मैथिली गीत-संगीत मे आधुनिकताक नंगापनः जायज कि नाजायज

बहस

  • प्रवीण नारायण चौधरी

मिथिला मे गारि पढनाय तक केँ व्यवहारिक संसार लेल अनिवार्य देखबैत अनेको गीतनाद द्वारा स्थापित कैल गेल छैक। मुदा वर्तमान समय धरि बाजारूपन शैली सँ मैथिली गीतनाद प्रभावित भेल अछि कि?

एकटा कार्यक्रम मे मिथिलाक एक सुप्रसिद्ध गायक केँ नर्तकी संग देखायल गेल एहि तस्वीर पर प्रश्न उठल अछि। मुकेश मिश्र दिल्ली वा अन्यत्र आयोजित एकटा मैथिली सांस्कृतिक कार्यक्रमक फोटो राखि प्रश्न उठौलनि अछि।

nudity in maithili

प्रश्न छैकः “कि एहि तरहक कार्यक्रम सँ मिथिला-मैथिली कहियो आगू बढत या अपन मिथिलाक संस्कृति बाँचत?”

प्रश्न बड गूढ छैक। एकरा विस्तार देला सऽ बहुते बात उठि जेतैक। काल्हि धरि मैथिली कार्यक्रम हो सेहो नहि चाहैत छल लोक। लेकिन विगत किछु वर्ष मे आन्दोलन चरम पर पहुँचला सँ लोक मे एतेक आस्था जागि गेलैक जे हो न हो सांस्कृतिक कार्यक्रम मे अपन मैथिलीक मिठास बेसी कर्णप्रिय व शान्तिपूर्ण होएत छैक।

तखन फेर एहेन नंगापन – नग्नता या फूहरता केर प्रदर्शन कि मैथिलीक मिठासक रक्षा कय सकत? एकर जबाब सेहो सीधा छैक, बाजार केर माँग अनुरूप आपूर्ति कैल जेबाक अर्थशास्त्रीय पद्धति अनुसार जाहि बातक माँग छैक तेकर परिपूर्ति कैल जा रहलैक अछि। कोनो कलाकार केर एहि मे कि दोख देबैक, वा फेर ओहि प्रदर्शनक कि दोख देबैक।

वर्तमान समय मे मैथिली भाषा तक केँ बाभनक भाषा कहि बहुसंख्य द्वारा प्रतिकार करेबाक एकटा राजनीतिक षड्यन्त्र देखल जा रहलैक अछि। जे व्यक्ति स्वयं सेहो घर-परिवार मे मैथिली बजैत अछि ओहो पब्लिकली बाजैत देखाएत अछि जे ई भाषा हमरा आर के नइ हय, ई तऽ बभना आर के भाखा हय। एहेन सन अवस्था मे समाज केँ जोड़बाक लेल भोजपुरीक फूहरता काजक तऽ नहिये टा होयत, ओकरा आर के नंगे-नंगे नाच आर पसिन हय तब अहाँ आर निमन तिमन खाय लेल देबय ई कोनो जरुरी हय, नइ ना!

एकटा बात ईहो स्पष्ट छैक जे वर्तमान समय मे दर्शकवर्ग बहुसंख्य जनसाधारण टा छैक आर ओकर मनोरंजन नटुआक नाच मे छैक। नटुआ जतेक रंगी-चंगी हेतैक ओकरा ओतेक नीक लगतैक। ओहि नौटंकी मे जतेक मसाला भेटतैक ओ ओहि मे आनन्द प्राप्त करत। ओकरा लेल मैथिली-मिथिला आ संस्कृति आदि दुइ जुमक रोटीक जोगारक आगाँ नगण्य छैक। ओकरा समाज मे कोन बातक कि असैर पड़ैत छैक सेहो सोचबाक कोनो औचित्य नहि छैक। ओकर साक्षरता आर शिक्षा-दीक्षा सँ ई गूढ चिन्तन संभव नहि छैक।

समाज मे बौद्धिक चिन्तन केर कार्य सम्भ्रान्त-सज्जनवर्ग द्वारा कैल जाएछ। विदित हो जे मिथिलाक ओ तथाकथित बुद्धिजीवी व सज्जनवर्ग आजुक समय मे अपनहि भाषाक शत्रु बनि गेल अछि। अधिकांश लोक केँ मैथिली बाजब तक मे लाजक अनुभूति होइत छैक। अपन संतान-सखा केँ मैथिली सँ दूर हिन्दी व अंग्रेजीक अफीमी नशा मे चूर करबैत अछि। तथापि गोटेक प्रतिशत सम्भ्रान्त लोक मे आइयो अपन भाषा एवं संस्कृति प्रति लगाव अछिये आर काज टुकधुम-टुकधुम भऽ रहल अछि। जागरुकता जाहि स्तर पर पहुँचबाक चाही ताहि लेल युद्धस्तर पर कार्य करबाक आवश्यकता बुझाइछ। व्यक्तिगत विकास केर चिन्तन यथार्थ आर जायज रहितो भाषा-संस्कृति प्रति समर्थन मूल्य व पहिचानक विशिष्टताकेँ बचेबाक लेल अभियान सब चलैत रहबाक चाही।

एहि सब कार्यक्रम सँ मैथिलीक बाजार मूल्य बढि रहल अछि। ब्यर्थ चिन्ता सँ दूर ओ अपन दर्शक केँ मनोरंजन प्रदान कय रहल अछि। मैथिली लेल यैह सौभाग्यक बात भेल जे नामो लेल जिबैत अछि आर मैथिली मे सेहो नव प्रयोग कैल जा रहल छैक। कलाकार केँ अपन कला व ओकर दर्शक केर नीक चिन्ता रहैत छैक। एहि मे समाजक आन वर्ग तखनहि बाजय जखन ओकरा मे कलाकारक जीविकोपार्जन हेतु सोचबाक आ करबाक कूबत हो। बाकी कलाकार कोना जियत ताहि लेल हम सब फोकट मे उपदेश नहि दय सकैत छी। सोच अलग-अलग भऽ सकैत छैक। पक्ष-विपक्ष सेहो होइते छैक। एहि दिशा मे आरो विचार आ बहस होइत रहय ओना।