जियाउ फेर सँ सेना केँ – बनाउ हैसियत मिथिला केर!

mrns“हेलो भैया! हेलो…. हेलो…. हेल्लो!! अरे आवाज नहि सुनाइ छह कि?”

“हँ-हँ! आवाज एलौ रोशन आब। बाज न? गाम मे सब ठीक छौक न?”

“कपार ठीक रहतऽ! ओ जे सेना तू सब बनेने छलह से कि भेलह?”

“कोन सेना?”

“अरे वैह… मिथिला राज निर्माण सेना?”

“अच्छा! अच्छा! ओ तऽ बच्चे मे बाप बनि गेलैक आ कय टा बच्चा पैदा कय देलकैक। कि बात भेलौक से?”

“गाम मे लोक सब पूछय छलह जे रौ रोशन से ओ सेना एक्के बेर रथ पर चढिकय एलौ आ फेर कतय बिला गेलौ?”

“लोक सब कोनो बेजा हँसी नहि न उड़बय छौ रोशन। सच तऽ ईहे छैक जे कनिये प्रतिष्ठा भेटला पर अपना सबहक ओतय लोक तर-ऊपर होमय लगैत अछि। से बुझ जे ओहि सेना मे कमाण्डर सब अपने मे सींग भिड़बैत चैत-कबड्डी खेला लगलय। ओ कहय हम बड़का त हम बड़का। ओहि मे जे सब स छोट से उन्चास हाथक बनैत सनैक गेलय आ सबटा केँ एक दिसन गरियाबैत बेइज्जत करय लगलय। एहना सन अवस्था मे तोरा कियो नीक लोक ओहि मे आब कहाँ तोरा आगू बढबाक हिम्मत करैत छैक।”

“ऐँ हौ भैया! आइ-काल्हि लौफा हाट पर आ मधुबनी जायवला रस्ता सब मे जे नवका एगो बैनर देखय छियै…. मिथिला स्टुडेन्ट युनियन… ई कि थिकैक?”

“ओ विद्यार्थीवर्गक जे मिरानिसेक पूर्व सैनिक कमान्डर सब रहैक ओकरा सब द्वारा ठाढ कैल एकटा संस्था थिकैक। ओ सब देखलकैक जे सेना मे छोटका सब केँ उन्चास हाथक मानय लेल समय लगतैक, तखन मैथिल लोकक जे तोरा आदति होइत छैक… ताहि आदत केर कारण ओ सब अलगे तोरा एगो संगठन बना लेलकय। लेकिन सुनैत छियैक जे ओकर सबहक संगठन तोरा बुढबो सबहक कान काटि लेलकय। गाम-गाम मे संगठन पहुँचि गेलैक अछि। तहुँ सय्ह कहि रहल छेँ। ऐँ रौ तऽ लौफा हाट पर सेहो बैनर छैक?”

“हँ हौ! आ विद्यार्थी सब दरभंगा मे सेहो काफी सक्रियता सऽ काज कय रहल छैक। पेपर मे डेली एगो न्युज देखैत छियैक। छोट मे एकरा लोक ‘मिसू’ कहैत छैक। भैया हौ! छौंड़ा सब छौंड़ियो केँ खौंझबय काल मिस यू कहि दैत छैक आ बाद मे कियो किछ बाजल कि ओकरा ‘मिथिला स्टुडेन्ट युनियन’ केर सार्ट-फार्म ‘मिसू’ मे जुड़बाक लेल अपीलक बात कहि हाहा-ठिठि शुरु भऽ जाएत छैक। हिहिहि!”

“हाहाहा”

“आर एगो बात कहिहऽ! मिथिला के नाम पर पार्टियो सब खूब खुलि गेल छैक हौ। पहिने एगो जे गोरका‍-गोरका बुढबा छलह, ओ हौ… अरे… कि नाम छैक…”

“फल्लाँ बाबु?”

“हँ-हँ! उहे! से कहाँदैन भाजपा धेने छैक, नहि तऽ आब तोरा लोक ई सब पार्टी-फाटी सऽ ऊबि गेल छैक। मिथिला पार्टीक ‘अच्छे दिन’ आबयवला छैक हौ भैया। तही द्वारे पूछलियऽ जे ई सेना के नाम खूब चलल रहैक एक बेरा… एकरा फेर जियाबह हौ भैया!”

“हँ! से तऽ हेब्बे करतय। आइ न काल्हि लोक केँ अपन मिथिला लेल चिन्ता हेब्बे करतय। लेकिन नेताक नेत सही नहि रहि जेबाक कारण आ सबहक अपने-अपने जिद्द हेबाक कारण मिथिलाक अपन संगठन मजबूती नहि पबैत छैक। ई दिक्कत छैक। कोनो संगठन कनिकबे होशगर भेल आ कि ओकरा तोड़बाक लेल कतेको कूचक्री चाइल चलय लगैत छैक। तरघुस्की मारनिहार सब ओकरा बर्बाद करय पर तूलि पड़ैत छैक। कि कहियो रे भाइ! बड दुःख होइ य! तैयो…. एक बेर फेर सऽ अपना संगी-साथी केँ कहैत छियनि जे जगज्जननी जानकीक मिथिला लेल समर्पित भाव सँ सब कियो एकठाम होइथ।”

लाइन काटलाक बाद रोशनक भैया फोन लगेलक कमान्डर साहेब केँः

“हेल्लो कमान्डर साहेब!”

“ओहो कहू भाइ! कि समाचार?”

“समाचार सबटा नीके। गाम सऽ रोशनक फोन आयल छल। कहि रहल छल जे लोक सब सेनाक बड चर्च करैत अछि। से सेना जेना २०१३ ई. मे गाम-गाम घूमिकय लोक सबकेँ अपन स्वराज्य प्राप्ति आ राजनैतिक अधिकार सँ क्षेत्रक विकास लेल जागृति प्रसार कय रहल छल तेकरा पुनः जिवन्त करबाक आग्रह कय रहल छल।”

“यौ भाइ! अहाँ तऽ जनिते छी जे कोना-कोना खेला-बेला कय केँ ओ मुहिम केँ हतोत्साहित कैल गेल…. तखन कहू जे एहेन गूटबाजीक माहौल मे मिथिला लेल कि काज करब?”

“हम अहाँक कष्ट बुझैत छी कमान्डर साहेब! मुदा हमहीं-अहाँ एना कायरता सँ अकर्म करब, तऽ फेर ई पाप बड भारी पड़त। एकर प्रायश्चित दोसर कोनो लोक मे हम सब नहि कय सकब। फेर सँ जन्म – मरण केर फेर मे आबय पड़त एहि पृथ्वी पर। मोक्ष तऽ दूर कलंकक टीका लागि जायत कमान्डर साहेब। कृपाकय मिरानिसे केँ फेर सँ धरातल पर उतारू।”

“जीब रहल छी शांतिपूर्ण जिनगी से नीक नै लाइग रहल अछि अहाँ केँ कि? फेर स गारा-गारी सुनेबाक मोन भऽ रहल अछि?”

“आब से कि करबैक। अपने धिया-पुता चारि टा गारि पढत। मुदा जीवन मे समय तऽ दोबारा नहि भेटत कमान्डर साहेब? मिथिला मातृभूमि लेल जे कर्ज हमरा सब पर अछि तेकरा जँ पूरा नहि करब तऽ ऊपर परमात्मा केँ कि जबाब देबनि? आइ देखू जे कतेक दूर धरि मिरानिसे कार्य निष्पादन कय चुकल छल, लेकिन आइ करीब २ वर्ष, कहू न जे १९ जनबरी २०१४ केर संगोष्ठी उपरान्त हाल धरि कोनो सक्रियता सँ भरल जागृतिमूलक अभियान नहि चलल अछि। कने-मने मिथिला चौक आदि पर दिल्लिये बम्बइ जे भेल से भेल। मूल धरातल पर कोनो अभियान ओहि उर्जा सँ नहि चलल। मिरानिसे छल जे सब केँ आपस मे जोड़ि लैत छल। एकरा संग सब कियो दैत छलाह। से आइ ओल्ट-फोल्ट मे शिथिल पड़ि गेल अछि। एकरा पुनः जाग्रत करब हमर-अहाँक कर्तब्य बनैत अछि कमान्डर साहेब।”

“इच्छा केकरा नहि होइत छैक भाइ जे अपन मातृभूमि, मातृभाषा, माता-पिता आ मूल संस्कार केर रक्षा मे सर्वस्व दान कय दी…. मुदा जाहि तरहक अनुशासनहीनताक वातावरण बनैत अछि ताहि सँ हम सच मे दुःखी छी।”

“आब जखन कमान्डरे दुःखी भऽ जेतैक तऽ प्लाटून सबहक कि हेतैक? एना मे देशक रक्षा केना होयत? आत्मघाती दस्ताक उपयोग तऽ दुश्मन केर संहार लेल होइछ, जँ कोनो तेहेन दस्ता अपनहि केँ संहार करत तऽ ओकर कल्याण कहियो नहि भऽ सकैत छैक कमान्डर साहेब। हम-अहाँ जहिया कोनो काज केलहुँ, स्वयं देवाधिदेव महादेव केर हाथ मे अन्तिम कमान्ड सौंपिकय अपन पवित्र भूमि मिथिलाक रक्षा लेल यज्ञ समान अनुष्ठान केलहुँ। एना हतोत्साहित कथी लेल होइत छी? के एहि यज्ञ केँ आइ धरि विध्वंस कय सकल? देखाउ हमरा?”

“किछु आत्मरक्षक दस्ताक निर्माण भेला सँ ई संभव अछि भाइ। जेना राम आ लक्ष्मण स्वयं विश्वामित्र गुरुक संग वन मे प्रवेश करैत ओहि छुट्टा-फूट्टा राक्षसक संहार केलनि, किछु ताहि तरहक आत्मरक्षा वास्ते सेना चाही भाइ।”

“कमान्डर साहेब! अपने निःफिक्र रहू। स्वयं राम ओ लक्ष्मण सेहो एहि कार्य लेल फेर सँ पृथ्वी पर आबि गेल छथि। बस, सेना केँ तैयार करू। केन्द्रीय समितिक संग क्षेत्रीय समितिक उद्धार करू कमान्डर साहेब। समर्पित आ संकल्पित सेना मात्र प्रवेश करय दल मे। कोनो जरुरी नहि छैक बेसी ओंगी-पोंगी!”

“इज़्ज़त प्रतिष्ठा सर्वोपरि अछि। मोन त हमरो कच्छमछी धेने अछि। लगैत अछि आन-आन राजनीती तक केँ छोइर मात्र मिरानिसे पर ध्यान देल जाय त उत्तम रहत। मुदा मधुकैटभी आ महिखासुरी आत्मघातीक चलते मोन मसओइस क टाइम काइट रहल छी।”

“हम बुझि सकैत छी कमान्डर साहेब। मुदा हे माधव, आब उचित नहि देरी!”

“भगवती आशीर्वाद दैथ…. चलू एक बेर फेर डेग बढेबाक योजना बनबैत छी।”

“१९ जनबरी संगोष्ठी दिवस केर रूप मे संकल्प छल मिरानिसे केर… ओत्तहि सँ शुरु कैल जाय महोदय। एकटा प्रस्तावना पत्र अछि, एहि पर सब कियो विचार कैल जाय।”

“देशक राजधानी दिल्ली सँ मुहिम कोना गाम तरफ पहुँचत ताहि विषय पर १९ जनबरी एकटा संगोष्ठीक आयोजन हो जाहि मे पूर्वक भाषा-संस्कृति गोष्ठी मे प्रस्तुत सम्भ्रान्त ओ सशक्त मैथिल समाज केँ आमंत्रित करैत एकटा निर्णय लेल जाय।

एहि मे पूर्व सक्रिय समस्त सदस्य ओ विभिन्न संघ-संस्थाक प्रतिनिधित्व रखैत ओहेन व्यक्तित्व सब केँ सम्मानित सेहो कैल जाय जिनकर योगदान सँ पैछला किछु वर्ष मे मैथिली-मिथिला आन्दोलन प्रखरता हासिल केलक अछि।

मिरानिसे केर वर्तमान विधान अनुसार पुनः सदस्यता ग्रहण करबाक आम अपील कैल जाय आर अनुशासन पर विशेष ध्यान रखबाक लेल विधान अनुरूप एक्सन कमिटीक गठन कैल जाय।

वर्तमान विधान अनुसार पूर्वक सदस्य लोकनि केँ पुनः सदस्यता लेल अनुरोध करैत संपूर्ण राष्ट्र मे एकर शाखा स्थापित कैल जाय।

हरेक मास मे कम सँ कम एकटा छोटो टाक काज करब एकर पुख्ता उद्देश्य हो। सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक विकास एकर लक्ष्य हो। हरेक कार्य ओ प्रचार-प्रसारक अन्तर्निहित वस्तु रहत ‘मिथिला राज्य – मैथिलक संवैधानिक अधिकार’।

मिरानिसे केर विजन संग नेतृत्व प्रदान करबाक लेल सब सदस्य केँ स्वतंत्रता देल जाय। केन्द्रक अधिकार, क्षेत्रक अधिकार, नेतृत्वक अधिकार – एहि सब मे स्वायत्तता देल जाय, मुदा मिरानिसे केर कोर विजन सँ इतर कोनो कार्य करबाक लेल स्वतंत्रता कदापि नहि देल जाय।

राजनैतिक विचार लेल सब कियो स्वतंत्र रहितो मिथिला व मैथिली लेल निर्धारित लक्ष्य व उद्देश्य केर प्राप्ति लेल मिरानिसे केर सदस्यक रूप मे अपन पार्टीगत राजनीतिक विचारक प्रयोग संस्था मे कदापि नहि हो। नीक बात जे भाजपा, कांग्रेस, आप, वा अन्य कोनो दलक सदस्य एहि मे जुड़ैथ। कहियो किनको व्यक्तिगत स्वार्थ वास्ते एहि मंचक दुरुपयोग नहि हो।

दिल्ली, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, पंजाब, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु आदि विभिन्न राज्य मे प्रवासी मैथिल केर राजनैतिक अधिकार वास्ते संघर्ष करब मिरानिसे केर मूल उद्देश्य मे हो – आर एहि तरहें राजनैतिक मोल-तोल संग मेल-जोल करबाक उच्चाधिकार केर संरक्षण-संवर्धन करैत आगाँ बढबाक चाही।

जाबत मैथिल आपस मे गोलबंद नहि होयत, राजनैतिक सामर्थ्यक विकास नहि होयत। ताहि सँ सब केँ एकटा सपना देब आर ताहि अनुसार कार्य निष्पादन लेल सब स्वायत्त शाखा द्वारा कार्य अपन दम-खम पर आगू बढायब, एहि तरहक सिद्धान्त पर कार्य कैल जाय।

मिथिला केँ स्थापित करबाक लेल खाली राज्य बनेबाक लोलके काजक होयत से जरुरी नहि, लेकिन ओ अन्तिम लक्ष्य जरुर थीक। आगू डेग बढेबाक लेल जे सीढी बनय ताहिक अन्तिम डेग ‘मिथिला राज्य’ थीक।

जय मिथिला!! जय जय मिथिला!!”

हरिः हरः!!