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सोचैत छलहुँ जे आब मैथिली मे लिखय के कोशिश करब

विचार

– सविता झा खान

savita jha khanमैथिली सेवी सभक लेल एकटा काल्पनिक पत्र, हम्मर कांच-कोंचिल भाषा में, पढ़ु आ गुनु, जं नव-वर्षक जाप सं पलखति भ’ जाए। नहिं छी किछ एहन नवीन एहि समय में हर्षोल्लास लेल, नहींए ई नववर्ष थिक हम्मर सभक।

मान्यवर,

आइ भोरेभोर बुझल नहिं छल जे एहन मनोरंजन बिना कोनो पुन्ने भ जायत। जी, वैह भेल। माँ सदिखन कहैत छल जे “बौआ, दोसरक गप्प में मुरियारी नइ दी, मरबें तों एक दिन” मुदा हमरा लेल त ई ‘दोसरक’ गप्प अछिये नहि। दुनु प्रिय, दुनु परिचित, हं फीता ल’क समय सीमा नहि नपैत छी हम परिचय आ सम्बंध कें। केहन विडंबना अछि हमरा लोकनि कें जे मुहांमुहीं गप्प नहि क’क बात कें वितंडा बना देलियैक! जौं बुझि पड़य जे ‘ई कियै आ कत्ते बजैया’, त’ दु थापर मारि लेब, मुदा सुन’ पड़त। दुनुकें असीम संभावना आ आस्था, अप्पन मैथिलीक प्रति तैयो ई चिट्ठाचिट्ठी केर नौबत कियैक? किया नै दुन्नु केँ प्राण जाहि तोता में बसैये तेकरा क्रमशहिं, यथासंभव सेबी, पोसी आ मगन रही, बाकी गप्प के आगि लगाउ! कि सोचने हैत सभ? ‘है! हो’ब दहिन न’ बढ़िया सँ फँस’ दहिन’ मुदा केयो किछ बाजता नहि, यैह छिकैक मैथिल ‘गुण’ जेकर कारणे गुजराती केँ चारि बेर आ मैथिली केँ मुँह झुझुयाले रहि गेल। दुन्नु श्रेष्ठ आ दुनु गुणी तैयो हमरा सभलेल की? हम सभ केकरा छोड़ू, केकरा गहु ? स्थिति त’ एहने बुझि पड़ैए जे एक टा आर फाड़ भ गेलैक। की ई ढोयई केर ताकति छइ मैथिली में ? हम सब बिना संबल कें, बिना आदर्श के कोना बढबैक? जं दुन्नु कें सृजन एक दिशा में होयत त’ मैथिली त’ सद्यहिं जीयत, मुदा एना में त’ एक्के प्रतिबद्धता रहितहु आगि त आखिर हमरे घर में लागल!

सोचैत छलहूं जे आब मैथिली में लिखै केर कोशिश करब, छाउर पड़ि गेल न! प्रथमें ग्रासे मक्षिका पात:! ई कोन शोभा? ओकरा ल’ग में जाउ ओकर खिधांस, एकरा लग जाउ त ओकर खिधांस, इ सभमें छैक, मुदा एहन? ककोडबा बियान ककोडबे खाय! यैह कहैत छैक न, ज़हन अप्पन अपने के खाय लगैत छैक! आ अपना सभ में सबतरि यैह। हमरा नहि लिखै के अछि मैथिली में। ई हम्मर निशिचत प्रण अछि अहां दुहुक समक्ष। अगला पीढ़ी तैयार क’ लिय! आ बिना अगिला पीढ़ी के अहाँ सभ के देल थाती ढ़ोयत के? इतिहासक देल औझहराहैट सभ काम नहिं छैक एही भाषा के उत्थान में तखन ऐना में त आर सभ मिटा जायत।

जाबे हमरा इ नै बुझि पड़त जे दुनु अप्पन मनोमालिन्य दुर क’ लेलहुं आ इ घ्योना कें पसारब दुर नहि भेल ताबैत धरि हमरा क’ल नहि पड़त। भाषा कें सेवा आ चरचा कहियो मनुक्ख सं पैघ नहि भ सकैये। मेल कें स्पैम में राखइ बिना हम मेल के पढब नहि। आब बेसी नहि कहब, हम्मर मोन खराब भ’ गेल। एहन मनोरंजन जुनि करि, एतबे कहब। एही कांच- कोंचिल भाषा लेल सेहो माफ़ करब। बड्ड दु:ख भेल।

क्षमाप्रार्थनाक संग!!

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