सिद्ध भूमि पर गिद्ध केर राज

मिथिला पहिने सँ एखन धरि – बस एक नजरि!

mithila-chitrakala-prashikshan-janakpurमिथिलाक लोक-संस्कृति सनातन सभ्य ओ संपन्न रहल अछि। पौराणिक इतिहास मे वर्णित एहि स्थानक चौहद्दी प्रकृति निर्मित आ अडिग-अमिट चिह्न रहल अछि। उत्तर मे हिमालय, दक्षिण सुरसरि गंगा, पूब मे कौसिकी तऽ पच्छिम मे गंडकी धारा। हाल ई मिथिला मैथिलीभाषीक बसोबासक क्षेत्र मुताबिक नेपालक ११ जिल्ला आ भारतक ३० जिल्ला धरिक क्षेत्र मानल जाएत अछि। लेकिन राज्य द्वारा निर्धारित सीमांकन वा नामांकन मे मिथिला आइ भूगोल मे कतहु नहि अछि। भाषिक पहिचान पर्यन्त अधर मे लटकल अछि, नहि तऽ प्राथमिक शिक्षाक माध्यम मे एहि मातृभाषा केँ स्थापित कैल गेल अछि, नहिये कोनो प्रशासकीय भाषाक रूप मे एकरा मान्यता देल गेल अछि। हर तरहें स्वयंसेवा ओ स्वसंरक्षण सँ स्वजीवनक संघर्ष संग मैथिली ओ मिथिला आइयो सनातन जीवित अछि।

मिथिलाक भूमि केँ तंत्र रूप मे स्थापित मानल जाएत अछि। माधव विदेह द्वारा एहि भूभाग केँ यज्ञानुष्ठान करैत मुख सँ प्रकट अग्नि द्वारा सिद्ध करब आ मानव समाज लेल रहय योग्य बनायब, ई श्रुति पुराण मे उल्लेख कैल गेल अछि। ताहि सँ पूर्व मात्र पानिये-पानि आ दलदल केर कारण एतय मानव जीवन सहज नहि छल से मान्यता अछि। अतः जाहि ठामक भूमि केँ मानव जीवन योग्य बनेबाक लेल तांत्रिक पद्धति सँ यज्ञक अनुष्ठान कैल गेल, निश्चित ओ भूमि सिद्ध-सुसंस्कृत तंत्रवत् अछि। वेदवर्णित जीवन पद्धति एहि ठामक लोकाचार मे भेटैछ ताहि कारण अन्यत्र ई चर्चा कैल जाएछ जे वेदक लोप भेलोपर मिथिलाक लोक-संस्कार अनुसार ई फेर प्रकट भऽ जायत अछि।

निश्चित रूप सँ एहि ठामक जीवन पद्धति मे कर्मकांडक महत्व आम दिनचर्या मे पर्यन्त देखल जा सकैत अछि। एहि भूभाग मे बसनिहार हिन्दू मात्र नहि, वरन् मुसलमान सेहो मोट मे एकसमान आचरण करैत अछि। आपसी सौहार्द्रता किछु एहेन छैक जे एक-दोसराक पाबैन मनेबाक लेल एक-समान आस्था एतुका हिन्दू-मुसलमान धारण करैत अछि। ओ मोहर्रम केर तजिया मे हिन्दू समाज द्वारा जल चढेनाय हो वा छैठिक घाट पर छठि मैया केँ कोनिया-ढकिया मे अपने सँ उपजायल ऋतुफल ओ पकवान कोनो मुसलमान द्वारा हो, एहि तरहक आपसी प्रेम एहि क्षेत्रक समग्र मे दुइ धर्मक लोक बीच भेटैत अछि।

प्रकृति आ पर्यावरण सँ मानव समाजक मित्रताक अनुपम रूप एहि क्षेत्र मे देखाएत अछि। ओ चाहे जुड़िशीतल ओ वैसाख मास मे गाछ-वृक्ष केँ जल सँ सिंचन करबाक एकटा अत्यन्त संवेदनशील प्रकृति प्रेम हो या नवान्न मनबैत खेतक नवका धान सँ बनल चूड़ा आ स्वपोसित गाय-महिस आदिक दूध सँ बनल दही आर अपनहि द्वारा कैल गेल कुसियारक खेती सँ प्राप्त गुड़-सक्कर – एहि मिथिलाक किछु ओहेन रूप देखबैत अछि जे पूर्णरूपेण प्रकृति केर राज मे मानव समाज केँ भरण-पोषण भेटैत अछि। गृहस्थी मात्र एहि ठामक श्रेष्ठ कर्म होएछ। श्रमदान आ जातीय संस्कार अनुरूप जीवनयापन करैत सामाजिक समरस स्वरूप संग मानवक पूर्ण सभ्य समाज मिथिला केँ मानल जाएछ।

कालान्तर मे एहि समरसताक भंग करबाक दोषी सामंती व्यवस्था हो या अत्याचारी-क्रूर राज्यक शासन या फेर वर्तमान जातिवादी राजनीति – ई सब बात मिथिलाक मूल मर्मक विरुद्ध होएबाक कारण आइ आध्यात्मिक दरिद्रता एतय दिन – राति कनैत देखाएत अछि। लोक बेहाल – घर सँ बाहर रोजी-रोटी लेल परेशान अछि। राज्यक शासन आ व्यवस्था ओकर आधारभूत समस्याक निदान नहि तकैत छैक, बस खाली ओकर संख्या देखि लोक-लुभावन आ आपसी विखंडन केँ बढाबैत ओकरहि वोट लैत ओकरे चोट दैत छैक। विडंबना! ई सुशिक्षित भूमि सँ मूल्यवान् शिक्षा आ जीवन पद्धति एहि राजनीतिक पटल पर छहोंछित भेल छैक, आपसी एकता कतहु परिलक्षित नहि होइत छैक। घर फूटे गँवार लूटे – यैह थीक वर्तमान मिथिलाक राजनीतिक स्वरूप।

आइ कतेक रास खेत परती पड़ल छैक, गाछ-वृक्ष केँ पाँगबाक फुर्सैत तक नहि, पानि सँ पटेबाक आ मानवी प्रेम सँ पर्यावरण संग मित्रताक प्रदर्शन तऽ बहुत दूरक बात भेल…. बस इतिहास आ परंपरा केँ सुमिरबा धरि ओ सब नीक लगैत छैक। मिथिलाक लोकसंस्कृति पर लोकपलायनक बवंडर सँ भयावह अवस्था नंगटे नचैत देखा रहल छैक। राज्य द्वारा एतुका लोकसंस्कार गुणे कृषिक अवस्था मे सुधार वा शिक्षाक भरपूर जोगार वा विभिन्न आधारभूत मानवीय आवश्यकता लेल आत्मनिर्भर बनेबाक प्रयास – ई सबटा बेकार छैक। बस, तूँ फल्लाँ जातिक थिकह, तोहर संख्या एतेक छह, तूँ अपना जातिक बेटा केँ नेता चुनह, बाकी जे हेतैक से वोटक बाद देखल जेतैक। बस एतबे जाति-पाति आ जनसंख्या गणना करैत पंचायत सँ प्रखंड आ जिला सँ राजधानी आ राजकीय प्रदेश ओ केन्द्र एहि सबहक बीच केवल राजनीतिक सामंती द्वारा जनताक हक-हिस्सा पर गिद्धदृष्टि पड़ल रहैत छैक, नेता समाज केर हित कि सोचत, स्वयं गिद्ध बनल मरैत जनताक जीबिते अवस्था मे देहक मासु पर चोंच मारि-मारिकय खून-खूनामे करैत राज्यक शासन व्यवस्था चलायल जाएत छैक। गिद्धक राज एहेन छैक जे हरेक पाँच वर्षक बाद फेर सँ लोक गिद्धे केँ राजा बनेबाक लेल निरीह-असहाय समान मजबूर रहैत छैक। पता नहि, एहेन सिद्ध भूमि पर एहेन निरीहता कोन कारण सँ एना कुरूप अवस्था मे पसैर गेलैक अछि।

क्रमशः…..

हरिः हरः!!