विशिष्ट व्यक्तित्व परिचयः परविन्दर कुमार लांबा ऊर्फ सरजी
– प्रवीण नारायण चौधरी
सत्संग केर महत्व
सत्संग केर महिमा सब कियो जनैत छी। एहेन कियो नहि जे नीकक संग पेबाक लेल उत्सुक नहि हो। रामचरितमानस मे महाकवि तुलसीदास कहैत छथिः
तात स्वर्ग आपवर्ग सुख धरिअ तुला एक अंग।
तुल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसंग।।
हे तात ! स्वर्ग और मोक्ष केर सब सुखो केँ तराजूक एक पलड़ा मे राखल जाय तैयो ओ सब सुख मिलियोकय दोसर पलड़ा मे राखल गेल ओहि सुख केर बराबर नहि भऽ सकैछ, जे लव माने क्षण मात्र केर सत्संग सँ होइत अछि।
‘श्रीयोगवाशिष्ठ महारामायण’ मे ब्रह्मर्षि वशिष्ठजी महाराज मोक्ष केर द्वारपाल आदिक विवेचन करैते श्रीराम सँ कहैत छथि –
“शम, संतोष, विचार एवं सत्संग – यैह संसाररूपी समुद्र सँ पार उतरबाक उपाय थीक। संतोष परम लाभ थीक। विचार परम ज्ञान थीक। शम परम सुख थीक। सत्संग परम गति थीक।”
सत्संग केर महत्व बताबैत ओ कहलैन अछिः
विशेषेण महाबुद्धे संसारोत्तरणे नृणाम्।
सर्वत्रोपकरोतीह साधुः साधुसमागमः।।
‘हे महाबुद्धिमान् ! विशेष कय केँ मनुष्यक लेल एहि संसार सँ पार उतरबा मे साधु लोकनिक समागम टा सर्वत्र खूब उपकारक अछि।’
सत्संग बुद्धि केँ अत्यंत सात्त्विक बनाबयवला, अज्ञानरूपी वृक्ष केँ काटयवला एवं मानसिक व्याधि सबकेँ दूर करयवला होइछ। जे मनुष्य सत्संगतिरूप शीतल एवं स्वच्छ गंगा मे स्नान करैत अछि ओकरा दान, तीर्थ-सेवन, तप या यज्ञ करबाक कि जरूरत छैक?”
कलियुग मे सत्संग समान सरल साधन दोसर कोनो नहि अछि। भगवान् शंकर सेहो पार्वतीजी केँ सत्संग केर महिमा बतबैत कहलनि अछि –
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।
सत हरि भजन जगत सब सपना।।
सब ब्रह्मवेत्ता संत स्वप्न समान जगत् मे सत्संग एवं आत्म-विचार सँ सराबोर रहबाक बोध दैत छथि।
उपरोक्त महिमा विज्ञ स्रोत सँ लैत अपने सबहक सोझाँ रखलहुँ अछि। लेकिन आइ सन्दर्भ अछि दुइ महत्वपूर्ण बातक, एक जे आइ साल २०१५ केर आखिर दिन थीक आर दोसर जे आइ हमरा पहिल दर्शन आध्यात्मिक गुरुदेव श्री परविन्दर कुमार लांबा सँ भेल जिनका द्वारा नित्य दिनक भाँति आइयो अपन सामाजिक संजाल केर फेसबुक पेज सँ बहुत रास जीवनोपयोगी संदेश देल गेल अछि। हिनका संग सत्संग केर लाभ जहिना हमरा अपन जीवन मे साल २००७ सँ होइत आयल अछि, किछु तहिना अपने लोकनि केँ सेहो होय, एहि मनसाक संग ई आलेख मैथिली जिन्दाबाद पर राखि रहल छी।
श्री परविन्दर कुमार लांबा – एक परिचय
अवकाशप्राप्त बैंककर्मी – आध्यात्म मे भरपूर रुचि – शरणागतवत्सल भगवान् केर हर रूप मे एक रूप माननिहार व्यक्तित्व – सदिखन समर्पित भावना सँ उच्च महत्वक ज्ञान हेतु स्वाध्याय मे रत – अपना सहित सब मानव समाज लेल ताहि सुन्दर ज्ञान केँ बाँटवाक सदिच्छा – दिन भरि मे कोनो एक व्यक्ति केँ सुखी बनेबाक परोपकारी भावना सहितक संकल्प – आर अनेकानेक सत्संग सम्बन्धी वार्ता मे रुचि राखैत जीवनक कतेको बसन्तक अनुभूतिक संग उपलब्ध रहनिहार परमादरणीय व्यक्तित्व – हमर आध्यात्मिक गुरुजन केर नाम भल परविन्दर कुमार लांबा ऊर्फ सरजी। अपने दिल्लीक जनकपुरी मे रहैत छी आर सदिखन परोपकारक भावना सँ विभूषित आत्मा सँ बिना कोनो स्वार्थ वा लोभ-लालसाक निरंतर कार्यरत रहैत छी। अपने प्रणम्य छी। अपन स्टेटस व अन्य पोस्ट्स मार्फत सदिखन आम जनमानस लेल ज्ञानामृत बँटैत रहैत छी।
अपने द्वारा बाँटल जा रहल ज्ञानामृत रामायण, गीता, गुरुवाणी, बाइबल, कुरान आदि सँ रहैत अछि। जाहि आत्मज्ञान सँ लोक-कल्याण होयत, वैह अपने हमरा सब लेल सोझाँ रखैत रहैत छी। भक्तवत्सल भगवान् आर भक्तक गाथाक संग-संग आन्तरिक उद्वेलित मनोदशा केर सुधार आर विकास लेल प्रेरक कथा-गाथा आदि सेहो अपने भिन्न-भिन्न स्रोत सँ हमरा सबहक सोझाँ रखैत आबि रहल छी। अपने फेसबुक, ट्विटर, ओर्कुट – जाहि कोनो साधन सँ संभव अछि ताहि सँ अपन सेवा निरंतर दैत छी। वर्तमान समय मे फेसबुक ओ व्हाट्सअप पर अपनेक निरंतर योगदान सँ हमहुँ लाभान्वित होइत छी। आइ सँ अपनेक परिचय हमर मिथिलाक मैथिलीभाषी बीच बाँटि देलाक बाद ई परिधि मे आरो वृद्धि होयत से सोचि ई परिचय प्रकाशित कय रहल छी।
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नववर्ष पर अमूल्य मार्गदर्शन
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रावण को रथ पर और श्री रघुवीर को बिना रथ के देखकर विभीषण अधीर हो गए। प्रेम अधिक होने से उनके मन में सन्देह हो गया (कि वे बिना रथ के रावण को कैसे जीत सकेंगे)। श्री रामजी के चरणों की वंदना करके वे स्नेह पूर्वक कहने लगे॥1॥हे नाथ! आपके न रथ है, न तन की रक्षा करने वाला कवच है और न जूते ही हैं। वह बलवान् वीर रावण किस प्रकार जीता जाएगा? कृपानिधान श्री रामजी ने कहा- हे सखे! सुनो, जिससे जय होती है, वह रथ दूसरा ही है॥2॥शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं। सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं। बल, विवेक, दम (इंद्रियों का वश में होना) और परोपकार- ये चार उसके घोड़े हैं, जो क्षमा, दया और समता रूपी डोरी से रथ में जोड़े हुए हैं॥3॥ ईश्वर का भजन ही (उस रथ को चलाने वाला) चतुर सारथी है। वैराग्य ढाल है और संतोष तलवार है। दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है॥4॥निर्मल (पापरहित) और अचल (स्थिर) मन तरकस के समान है। शम (मन का वश में होना), (अहिंसादि) यम और (शौचादि) नियम- ये बहुत से बाण हैं। ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है। इसके समान विजय का दूसरा उपाय नहीं है॥5॥हे सखे! ऐसा धर्ममय रथ जिसके हो उसके लिए जीतने को कहीं शत्रु ही नहीं है॥6॥
* रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
* नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
* सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥
* ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥
* अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥5॥
* सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें॥6॥
क्रमश :(शेष कल)
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श्रीरामचरितमानस से
Teachings from Gurbani:
The mortal is entangled in Maya; he has forgotten the Name of the Lord of the Universe.Says Nanak, without meditating on the Lord, what is the use of this human life? ||30||
मनु माइआ मै फधि रहिओ बिसरिओ गोबिंद नामु ॥
कहु नानक बिनु हरि भजन जीवन कउने काम ॥३०॥
आज का चिन्तन
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🌸जीवन बोध में जीना सीखो विरोध में नहीं, एक सुखप्रद जीवन के लिए इससे श्रेष्ठ कोई दूसरा उपाय नहीं हो सकता। जीवन अनिश्चित है और जीवन की अनिश्चितता का मतलब यह है कि यहाँ कहीं भी और कभी भी कुछ हो सकता है।
🌸यहाँ पर आया प्रत्येक जीव बस कुछ दिनों का मेहमान से ज्यादा कुछ नहीं है, इसीलिए जीवन को हँसी में जियो, हिँसा में नहीं। चार दिन के इस जीवन को प्यार से जियो, अत्याचार से नहीं।
🌸जीवन जरुर आनंद के लिए ही है इसीलिए इसे मजाक बनाकर नहीं मज़े से जियो। इस दुनियां में बाँटकर जीना सीखो बँटकर नहीं। जीवन वीणा की तरह है, ढंग से बजाना आ जाए तो आनंद ही आनंद है।- संजीव कृष्ण ठाकुर जी
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भक्तिवर्धिनी की सीख
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सांसारिक आकर्षण शेष रहते हुए भी चित्त को श्रीहरि के श्रवण-स्मरण में तब तक प्रयत्नपूर्वक लगाना चाहिए जब तक कि उनमें क्रमशः प्रेम, आसक्ति और व्यसन की प्राप्ति न हो जाये॥३॥
व्यावृतोsपि हरौ चित्तं
श्रवणादौ यतेत्सदा।
ततः प्रेम तथाssसक्ति-
र्व्यसनं च यदा भवेत्॥३॥
संगहि, अपनेक देल काल्हिक एक महत्वपूर्ण कथाः
एक मकड़ी थी. उसने आराम से रहने के लिए एक शानदार
जाला बनाने का विचार किया और सोचा की इस जाले मे खूब
कीड़ें, मक्खियाँ फसेंगी और मै उसे आहार बनाउंगी और मजे से
रहूंगी . उसने कमरे के एक कोने को पसंद किया और
वहाँ जाला बुनना शुरू किया. कुछ देर बाद आधा जाला बुन कर
तैयार हो गया. यह देखकर वह मकड़ी काफी खुश हुई
कि तभी अचानक उसकी नजर एक बिल्ली पर पड़ी जो उसे
देखकर हँस रही थी.
मकड़ी को गुस्सा आ गया और वह बिल्ली से बोली , ” हँस
क्यो रही हो?”
”हँसू नही तो क्या करू.” , बिल्ली ने जवाब दिया , ”
यहाँ मक्खियाँ नही है ये जगह तो बिलकुल साफ सुथरी है,
यहाँ कौन आयेगा तेरे जाले मे.”
ये बात मकड़ी के गले उतर गई. उसने अच्छी सलाह के लिये
बिल्ली को धन्यवाद दिया और जाला अधूरा छोड़कर
दूसरी जगह तलाश करने लगी. उसने ईधर ऊधर देखा. उसे एक
खिड़की नजर आयी और फिर उसमे जाला बुनना शुरू किया कुछ
देर तक वह जाला बुनती रही , तभी एक चिड़िया आयी और
मकड़ी का मजाक उड़ाते हुए बोली , ” अरे मकड़ी , तू
भी कितनी बेवकूफ है.”
“क्यो ?”, मकड़ी ने पूछा.
चिड़िया उसे समझाने लगी , ” अरे यहां तो खिड़की से तेज
हवा आती है. यहा तो तू अपने जाले के साथ ही उड़ जायेगी.”
मकड़ी को चिड़िया की बात ठीक लगीँ और वह
वहाँ भी जाला अधूरा बना छोड़कर सोचने लगी अब
कहाँ जाला बनायाँ जाये. समय काफी बीत चूका था और अब
उसे भूख भी लगने लगी थी .अब उसे एक
आलमारी का खुला दरवाजा दिखा और उसने उसी मे
अपना जाला बुनना शुरू किया. कुछ जाला बुना ही था तभी उसे
एक काक्रोच नजर आया जो जाले को अचरज भरे नजरो से देख
रहा था.
मकड़ी ने पूछा – ‘इस तरह क्यो देख रहे हो?’
काक्रोच बोला-,” अरे यहाँ कहाँ जाला बुनने चली आयी ये
तो बेकार की आलमारी है. अभी ये यहाँ पड़ी है कुछ दिनों बाद
इसे बेच दिया जायेगा और तुम्हारी सारी मेहनत बेकार
चली जायेगी. यह सुन कर मकड़ी ने वहां से हट जाना ही बेहतर
समझा .
बार-बार प्रयास करने से वह काफी थक चुकी थी और उसके
अंदर जाला बुनने की ताकत ही नही बची थी. भूख की वजह से
वह परेशान थी. उसे पछतावा हो रहा था कि अगर पहले
ही जाला बुन लेती तो अच्छा रहता. पर अब वह कुछ नहीं कर
सकती थी उसी हालत मे पड़ी रही.
जब मकड़ी को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता है तो उसने
पास से गुजर रही चींटी से मदद करने का आग्रह किया .
चींटी बोली, ” मैं बहुत देर से तुम्हे देख रही थी , तुम बार- बार
अपना काम शुरू करती और दूसरों के कहने पर उसे अधूरा छोड़
देती . और जो लोग ऐसा करते हैं , उनकी यही हालत होती है.”
और ऐसा कहते हुए वह अपने रास्ते चली गई और
मकड़ी पछताती हुई निढाल पड़ी रही.
दोस्तों , हमारी ज़िन्दगी मे भी कई बार कुछ ऐसा ही होता है.
हम कोई काम start करते है. शुरू -शुरू मे तो हम उस काम के
लिये बड़े उत्साहित रहते है पर लोगो के comments की वजह
से उत्साह कम होने लगता है और हम अपना काम बीच मे
ही छोड़ देते है और जब बाद मे पता चलता है कि हम अपने
सफलता के कितने नजदीक थे तो बाद मे पछतावे के
अलावा कुछ नही बचता.