विशेष संपादकीयः महाराष्ट्र मैथिल समाज
मुम्बई मे हालहि संपन्न अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलनक १२म वर्षगाँठ जाहि स्वरूप मे आर जाहि तरहक वृहतत्तर जनसहभागिता मे मनायल गेल ओ वर्षों-वर्ष धरि तऽ स्मृति मे रहबे करत लेकिन प्रत्येक मैथिल केर मन-मस्तिष्क अपन पहिचानक विशिष्टता केँ आत्मसात करबाक लेल सेहो मजबूर केलक एकर प्रमाण देखय मे आबि रहल अछि।
नवभारत टाइम्स केर जानल-मानल पत्रकार विमल मिश्र केर स्तम्भ ‘हम मैथिल छी – मैथिली हम्मर भाषा’ शीर्षक सँ प्रकाशित भेल अछि जाहि मे सम्भ्रान्त मैथिल सँ महाराष्ट्रक धरती पर आन्दोलित होयबाक कारण पर अन्वेषण कैल गेल अछि। निचोड़ मे देखल गेल जे निज राज्य द्वारा राजनैतिक उपेक्षाक शिकार मैथिल आइ देशक विभिन्न भाग मे प्रवासी बनिकय बसबाक लेल बाध्य भेला अछि, लेकिन आब अपन मौलिक अधिकार मे भाषिक पहिचान आर राज्य केर आवश्यकता पर लगभग हरेक प्रबुद्ध मिथिला नागरिक केँ ध्यान जाय लागल छन्हि। एहि क्रम मे महाराष्ट्र हो या दिल्ली या जमशेदपुर या राँची या नागपुर या चेन्नई – एतय तक कि बेलायत व अमेरिका आदि मे रहनिहार मैथिल सेहो अपन समूह निर्माण करैत भाषिक पहिचान केर संरक्षण मे आगू आबि रहला अछि। एहि क्रम मे ‘विद्यापति’ समान महाकवि व समर्पित अभियानी – राज सेवक – मिथिलाक पहिचान केर एकटा सुविख्यात प्रतीक केर स्मृति समारोह, साहित्यिक गोष्ठी, विचार गोष्ठी, कवि सम्मेलन आदि सब बातक महत्व बढि गेल बुझाइत अछि। आलोचना कएनिहार पूर्ववत् अपन दूसबाक कला मे समारोह पर खर्च केँ बेकार मानि रहला अछि, लेकिन सच यैह छैक जे वर्तमान राज्यविहीन मिथिला व घोर राजकीय उपेक्षाक शिकार मैथिली केँ जिबन्त रखबाक लेल यैह स्वयंसेवा व स्वसंरक्षणक सिद्धान्त कारगर बनि रहल अछि।
महाराष्ट्र मे मैथिल समाज द्वारा ठोस योजना कि सब बनायल गेल अछि मैथिली व मिथिलाक संरक्षण लेल – एहि विन्दु पर कैप्सन कवरेज दैत विमल मिश्र नवभारत टाइम्स मे लिखलनि अछि जेः
१. मैथिली भाषाक उत्थानक लेल मैथिली अकादमीक स्थापना लेल महाराष्ट्र सरकार सँ अनुरोध करब।
२. मिथिला भवन केर निर्माण करब।
३. मिथिला क्षेत्र तक सुविधापूर्ण आवागमन लेल पटनाक रास्ते दैनिक ट्रेन केर माँग करब।
४. गरीब मैथिल परिवार केँ शैक्षिक आर चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध करायब।
५. मिथिला पेन्टिंग आर हस्तशिल्प आदि पर जोर दैत मिथिलाक कुटीर उद्योग केँ प्रोत्साहित करब।
६. मिथिला सँ बाहरे (महाराष्ट्र-मुम्बई) मे जन्म लैत जवान बननिहार नव पीढी केँ मैथिली संस्कार संग जोड़ब।
७. राजनीतिक रूप सँ मैथिल केर अलग पहिचान आर महत्व बढायब।
विडंबना ईहो छैक जे मिथिला सँ बाहर एखन धरि एहि तरहक जागरण मात्र सक्षम आर अग्रपंक्ति मैथिल ब्राह्मण समाज मे बेसी छैक। मैथिल ब्राह्मण समाज मे बौद्धिकता स्तर उच्च रहितो आपसी खंडन-मंडन केर प्रचूरता सँ एकजुट रहबा मे कमिये टा नहि बल्कि असंभव छैक। तथापि, कर्मठ लोकक झूंड मे एकोटा शेरे-बब्बर बेटा जिम्मेवारी उठा लेलक तऽ विश्वकर्मा बाबा जेकाँ राताराती महल ठाढ कय दैत छैक। यैह थिकैक मैथिलक जागृतिक संपूर्ण गाथा जाहि पर आलोचना कएनिहार ‘झा-झा गाड़ी’ तऽ ‘किछु बाभनक संङोर’ आदि कहिकय एकर महत्वकेँ अपने कमजोर करैत अछि। घर फूटे गँवार लूटे… स्वयं अपन राज्य मे पर्यन्त विभाजित जाति-समुदाय-वर्गीय समाज संग घोर राजनीतिक उपेक्षाक शिकार बनल मिथिला अपन पहिचान केँ जोगेबाक लेल त्राहि-त्राहि कय रहल अछि। लेकिन प्रवासी मैथिलक योगदानक महत्व आबयवला पीढी सुमिरत, ई कियो नहि काटि सकैछ।
एकटा आलोचना आरो होइत छैक – जेना कबूतरबाजी एकटा शब्द विशेष अवस्थाक वर्णन करबाक लेल हिन्दी मे प्रयोग कैल जाएत छैक, किछु तहिना मिथिलाक लोक मे ‘पेपरबाजी’ करबाक शख रहैत छैक। कतेक लोक पेपर कटिंग पर लाइब्रेरी तक केर निर्माण कय लेने अछि। बड़का-बड़का सभा मे क्रोनोलोजिकल अर्डर मे ओ पेपर कटिंग सब परोसल जाएत छैक जे फल्लाँ समय फल्लाँ कार्य हमरे द्वारा भेल, हम मठाधीश से मानि लेल जाउ… अरे अहाँ कि करब, हम हेन्ना मारलौं – होन्ना मारलौं – एनी-मेनी-टेनी…. बातक अन्ते नहि होइत रहत। मुदा परिणाम सँ सब कियो सुपरिचित छी जे आइ मैथिल समुदाय चाहे ओ कोनो जातिक रहय, कोनो वर्गक रहय, कोनो धर्मक रहय…. ओकरा अपन घरहि मे दरिद्रताक ताण्डव किछु एहि तरहक भऽ रहल छैक जे पूर्व मे गामो केर सीमा टपब पाप माननिहार मिथिलाक गणमान्य आ पण्डित लोकनि आइ दूर – सुदूर प्रदेश मे बसबाक लेल मजबूर अछि।
विदेहक संतान आइ खुलेआम भौतिकवादी दुनियाक उर्वशी संग नंगटे नाच करबाक लेल आतूर अछि। पता नहि एकरा लोकनिक ई दुर्दशाक प्रारब्ध कि होमयवला अछि! लेकिन पूर्वज ऋषि-मुनि-विचारक लोकनिक मार्गदर्शन एकर सनातन पहिचानक रक्षा करय ई बस कामना कय सकैत छी। महाराष्ट्रक बहुत रास गणमान्यक चर्चा एहि आलेख मे आयल अछि, कतेको केँ व्यक्तिगत तौर पर हम बड नजदीक सँ चिन्हलहुँ। आशा करैत छी जे मात्र पेपरबाजी नहि, थोथा गप नहि, महाराष्ट्र मैथिल समाज नाहैत सीना ठोकिकय ‘न भूतो न भविष्यति’ केर तर्ज पर अन्तर्राष्ट्रीय मैथिली सम्मेलन समान वा ताहू सँ बेहतर कार्य करैत देखाबथि। मैथिली अकादमीक मांगवला ज्ञापन-पत्र तक जँ सरकार लंग सही मे गेल होइक तऽ मैथिली मिडिया केँ सेहो ओकर प्रतिलिपि उपलब्ध कराबैथ। एहि वास्ते जतय तक लबिंग कैल जा सकैत छैक सब कियो मिलिजुलिकय करैथ। शुभम् अस्तु!
हरिः हरः!!