गाजियाबाद। दिसम्बर १३, २०१५. मैथिली जिन्दाबाद
महान् मैथिली-हिन्दी साहित्यकार राजकमल चौधरीक पुण्य-तिथि पर साहित्यकार पुत्र ‘नील माधव चौधरी’ केर संस्मरण पाँतिक मैथिली अनुवाद
आइ तेरह दिसम्बर थीक, अहाँक जन्म दिन । आइ अहाँ रहितहुँ तऽ छियासी बर्खक होइतहुँ, मुदा भगवानक मरजीक आगाँ केकर वश चलल अछि । एनाय-गेनाय तऽ लगले रहैत अछि और लगले रहत मुदा एबा – जेबाक बीच यानि मार्ग मे जे एक पडाव बना देल जाएछ, दुनियाँ तऽ ओकरहि टा जानि पबैत अछि, और अहाँ तऽ एकटा विशालकाय छायादार गाछ रोपि देलहुँ जेकर तरुण छाया केर लोक भरपूर आनन्द लैत अछि, और प्रेरित भऽ नव-नव पडाव केर निर्माण करैत अछि ।
बाबा नागार्जुन केर ओ पाँति सब बेर-बेर मोन पड़ैत अछि…
बाहर बाहर छलनामय
भीतर भीतर थे निश्छल
तुम तो अद्भूत व्यक्ति थे
चौधरी राजकमल
(बाहर बाहर छलनामय
भीतरे-भीतर छलहुँ निश्छल
अहाँ तऽ अद्भुत व्यक्ति छलहुँ
चौधरी राजकमल)
सच्चे कतेक अद्भुत व्यक्तित्व छलहुँ, कतेक अव्यव्स्थित जीवन और कतेक प्रभावशाली रचना सब । आइयो ‘मछली मरी हुई’, ‘मुक्तिप्रसंग’, ‘सामुद्रिक और बस स्टाँप’ जेहेन रचनाक तूलना नहि। ई अलग बात भेल जे अपने समान रचनाकार केँ साहित्य केर मठाधीश सब ओ स्थान हासिल नही होमय देलनि जेकर अहाँ हकदार रही । मुदा ओ कहल जाएत अछि न जे कि राति कतबो बड़का कियैक नहि हो मुदा भोर भइये कय रहैत छैक, आखिरकार १९ जुन, २०१५ केँ अहाँक रचनावली प्रकाशित भेल। संपादक श्री देव शंकर नवीन केर अथक प्रयास एवम् राजकमल प्रकाशन केर सहयोग सँ मात्र ई संभव भऽ सकल । खेद अछि जे एतेक बड़का अंतरालक बादो एहि मे कतेको रास रचना सब समेटल नहि जा सकल, यत्र-तत्र छीटल विशाल साहित्य केँ सहेजब आसान नहि छल।
अहाँक रचना केँ कतेको बेर आ बेर-बेर पढलहुँ, अहाँके चिन्हबो केलहुँ तऽ बस अहाँक रचनहि टा सँ। जखन कखनहु अहाँक रचनाक बीच सँ पार करैत छी तऽ अजीब तरहक अनुभूति होएत अछि, एकटा नव स्वाद, नव जिज्ञासा – आखिर एहेन क्रांतिकारी रचना लिखबाल लेल कतेको टन साहस आर आत्मशक्तिक आवश्यकता रहल होयत आर अपने केना से हासिक केने होयब।
अहाँक रचना सब गाम-देहातक रस्ते सँ चलैत-फिरैत नगर-महानगर आर देशक सीमा नपैत विदेशी साहित्य तक केँ अपन जद मे लैत अछि ।
कहैत तऽ सब अछि जे उत्थान, कतार केर आखिरी व्यक्ति तलिक हो, मुदा सोच कहियो व्यवहार मे नही उतरि पबैछ, नहि तऽ दुनिया एहेन नहि होइतय । ओना तऽ संगीत, साहित्य साधकक चीज थीक, लेकिन आदमीक बढैत जरूरत ओकरा समझौता करबाक लेल विवश कय दैत अछि ।
लेखक और संगीत प्रेमी सेहो एहि सँ नहि बैच सकल । और साहित्य, समाज तथा सरकार केर बीच मजाक बनिकय रहि गेल । जखन समाज मे सबसँ दुरूह कार्य पढब और सुनब बनि जाय तखन ओतय प्रगतिक बात स्वतः बयमानी लगैछ । साहित्य समाज सँ कटैत गेल । एहेन समय मे अपने जेहेन लेखनक आवश्यकता और उपयोगिता बहुते बढि जायत अछि। हमरा खुशी अछि जे अपनेक लेखन सँ प्रभावित लेखकगण आइयो अपनेक कार्यकेँ बाकायदा परिणाममुखी बना रहला अछि। अपने केँ बेर-बेर नमन!!
– नील माधव चौधरी