कुर्सों, दरभंगा। मैथिली जिन्दाबाद!!
शारदीय नवरात्राक नौ दिनक पूजा (यदा-कदा आठहि दिन मे नवो तिथि सेहो पड़ैछ), तदोपरान्त विजयादशमीक अन्तिम दिवस जेकरा मिथिला मे ‘जतरा’ कहल जाएछ, आर ताहि दिन वा ऐगला दिन कैल जायवला भसाओन… सब किछु शान्तिपूर्ण ढंग सँ संपन्न भेल।
एकटा खास बात सब कियो अनुभूति करैत अछि जे भगवतीक नव मूर्तिक भसाओन केलाक बाद वा भगवतीक यात्रा केलाक बाद यानि विसर्जन केलाक बाद मन्दिर ओ पूजा स्थल पर एकटा अजीब तरहक विरानगी सन नजारा देखाइछ। कतय १० दिनक धूमधाम आ साँझ-भोर या राति-दिन पूजा-पाठ व कीर्तन-भजन केर माहौल आ कतय एकाएक भगवतीक विसर्जन सँ ओ संपूर्ण यज्ञ-अनुष्ठान पर लागल ब्रेक… विरानगी – सुन-सुन लागब स्वाभाविके छैक।
दुर्गा देवीक अनेको रूप केर पूजा एहि नवरात्रा मे संपन्न कैल जाएछ। अलग-अलग ठाम पर अलग-अलग विधान सँ पूजा करितो संपूर्ण मिथिला मे तांत्रिक पद्धति सँ भगवती केँ चढावाक रूप मे पशुबलि सेहो देल जाएत अछि। महापूजाक रूप मे प्रसिद्ध अष्टमी रात्रिक पूजा संपन्न करैत पहिल बलिप्रदान देल जाएछ कुर्सों दुर्गास्थान मे, तदोपरान्त नवमीकेँ कबूला केनिहार द्वारा ब्राह्मण-कुमारिक भोजन करेलाक बाद पशुबलि देबाक परंपरा अछि।
मान्यता अछि जे महापूजा देखैत रात्रि जागरण कैल जाय। ताहि जागरण लेल भिन्न-भिन्न प्रकारक उपाय कैल जाइछ। एक तरफ भजन-कीर्तन तऽ दोसर तरफ मनोरंजनात्मक अनुष्ठान। कहय मे हर्ज नहि जे मनोरंजनात्मक अनुष्ठान ‘निशा’ सँ बदलि ‘नशा’ मे परिणत ‘नशा पूजा’ केर रूप मे मनेबाक खराब परंपरा जहिं-तहिं देखय मे भेटैछ। नव पीढी नशा मे परिक गेल अछि आर नशाक प्रयोग लेल पर्यन्त पूजा-परंपरा केँ आधार मानि अपन मन केँ बहलेबाक नीति देखि छुब्ध होएत अछि कतेको लोक।
विदित हो जे पूजा-परंपरा सँ शक्ति आ उर्जाक ग्रहण करब प्रथम उद्देश्य थीक, ताहि मे विभिन्न वीभत्स परंपराक प्रवेश केँ वर्ज्य राखब जरुरी अछि। युवा पीढी मे नशाक बढैत प्रयोग सँ समाज अशान्त बनि रहल अछि। जेम्हर देखू तेम्हर कोनो न कोनो झगड़ा आरंभ भऽ जाइछ आ कारण रहैत अछि नशाक प्रयोग। देवीक पूजा मातृशक्तिक पूजा थीक, लेकिन एहि अवसर पर स्त्रीक विभिन्न रूपक मखौल उड़ायब सेहो कोना दैन लगैत अछि। आर्केस्ट्रा मे धी-बेटीकेँ छोट-छोट कपड़ा मे नाचैत देखि युवा समाज किछु बेसिये रमाइत अछि। धी-बेटी नर्तकी बनय लेकिन खराब प्रदर्शन आ उन्माद भरबाक लेल ई व्यवहार कदापि नहि हो। तहिना मिथिला अपन मैथिलीक मिठास सँ दूर अभद्र भाषा आ बोली सँ भरल डीजे धून पर खूब संगीत सुनि रहल अछि। एहि लेल मना केलाक बादो केओ नवतुरिया मानैत नहि अछि। एहने किछु चिन्ता-चिन्तनक संग समाप्त भेल एहि बेरुक दुर्गा पूजा आ फेर एक वर्षक बाद स्वागत करब हमरा लोकनि एहि सुन्दर परंपरा केँ, लेकिन वर्जित राखब खराब व्यवस्था आ कूसंग केँ।