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विजयादशमी संग जुड़ल रहैछ बहुते रास अन्तर्भावना: बचपनक संस्मरण

बचपन आ दुर्गा पूजा

4021अन्हर भोरे उठि संगी-संङोर के उठबैत दौड़ा-दौड़ी शुरू! बाबी-काकी-माय-बहिन सभ अपन फूलबारीके रक्षा करैत छथि आ छौंड़ा-मांरड़ि सभ दौड़ि पड़ैछ सार्वजनिक फूलबारी सँ विभिन्न तरहक फूल तोड़ि फूलडाली भरि-भरि भगवती घर केँ पूर्ण सुवासित राखय लेल। जेना जीवनक सभ सँ पैघ लक्ष्य के प्राप्तिसँ केकरो खुशी होइत छैक, किछु तहिना धिया-पुता अवस्थामें दुर्गा-पूजा में बेसी सऽ बेसी प्रकार के फूल भैर-भैर फूलडाली तोड़ला-बिछला-अनला सँ होइत छैक जेना आइ स्मृतिमें आबि रहल अछि। फूल कनैल (उजरा, पीरा, ललका), सिंगहार, अरहुल (ललका, उजरा, पीरा – एकहारा एवं बहुधारा आदि), लंकेसर (उजरा, ललका, पीरा, छीट रंगके एकहारा-दोहारा-बहुधारा आदि), अपराजिता, गुलाब (अनेको प्रकारक), बेली, चमेली, गेंदा, तीरा (अनेको प्रकारक)…. ऊफ आब तऽ नामो नहि स्मृतिमें आबि रहल अछि। कम से कम दू सऽ अढाइ घंटा तक घूड़दौर मचल रहैछ जे अधिक सँ अधिक रास फूल तोड़ि जमा करी। सभके हिस्सा लागल रहैत छैक आ सभके जेना अपन कर्तब्य ईशक भक्तिमें स्वाभाविक रूपमें लीन रखैत छैक। देखादेखी सही, लेकिन अबोध बच्चोपर दैविक कार्यके जोश सवार रहैत छैक। एकरा शुरुआत के चरण मानी।

दोसर चरणमें स्नान-ध्यान-पूजा-पाठ के रहैछ। सभसँ पहिल कार्य भगवती घर के पवित्र बनायब रहैछ। घरके वृद्ध-वृद्धा सँ लैत बच्चा-बच्चा भोरे-भोर स्नान करैत भगवती घरमें खूब लगनसँ पूजा आ सस्वर पाठ करैछ। भजन-कीर्तन-विनती आदि के सहयोग जोर पर रहैछ। परिवारके सभ सदस्य लयबद्ध गबैछ –

जय शिव प्रिये शंकर प्रिये, जय मंगले मंगल करू।
जय अम्बिके जय त्र्यंबिके, जय चण्डिके मंगल करू!

अनन्त शक्तिशालिनी, अमोघ शस्त्रधारिणी,
निशुम्भ-शुम्भ मर्दिनी, त्रिशूल चक्र पाणिणी!

जय भद्रकाली भैरवी, जय भगवती मंगल करू!
जय वैष्णवी विश्वंभरी, जय शांभवी मंगल करू!
जय शिव प्रिये…

कराल मुख कपालिनी, विशाल मुण्डमालिनी,
असीम अट्टहासिनी, त्रिमूर्ति सृष्टिकारिणी,

हे ईश्वरी परमेश्वरी, सर्वेश्वरी मंगल करू!
कात्यायनी नारायणी, माहेश्वरी मंगल करू!
जय शिव प्रिये…

प्रकृति अहीं सुकीर्ति अहीं, दया जे अहीं, क्षमा जे अहीं,
स्वधा जे अहीं छटा जे अहीं, कला जे अहीं प्रभा जे अहीं,ज

दुःखहारिणी सुखकारिणी, हे पार्वती मंगल करू!
हे ललितशक्ति प्रदायिनी, सिद्धेश्वरी मंगल करू!
जय शिव प्रिये…

तदोपरान्त भगवतीस्थान जाय ओहिठाम पुरनका मन्दिर आ नव-निर्मित मूर्तिक मन्दिर – दुनू जगह क्रमशः जल-फूल-पाती अर्पण करैत माँके कोरा में बैसि किछु क्षण हुनकहि पाठ आ विनती गबैत पुनः घर वापसी आ जलखै कयलाके बाद मेला घूमय जाय। मेलामें मित्र सभ संग अलगे आनन्द भेटय। पुनः खाय के समय घर वापसी, आ फेर मेले पर चलि जेनाय। एहि बीच भगवतीके विधिवत्‌ पूजा सेहो सम्पन्न होइक आ प्रसाद लय बेरहट लेल घार एनाय। पुनः संध्याकाल मन्दिर जाय साज-सज्जा-रोशनी आदिक इन्तजाममें बानरी सेना बनि काज केनाय। सैकड़ों-हजारों-लाखों माटिक दिवारी में दीप-दर्शन उपरान्त पुनः सभटा के किनार लगौनाइ। रातिक दस-एगारह बजे धरि मन्दिरके परिसरमें कीर्तन-भजन-गायन के आनन्द लैत पुनः रात्रि-विश्राम लेल मात्र घर लौटनाइ। किनसाइद कोनो नटुआ-नाच, रामलीला, ग्रामीणक द्वारा खेलायवाला नाटक आदि भेल तऽ ओहिमें रमि जेनाय। हाय रे बचपन आ दुर्गा पूजा!

आब बात किछु आर छैक! हम सभ धिया-पुताके बाप बनि गेल छी आ धिया-पुता मजबूरीमें गामक संस्कार सऽ दूर भऽ गेल अछि। तदापि हमर स्मृति सऽ ओकर संस्कार बनल रहैक एहि लेल ई कथा अपन चारू बच्चा आ पाठकवृंदके बच्चा सभ लेल समर्पित करैत छी।

हरिः हरः!

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