नवम्बर २७, २०१५. मैथिली जिन्दाबाद!!
कतार केर दोहा मे होयत विद्यापति स्मृति पर्व समारोह
आइ २७ नवम्बर, २०१५ मिथिला व मैथिलीक संसार मे एकटा नव इतिहास रचल जा रहल अछि। विदेश मे प्रवास पर रहि रहल मैथिल युवा स्रष्टा सब मिलिकय महाकवि कोकिल विद्यापति केर स्मृति दिवस मनाबय जा रहला अछि।
एहि सुअवसर पर मैथिल केर पहिचान व सम्मानक प्रतीक पाग केर अभाव केँ आयोजक स्रष्टा स्वयं निर्माण सँ पूरा कएलनि अछि। किछु दिवस पूर्वहि विन्देश्वर ठाकुर – संयोजक पाग केर आपूर्ति दोहा-कतार मे कोना होयत पूछने छलाह। पाग केर आपूर्ति मिथिलाक केन्द्र दरिभंगा, मधुबनी ओ जनकपुर सँ होएत अछि। धरि दोहा – कतार वा अरब देश मे ई कोना उपलब्ध होयत ताहि पर हम विन्देश्वर जी केँ किछु सुझाव दैत स्वयं निर्माण करबाक सल्लाह देने रही। आर…. आइ दोहा मे मैथिल केर पाग स्रष्टाक लगन व समझदारी सँ तैयार भऽ गेल अछि। आजुक समारोह मे एकर भरपूर आ सही उपयोग होयत।
आइ विद्यापतिक आत्मा आरो जुड़ेतैन
यथार्थतः आइ एकटा गंभीर समारोह विदेशक भूमि पर ओहि स्रष्टा सब द्वारा कैल जा रहल अछि जे सब मातृभाषाक सेवा मे दिन-राति एक केने रहैत छथि। ओ हिन्दू छथि, ओ मुसलमान छथि, ओ गैर ब्राह्मण छथि, ओ पिछड़ा आ दलित परिवार सँ छथि – मुदा हुनक समर्पण विद्यापतिक ओहि नाराकेँ बुलन्द कय रहल अछि जाहि मे ओ मातृभाषाक सनातन महत्व हमरा लोकनि केँ बुझबैत आबि रहला अछि।
विद्यापतिक जीवन पर्यन्त आम मैथिल जनमानस लेल योगदान
विद्यापति मिथिलाक जनकवि छलाह। ओ आइ सँ करीब ७०० वर्ष पूर्वहि अपन जीवनकाल १३५०-१४५० ईस्वी मे मातृभाषाक महत्व केँ समाज मे स्थापित कएलनि। ताहि समय पण्डित व पाण्डित्यक वर्चस्व समाज पर हावी रहल छल तथा देवभाषा संस्कृत मात्र शिक्षाक माध्यम रहल छल। मुदा राज परिवार मे कार्यरत विद्वान् पिताक संग प्रखर प्रदर्शक रचनाकार विद्यापति आम जनमानसक भाषा ‘अवहट्ट’ (वर्तमान मैथिली) जे प्राकृत व संस्कृत केर मिश्रित रूप मैथिली छल ताहि मे रचना करब शुरु कए देलनि। हुनकर देल ई नारा ‘देसिल वअना सब जन मिट्ठा, तैँ तैसओं जंपओं अवहट्टा’ आइयो ओतबे प्रासंगिक आ प्रसिद्ध अछि। विद्यापतिक प्रसिद्धि आम जनमानस मे यैह कारण सँ भेल जे ओ मातृभाषा केर महत्व संग सबकेँ जोड़ि देला। अपन बोली मे मीठ-मीठ रचना सबहक बुझबाक योग्य भेलाक कारण ओ विद्यापतिक रचना जनवाणी बनि गेल। ताहि समयक उद्भट्ट विद्वान् पंडित केशव मिश्र विद्यापतिक कठोर आलोचना करैथ, हुनक मानब छल जे संस्कृत भाषा केँ छोड़ि मैथिली मे विद्वत् कार्य सँ शिक्षाक बेशकीमती परंपराक महत्व कम होयत। लेकिन विद्यापति मे पंडित ओ पांडित्यक अतिरिक्त सब वर्ग मे शिक्षाक प्रसार बरोबरि होयत तऽ समाजक विकास समुचित ढंग सँ होयत, एहि परिकल्पनाक संग ओ मैथिलीक प्रवर्धन केलनि।
कहल जाएछ जे विद्यापतिक योगदान केँ अनपढ समाज सेहो स्वीकार करैत हुनक रचना आदिक संग नाच करैत ज्ञान अर्जन करय लागल छल। एहि नाचकेँ विदापत नाच केर संज्ञा देल जाएत छल। ढोल-नगाड़ाक संग किछु पात्र मिलिकय गीत गाबि-गाबि पंडित-पांडित्यक ज्ञान केँ अपना हिसाबे अनपढ समाज धरि पहुँचाबैत छल। निश्चित रूप सँ पंडितक ज्ञान उच्च व गुणस्तरीय होएत छल जाहि पर गैर-ब्राह्मण वा अशिक्षित समाजक पहुँच नगण्य होएत छल। मुदा विदापत नाचक माध्यम सँ हंसी-मखौल करैत ओहि उच्च ज्ञान केँ अपना हिसाबे नाटकक पात्र केर माध्यम सँ पसारल जाएत छल। एहेन नाच समाज मे दिन-राति आ हप्तों-महीनों धरि कएल जाएत छल। एहि नाचक चारूकात लोक सब डेरा जमाकय रहय आर ओत्तहि जीवनोपयोगी समस्त कर्म-धर्म केर आयोजन होएत छल। विद्यापतिक लोकप्रियता सँ भले पण्डित समाज मे कनेक विरोध छल, मुदा राज-परिवारक नजदीक आ जनप्रिय हेबाक कारणे हुनकर कार्य मे कतहु कोनो समस्या नहि होएत छल।
धर्म अनुरूप कर्म सबहक अपन-अपन होएत छैक। एहि मे कत्तहु दुइ मत नहि जे विद्यापति स्वयं संस्कृतक अगाध विद्वान् छलाह। कहल जाएछ जे बच्चहि सँ हुनकर प्रस्तुति एकटा अप्रतिम विद्यावान्-प्रतिभावान् समान होइत छल। राज-दरबार मे सेहो पिताक संग ओ पहुँचैथ आर हुनक प्रस्तुतिक सराहना खुइलकय राजा व समस्त दरबारी विद्वान् लोकनि करैथ। विद्यापति निज धर्म मे सेहो महारत हासिल कएने छलाह। ओ महादेव तथा कुलदेवीक संग-संग गंगाक भक्ति मे सेहो बहुत आगाँ छलाह। एहि मे कोनो अतिश्योक्ति नहि जे जनप्रिय – सर्वप्रिय कवि कोकिल ईश-प्रिय सेहो छलाह आर हुनक रचनाक भाव ओ मिठास मे डूबिकय परमानन्द प्राप्त करबाक लेल ईष्ट महादेव उगनाक रूप मे हुनक सेवक बनि रहैत छलाह। स्पष्ट छैक जे महादेव केर अन्तर्धान भेलाक बाद महाकवि घोर विलाप करैत हुनका ताकैत छथि आर ताहि घड़ीक रचना ‘उगना रे मोरा कतय गेलाह – कतय गेला शिव किदहु भेलाह’ आइयो लोकक हृदय केँ छूबैत अछि आर श्रोताकेँ नोरे-झोरे कना उठैत अछि।
अति-राजनीति सँ विद्यापतिक आत्मा केँ होइत हेतैन कष्टः एकजातीय आयोजक केँ भेटत दोहाक समारोह सँ सीख
राजनीतिक मारि आइ-काल्हि विद्यापति समान सर्वप्रिय केँ पर्यन्त नहि छोड़ैत अछि। कतेको ठाम विद्यापति स्मृति समारोह मे गैर-ब्राह्मण राजनेता सहभागिता देबाक लेल बहन्ना बनबैत देखल जाएत छथि। हुनका एना लगैत छन्हि जेना विद्यापति केँ श्रद्धाञ्जलि देला सँ ब्राह्मणक पूजा अनचोके मे भऽ जायत। ओ सब खुलिकय बजैत देखाएत छथि जे बभना आर के सम्मेलन थीक विद्यापति स्मृति समारोह। एहेन अवस्था कतहु-कतहु जरुर बनि जाएत छैक जे हुनका आरोप लगेबाक अवसर भेटैत छन्हि, लेकिन ओ अपन पिछड़ापण केँ दूर करैत विद्यावान् बनि विद्यापतिक योगदानक चर्चा करबाक लेल मंचक उपयोग करय सँ स्वयं केँ वंचित रखैत छथि आर जातिवादी राजनीति केर उजमाइर मे समाज केँ फँसबैत छथि। विद्यापतिक आत्मा एहि अवसर व कूराजनीति सँ जरुर दुःखी होइत हैत, कारण ओ पंडित रहितो संस्कृत भाषाकेँ छोड़ि मैथिली जे आम जनक भाषा थीक तेकरा पोषण व संवर्धन केलाह। एक सँ बढिकय एक रचना मैथिली भाषा मे कय देलाह जाहि कारण मैथिली साहित्यकेँ पुष्ट मानल जाएछ, ओही बुनियाद पर आजुक दिन भारतक संविधानक अष्टम् अनुसूची मे स्थान पाबि चुकल अछि। एहेन राजनेता व एक-जातीय आयोजक लोकनि लेल ‘दोहाक विद्यापति स्मृति पर्व समारोह’ एकटा सीख होयत।