेख पढैत छी वा नहि? यदि हँ तऽ निर्भीक टिप्पणी दैत कमी-कमजोरी पर अपन अनुभव बताउ।
मैडमः नहि, क्षोभ सं कहब जे मैथिली पढैत नहि छी, मुदा आब एहि दिशा में साकांक्ष प्रयास रहत सैह कहि सकैत छी। प्रयोग विषय केर स्तर पर बनल रहै त कोनो साहित्य आ भाषा लेल उत्तम, एतबे कहब।